यूपी में सामने आया पुलिस का नरपैशाचिक चेहरा

राम की धरती खून से लाल हो गयी है। कृष्ण के मथुरा से लेकर बिजनौर तक खून की होलियां खेली जा रही हैं और अहिंसा के पुजारी बुद्ध के इलाके में हिंसा अपने परवान पर है। पूरा उत्तर प्रदेश श्मशान घाट में तब्दील हो गया है। पुलिस की गोलियों से छलनी युवाओं के सीनों से निकली खून की बदबू पूरे सूबे में महसूस की जा सकती है। यहां गलियों में मौत नाच रही है। और पूरे सूबे में सन्नाटा है। यह सब कुछ लोकतंत्र की खड़ी दोपहरी में हो रहा है। और उन लोगों के जरिये किया जा रहा है जिन्होंने संविधान को महफूज रखने की शपथ ले रखी है। हत्याएं वो खाकीवर्दीधारी कर रहे हैं जिन्हें जनता की सुरक्षा के लिए रखा गया है।

उनके इस नरपैशाचिक तांडव को देखकर अंग्रेजों के दौर की पुलिस भी शर्मा जाए। जलियांवाला बाग को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई दूसरी नजीर ऐसी मिले जिसमें भीड़ के सीने पर अंग्रेजी पुलिस ने सीधे गोली चलायी हो। लेकिन पिछले तीन दिनों में यूपी समेत देश में एक नहीं बीसियों ऐसी घटनाएं मिल जाएंगी जहां पुलिस की बंदूक थी और सामने युवक का सीना। या फिर भागते हुए उनकी पीठ को निशाना बनाया गया। वह जामिया से लेकर मंगलुरू और मेरठ से लेकर लखनऊ कहीं भी देखा जा सकता है। सभी जगहों का मोडस आपरेंडी एक है। पहले शांतिपूर्ण जुलूस निकलता है और बाद में हिंसक हो जाने पर पुलिस सीनों को निशाना बना-बना कर गोलियां दागनी शुरू कर देती है।

दरअसल पुलिस को दमन के लिए हिंसा का बहाना चाहिए होता है। लिहाजा इसके लिए उसने एक रास्ता निकाल लिया है। पुलिस अपने ही पाले असामाजिक तत्वों के जरिये या फिर खुद ही हिंसा करती है और फिर उसके नाम पर दमनचक्र चलाया जा रहा है। जगह-जगह से सामने आए वीडियो इस बात की पुष्टि करते हैं। हिंसा की आग को न केवल पुलिस के इशारे पर फैलाया जा रहा है बल्कि वह खुद उसमें सीधे शरीक है। लखनऊ में नमाजियों पर पुलिस द्वारा किए गए पथराव और गाड़ियों को जलाए जाने की छूट इस बात के खुले प्रमाण हैं। खाकीधारियों के हिंसक होने का नतीजा यह है कि अब तक आधिकारिक तौर पर सूबे में 16 मौतें हो चुकी हैं और गैरआधिकारिक तौर पर यह आंकड़ा उसके पार जा सकता है।

नेट बंद करने के बाद बताया जा रहा है कि पुलिस ने संगठित तौर पर जगह-जगह मुसलमानों के घरों पर रेड डाले हैं और इस दौरान उनके सामानों को तहस-नहस करने से लेकर उनकी बहू-बेटियों को मारने और अपमानित करने में कोई कोर कसर नहीं बाकी रखी गयी है। बिजनौर के एक मुस्लिम परिवार की रूह कंपा देने वाली घर की तबाही की घटना अब सार्वजनिक हो चुकी है। और यह अकेली घटना नहीं है शहर-शहर में यह वाकया दोहराया जा रहा है। तरस आती है उस पुलिस पर जिसने संविधान की शपथ ले रखी है। क्या खाकीधारियों को जनता के साथ इसी तरह से पेश आने की ट्रेनिंग दी जाती है? उनकी आखिरी जवाबदेही शासन के प्रति है या फिर जनता के? हालात जहां पहुंच गए हैं उससे तो लगता है कि आरएसएस-बीजेपी को अब किसी गेस्टापो की भी जरूरत नहीं है। क्योंकि पुलिस खुद उस काम को करने के लिए तैयार है। लिहाजा संघ अब अपने निक्करधारियों को रिजर्व फोर्स के तौर पर रख सकता है।

जिस तरह से उसका सांप्रदायिक और पक्षपाती चरित्र सामने आ रहा है कल को अगर अपने पूर्व कहे के मुताबिक योगी कब्रों से मुसलमानों की बहू बेटियों को निकालकर उनका बलात्कार करने का निर्देश जारी कर दें तो उसे भी लागू करने में इन खाकीधारियों को कोई परहेज नहीं होगा। लेकिन मासूमों और निर्दोषों के खून से सनी ये वर्दियां अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकती हैं। आज न सही कल उन्हें यह जवाब देना ही होगा। क्योंकि ये हालात स्थाई नहीं रहने वाले हैं। दरअसल बीजेपी एक हारी बाजी को अपने पक्ष में करने की कवायद में जुट गयी है। मोदी और शाह को पता है कि पीछे जाने का मतलब न केवल राजनीतिक तौर पर खात्मा बल्कि व्यक्तिगत तौर पर भी उन्हें बड़ी क्षति उठानी पड़ सकती है। लिहाजा उनके पास इस मामले को लेकर अब आगे बढ़ने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं बचा है। रामलीला मैदान से पीएम द्वारा संसद से पारित कानून के पक्ष में मजबूती से खड़े होने का आह्वान इसी का लक्षण था।

एक घंटे के भाषण में एक हजार से ज्यादा झूठ मोदी की बौखलाहट को जाहिर कर रहा था। बीजेपी का पूरा केंद्रीकरण अब यूपी पर है। क्योंकि उसे लग रहा है कि अगर यूपी को उसने अपने रास्ते पर ला दिया तो समझिए आधा हिंदुस्तान खड़ा हो गया। लिहाजा यूपी में उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। सूबे में जब नेट सेवाओं की बंदी की घोषणा की गयी तभी यह बात साफ हो गयी थी कि कुछ बड़ा घटने जा रहा है। उसके बाद शहर-शहर और कस्बों-कस्बों में दमन का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अब लोगों के सामने है। अभी तक कुछ रिपोर्ट ही आ पायी हैं। बहुत कुछ सामने आना बाकी है। लेकिन जो कुछ भी है वह न केवल भयावह है बल्कि रूह कंपा देने वाला है।

यह सही बात है कि तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक मामले को हिंदू बनाम मुस्लिम बनाने में बीजेपी नाकाम रही है। कल रामलीला मैदान से पीएम मोदी ने एक बार फिर इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की। जब उन्होंने कहा कि ये लोग तिरंगा पकड़ने लगे हैं। और उम्मीद है कि एक दिन आतंकवाद का भी विरोध इसी तरह से तिरंगा पकड़ कर करेंगे। पिछले हफ्ते झारखंड चुनाव के दौरान भी मोदी ने इसी बात को दूसरी तरह से कहा था। उन्होंने कहा था कि आंदोलन में उतरने वालों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है। पूरे देश में इसकी कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी। लेकिन मोदी पर अब इन बातों का कोई असर नहीं पड़ता है। वह खुलकर अपने असली रूप में आ गए हैं। और टाइम मैगजीन में पत्रकार आतिश तासीर का दिया डिवाइडर इन चीफ का नाम अब उनके लिए एक तरह का तमगा हो गया है।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संस्थापक संपादक हैं।)

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