छह साला जश्न में डूबे मीडिया का यूरोपियन पार्लियामेंट और एनएचआरसी की सरकार को नोटिस से भला क्या वास्ता!

नई दिल्ली। क्या आपको पता है कि यूरोपियन पार्लियामेंट से सम्बंधित मानवाधिकार संगठन ने गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिख कर गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े और दूसरे ‘एक्टिविस्टों’ की गिरफ्तारी पर गहरी चिंता ज़ाहिर की है? क्या आप को मालूम है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन (एनएचआरसी) ने भारतीय रेलवे को एक नोटिस जारी करते हुए कहा है कि रेलवे प्रशासन का रवैया मजदूरों के प्रति बहुत ही ज़ालिमाना है? 

एक बार फिर इन ख़बरों को मुख्यधारा के मीडिया ने दबा दिया। खास कर हिंदी समाचार पत्र इस पर खामोश रहे। वहीं दूसरी तरह मीडिया साहेब की सरकार के छह साल पूरे होने के मौके पर जश्न में सर-मस्त था।

तभी तो पिछले दो तीन दिनों से मुख्यधारा की मीडिया भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार की बरसी पर एक के बाद एक ‘पॉजिटिव’ ख़बर लगाकर ‘गिफ्ट’ पेश कर रहा है। कहीं सरकार की प्रशंसा में गृह मंत्री अमित शाह का लेख छप रहा है, तो कहीं प्रधानमंत्री को खुद ही अपनी सरकार की तारीफ़ करने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। ‘राष्ट्र के नाम’ के शीर्षक से उनके एक पत्र को प्रमुखता से हर जगह छापा गया है। पत्र छापने से पहले अख़बार की सम्पादकीय टीम ने इतना भी नहीं सोचा कि इस पत्र पर लिखे गए ज्यादातर अक्षर प्रोपगंडा ही दिखाई पड़ता था। 

वहीं कुछ ऐसे भी अख़बार थे जिन्होंने उपर्युक्त खबर को दफ़्न होने से बचा लिया। मिसाल के तौर पर उर्दू दैनिक “इन्केलाब” (मुंबई, 31 अप्रैल) ने मानवाधिकार की आपत्तियों को प्रमुखता से प्रकाशित किया। जब हिंदी के बहुत सारे अख़बारों ने अपने प्रथम पेज पर मोदी के उपर्युक्त पत्र को ही ख़बर बनाया है, वहीं उर्दू दैनिक ने अपने पहले पृष्ठ पर 7 कॉलम में यह ख़बर लगाई,

“मुल्क में हुकूक-ए-इंसानी (मानवाधिकार) के कारकुनानों (कार्यकर्ता) की गिरफ़्तारी और उन पर दहशतगर्दी की दफात (धाराएँ) आयद (लगाने) करने पर यूरोपी पार्लियामेंट का इज़हार-ए-तशवीश (चिंता)”. 

पूरी ख़बर यह है कि यूरोपियन पार्लियामेंट की ‘सब-कमेटी’ ने भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ यूएपीए जैसा काला कानून लगाये जाने और उन्हें क़ैद करने की घटनाओं पर गहरी चिंता जाहिर की है। साथ ही साथ उसने सारे राजनीतिक क़ैदियों की रिहाई की भी मांग की है।   

गृहमंत्री अमित शाह को लिखे अपने पत्र में ‘यूरोपियन यूनियन स्पेशल रिप्रेजेन्टेटिव फॉर ह्यूमन राइट्स’ मारिया एरीना ने कहा है कि यह बहुत ही चिंता का विषय है कि भारत में गरीबों और वंचित समुदाय की बात करने वाले ‘ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट’ को परेशान किया जा रहा है।

इस संगठन ने नागरिकता-कानून का विरोध करने वाले लोगों पर यूएपीए लगाये जाने और उन्हें “आतंकवादी” क़रार दिए जाने पर बहुत सारे सवाल खड़े किए हैं। 

सफूरा ज़रगर, गुलफिशां, सैफ उर-रहमान, मीरान हैदर, डॉ. कफ़ील खान, आसिफ इक़बाल, सरजील इमाम की गिरफ़्तारी पर भी सवाल उठाये हैं। आखिर में यूरोपियन मानवाधिकार संगठन ने मानवाधिकार के लिए काम कर रहे लोगों के ख़िलाफ़ करवाई बंद करने की मांग की।

इसी बीच एनएचआरसी ने रेलवे और सरकार को भी गरीब मजदूरों की परेशानियों के लिए रेलवे को नोटिस भेजा है। इस खबर का भी स्रोत “इन्केलाब” (मुंबई, 31 मई, पृ. 13) ही था। उर्दू दैनिक आगे लिखता है कि एनएचआरसी ने मजदूरों के साथ रेलवे प्रशासन के रवैये को इन्तहाई (बहुत ही) ज़ालिमाना करार दिया है। उसने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन, केन्द्रीय गृह सचिव, बिहार और गुजरात के मुख्य सचिव को नोटिस भेज कर चार हफ़्तों में जवाब तलब किया है। उन सब से यह भी पूछा गया है कि उन्होंने यात्रियों की बुनयादी सुविधाओं के लिए क्या क़दम उठाये हैं।

मजदूरों की परेशानियों से आहत होकर एनएचआरसी अपने आप को यह कहने से नहीं रोक सका कि “राज्य ने ट्रेन पर चढ़ रहे गरीब मजदूरों की जान की रक्षा करने में नाकाम रहा है” जो कि मानवाधिकार का “बड़ा उल्लंघन” है। 

मगर देश का मीडिया, खासकर हिंदी समाचारपत्रों को इन ख़बरों से ज्यादा सरोकार नहीं है। प्रथम पेज से लेकर सम्पादकीय पेज तक साहेब के नाम लिखने के बाद जगह बचे तब तो इन ख़बरों के लिए स्थान मुहैया कराया जाये!  

(अभय कुमार जेएनयू से पी.एच.डी. हैं. इनकी दिलचस्पी माइनॉरिटी और सोशल जस्टिस से जुड़े सवालों में हैं। इससे पहले वह आईआईएमसी (नई दिल्ली) से पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा हासिल कर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में बतौर रिपोर्टर काम कर चुके हैं। आप अपनी राय इन्हें debatingissues@gmail.com पर भेज सकते हैं।)  

अभय कुमार
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