राजनीतिक विरोध का शत्रुता में बदलना स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत नहीं: चीफ जस्टिस रमना

भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने शनिवार को राजनीति विशेषकर सत्ताधारी दल की राजनीति की एक दुखती रग पर यह कहकर हाथ रख दिया कि राजनीतिक विरोध का शत्रुता में बदलना स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत नहीं है। उन्होंने कहा कि कभी सरकार और विपक्ष के बीच जो आपसी सम्मान हुआ करता था वह अब कम हो रहा है। चीफ जस्टिस एनवी रमना राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की राजस्‍थान शाखा के तत्वावधान में ‘संसदीय लोकतंत्र के 75 वर्ष’ संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

इसी कार्यक्रम में चीफ जस्टिस एनवी रमना सहित सुप्रीम कोर्ट के जजों और देश भर के हाईकोर्ट के सीजे की मौजूदगी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि चेहरे देखकर जजमेंट होते हैं। मुख्यमंत्री गहलोत ने बीजेपी पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाते हुए राजस्थान में सरकार गिराने का मुद्दा भी  उठाया। गहलोत ने कहा कि देश में हालात बहुत गंभीर हैं। सरकारें बदल रही हैं। बताइए आप, गोवा, मणिपुर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सरकारें बदल दीं।

चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि राजनीतिक विरोध, बैर में नहीं बदलना चाहिए, जैसा हम इन दिनों दुखद रूप से देख रहे हैं। ये स्वस्थ लोकतंत्र के संकेत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सरकार और विपक्ष के बीच आपसी आदर-भाव हुआ करता था। दुर्भाग्य से विपक्ष के लिए जगह कम होती जा रही है। चीफ जस्टिस ने कहा कि एक मजबूत, जीवंत और सक्रिय विपक्ष शासन को बेहतर बनाने में मदद करता है और सरकार के कामकाज को सही करता है, लेकिन दुर्भाग्य से देश में विपक्ष के लिए जगह कम होती जा रही है। हम विस्तृत विचार-विमर्श और जांच के बिना कानूनों को पारित होते देख रहे हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि मजबूत, जीवंत और सक्रिय विपक्ष शासन को बेहतर बनाने में मदद करता है और सरकार के कामकाज को ठीक करता है। उन्होंने कहा कि एक आदर्श दुनिया में, यह सरकार और विपक्ष की सहकारी कार्यप्रणाली है जो एक प्रगतिशील लोकतंत्र की ओर ले जाएगी। आखिरकार, प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी सभी हितधारकों का संयुक्त प्रयास है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि शांतिपूर्ण और समावेशी समाज का निर्माण केवल लोक प्रशासन का मामला नहीं है, बल्कि एक राजनेता का भी कर्तव्य है। एक साल पहले, स्वतंत्रता दिवस पर, उन्होंने बहस की गुणवत्ता में गिरावट और कई बार विधायी निकायों में बहस की कमी पर भी विचार व्यक्त किए थे।

उन्होंने कहा कि इस अवसर पर, मुझे एक सुझाव देना है। कानून बनाना एक जटिल प्रक्रिया है। प्रत्येक विधायक की कानूनी पृष्ठभूमि की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। यह आवश्यक है कि विधायिका के सदस्यों को कानूनी पेशेवरों से गुणवत्तापूर्ण सहायता प्राप्त हो, ताकि वे वाद-विवाद में सार्थक योगदान करने में सक्षम हों।

इसी कार्यक्रम में राजस्थान के मुख्यमंत्री ने कहा कि कई जज फेस वैल्यू देखकर फैसला देते हैं। वकीलों की फीस इतनी ज्यादा है कि गरीब आदमी सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकता। केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने भी गहलोत का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि जो लोग अमीर होते हैं, वे लोग अच्छा वकील कर लेते हैं। पैसे देते हैं। आज दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में कई वकील ऐसे हैं, जिन्हें आम आदमी अफोर्ड ही नहीं कर सकता है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि गरीब आदमी आज सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकता। इसको कौन ठीक कर सकता है। समझ से परे है। अच्छे-अच्छे लोग सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकते।गहलोत ने कहा कि फीस की भी हद होती है। एक करोड़, 80 लाख, 50 लाख रुपए। पता नहीं देश में क्या हो रहा है? यह बात मैंने एक बार चीफ जस्टिस की बैठक में भी उठाई थी। यह जो स्थिति बनी है, उस पर भी चिंतन करें। कोई कमेटी बने। कुछ तरीका तो हो।

गहलोत ने कहा कि जज भी फेस वैल्यू देखकर फैसला देते हैं तो आदमी क्या करेगा। अमुक (खास व्यक्ति) वकील को खड़ा करेंगे तो जज साहब इम्प्रेस होंगे। अगर यह स्थिति है तो इसे भी आपको समझना होगा। संविधान की रक्षा करना हम सबका दायित्व है।

कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा- जो लोग अमीर होते हैं वे अच्छा वकील कर लेते हैं। पैसे देते हैं। आज दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में कई वकील ऐसे हैं, जिन्हें आम आदमी अफोर्ड ही नहीं कर सकता है। एक-एक केस में सुनवाई के एक वकील 10 लाख-15 लाख रुपए चार्ज करेंगे तो आम आदमी कहां से लाएगा। कोई भी कोर्ट केवल प्रभावशाली लोगों के लिए नहीं होना चाहिए। यह हमारे लिए चिंता का विषय है। मैं मानता हूं कि न्याय का द्वार सबके लिए हमेशा बराबर खुला रहना चाहिए।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि देश में हालात बहुत गंभीर हैं। सरकारें बदल रही हैं। बताइए आप, गोवा, मणिपुर, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में सरकारें बदल दीं। शिंदे साहब बैठे हैं हमारे, एक शिंदे जी ये बैठे हुए हैं, एक शिंदे मुख्यमंत्री बन गए। ये तमाशा है? क्या लोकतंत्र है अभी देश के अंदर? कैसे रहेगा लोकतंत्र? अगर चुनी हुई सरकारें हॉर्स ट्रेडिंग से बदली जाएंगी तो कैसे चलेगा। ये तो मेरी सरकार पता नहीं कैसे बच गई, ये भी आश्चर्य हो रहा है देश के अंदर, वरना आपके सामने मैं खड़ा नहीं होता। रिजिजू जी के सामने कोई दूसरा मुख्यमंत्री आपको मिलता यहां अभी। टच एंड गो का मामला ही था वहां पर। मैं समझता हूं कि नाजुक है, हमें उसको देखना पड़ेगा।

गहलोत ने कहा- जिंदगी में मैं मुख्यमंत्री बना हूं, कोई एमएलए बनता है, एमपी बनता है, प्राइम मिनिस्टर बनता है, आप जजेज बनते हैं, कितना गर्व होता है कि जिंदगी में देश सेवा का मौका मिला है। जिंदगी एक हजार साल की नहीं होती है। जो हमें वक्त मिला है जिंदगी का, उस वक्त में कुछ करें हम लोग देश के लिए करें। उसके अंदर अगर हम लोग, ये सोचें कि रिटायरमेंट के बाद में हमें क्या बनना है, या क्या बन सकते हैं, ये चिंता ब्यूरोक्रेसी में रहेगी, जजेज में रहेगी, तो फिर कैसे काम चलेगा?

गहलोत ने कहा कि आज देश में माहौल ऐसा बन गया है जो चिंता पैदा कर रहा है। वो चिंता समाप्त होनी चाहिए। अभी जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत जी ने कुछ कह दिया, तो 116 लोगों को खड़ा कर दिया गया। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जजों, ब्यूरोक्रेसी को, बड़े-बड़े अधिकारियों को खड़ा कर दिया, पता नहीं कौन-कौन थे वो? कैसे तो वो मैनेज किया गया? किसने मैनेज किया है और आपने एक इश्यू बना दिया देश के अंदर। देश के अंदर जो हालात हैं उन पर सुप्रीम कोर्ट के जजेज ने अपनी भावना व्यक्त की थी।

गहलोत ने कहा- जोधपुर हाईकोर्ट बिल्डिंग के उद्घाटन में राष्ट्रपति, सीजेआई, लॉ मिनिस्टर के सामने मैंने कुछ बातें कहीं थीं। आप बताइए, 4 सुप्रीम कोर्ट जजेज ने कहा कि लोकतंत्र खतरे में है। हम सबने कहा कि इतनी बड़ी बात कह दी। जजेज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि ये फला-फला हो रहा है सुप्रीम कोर्ट के अंदर और बहुत चिंता का विषय बन गया है, उनमें से एक भारत के चीफ जस्टिस बन जाते हैं मिस्टर गोगोई। बाद में वो ही तरीका चलता है जो पहले चल रहा था। तो मैंने महामहिम राष्ट्रपति के सामने पूछा कि मिस्टर गोगोई पहले ठीक थे या अब ठीक हैं? समझ के परे है और बाद में वो मेंबर ऑफ पार्लियामेंट बन गए, नॉमिनेट हो गए। ये कम से कम कुछ तो बातें हम लोगों को खुद को सोचनी पड़ेंगी।

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