ऑप इंडिया के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही का निर्णय एटार्नी जनरल के पाले में

टीएमसी नेता साकेत गोखले ने भारत के महान्यायवादी (एटार्नी जनरल) केके वेणुगोपाल से पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के मामले में की गई मौखिक टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट का कथित रूप से अपमान करने के लिए वेब पोर्टल ओप इंडिया के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की है।

इस हफ्ते की शुरुआत में शीर्ष अदालत ने नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी को लेकर दर्ज एफआईआर को दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर कोर्ट ने नूपुर शर्मा को फटकार लगाई। इसके बाद कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कोर्ट पर टिप्पणियां की गईं।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अवकाश पीठ ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ परेशान करने वाले बयान देने के लिए भाजपा की पूर्व प्रवक्ता की खिंचाई की। पीठ ने यह भी नोट किया कि उसने केवल सशर्त माफी मांगी, वह भी अपनी टिप्पणी के खिलाफ सार्वजनिक हंगामे के बाद।

पत्र याचिका में, गोखले ने अपने ट्वीट और लेखों पर वेब पोर्टल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की मांग करते हुए दावा किया है कि यह न केवल लोगों के मन में सुप्रीम कोर्ट की अखंडता पर आक्षेप डालता है बल्कि वे देश की सर्वोच्च न्यायपालिका को बदनाम करने का भी प्रयास करते हैं।

पत्र में वेब पोर्टल के अलावा इसकी संपादक नूपुर जे शर्मा के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करने की भी मांग की गई है। यह पत्र ऑप इंडिया द्वारा प्रकाशित 1 जुलाई के एक ट्वीट को संदर्भित करता है जिसमें लिखा है, “सुप्रीम कोर्ट इस्लामवादियों की तरह बोलता है। नूपुर शर्मा की ‘ढीली जीभ’ को इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा हिंदू व्यक्ति के सिर काटने के लिए दोषी ठहराता है।

पत्र में कहा गया है कि उक्त ट्वीट के साथ सुप्रीम कोर्ट शरीयत का अनुसरण करता है? शीर्षक वाला एक लेख था। पत्र में लिखा है कि ऑप इंडिया के उपर्युक्त ट्वीट और उनके द्वारा प्रकाशित और उनके संपादक नूपुर जे शर्मा द्वारा लिखे गए लेखों के बयान स्पष्ट रूप से आम भारतीयों के दिमाग में भारत के सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को कम करते हैं और भारत के सुप्रीम कोर्ट की संबंधित पीठ द्वारा की गई मौखिक टिप्पणियों पर गंभीर, झूठे और दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाते हैं।

गोखले ने पत्र में कहा है कि कथित कृत्य स्पष्ट रूप कोर्ट्स की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (b)(i) के तहत अदालत की आपराधिक अवमानना के रूप में दंडनीय है। इस प्रकार पत्र में ऑप इंडिया वेबसाइट और इसकी संपादक नूपुर जे शर्मा के खिलाफ अदालती अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए एजी से सहमति मांगी गई है।

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस पारदीवाला ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए सोशल और डिजिटल मीडिया पर हो रहे जजों के खिलाफ व्यक्तिगत हमलों पर चिंता व्यक्त की। और कहा कि इससे खतरनाक परिदृश्य पैदा होगा। जस्टिस पारदीवाला ने यह भी कहा कि कानून के शासन के लिए मीडिया ट्रायल सही नहीं है। भारत में, जिसे पूरी तरह से परिपक्व या सूचित लोकतंत्र के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, सोशल डिजिटल मीडिया को अक्सर पूरी तरह से कानूनी और संवैधानिक मुद्दों का राजनीतिकरण करने के लिए नियोजित किया जाता है।

उन्होंने कहा कि संसद को विशेष रूप से संवेदनशील मामलों में विचाराधीन विचारणों के संदर्भ में सामाजिक और डिजिटल मीडिया के विनियमन के मुद्दे को देखना चाहिए। वह कैन फाउंडेशन के साथ आरएमएनएलयू और एनएलयूओ द्वारा आयोजित द्वितीय जस्टिस एचआर खन्ना मेमोरियल राष्ट्रीय संगोष्ठी में “वोक्स पॉपुली बनाम कानून का नियम: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया” विषय पर एक व्याख्यान दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया ट्रायल के कारण न्याय व्यवस्था की प्रक्रिया में अनुचित हस्तक्षेप होता है। उन्होंने इसके कई उदाहरण भी बताए। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि डिजिटल और सोशल मीडिया का विनियमन विशेष रूप से संवेदनशील विचाराधीन मामलों के संदर्भ में जरूरी है। इस संबंध में उपयुक्त विधायी और नियामक प्रावधानों को पेश करके संसद द्वारा विचार किया जाना चाहिए।

जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि आधे-अधूरे सत्य को सामने रखने वाले और न्यायिक प्रक्रिया पर बारीक नजर बनाए रखने वाले लोगों का एक वर्ग कानून के शासन के माध्यम से न्याय देने की प्रक्रिया के लिए एक वास्तविक चुनौती बन गया है। आजकल सोशल और डिजिटल मीडिया पर जजों के निर्णय पर रचनात्मक आलोचनात्मक मूल्यांकन के बजाय उनके खिलाफ व्यक्तिगत राय व्यक्त की जा रही है।

उन्होंने कहा कि देश में कानून और हमारे संविधान को बनाए रखने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया को अनिवार्य रूप से विनियमित करने की आवश्यकता है। न्यायाधीशों पर उनके निर्णयों के लिए हमले एक खतरनाक माहौल को जन्म देते हैं। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि भारत को अब भी एक पूर्ण और परिपक्व लोकतंत्र के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। यहां कानूनी और संवैधानिक मुद्दों का राजनीतिकरण करने के लिए सोशल और डिजिटल मीडिया का अक्सर उपयोग किया जाता है।

 उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सोशल मीडिया पर अर्ध-सत्य की जानकारी रखने वाले और कानून के शासन, साक्ष्य, न्यायिक प्रक्रिया और इसकी अंतर्निहित सीमाओं को नहीं समझने वाले लोग हावी हो गए हैं। गंभीर अपराधों के मामलों का हवाला देते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि सोशल और डिजिटल मीडिया की शक्ति का सहारा लेकर मुकदमा खत्म होने से पहले ही आरोपी की गलती या बेगुनाही को लेकर धारणा पैदा कर दी जाती है।

भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा पर जस्टिस सूर्यकान्त और जस्टिस पारदीवाला की पीठ द्वारा की गई मौखिक टिप्पणियों के मद्देनजर जस्टिस पारदीवाला के खिलाफ हाल ही में सोशल मीडिया पर लोगों के नाराजगी जताते हुए आपत्तिजनक टिप्पणियां की और कई यू ट्यूब पर घोर आपत्तिजनक वीडियो चलाये गये।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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