कोरोना एक तरह की नोटबंदी है! सरकार लड़ाई के हर मोर्चे पर नाकाम, लेकिन समर्थक मानने को तैयार नहीं

देश में कोरोना की जो हालत है और उससे निपटने की जो सरकारी व्यवस्था है उसके मद्देनजर कई बातें बहुत दिलचस्प हैं। उससे यही पता चलता है कि या तो सरकार कुछ कर नहीं रही है या जो कर रही है वह बेमतलब, बेअसर है। मैं इसे लिखने से पहले यह सोच रहा था कि इसे साबित करने के लिए कहा जाए तो मैं कैसे साबित करूंगा। आइए, वह भी बता देता हूं।

आप जानते हैं कि 2016 में नोटबंदी का मकसद क्या था (जो उस समय बताया गया, बाद वाला नहीं)। उसमें से एक भी मकसद पूरा नहीं हुआ। पर सरकार और सरकार के समर्थक नहीं माने कि नोटबंदी बेकार थी। ना ही सरकार समर्थकों में कोई मानेगा कि कालेधन को सफेद करने से रोकने की पूरी व्यवस्था ढह गई यह दिखा गया। देसी शैली में कहूं तो नोटबंदी से वह उघार हो गया। वही हाल जीएसटी के साथ हुआ।

कोरोना के मामले में भी ऐसा ही है। पर बात उसकी नहीं होती है। सरकार के किसी घनघोर समर्थक से बात कीजिए तो कहा जाएगा कि सरकार को ये सब करना ही नहीं था। भाजपा की सरकार बनाने के दो खास मकसद थे – धारा 370 हटाना और मंदिर बनाना। एक अघोषित – मुसलमानों को कसना भी है। भक्तगण यही दावा करते हैं और खुश हैं। पता नहीं यह कितना सही है। फिर भी, मंदिर का मामला यहां तक कैसे पहुंचा आप जानते हैं। क्या हुआ, कैसे हुआ, सब। और कहने वाले कहते हैं कि उसमें सरकार या नरेन्द्र मोदी की कोई भूमिका नहीं है। पर वह अलग मुद्दा है।

शिलान्यास संभवतः अंक ज्योतिष की गणना से सफलता पाने की कोशिश के तहत पांच अगस्त को हो ही जाएगा। इस आधार पर आप यह मान सकते हैं कि सरकार ने अपने दोनों मुख्य लक्ष्य (या घोषणा) पूरे कर लिए हैं। पर शिलान्यास के बाद कितनी परियोजनाएं पूरी नहीं हुईं उनकी शायद गिनती न हो सके। धारा 370 को हटाना भले सरकार के लिए कामयाब रहा हो पर वह इसीलिए कामयाब है कि उसे नाकाम बताने वाली खबरें नहीं छपती हैं।

अब कोरोना। इस मामले में खबर ये नहीं कि गृहमंत्री कोरोना संक्रमित हैं। खबर ये है कि कोरोना का सही इलाज मुंबई के नानावती अस्पताल के साथ, दिल्ली के मैक्स और मेदांता आदि अस्पतालों में ही उपलब्ध हैं। बड़े लोग इन्हीं अस्पतालों में जाते हैं और ठीक होकर आते है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री की हालत खराब हुई तो वे मैक्स अस्पताल में रखे गए केंद्रीय गृहमंत्री जब संक्रमित हो गए तो मेदांता में हैं। हालांकि उनके लिए एम्स के डॉक्टर भी हैं। यह अलग बात है कि हमारी आपकी बारी आए तो किसी भी अस्पताल के बेड के इंतजार में या बेड ढूंढते अस्पताल-अस्पताल करते टिकट कट जाए।

सरकार जी ने सेवा के लिए पीएम केयर्स बनाया, चंदा इकट्ठा किया पर खर्चा नहीं किया। वेंटिलेटर खरीदने का दावा किया पर उसका पता ही नहीं चला। इसलिए, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की सलाह पर हनुमान चालीसा पढ़ें, या केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल के सुझाव पर भाभीजी पापड़ का सेवन करें या बाबा रामदेव के कोरोनिल से इम्युनिटी बढ़ाएं – कोरोना फिर भी हो सकता है या फिर जो लोग संक्रमित हो रहे हैं, इन उपायों का सहारा नहीं ले रहे हैं। आज ….. लोग संक्रमित हैं और इस समय देश भर में रोज ….. लोग संक्रमित हो रहे हैं।

भले ही आपने टीवी पर राज्यसभा सदस्य की रचना, ‘कोरोना गो, कोरोना गो ….’ का सस्वर कोरस सुना हो – पर लगता है कोरोना बहरा है। भले ही, हिंदू महासभा के अध्यक्ष चक्रपाणि ने कहा हो कि भारतीय धरती पर उतरने वाले हर व्यक्ति को गौमूत्र पीने और गाय के गोबर में स्नान करने के बाद ही हवाई अड्डे से बाहर आने की अनुमति दी जानी चाहिए, ऐसा अभी शुरू नहीं हुआ है। भले ही सर्वोच्च स्तर पर यह उम्मीद जताई गई थी कि 21 दिन में कोरोना को हरा दिया जाएगा, कोरोना ने हार नहीं मानी है। बत्ती बुझाकर दीया जलाने से वह बिल्कुल भी नहीं डरा है। थाली-ताली का असर भी क्या होगा जब क्रांतिकारी कविता कुछ नहीं बिगाड़ पाई।

भले ही सरकारी स्तर पर आपको सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और मास्क पहनने के लिए कहा जा रहा हो, नहीं पहनने वालों से जुर्माना वसूला जा रहा हो पर अखबार वाले बता रहे हैं पटना आयुर्वेद कॉलेज के प्रो. डॉ. उमा पांडेय के मुताबिक, आयुर्वेद में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की बात होती है। इसके लिए तुलसी, अदरक, गुड़, सोंठ, गोल मिर्च आदि का चाय के रूप में सेवन करें।

इनके सेवन से पाचन शक्ति भी मजबूत होगी। बार-बार हाथ को अच्छे तरीके से धोने के बाद ही मुंह व नाक को छूने का प्रयास करें। हाथ संक्रमित होने के कारण नाक, मुंह आदि छूने पर वायरस तेजी से फैलता है। (दैनिक जागरण) इसके बावजूद तमाम लोग भिन्न कारणों से ऐसा नहीं कर रहे हैं और संक्रमित हो रहे हैं। फिर भी मास्क लगाना ही जरूरी है। सरकार आयुर्वेदिक दवा भी मुफ्त नहीं देगी। इस जैसे अनुसंधान की खबरों के अलावा कोई सरकारी अध्ययन हुआ तो मुझे पता नहीं है।

भले ही शुरुआत में कोरोना वारियर के सम्मान में फूल बरसाए गए अब अस्पतालों में वीआईपी रहने लगे हैं तो वह भी संभव नहीं होगा। अस्पतालों के बाहर तो नो हॉर्न का संकेत लगा होता है उसे हेलीकॉप्टर पायलट नहीं देख पाए होंगे। पर फिर वे टहलते हुए अस्पतालों के ऊपर नहीं आएंगे। मरीजों को डिस्टर्ब नहीं करेंगे। यह दिलचस्प है कि अभी तक यह माना जा रहा है कि किसी व्यक्ति को कोरोना हो जाए तो दुबारा नहीं होता है पर तमाम सावधानियों के बावजूद हो सकता है, हो रहा है।

ऐसे में यह तय किया जाना जरूरी है कि सावधानियां किस काम की हैं। और जब एक बार होना ही है, दुबारा होना ही नहीं है तो मास्क और सैनिटाइजर किसलिए। बेशक कारोबार हो रहा है, जुर्माने वसूले जा रहे हैं। जय हो। आधुनिक राम राज्य और अच्छे दिन शायद इसी को कहते हैं।

(संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं। यह लेख उनके फेसबुक वाल से साभार लिया गया है।)

संजय कुमार सिंह
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