भाजपाइयों के साथ रहकर नीतीश कुमार कौन सा समाज सुधार करेंगे: माले

भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि भाजपा जैसी सांप्रदायिक-विभाजनकारी ताकतों के साथ गलबहियां करके नीतीश कुमार आखिर कौन सी समाज सुधार यात्रा करने वाले हैं? नफरत फैलाना, हिंदू-मुस्लिम के नाम पर समाज को विभाजित करना, वैज्ञानिक चिंतन को खत्म करके समाज में अंधविश्वास व पाखंड फैलाना, महिलाओं की आजादी को हर प्रकार से नियंत्रित करना आदि ही भाजपा के काम हैं।

ऐसे में नीतीश कुमार का समाज सुधार यात्रा का दावा खोखला नहीं तो और क्या है?

नीतीश कुमार कह रह हैं कि इस यात्रा के जरिए शराब के दुष्प्रभावों से लोगों को अवगत कराया जाएगा। हमारी पार्टी बहुत पहले से मांग करती आई है कि शराब के दुष्प्रभावों से लोगों को अवगत कराने हेतु सरकार को सभी राजनीतिक-सामाजिक दलों का समर्थन लेना चाहिए और इसे एक सामाजिक जागरण का विषय बनाया जाना चाहिए। शराब की लत की जकड़ में पड़े लोगों के लिए नशामुक्ति केंद्र व्यापक पैमाने पर खोलने चाहिए। राजनेता-प्रशासन-शराब माफिया गठजोड़ की जांच करानी चाहिए, लेकिन नीतीश कुमार इन सभी सुझावों से लगातार भागते रहे हैं। सामाजिक जागरण का विषय बनाने की बजाए सरकार ने शराबबंदी की आड़ में दलित-गरीबों पर हमला बोल दिया है। लाखों लोगों को उठाकर जेल में डाल दिया है। उन परिवारों के लिए किसी भी प्रकार के वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था नहीं की गई है। ऐसे में भला उन गरीब परिवारों को कैसे उबारा जा सकता है?

महिलाओं को लगातार हमलों का शिकार होना पड़ रहा है। मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड को पूरे बिहार ने देखा व समझा है, जहां मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी की गई। आए दिन बलात्कार व महिला हिंसा की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही है। आखिर यह क्यों हो रहा है? जाहिर सी बात है कि अपराधियों को आज किसी भी प्रकार का भय नहीं रह गया है। उन्हें कानून-व्यवस्था का कोई डर नहीं रह गया है। अपराध भी तेजी से बढ़ा है। सरकार को सबसे पहले यह सोचना चाहिए कि ‘सुशासन’ का उनका नरेटिव आज पूरी तरह ध्वस्त क्यों हो गया है, और बिहार पुलिस व अपराधी राज में क्यों तब्दील हो गया है? यदि सरकार कानून का राज स्थापित ही नहीं कर सकती, फिर समाज में अपराध, हिंसा आदि का बढ़ना स्वाभाविक है, जिसकी मार अल्पसंख्यकों-महिलाओं-दलितों-गरीबों पर ही पड़ेगी।

दलितों-गरीबों के जीवन में यदि बदलाव लाना है, तो उनकी जिंदगी की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना ही होगा। लेकिन न तो सरकार ने गरीबों को वास के लिए जमीन उपलब्ध करवा सकी, न रोजगार और न ही शिक्षा। शिक्षा की हालत तो राज्य में लगातार बद से बदतर होते गई है। शिक्षकों का भारी अभाव है। विद्यालय के भवन नहीं है और यहां तक कि विद्यालयों को बंद किया जा रहा है। यदि स्कूल नहीं होंगे, शिक्षक नहीं होंगे, तब बच्चे पढ़ाई कैसे कर पायेंगे? और यदि उनकी पढ़ाई नहीं होगी तो उन्हें बाल मजदूरी करने से भी नहीं रोका जा सकता है।

उन्होंने मांग की है कि यदि नीतीश कुमार बिहार में सचमुच का कोई सुधार चाहते हैं, तो सबसे पहले उन्हें भाजपा से अपने रिश्तों के बारे में सोचना चाहिए और फिर ईमानदारी से दलित-गरीबों, महिलाओं, कामकाजी तबके लिए योजनाओं का क्रियान्वयन करना चाहिए।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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