भारत में नये चरण में पहुंच गया है राजनीति के अपराधीकरण का खेल

‘हमारे हाथ बंधे हैं। हम केवल कानून बनाने वालों की अंतरात्मा से अपील कर सकते हैं कि वे कुछ करें। उम्मीद है वे एक दिन जागेंगे और राजनीति में अपराधीकरण को खत्म करने के लिए बड़ी सर्जरी करेंगे’ –भारतीय उच्चतम न्यायालय                                                

यह चेतावनी व आर्तनाद उस देश के उच्चतम न्यायालय का है, जो स्वयं को सबसे बड़े लोकतंत्र होने का बार-बार दंभ भरता रहता है! लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था को सभी शासन पद्धतियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस दुनिया के सबसे प्राचीन लोकतांत्रिक देश अमेरिका के एक भूतपूर्व और लोकप्रिय राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के अनुसार ‘लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है। ‘उनका कथन कभी सत्य रहा होगा, परन्तु आज के वर्तमान समय के भारत में लोकतांत्रिक शासन की वर्तमान शासकों द्वारा इतनी छीछालेदर हुई है, उसका विश्लेषण करें तो लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को सर्वश्रेष्ठ शासन पद्धति कहने में ही शर्म आने लगी है। आज लोकतंत्र की हालत यह हो गई है कि हम अब लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था को, ‘जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन पद्धति’ कह ही नहीं सकते, अपितु ‘अपराधियों का, अपराधियों के लिए, अपराधियों द्वारा शासन’ हो गया है। कटु सच्चाई यही है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को बहुमत का शासन भी कहा जाता है। इस बहुमत के शासन की सच्चाई यह है कि भारतीय चुनावों में औसत मतदान 45 प्रतिशत से ज्यादा कभी नहीं होता। अब मान लिजिए किसी चुनाव में कुल 4 राजनैतिक दलों के प्रत्याशी खड़े हैं। मान लीजिए उसमें से एक प्रत्याशी को 15 प्रतिशत, दूसरे को 12 प्रतिशत, तीसरे को 10 प्रतिशत और चौथे को 8 प्रतिशत वोट मिला, तो जाहिर है 15 प्रतिशत वोट पाने वाला प्रत्याशी विजयी घोषित हो जाता है। अब प्रश्न है कि यह विजयी प्रत्याशी बहुमत जनता का कहाँ प्रतिनिधित्व कर रहा है? 55 प्रतिशत मतदाता तो मतदान करने आये ही नहीं, जो आये उसमें भी 30 प्रतिशत मतदाता विजयी उम्मीदवार के विरोधी हैं, इस प्रकार 85 प्रतिशत लोग विजयी उम्मीदवार की नीतियों के विरूद्ध हैं। दूसरे शब्दों में विजयी उम्मीदवार जो अब सत्तारूढ़ भी है, को 100 मतदाताओं में से केवल 15 लोगों के समर्थन के बल पर 85 लोगों पर शासन करने का अधिकार मिल गया। तो इसे बहुमत का शासन क्यों और कैसे कह सकते हैं ? अपराधी और दागी सांसदों के मामले में आज की वर्तमान लोकसभा में पूर्व की सभी लोकसभाओं के रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए सर्वाधिक अपराधी और दागी सांसद उदाहरणार्थ 543 सांसदों की संसद में 186 सांसद अपराधी और दागी चुने गये हैं, कई अपराधियों और दागियों को तो अभी न्यायालयों द्वारा पाक दामन साबित होने से पूर्व ही मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री आदि जैसे महत्वपूर्ण पद सुशोभित करने का सम्मान और गौरव हासिल हो गया है। एक आकलन के अनुसार आज की वर्तमान लोकसभा में हर तीसरा सांसद अपराधी और दागी है। इस लोकतंत्र के पावन मंदिर कहे जाने वाली संसद में इतनी बड़ी संख्या में अपराधियों और दागियों का जमावड़ा लोकतंत्र की मर्यादा पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा करने के लिए पर्याप्त है। आश्चर्य की बात एक और भी है वह यह कि वर्तमान सत्तारूढ़ दल राजनीति के अपराधीकरण के मामले में सर्वोच्च स्थान पर है कुल 186 दागी और अपराध़ी सांसदों में से 98 दागी और अपराध़ी सांसद सत्तारूढ़ दल मतलब बीजेपी के हैं, इसी प्रकार करोड़पति सांसदों के मामले में भी सत्तारूढ़ दल अपने सर्वाधिक 237 करोड़पति सांसदों के साथ सर्वोच्च स्थान पर है। अभी-अभी देश के माननीय सुप्रीमकोर्ट ने लोकतंत्र के माथे को कलंकित करने वाली समस्या के समाधान हेतु कुछ अत्यन्त साहसिक और देशहित का कदम उठाते हुए केन्द्र सरकार को निर्देशित किया है कि वह शीघ्रता से उसे बताये कि 2014 के लोकसभा के चुनाव में दागी नेताओं द्वारा स्वयं घोषित मुकदमों की कितनी प्रगति हुई ? क्या उन पर कुछ और आपराधिक मुकदमे भी दर्ज हुए ?, क्यों न इसमें तेजी लाने के लिए देश भर में पर्याप्त संख्या में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाये जायें ? भारतीय लोकतंत्र की आज यह वास्तविक सच्चाई यही है कि इस तथाकथित पावन लोकतंत्र में शिक्षित, ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्ति नगर पालिका का एक मुहल्ले का सभासद नहीं बन सकता। यहाँ की समस्त चुनावी रणनीति जाति, धर्म, अपराधियों, पैसे, गुंडागर्दी, हर तरह के माफियाओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। यहाँ उम्मीदवारों का चयन पूर्वलिखित इन समस्त गुणों को ध्यान में रखकर ही बनाया जाता है। यहाँ लगभग सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवार से यह उम्मीद रखते हैं कि वह किसी भी तरह से जीतकर आ जाए और संख्या बल बढ़ा दे।

उस संसद से आप अच्छे काम की क्या आशा कर सकते हैं, जिसमें 23% लोग हाई स्कूल से कम पढ़े-लिखे हों और 7% ऐसे सांसद हों जो 71 वर्ष से 100 वर्ष के उम्र के बीच के हों, जो अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हों, जो शारीरिक रूप से इतने अशक्त हों कि वे ठीक से चल भी न पा रहे हों। कितनी दुःखद और विडंबनापूर्ण स्थिति है कि पिछले दिनों पनामा पेपर्स में और अभी-अभी एक जर्मन अखबार सुदेउत्शे ज़ितुंग में उद्घाटित कालेधन को चुराने वाले कई नेताओं, मन्त्रियों और अभिनेताओं और तथाकथित इस सदी के महानायकों सहित 714 भारत के बड़े कर चोरों का भी नाम है। इसी रिपोर्ट के आने के बाद विश्व के कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों को अपनी सत्ता से बेदखल होना पड़ा था, परन्तु हमारे भारत महान में वे कर चोर अभी भी बाइज्जत उसी ठसक के साथ निर्लज्जतापूर्वक अपने पद पर बने हुए हैं। अपने देश में भ्रष्टाचार से लड़ने और उसको जड़ से उखाड़ फेंकने की दंभ भरने वाली सरकार इन अरबों रूपये के कर चोरों पर अभी तक एफआईआर भी दर्ज नहीं कराई है। कितनी हास्यास्पद बात है कि वे अरबों रूपये के कर चोर देश की जनता से ईमानदारी से अपना कर जमा करने की और रसोई गैस की सब्सिडी छोड़ने की अभी भी अपील कर रहे हैं। आज इस देश को सुधारने की कल्पना करना तब तक व्यर्थ है, जब तक देश की सुधार करने वाली संसद का सुधार न हो। इसके लिए माननीय सुप्रीमकोर्ट के कदम को त्वरित गति से लागू किया जाय़, संसद के लिए अपराध़ी और दागी न होना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। क्या ईमानदार लोगों का इस देश में इतना अकाल पड़ गया है कि राजनैतिक पार्टियाँ अपराध़ियों को टिकट देती हैं ? दूसरी बात यहाँ संसद सदस्यों के लिए भी शिक्षित होना अनिवार्य हो, कम-से-कम उन्हें भी ग्रेजुएट होना अनिवार्य होना ही चाहिए, तभी इस देश में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना होगी, अन्यथा 34 प्रतिशत अपराधियों और 30 प्रतिशत अशिक्षितों और अशक्त बुड्ढों से भरी लोकसभा से आप स्वस्थ्य लोकतंत्र की आशा कर ही नहीं सकते।

(निर्मल कुमार शर्मा पर्यावरणविद हैं और आजकल गाजियाबाद में रहते हैं।)

निर्मल कुमार शर्मा
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निर्मल कुमार शर्मा