मध्यप्रदेश  के मधुबन में नफरत की ताड़का नाचे रे !!

हिजाब के नाम पर कर्नाटक से भाजपा की साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की अगली लहर जिस बेहिसाब तरीके से बेहिजाब हुई इसे देश ही नहीं सारी दुनिया ने देखा है। इस बेतुके और बेहूदे मुद्दे को ऐन यूपी चुनाव के पहले उठाने की तात्कालिक वजह समझ में आती है। मगर बात सिर्फ इतनी भर नहीं है। एक के बाद एक मुद्दा गढ़कर और उसे उन्माद तक ले जाकर देश की जनता के बीच नफ़रत की विषबेल को दूर तक ले जाना और उसमे खाद पानी देना असली मकसद है। कर्नाटक में विवाद शुरू होते ही मध्यप्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री ने तुरंत ही प्रदेश के स्कूलों में भी हिजाब को प्रतिबंधित करने और अगले शिक्षा सत्र से एक नया ड्रेस कोड लाने की घोषणा कर दी।

अल्पसंख्यक आबादी की अत्यंत न्यून उपस्थिति होने के बावजूद मध्यप्रदेश पिछले कई महीनों से हर महीने इस तरह की साम्प्रदायिक नफ़रत फैलाने वाली खुराकों का आदी बनाया जा रहा है।  इसके लिए जब मध्यप्रदेश में कोई मुद्दा नहीं मिलता तो देश में कहीं और घटी घटना को बहाना बना लिया जाता है। प्रदेश के गृहमंत्री इनकी ढूंढ – तलाश में अपनी गिद्द दृष्टि और बगुला ध्यान में सन्नद्ध और तैनात रहते हैं। नवम्बर में देश के प्रसिद्द और सेलिब्रिटी फैशन डिजाइनर सब्यसाची मुख़र्जी को उनके मंगलसूत्र के विज्ञापन पर 24 घंटे का नोटिस दिया गया। दिसंबर में प्रसिद्द संगीत कंपनी सारेगामा को “मधुबन में राधिका नाचे रे” के गीत को हटाने वरना जेल जाने की चेतावनी दी गयी। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कनिका कपूर और साकिब – तोशी द्वारा बनाये गए इसके नए संस्करण पर प्रतिबंध लगाने और इसे हटाने का आदेश देते हुए फ़रमाया कि “राधा हिन्दुओं की देवी हैं। उनके अनेक मंदिर बने हुए हैं। इस गीत से हिन्दू समाज की आस्थाएं आहत होती हैं।” उन्होंने साकिब और तोशी दोनों को मुसलमान मानकर विभाजनकारी टिप्पणी भी की। वे यह भूल गए कि मूलत: यह फ़िल्मी गीत 1960 की फिल्म कोहिनूर में युसूफ खान (दिलीप कुमार) पर फिल्माया, मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया गया था, जिसे शकील बंदायूनी ने लिखा और नौशाद ने संगीतबद्ध किया था। इसी जनवरी में यही गृहमंत्री अमेज़न को भी नोटिस थमा चुके थे – इस बार उन्हें अचानक से राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की याद आ गयी थी। 

ये सब तो बहाना है – असली काम नफरत फैलाना है। इसमें भी कभी हां तो कभी ना की कलाकारी एक साथ चलती है। कहते हैं कि चूहा जब इंसान को काटता है तब काटने और फूंक मारने का काम एक साथ करता है। एक बार काटना उसके बाद फूंक मारना – फिर काटना और फिर फूंक मारना। यही काम नफरत फैलाने की धमाकेदार मुहिम के बाद चुपके से फूंक मार कर किया जाता है, स्कूली शिक्षा मंत्री ने हिजाब पर रोक  लगाने की घोषणा की। सरकार के प्रवक्ता की हैसियत से इसी गृहमंत्री ने ऐसी किसी भी योजना से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं आरएसएस के संगठनो ने कर्नाटक में उन्माद मचाया – उसी के एक और संगठन ने बाकायदा सर संघ चालक का नाम लेकर हिजाब और परदे को भारतीय संस्कृति का हिस्सा बता दिया और उसके नाम पर सताई गयी लड़कियों को अपनी बहन करार दे दिया। यह ठीक वैसा ही जैसे 30 जनवरी गांधी शहादत के दिन मोदी, गांधी समाधि और कई प्रतिमाओं पर माथा टेकते रहे और इधर सोशल मीडिया से लेकर देश भर में उनकी आईटी सेल गोडसे जिंदाबाद को ट्रेंड कराती रही है।

यह सारी कारगुजारियां सिर्फ यूपी के चुनाव के लिए नहीं है। यह एक महाविनाश की परियोजना का हिस्सा है – जिसका अंतिम लक्ष्य भारत की 5000 वर्ष पुरानी साझी संस्कृति और आजादी आंदोलन की धरोहर कौमी एकता की जड़ों में तेज़ाब डालकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना है।  इसके संविधान को लिखने की तैयारी भी साथ – साथ जारी है। जैसा कि होता ही है, एक साम्प्रदायिकता और कट्टरता दूसरी के लिए खाद पानी मुहैया कराती है – वैसा ही हो रहा है।  हिजाब को भोपाल के शहर काज़ी ले उड़े हैं और चार – चार बेगमों के प्रगतिशील रवायतों राज वाले शहर की लड़कियों और महिलाओं से हिजाब पहनने के लिए कहा जा रहा है।

इस सबकी अनदेखी नहीं की जा सकती। आम लोग इस साजिशी तिकड़म को खुदबखुद समझ लेंगे और खारिज कर देंगे इस गलतफहमी में रहना एक तरह से मूकदर्शक बने रहने जैसा होगा। धर्मनरपेक्षता, लोकतंत्र और कौमी एकता अपने आप नहीं मिली थी; लड़कर हासिल की गयी थी। इसे बचाने के लिए भी लड़ना ही होगा। 

(बादल सरोज लोकजतन के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के सचिव हैं।)

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