जम्हूरियत भी बंधक है लखीमपुर खीरी हिंसा में

हम किस और कैसे लोकतंत्र में हैं इसका हालिया उदाहरण लखीमपुर खीरी के हत्याकांड के आईने में है। सत्तालोभी गुनहगारों ने अपना खेल खेला और अब इस घमंड में हैं कि कोई उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। बतौर सुबूत न भी माना जाए तो सोशल मीडिया और अन्य फ्रंट से वायरल हो रहीं तस्वीरें साफ जाहिर करती हैं कि हत्याकांड किस विचारधारा ने अंजाम दिया। दोषियों के प्रति लगाव और बचाव का सिलसिला शुरू हो चुका है और वह भी तमाम बेशर्मी की हदों को पार करके।

बहरहाल, संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने इस दुखद घटनाक्रम के लिए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के बेटे और उसके साथियों को गुनाहगार बताया है। अजय मिश्र ने 25 सितंबर को दिए बयान में कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को गैर कानूनी और गैरजरूरी बताते हुए किसानों को चेतावनी दी थी कि वे सुधर जाएं नहीं तो उन्हें 2 मिनटों में सुधार दिया जाएगा। वायरल हुई इस मीडिया क्लिप में मिश्र यह भी कहते हैं कि वह केवल केंद्रीय मंत्री हैं लोकसभा के सदस्य नहीं हैं बल्कि ‘कुछ और भी हैं’और अगर उन्होंने ‘अपने तौर’ पर कार्रवाई की तो आंदोलनकारियों को इलाके से भागना पड़ेगा।

‘कुछ और भी होना’ दरअसल कानून के दायरे से बाहर जाकर सीधे-सीधे हिंसा करने की धमकी है। इस बयान की बाबत किसानों में रोष जागना स्वाभाविक था। रविवार को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का उस इलाके में दौरा था और किसान संगठन बीच रास्ते में धरना लगाए हुए थे। इसी बीच निहत्थे किसानों को गाड़ियों के टायरों तले कुचल दिया गया। 4 मौके पर खेत हुए और कई अन्य घायल। योगी सरकार ने लखीमपुर खीरी में लगभग इमरजेंसी लागू कर दी है इसलिए पुष्टि नहीं है कि घायलों की संख्या 20 से ज्यादा है या कम। इतनी सूचना जरूर है कि इलाके के वरिष्ठ किसान नेता तेजिंदर सिंह विर्क की हालत काफी गंभीर है। किसान आंदोलन शुरू से ही गैरहिंसक रहा है। किसानों ने जबरदस्त संयम बरता है। लखीमपुर खीरी घटनाक्रम के वक्त भी किसान पूरे संयम में थे।

जब किसानों ने अपने साथियों पर हिंसा देखी तो वे कुछ समय के लिए संयम खो बैठे और वाहनों को आग लगा दी गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक कतिपय लोगों ने किसानों पर फायरिंग की। एक तरफ सत्ताधारी पार्टी का अहंकार है और दूसरी तरफ किसानों का अपने हितों के लिए लड़ा जा रहा सद्भाव आंदोलन! यह प्रत्यक्ष अंतर स्पष्ट करता है कि किसान एक नैतिक युद्ध लड़ रहे हैं जबकि सत्ताधारी पार्टी की राह अनैतिकता, अहंकार और हिंसा की तरफ है।
किसान नेताओं और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच हुई बातचीत के बाद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के पुत्र आशीष मिश्र के खिलाफ कत्ल का केस दर्ज किया गया है और केंद्रीय मंत्री पर कत्ल की साजिश में शामिल होने का।

केस दर्ज करना बखूबी यह जताता है कि यह दावा सरासर झूठा था कि आशीष मिश्र उस घटना के वक्त वहां किसी भी वाहन में मौजूद नहीं था। इस घटना का सारे देश में जबरदस्त विरोध हुआ है और खिलाफत में रोष प्रदर्शन हुए हैं। विपक्ष ने खुलकर पीड़ित किसानों का साथ दिया लेकिन उनके प्रमुख नेताओं को लखीमपुर खीरी की तरफ एक कदम भी नहीं रखने दिया गया। 1975 के आपातकाल की तरफ देखने वाले अब बताएं कि 3 अक्टूबर, 2021 कैसे लग रहा है? वहां पहले किसान मरे और अब जम्हूरियत बंधक हैं। प्रियंका गांधी से लेकर तमाम छोटे-बड़े विपक्षी नेता मानों आतंकवादी हों, यह मानकर उन्हें जबरन हिरासत दी जा रही है और वह भी बेइज्जत करके।

किसान नेताओं और योगी सरकार के बीच हुआ समझौता मृतकों के परिवारों को राहत दिलवाने और घटना के लिए जिम्मेवार व्यक्तियों के खिलाफ केस दर्ज करने की बाबत है। इस समझौते का अर्थ यह नहीं है कि किसानों में इस घटनाक्रम के प्रति रोष और गुस्सा खत्म हो गया है। लोकमानस ने लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों को लोक शहीदों का दर्जा दे दिया है और यकीनन यह शहादत किसान आंदोलन की धार तेज करेगी। लखीमपुर हत्याकांड गुरुद्वारा सुधार लहर के दौरान (आजादी से पहले) पंजाब साहिब में हुई घटना की याद दिलाता है जब एक रेलगाड़ी ने सद्भाव के साथ आंदोलन कर रहे सिखों को कुचल दिया था। गौरतलब है कि तब भी उस महान कुर्बानी के बाद गुरुद्वारा सुधार लहर संपूर्ण तौर पर शांति के साथ चलती रही और उसने 20 के दशक में जीत हासिल की। जिसकी तारीफ महात्मा गांधी ने की थी। अब तमाम किसान जत्थेबंदियों से उम्मीद की जाती है कि वे अमन और सद्भाव का रास्ता नहीं छोड़ेंगे। बेशक बीच का रास्ता नहीं होता लेकिन सब कुछ होना बचा रहता है।

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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