कोरोना को ठेंगे पर रख रहे पीएम मोदी और उनके सामने नतमस्तक चुनाव आयोग को बंगाल के डॉक्टरों ने भेजा पत्र

कोरोना मामले में केंद्र और राज्य सरकारों का यह रवैया है कि हम तो नहीं मानेंगे पर जनता को ज़रूर मनाएंगे। सारे नियम कानून जनता के लिए हैं। यही वजह है कि सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बने पश्चिम बंगाल में सारे नियम कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। लाखों की भीड़ में न मास्क है और न ही सोशल डिस्टेंसिंग। मंचों पर आसीन नेता भी मास्क लगाना मुनासिब नहीं समझ रहे हैं। चाहे देश के प्रधानमंत्री हों, गृह मंत्री हों, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हों या फिर पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री सब के सब गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाए हुए हैं। हां प्रधानमंत्री दिल्ली में आकर जनता को कोरोना से बचने के लिए मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग रखने का प्रवचन दे दे रहे हैं। इन जिम्मेदार नेताओं के गैर जिम्मेदाराना रवैये पर पश्चिम बंगाल के डाक्टरों को चुनाव आयोग को एक पत्र लिखना पड़ा। डॉक्टरों ने इस पत्र के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के गैर जिम्मेदाराना रवैये पर चिंता जताई है।

पश्चिम बंगाल डॉक्टरों के सामूहिक मंच ‘द ज्वॉइंट फ़ोरम ऑफ़ डॉक्टर्स-वेस्ट बंगाल’ ने निर्वाचन आयोग को पत्र भेज कर चुनाव अभियान के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल की सरेआम धज्जियां उड़ाए जाने पर गहरी चिंता जताते हुए उससे हालात पर नियंत्रण के लिए ठोस क़दम उठाने की अपील की है। डॉक्टरों के समूह ने अपने पत्र में लिखा है, ‘क्या आपने कभी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मास्क पहनते देखा है? अगर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ही कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन करें तो हम क्या कर सकते हैं?  राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि कुल मामलों में से 3,124 लोग अपने स्थानीय तौर पर ही संक्रमित हुए हैं। उनका कहना है कि चुनावी रैलियों में भीड़ से संक्रमण फैलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इन रैलियों में सामाजिक दूरी के नियमों का पालन नहीं किया गया। सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं के इस रुख से जनता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अब लोग सरकारों की कोई सख्ती झेलने को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि जगहों-जगहों पर पुलिस और जनता के बीच तीखी झड़पों की खबरें आगे लगी हैं। 

पश्चिमी बंगाल में रैलियों व रोड शो में जिस तरह से बिना मास्क के भीड़ जुट रही है, ऐसे में विशेषज्ञों ने चेताया कि विधानसभा चुनाव ख़त्म होने पर बंगाल में कोरोना संक्रमण का नया रिकॉर्ड बन सकता है। उनका कहना है कि आठ चरणों तक चलने वाली चुनाव प्रक्रिया कोरोना के लिहाज़ से भारी साबित हो सकती है। दरअसल प्रधनामंत्री खुद दोहरा रवैया अख्तियार करते हैं। कोरोना के कहर से निपटने के लिए वह मुख्यमंत्रियों के साथ तो वीडियो कांफ्रेंसिंग कर सकते हैं पर चुनाव प्रचार में लाखों की भीड़ जुटाकर रैली स्थल से संबोधित करेंगे। हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण पर गहरी चिंता जताई है पर साथ ही चेताया भी है कि अब कोरोना की आड़ में मतदान स्थगित करने के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं किया जाएगा। भाजपा के प्रदेश बीजेपी के महासचिव सायंतन बसु तो और भी आगे हैं। कहते हैं कि कोरोना के बीच अगर बिहार में चुनाव हो सकते हैं तो बंगाल में क्यों नहीं? मतलब हम तो मालिक  हैं जो चाहे कर सकते हैं। हां जनता के लिए सब नियम कानून लागू होंगे वह भी जबर्दस्ती। लापरवाही भी हो तो मारेंगे-पीटेंगे, जेल में डाल देंगे।

पंचायत चुनाव के चलते उत्तर प्रदेश में दी हुई है ढील: कोरोना के चलते गत साल सबसे अधिक सख्ती दिखाने वाले उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव चल रहे हैं। इसलिए अभी ढील दी हुई है। चुनाव समाप्त होते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अचानक कोरोना संक्रमण की चिंता सताने लगेगी। हो सकता है उत्तर प्रदेश में भी लॉकडाउन लग जाए। दूसरी ओर बढ़ते कोरोना के मामलों को देखते हुए छत्तीसगढ़ के रायपुर में लॉकडाउन कर दिया गया है। आदेश में कहा गया है कि रायपुर जिला अन्तर्गत संपूर्ण क्षेत्र को 9 अप्रैल शाम छह बजे से 19 अप्रैल सुबह छह बजे तक कंटेनमेंट जोन घोषित किया गया है। इस दौरान जिले की सीमाएं सील रहेंगी। केंद्र सरकार ने सबसे अधिक टेढ़ी निगाह गैर भाजपा शासित महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली और छत्तीसगढ़ पर कर रखी है।

 भयावह है कोरोना की रफ्तार : एक साल से भी लंबे समय तक कोरोना के मरीज़ों की देखभाल और इस बीमारी पर शोध करने वाले स्वास्थ्य विभाग के महामारी विशेषज्ञ अनिर्वाण दलुई कहते हैं, ‘बीते साल 24 मई को 208 मामले सामने आए थे। संक्रमितों की संख्या में दस गुनी वृद्धि में तब दो महीने से ज़्यादा का समय लगा था, लेकिन अब चार मार्च से चार अप्रैल तक यानी ठीक एक महीने में ही इसमें दस गुनी वृद्धि हुई है। अगर हमने तुरंत इस पर अंकुश लगाने के उपाय नहीं किए तो इस महीने के आखिर तक दैनिक मामलों की संख्या छह से सात हज़ार तक पहुंचने की आशंका है।

इन सबके बीच सरकारों को यह देखना होगा कि अब देश की जनता लॉकडाउन झेलने को तैयार नहीं है। दरअसल महाराष्ट्र में लॉकडाउन और कई शहरों में नाइट कर्फ्यू लगने के बाद लोगों को डर सता रहा है कि क्या फिर से पूरे देश में लॉकडाउन तो नहीं लगने वाला है। उधर देश की राजधानी दिल्ली में भी लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए नाइट कर्फ्यू लगाने की बात की जा रही है। पिछली बार लॉकडाउन के कारण उद्योग धंधे, लोगों की नौकरी समेत कई ऐसी अहम चीजों पर असर हुआ जिससे अब लोग धीरे-धीरे उबरने लगते हैं। लेकिन अब आम जनता को चिंता सता रही है कि अगर फिर से लॉकडाउन लगा तो क्या होगा ? ज्ञात हो कि किसी भी देश में कंप्लीट लॉकडाउन की स्थिति में हर तरह की आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाती हैं, जिससे आम जनता के साथ सरकार को भी काफी नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में अगर इस बार भी कुछ ऐसा फैसला होता है तो केवल महाराष्ट्र की बात करें तो कन्फेडरेशन ऑफ इंडिया के अनुमान के मुताबिक 1 महीने के लॉकडाउन से कारोबारियों को करीब 1 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा। मतलब लोग कितने परेशान हैं इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। लॉकडाउन की सबसे बड़ी मार रेहड़ी पटरी लगाने वाले छोटे दुकानदारों और छोटे उद्योग धंधों पर पड़ता है। पिछली बार लगे लॉकडाउन में भी सबसे ज्यादा प्रभावित यही वर्ग हुआ था। केवल दिल्ली एनसीआर की बात करें तो पिछले लॉकडाउन में करीब 10 फीसदी छोटे-छोटे उद्योग बंद हो गए और बचे रहे, उन्हें फिर से स्थापित होने में ही वक्त लग गया।

नौकरी पर खतरा : अगर दोबारा से लॉकडाउन का फैसला होता है तो नौकरीपेशा वर्ग को भी इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकनॉमी यानी सीएमआईई के आकड़ों के मुताबिक, पिछली बार लॉकडाउन में करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई थी। केवल जुलाई 2020 के महीने में करीब 50 लाख लोगों की नौकरी गई, जिसके चलते कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन की वजह से नौकरी गंवाने वालों की संख्या 1.89 करोड़ तक पहुंच गई, वहीं 1.77 करोड़ लोगों ने अप्रैल, 2020 में नौकरी गंवाई थी और मई में करीब 1 लाख लोगों की नौकरी गई।

इकोनॉमी पर संकट : पिछली बार लगे लॉकडाउन के बाद इकोनॉमी का पहिया अब धीरे-धीरे रिकवरी मोड पर वापस आ रहा है, लेकिन अगर फिर से लॉकडाउन का फैसला होता है तो जीडीपी, मैन्युफैक्चरिंग, इंडस्ट्री की रफ्तार समेत उन तमाम अहम चीजों पर असर होगा जिसका असर देश की इकोनॉमी पर पड़ता है। पिछले बार लगे लॉकडाउन के कारण ही देश की जीडीपी निगेटिव में चली गई थी, जो अब धीरे-धीरे पॉजिटिव में आने लगी है।

इनक्रीमेंट पर असर : अगर लॉकडाउन का फैसला होता है तो उन कर्मचारियों पर भी इसका असर देखा जा सकेगा जिनका इनक्रीमेंट पिछले साल भी नहीं हो पाया था। दरअसल ऐसे नौकरीपेशा इस साल इनक्रीमेंट की उम्मीद लगाए बैठे हैं कि चलो अब इस साल तो वेतन बढ़ेगा। लेकिन अगर कुछ फैसला होता है तो इन उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा।

शादियों के सीजन का क्या होगा : जब पिछली बार भी लॉक डाउन लगा था तो अप्रैल में शादियों का सीजन था। लेकिन लॉकडाइन के कारण आम आदमी से लेकर कारोबारियों तक को भारी नुकसान झेलना पड़ा था। दरअसल ये कारोबार सीजनल होता है। अब चूंकि शादियों का सीजन शुरू हो चुका है और लोगों ने प्री बुकिंग कर रखी है। ऐसे में अब इनको डर सता रहा है कि अगर लॉकडाउन जैसा कोई फैसला होता है तो क्या होगा।

क्या है सरकार का कहना : वित्त मंत्रालय ने अपनी मासिक रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना वायरस महामारी की पहली लहर को सफलतापूर्वक संभालने के बाद भारत अब इसकी दूसरी लहर का मुकाबला करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़े इस बात की ओर संकेत करते हैं कि भारत बेहतर और मजबूत बनने की राह पर है। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में ऐतिहासिक महामारी से जूझने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था एक बार फिर बेहतर और मजबूत बनने की ओर अग्रसर है। यह बात कई संकेतकों के रुझान से दिखती है। हालांकि लॉकडाउन लगाने को लेकर कोई स्थिति साफ नहीं की गई है  लेकिन आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए रिपोर्ट में कहा गया कि इस शानदार वापसी का मार्ग प्रशस्त करने में आत्मनिर्भर भारत मिशन द्वारा समर्थित निवेश में बढ़ोत्तरी और आम बजट 2021-22 में बुनियादी ढांचे और पूंजीगत व्यय में भारी बढ़ोत्तरी से मजबूती मिली है।

(चरण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल नोएडा में रहते हैं।)

चरण सिंह
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