माहेश्वरी का मत: इलेक्टोरल बॉन्ड यानि ब्लैक मनी के उत्पादन और खपत का नायाब औज़ार

इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में कोई जितना सोचेगा, वह भारत में तैयार की गई इस रहस्यमय और नायाब चीज से हैरान रह जायेगा। भाजपा के चार्टर्ड अकाउंटेंट छाप अर्थशास्त्रियों के द्वारा तैयार की गई सचमुच यह ऐसी अनोखी चीज है, जिसे ब्लैक मनी के धंधे का अगर कोई अन्तर्राष्ट्रीय नोबेल पुरस्कार हो, तो वह भी दिया जा सकता है। बताया जा रहा है कि अकेले भाजपा को इन बॉन्ड से इस दौरान छ: हज़ार करोड़ से ज़्यादा रुपये मिल चुके हैं । भाजपा की आमदनी का एकमात्र स्रोत इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं है ।

पार्टी को चलाने के लिये पैसे बटोरने के उनके जो दूसरे परंपरागत स्रोत रहे हैं, भाजपा ने उनमें से शायद ही किसी स्रोत को बंद किया होगा । तब किसी के भी मन में यह स्वाभाविक सवाल उठना चाहिए कि आख़िर भाजपा ऐसा क्या कर रही है कि उसे इतने, हज़ारों-हजार करोड़ रुपये की ज़रूरत पड़ रही है ? यह सवाल भाजपा के भी सभी स्तर के लोगों, आरएसएस वालों के भी दिमाग़ में उठना चाहिए कि आख़िर इतने रुपयों का हो क्या रहा है ?

भाजपा का वर्तमान नेतृत्व यह किस प्रकार के गोरख धंधे में लगा हुआ है ? यह बॉन्ड खुद में एक रहस्य इसलिये है क्योंकि जानकारों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये कंपनियों ने भाजपा को उतने रुपये नहीं दिये हैं, जितने दिखाए जा रहे हैं। यह तो काले को सफ़ेद और सफ़ेद को काला करने में उस्ताद सीए फ़र्मों का एक करिश्मा है जिसके ज़रिये भाजपा सरकारों ने घूस के तौर पर जो अरबों रुपये वसूले थे, काले धन के उस विशाल ख़ज़ाने को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये सफ़ेद बना दिया है।

इसके अलावा, भाजपा ने इन बॉन्ड के ज़रिये पूँजीपतियों के लिये एक ऐसा ज़रिया तैयार कर दिया ताकि वे अपनी कंपनियों से पैसे निकाल कर उन्हें कंगाल बना कर अपने खुद के घरों को भर सके। कहते हैं कि भाजपा के दलाल बाज़ार से सिर्फ़ दस प्रतिशत क़ीमत पर ये इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदा करते हैं । बाक़ी की नब्बे प्रतिशत राशि बॉन्ड देने वालों को ब्लैक मनी बना कर लौटा दी जाती है।

इसके साथ ही धंधेबाज़ लोग बांड ख़रीद कर दस प्रतिशत ज़्यादा क़ीमत पर भी भाजपा के दलालों को बॉन्ड बेच रहे थे । इस प्रकार, जिस पार्टी की सरकार डिजिटलाइजेशन के ज़रिये बाजार से ब्लैक मनी को ख़त्म करने की बातें कर रही थी, वही पार्टी खुद इलेक्टोरल बॉन्ड की ख़रीद के ज़रिये हर रोज़ ब्लैक मनी तैयार करने के काम में लगी हुई है । और इसके साथ ही, इनके ज़रिये घूस के रुपयों को अपने खातों में जमा करके ब्लैक मनी को खपाने का काम कर रही है !

इस हिसाब से देखें तो बहुत मुमकिन है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये जुटाये गये भाजपा के छ: हज़ार करोड़ में से वास्तव में भाजपा को सिर्फ़ छ: सौ करोड़ रुपये ही मिले हों, बाक़ी से घूस के रुपयों का जमा-खर्च किया गया हो । इसीलिये, कुल मिला कर भारत के इलेक्टोरल बॉन्ड को किसी शासक दल द्वारा ईजाद किया गया ब्लैक मनी की धंधेबाजी का दुनिया का सचमुच का एक नायाब औज़ार कहा जा सकता है । इससे पता चलता है कि मोदी-शाह की भाजपा किस प्रकार के धंधेबाज़ों के एक गिरोह का रूप ले चुकी है ।

आज जब देश में निवेश का भारी अकाल पड़ा हुआ है, उस समय कंपनियों को दरिद्र बनाने के इस हथियार ने निवेश को कितना प्रभावित किया है, इसका सही-सही अनुमान लगाना कठिन है। लेकिन संकट में फंसी हुई कंपनियों से रुपये निकाल कर भाग खड़े होने वालों के लिये इलेक्टोरल बॉन्ड निश्चित तौर पर किसी वरदान से कम महत्वपूर्ण नहीं साबित हुआ होगा।

(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और स्तंभकार हैं आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

अरुण माहेश्वरी
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