दुनिया भर में बज रहा है कोरोना को लेकर मोदी सरकार की असफलता का डंका!

भारत में आत्ममुग्ध मोदी सरकार भी आत्मप्रशंसा की गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और अब तक का रिकार्ड रहा है कि मोदी सरकार ने सत्ता के सारे संसाधन अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए झोंक दिए हैं। बीते सात सालों की उपलब्धियों में मोदी सरकार के पास अगर कुछ है, तो वो हैं हर मोर्चे पर सरकार की असफलता। कोरोना ने मोदी सरकार की असफलता में कोढ़ में खाज का काम किया है। जिस विदेशी धरती पर अपनी लोकप्रियता का छद्म खड़ा करके अपनी विजय पताका का मिथ मोदी सरकार गढ़ रही थी, उसे कोरोना की दूसरी लहर ने धूलधूसरित कर दिया है। पिछले साल कोरोना की पहली लहर को नियंत्रित कर लेने का दंभ दूसरी लहर के साथ ही तिरोहित हो गया है। 

कोरोना की दूसरी लहर से देश भर में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। कोरोना पीड़ितों के लिए अस्पताल के बेड, आईसीयू के बेड, ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं की कमी का बायस बन गये हैं। अब तो विदेशी मीडिया भी खुलकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ी कर रही है और उनके आत्ममुग्ध आत्मविश्वास की खुलकर धज्जियां उड़ा रही है।

ब्रिटेन के अखबार ‘द गार्जियन’ ने भारत में कोरोना के बने भयानक हालात को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को घेरा है। 23 अप्रैल को अखबार ने लिखा- भारतीय प्रधानमंत्री के अति आत्मविश्वास (ओवर कॉन्फिडेंस) से देश में जानलेवा कोविड-19 की दूसरी लहर रिकॉर्ड स्तर पर है। लोग अब सबसे बुरे हाल में जी रहे हैं। अस्पतालों में ऑक्सीजन और बेड दोनों नहीं हैं। छह हफ्ते पहले उन्होंने भारत को ‘वर्ल्ड फार्मेसी’ घोषित कर दिया, जबकि भारत में 1% आबादी का भी वैक्सीनेशन नहीं हुआ था।

अमेरिकी अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने 24 अप्रैल के अपने ओपिनियन में लिखा कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर की सबसे बड़ी वजह पाबंदियों में जल्द राहत मिलना है। इससे लोगों ने महामारी को हल्के में लिया। कुंभ मेला, क्रिकेट स्टेडियम जैसे इवेंट में दर्शकों की भारी मौजूदगी इसके उदाहरण हैं। एक जगह पर महामारी का खतरा मतलब सभी के लिए खतरा है। कोरोना का नया वैरिएंट और भी ज्यादा खतरनाक है।

अमेरिकी अखबार ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने भारत के संदर्भ में 25 अप्रैल को लिखा कि साल भर पहले दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन लगाकर कोरोना पर काफी हद तक काबू पाया, लेकिन फिर एक्सपर्ट्स की चेतावनी की अनदेखी की गई। आज कोरोना के मामले बेकाबू हो गए हैं। अस्पतालों में बेड नहीं हैं। प्रमुख राज्यों में लॉकडाउन लग गया है। सरकार के गलत फैसलों और आने वाली मुसीबत की अनदेखी करने से भारत दुनिया में सबसे बुरी स्थिति में आ गया है, जो कोरोना को मात देने में एक सफल उदाहरण बन सकता था।

प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन में 23 अप्रैल को प्रकाशित लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोरोना की लड़ाई में नाकाम बताया गया। लेख में सवाल किया गया है कि कैसे इस साल कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते तैयारी नहीं की गई। प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा गया कि जिम्मेदारी उसके पास है, जिसने सभी सावधानियों को नजरअंदाज किया। जिम्मेदारी उस मंत्रिमंडल के पास है, जिसने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ में कहा कि देश में कोरोना के खिलाफ उन्होंने सफल लड़ाई लड़ी। यहां तक कि टेस्टिंग धीमी हो गई। लोगों में भयानक वायरस के लिए ज्यादा भय न रहा।

बीबीसी में प्रकाशित दो लेखों में कहा गया है कि कोरोना के रिकॉर्ड मामलों से भारत के हेल्थकेयर सिस्टम पर बुरा असर पड़ा है। लोगों को इलाज के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन नहीं है। कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी की वजह हेल्थ प्रोटोकॉल में ढिलाई, मास्क पर सख्ती न होना और कुंभ मेले में लाखों लोगों की उपस्थिति रही।

सबसे तीखा कार्टून ऑस्ट्रेलिया के अखबार ऑस्ट्रेलियन फाइनेंशियल रिव्यू में प्रकाशित हुआ है, जिसमें दिखाया है कि भारत देश जो कि हाथी की तरह विशाल है। वह मरने वाली हालत में जमीन पर पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसकी पीठ पर सिंहासन की तरह लाल गद्दी वाला आसन लगाकर बैठे हुए हैं। उनके सिर पर तुर्रेदार पगड़ी और एक हाथ में माइक है। वह भाषण वाली पोजिशन में हैं। यह कार्टून सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टैड्रोस ऐडरेनॉम ग़ैबरेयेसस ने कहा है कि भारत की स्थिति हृदय विदारक है। टैड्रोस ऐडरेनॉम ग़ैबरेयेसस ने भारत में कोविड-19 के मामलों और मौतों की रिकॉर्ड-ब्रेकिंग लहर को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि संगठन संकट को दूर करने में मदद कर रहा है। टेड्रोस ने कहा कि डब्ल्यूएचओ वह सब कुछ कर रहा है जो हम कर सकते हैं। महत्वपूर्ण उपकरण और आपूर्ति की जा रही है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी अन्य चीजों में हजारों ऑक्सीजन कॉन्सट्रेटर, प्री फेब्रिकेटेड मोबाइल फील्ड ऑस्पिटल और प्रयोगशाला की आपूर्ति कर रही है। 

विश्व गुरु बनने की ढपोरशंखी फेल हो गयी है और आज भारत याचक के रूप में दुनिया के सामने खड़े होने को विवश है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि महामारी की शुरुआत में भारत ने हमारे अस्पतालों में सहायता भेजी थी। अब जबकि उसे जरूरत है, तो हम मदद के लिए तैयार खड़े हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने रविवार को कहा कि इस मुश्किल वक्त में हम भारत के साथ खड़े हैं। भारत हमारा मित्र देश है और कोविड-19 के खिलाफ इस जंग में हम उसका पूरा साथ देंगे।

भारत में मेडिकल ऑक्सीजन कैपेसिटी बढ़ाने के लिए फ्रांस और जर्मनी ने तैयारी कर ली है। जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने इसे ‘मिशन सपोर्ट इंडिया’ नाम दिया है। उन्होंने कहा कि महामारी से हम सब जंग लड़ रहे हैं। फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका ने मुसीबत की घड़ी में भारत की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया है।

इस बीच एक और चौंका देने वाली रिपोर्ट सामने आई है। जिस तरह एक ज़माने में रोज रेड एलर्ट जारी होने की सूचनाएं आती थीं पर यह कभी नहीं बताया जाता था कि रेड एलर्ट कब वापस ले लिया गया। इसी तरह कोरोना महामारी की दूसरी लहर से पहले कई राज्यों ने अपने विशेष कोविड सेंटर बंद कर दिए, जबकि देश की विधायिका और न्यायपालिका लगातार कोरोना मोड में ही पिछले एक साल से अधिक समय से हैं।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर आने से पहले देश के कई राज्यों ने अपने स्पेशल कोविड सेंटर बंद कर दिए थे, इससे पता चलता है कि राज्य सरकारें कोरोना की अगली लहर की क्षमता का आकलन करने में पूरी तरह नाकाम रहीं और केंद्र की शेखी को वास्तविक सझने की भूल कर बैठीं।

दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल 2020 में कोरोना के लिए चार अल्पकालिक अस्पताल बनाए गए थे, लेकिन इस साल फरवरी में जब कोरोना मामलों की संख्या प्रतिदिन घटकर 200 से कम हो गई तो राज्य सरकार ने इसे बंद कर दिया था। अब इसे फिर से शुरू करने की कोशिश की जा रही है। इसमें आईटीबीपी द्वारा संचालित छतरपुर अस्पताल, धौला कुआं और कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज कोविड सेंटर शामिल हैं। छतरपुर सेंटर में 10,000 से अधिक मरीजों को एडमिट करने की क्षमता है, जिसमें से करीब 1,000 बेड्स ऑक्सीजन सपोर्ट वाले हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार ने कोरोना की पहली लहर में दावा किया था कि उन्होंने 503 कोविड अस्पताल बनाए हैं, जिसमें करीब 1.5 लाख बेड्स हैं। फरवरी 21 के पहले हफ्ते में कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले अस्पतालों की संख्या घटकर 83 हो गई, जहां सिर्फ 17,000 बेड ही थे। इसी का दुष्परिणाम है कि वर्तमान में राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। इसमें से 25 अस्पतालों में सभी सुविधाएं जैसे वैंटिलेटर, आईसीयू और डायलिसिस व्यवस्था थी। वहीं करीब 75 अस्पतालों में ऑक्सीजन सपोर्ट और वैंटिलेटर की सुविधा थी। बाकी के करीब 400 अस्पतालों में कम से कम 48 घंटे ऑक्सीजन सप्लाई की व्यवस्था थी। कर्नाटक, झारखंड, बिहार और अन्य राज्यों में भी कमोबेश यही स्थिति है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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