एप्पल के दावे की होगी निष्पक्ष जांच, या पैगासस स्पाईवेयर की तरह होगा दफन?

कल जैसे ही एप्पल आईफोन के मैसेज की खबर देश के चुनिंदा विपक्षी नेताओं को अपने-अपने फोन पर पढ़ने को मिली, एक बार फिर से पैगासस जासूसी कांड की याद ताजा हो गई। शाम को लगभग सभी राष्ट्रीय चैनलों ने अपने मंच सजा लिए, क्योंकि यह सनसनीखेज आरोप किसी और ने नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित कंपनी एप्पल के द्वारा लगाये गये थे।

दुनिया की सबसे वैल्यूअबल कंपनी एप्पल 

आखिर आज अमेरिका की पहचान अगर किसी एक चीज से सबसे अधिक बनी हुई है तो वह, एप्पल फोन ही तो है। भारत में भी आईफोन का क्रेज महानगरों में तारी है। 20-25,000 रुपये प्रति माह कमाने वाले युवाओं के पर्सनल लोन लेकर आईफोन खरीदने और बर्बादी के किस्से आपने भी सुने होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में आईफोन की पैकेजिंग और निर्यात के बावजूद उपभोक्ताओं का प्रतिशत बेहद कम है?

जी हां, आंकड़े बताते हैं कि भारत में मात्र 3.92% उपभोक्ता ही आईफोन का इस्तेमाल करते हैं, और दक्षिण एशिया में बांग्लादेश (3.7%) के अलावा सभी हमसे ज्यादा अनुपात में एप्पल फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। पाकिस्तान की बदहाली के किस्से तो हमारा मीडिया लगातार दिखाता ही रहता है, लेकिन वहां भी 5.9% मोबाइल यूजर आईफोन रखना पसंद करते हैं। नेपाल 8.43%, श्रीलंका 11.41%, म्यांमार 11.6%, भूटान 12.58% तो एंड्राइड फोन का बेताज बादशाह चीन तक आईफोन का दीवाना है, जहां 24.32% मोबाइल उपभाक्ताओं के पास एप्पल फोन है। 

जनवरी 2022 को एप्पल दुनिया की 3 ट्रिलियन डॉलर मूल्य की पहली कंपनी बन गई थी। इसका क्या मतलब हुआ? मतलब दुनिया में एक कंपनी ऐसी है जिसकी कीमत भारत जैसे देश की जीडीपी के बराबर है। है न हैरत की बात! डॉलर, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, ट्विटर, गूगल और टेस्ला जैसे उत्पाद न हों तो अमेरिका कब का चीन के सामने घुटने टेक चुका होता। लेकिन इन सबमें भी डॉलर करेंसी और एप्पल उत्पाद का तो कोई तोड़ नहीं है।

एप्पल को लेकर इतनी रुपरेखा खींचने का मकसद यह है कि हमें उसके संदेश की गंभीरता को वास्तव में गंभीरता से लेना चाहिए। ये नहीं कि राहुल गांधी, प्रियंका चतुर्वेदी, महुआ मोइत्रा या सीताराम येचुरी ने इस बारे में शिकायत की और जवाब में तड़ से सरकार का जवाब आ गया और शाम को दोनों पक्षों के लोगों को रात 9 बजे के प्राइम टाइम शो में बुलाकर गोदी मीडिया के एंकर ने थोड़ा आप कहिये, थोड़ा आप कहिये और फिर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव की ओर से संदेश आ गया कि सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है, और मामले की जांच की जायेगी। चलिए डिनर हो गया हो तो चादर लीजिये और पसर जाइये। हमारा काम हो गया, आज की रेटिंग बढ़िया जानी चाहिए, और एंकर और टीम ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। 

एप्पल कंपनी ने देश के करीब 15 राजनीतिज्ञों सहित कुछ चुनिंदा शक्सियत के फोन को राज्य प्रायोजित निगरानी तंत्र के तहत रखे जाने की इत्तिला दी है। अमेज़न की ओर से इस समय देश में सबसे बड़ी सेल चल रही है। उसकी दुकान में आईफोन 15। Newphoria 79,900 रुपये से लेकर 1,99,900 रुपये में बिक रहा है। देश में 80% एंड्राइड फोन 10,000 रुपये या उससे कम के हैं, इससे उपर लेकिन 20,000 रुपये से नीचे अधिकांश फोन में कमोबेश आईफोन वाले फीचर ही हैं।

आईफोन लेने का मकसद सेलेब्रिटी स्टेटस के अलावा गोपनीयता और कभी हैंग नहीं होने को दिया जाता रहा है। आईफोन अपने ग्राहकों की निजता एवं गोपनीयता के प्रति पूरी गंभीरता बनाये रखता है। जिस दिन यह गोपनीयता की शर्त टूटी, आईफोन का ताम-तमूड़ा चीनी, कोरियाई कंपनी कुछ वर्षों में ही निपटा देंगी। 

भले ही भारत का बाजार यूजर तक पहुंच के लिहाज से बाकी दुनिया के देशों की तुलना में बेहद छोटा है, लेकिन 3.92% भारतीय यूजर भी 4 करोड़ होते हैं, जो किसी भी यूरोपीय देश की ग्राहक संख्या को मात देने के लिए काफी हैं। फिर अभी तो रफ्तार पकड़नी बाकी है। यही वजह है कि चीन के 24% आईफोन उपभाक्ता एप्पल को पूरे यूरोप के बराबर नजर आते हैं, और वे चाहकर भी चीन से नाता नहीं तोड़ सकता। एप्पल के लिए ग्राहक प्रमुख है और उसकी इसी प्रतिबद्धता का ही कमाल है कि उसे विभिन्न देशों की सरकारों की खास परवाह की जरुरत नहीं पड़ती। 

एप्पल को समन भेजने की खबर 

इस बीच सरकार की ओर से यह खबर आ रही है कि विपक्षी नेताओं के फोन हैकिंग के आरोपों को लेकर इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री की पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी एप्पल को समन भेज सकती है, और कंपनी के अधिकारियों से इस बारे में पूछताछ की जा सकती है।

न्यूज एजेंसी एनआई के मुताबिक, फोन हैकिंग के मामले को पार्लियामेंट्री कमेटी की मीटिंग में उठाया जाएगा। विपक्ष के सांसदों से भी मामले को लेकर पूछताछ की जा सकती है। लेकिन क्या स्टैंडिंग कमेटी की ओर से एप्पल ग्राहकों की निजता के भंग किये जाने वाले स्टेट एक्टर की जानकारी मिल जाने के बाद आगे की कार्यवाही भी होगी या यह सिर्फ मामले को तूल न देने के लिए आजमाई जा चुकी एक और तरतीब है, यह तो समय ही बतायेगा। 

बता दें कि 31 अक्टूबर को कांग्रेस पार्टी के सांसदों सांसद शशि थरूर, पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत; समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, शिव सेना की प्रियंका चतुर्वेदी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सीताराम येचुरी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा और आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने विभिन्न स्रोतों के माध्यम से देश को जानकारी दी कि एप्पल कंपनी ने उन्हें बाखबर किया है कि उनके फोन की कथित हैकिंग के बारे में ईमेल प्राप्त हुए हैं।

इसके अलावा, द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन, डेक्कन क्रॉनिकल के स्थानीय संपादक श्रीराम कर्री, हैदराबाद स्थित स्वतंत्र पत्रकार रेवती पोगडदंडा सहित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के समीर सरन को भी फोन पर एप्पल की ओर से सूचित किया गया था कि राज्य प्रायोजित निगरानी तंत्र के तहत उनके फोन से छेड़छाड़ की कोशिश हो रही है।

राज्य प्रायोजित निगरानी तंत्र के आरोपों पर पहलेपहल केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने विपक्ष के दावे को ख़ारिज करते हुए दावा किया कि एप्पल ने भारत सहित 150 देशों के लिए एडवाइजरी जारी की है। एप्पल के पास कोई विशिष्ट जानकारी नहीं है, और उसके द्वारा अनुमान के आधार पर अलर्ट भेजा गया है।

वहीं एक अन्य केंद्रीय मंत्री राजीव चन्द्रशेखर ने तो उल्टा इल्जाम एप्पल पर लगाते हुए अपने बयान में कहा कि इस बारे में एप्पल को स्पष्टीकरण देना चाहिए कि उनकी डिवाइस सुरक्षित भी है या नहीं। अगर ऐसा है तो फिर 150 देशों के लोगों के पास चेतावनी वाले मैसेज आखिर क्यों भेजे गए हैं?

लेकिन दिन भर चले राजनीतिक हंगामे और विषय की गंभीरता को देखते हुए बाद में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव का आश्वस्त करता हुआ बयान आया कि सरकार द्वारा इस मामले की जांच की जायेगी और इसके लिए उन्होंने एप्पल कंपनी से सहयोग करने की मांग की है। 

भारतीय गोदी मीडिया की भूमिका सवालों के घेरे में 

लगभग सभी भारतीय समाचारपत्रों और मीडिया आउटलेट्स ने इसके बाद एप्पल के हवाले से बताना शुरू कर दिया था कि एप्पल की ओर से एक बयान जारी किया गया है, जिसमें उसके द्वारा इस हमले के लिए किसी विशिष्ट राज्य एक्टर को जिम्मेदार नहीं ठहराया है। जनचौक द्वारा इस बयान का स्रोत खंगालने की तमाम कोशिश नाकाम रही। अंत में इंडिया टुडे की पत्रकार नंदिनी यादव की 31 अक्टूबर 2023 के लेख में एप्पल कंपनी के 22 अगस्त 2022 को जारी support page का हवाला देते हुए एप्पल के स्पष्टीकरण का हवाला दिया गया है।

कुछेक जागरूक X यूजर के द्वारा भी इस लिंक को अपनी पोस्ट में साझा किया गया है, जिसमें एप्पल की ओर से अपने ग्राहकों को सूचित करते हुए बताया गया है कि “राज्य-प्रायोजित हमलावर बहुत अच्छी तरह से वित्त पोषित और परिष्कृत हैं, और उनके हमले समय के साथ विकसित होते हैं। ऐसे हमलों का पता लगाना खतरे के खुफिया संकेतों पर निर्भर करता है जो अक्सर अपूर्ण और अपूर्ण होते हैं।

लेकिन किसी भी मीडिया आउटलेट ने खुद जाकर एप्पल के support page को खोलकर पढ़ने की जहमत नहीं उठाई, जिसे पिछले एक साल से भी अधिक समय से एप्पल द्वारा जारी किया जा चुका है। एक बारगी लगा कि भाजपा आईटी सेल हेड के ट्वीट पर इसकी जानकरी मिल सकती है, लेकिन वहां पर भी एप्पल से प्रतिक्रिया आने की बात कहकर विपक्ष को झूठ हंगामा खड़ा करने का आरोप लगाया गया था। लेकिन उसी के बीच एक थ्रेड मिला, जिससे पता चला कि कोई मार्या शकील नामक X यूजर ने पहलेपहल एप्पल की प्रतिक्रिया का पता लगाया है।

कौन हैं मार्या शकील?

एक बार ट्वीट मिल जाने के बाद पता लगाना कठिन नहीं रहा। देखा तो पता चला कि ये तो एनडीटीवी की नई एंकर हैं, जो संभवतः कई पुराने पत्रकारों द्वारा अडानी टीवी में रूपांतरित हो जाने के बाद रिक्त पदों पर अवतरित हुई हैं। 31 अक्टूबर 2023 को दिन में 1:22 मिनट में उन्होंने X पर ट्वीट करते हुए देश को जो जानकारी दी है, उसी से सभी मीडिया आउटलेट ने लिपाई पुताई और रात में प्राइम टाइम निकाला है। देश को मार्या शकील के द्वारा एप्पल की खुदाई कर निकाली गई सूचना से राहत पहुंची है कि उसने किसी खास राज्य की ओर इशारा नहीं किया है। 

मार्या शकील के इस ट्वीट पर कई लोगों ने उनसे इसका स्रोत भी कल ही माँगा था, लेकिन वे सभी आम लोग हैं। किसी भी बड़े मीडिया आउटलेट को यह नहीं सूझा। क्यों नहीं सूझा, यह सोचने का काम देश के नागरिकों का है। बाद में शाम 8:30 को उक्त पत्रकार द्वारा एनडीटीवी अंग्रेजी चैनल में The Last Word शो किया जाता है, जिसकी हेडलाइंस कुछ इस प्रकार से थी: “Apple alert row: Politics Or Real Threat?” 

इस बारे में इन्टनेट फ्रीडम फाउंडेशन के संस्थापक और वकील अपार ने X पर अपनी पोस्ट में कहा है, “एप्पल के बयान से कुछ भी नहीं बदलता है। मैं दोबारा कहूंगा, कैबिनेट सचिव द्वारा रिकॉर्ड पर स्पष्ट बयान होना चाहिए कि भारत ने कौन सी स्पाइवेयर तकनीकें खरीदी हैं, हमारे पास इसकी जांच और संतुलन बनाने के लिए क्या उपाय हैं और उनका उपयोग कैसे किया जाता है। हमें स्पष्ट स्वीकारोक्ति और खंडन की आवश्यकता है और यह सब सिर्फ भारत सरकार के ऑन रिकॉर्ड (“सूत्रों के अनुसार नहीं”) बयान के जरिये ही आ सकता है।

एप्पल ने 22 अगस्त, 2023 के अपने पहले से मौजूद सपोर्ट पेज का केवल सारांश दिया है। मैंने इसे सुबह ही लिंक किया था। निराशाजनक बात यह है कि कुछ मीडिया चैनलों ने “झूठे अलार्म” के अंशों को चुनिंदा रूप से उद्धृत किया है। इसमें चुनिंदा वाक्यांश पर ही जोर दिया गया है। एक निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए पूरे बयान को निष्पक्ष एवं सटीक खुलासे के साथ उचित संदर्भ में पेश करने की दरकार होती है।”

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि दिन भर चले हंगामे और विपक्षी हमलों की काट के लिए सरकार, भाजपा और आईटी सेल ही नहीं लोकतंत्र का वो चौथा खंभा भी मुस्तैदी से लगा हुआ है, जिसके जिम्मे खबरों की तह में जाकर अपने दर्शकों या पाठकों को सच्चाई से रूबरू कराने की जिम्मेदारी मानी जाती है। जरुरी नहीं कि वह खबर सत्ता पक्ष या विपक्ष को चोट पहुंचाए। खबर का मकसद तो देश, लोकतंत्र और 140 करोड़ लोगों के हितों को महफूज रखने का है।

फिलहाल सरकार की ओर से आईटी मिनिस्टर ने जांच का आश्वासन दिया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि यदि एप्पल के राज्य प्रायोजित एप्पल फोन की सुरक्षा में सेंधमारी में जरा भी सच्चाई है तो भारत सरकार कैसे इस मामले की जांच का आश्वासन दे रही है? यह काम तो देश की सर्वोच्च अदालत को अपने हाथ में लेना क चाहिए, जिसके पास पहले से पैगासस मामले की जांच दबी पड़ी है। 

पैगासस स्पाईवेयर मामले की जांच आज भी फाइलों में बंद है 

पैगासस मामले में कई महीनों की जांच के बाद सुप्रीमकोर्ट की बेंच के तहत गठित टेक्निकल कमेटी ने अपने निष्कर्ष में जो बताया वह बेहद निराशाजनक था। इस रिपोर्ट को फोन उपभाक्ताओं की निजता की सुरक्षा का हवाला देते हुए गुप्त रखा गया, और सिर्फ इतना खुलासा किया गया था कि फारेंसिक जांच में 29 शिकायतकर्ताओं के फोन में पैगासस स्पाईवेयर नहीं मिला, हालांकि उनमें से 5 फोन में मैलवेयर पाया गया है। 

जस्टिस आर वी रवींद्रन के तहत गठित टेक्निकल कमेटी को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना, जस्टिस सूर्य कान्त एवं हिमा कोहली की खंडपीठ के द्वारा पूरा मामला अपनी निगरानी में चलाया गया था। यह फैसला तक सीलबंद लिफाफे से निकालकर पढ़ा गया था, और सारा मामला यहीं पर आकर समाप्त हो गया। लेकिन इसके साथ ही खंडपीठ ने केंद्र सरकार के गैर-सहयोगात्मक रवैये का भी जिक्र किया था, जिसमें उसका कहना था कि टेक्निकल कमेटी को सरकार का सहयोग नहीं मिला। 

सरकार की ओर से भारत के दुश्मन की डिटेल्स भी इसके माध्यम से सार्वजनिक संज्ञान में आ सकती है, जिससे वे अलर्ट हो सकते हैं। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित टेक्निकल कमेटी को वास्तव में तथ्यों की पड़ताल करने में किस स्तर तक मदद मिल सकी, यह तो उनकी रिपोर्ट की डिटेल्स में ही पता चल सकता है, जिसे स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीय करार दिया था। इसके उलट कुछ शिकायतकर्ताओं ने तब भी कहा था कि उन्होंने तो पहले ही टेक्निकल कमेटी के समक्ष अपने फोन जमाकर अपनी गोपनीयता के साथ समझौता स्वीकार लिया था, इसलिए कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

द वायर के प्रमुख सिद्धार्थ वरदराजन ने भी कल इस बात को एक बार फिर से दोहराते हुए कहा है कि एप्पल की चेतावनी ने एक बार फिर से इजरायली जासूसी उपकरण पैगासस के मुद्दे को देश के सामने ला खड़ा कर दिया है। उन्होंने अपने बयान में कहा है कि एप्पल कंपनी अपने व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखते हुए खुलकर नहीं बतायेगी।

लेकिन यदि सर्वोच्च न्यायालय विषय की गंभीरता को देखते हुए और पेगासस की जांच रिपोर्ट के आलोक में मामले की तह में जाने का प्रयास करे और एप्पल को पार्टी बनाये तो कंपनी इस बारे में खुलकर अपना पक्ष रख सकती है। भारत की सर्वोच्च अदालत यदि सच जानना चाहे तो एप्पल के व्यावसायिक हितों पर आंच नहीं आएगी और वह विस्तृत डिटेल दे सकती है।

लेकिन क्या ऐसा होगा? पैगासस मामले में भारत में तो मामला सिफर रहा, लेकिन दुनिया के तमाम देशों ने इस पर कार्रवाई की और इजराइल की सरकार को चेतावनी तक जारी की गई थी। यहाँ पर एमनेस्टी इंटरनेशनल या कोई थर्ड पार्टी नहीं है, स्वंय मोबाइल निर्माण करने वाली विश्व की सबसे प्रतिष्ठित कंपनी एप्पल ने आगे आकर अपने ग्राहकों की निजता की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए उन्हें आगाह किया है। उसने तो अपनी ओर से कोई स्पष्टीकरण तक नहीं दिया, लेकिन हमारे चम्पू पत्रकारों ने एप्पल के सपोर्ट पेज से टीप कर काउंटर नैरेटिव बनाकर सच को ही धुंधला और बदरंग करने का एक और चिरपरिचित नमूना ही पेश किया है।  

अंत में एप्पल द्वारा 22 अगस्त को support।apple।com/en-in/102174  नामक सपोर्ट पेज में जो बयान जारी किया गया था, उसे कोई भी इस लिंक पर क्लिक कर देख सकता है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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