दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में किसानों-मजदूरों का सम्मेलन, सरकार के खिलाफ नवंबर में बड़ी गोलबंदी का ऐलान

नई दिल्ली। दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में गुरुवार को अखिल भारतीय किसान और मजदूर सम्मेलन हुआ। जिसमें देशभर के किसानों और मजदूर संगठनों के लोगों ने शिरकत की। सम्मेलन के आयोजन का उद्देश्य सरकार की किसान-मजदूर विरोधी और कारपोरेट परस्त नीतियों का विरोध करना था। जिसके चलते देश में भारी तादाद में न केवल किसान आत्म हत्या कर रहे हैं बल्कि मजदूरों के मिले अधिकारों को भी छीन लिया जा रहा है।  

इस मौके पर तकरीबन सारे वक्ताओं का कहना था कि मोदी-संघ सरकार ने देश के किसानों और मजदूरों के साथ पिछले 9 सालों में जो ठगी की है, उसे लेकर किसान और मजदूर आक्रोश में हैं। सभा को संबोधित करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के नेता जोगिंदर सिंह उगराहा ने कहा है कि सरकार को सबक सिखाने के लिए देश के किसान और मजदूरों को एक साथ आने की जरूरत है।

सरकार ने भारतमाला प्रोजेक्ट अडानी को दिया 15 करोड़ प्रति किलोमीटर तय करके और पेपर पर उसी रोड को बनाने का खर्च 25 करोड़ प्रति किलोमीटर दिखाया जाता है। सरकार अडानी की इस घपलेबाजी की अनदेखी कर देती है। दूसरी तरफ किसानों के ऊपर तकरीबन 1200 करोड़ रुपये का कर्ज है लेकिन चुनावी कर्ज माफी का वादा करने के बाद भी सरकार उसे भूल जाती है। जिसका नतीजा यह है कि किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। उन्होंने सवालिया अंदाज में पूछा आखिर ये फिर किसकी सरकार हुई?  

हिन्द मजदूर सभा के राष्ट्रीय महामंत्री हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा कि पिछले 10-12 सालों से हमने मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ काम किया है। 13 महीने किसानों ने आंदोलन करके देश को ही नहीं पूरी दुनिया को संदेश दिया है कि इस तानाशाह सरकार को भी झुकाया जा सकता है। पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए ये सरकार देश की जनता के अधिकारों पर हमला कर रही है, और खुलकर हमला कर रही है। 

उन्होंने कहा कि इस सरकार ने ऐसा कानून बनाया जिससे आने वाले समय में कोई भी मजदूर हड़ताल पर नहीं जा सकेगा। उनका कहना था कि यह 2024 के चुनाव का दबाव है जो इस कानून को पारित होने से रोके हुए है।

उन्होंने कहा कि देश के 54 करोड़ मजदूरों को बंधुआ मजदूर बनना पड़ेगा, देश के किसानों और मजदूरों को मिलकर लड़ना चाहिए। और उसी के जरिये इस सरकार को झुकाया जा सकता है। 

पूर्व विधायक और किसान नेता डॉ. सुनीलम ने कहा कि देश और देश का संविधान आज के समय में खतरे में है और इसे मजदूर-किसान ही बचा सकते हैं। इस फासीवादी सरकार ने संविधान के साथ छेड़छाड़  शुरू कर दी है। और इसके लिए उसने संविधान को अंग्रेजों का संविधान बताकर उसकी साख को चोट पहुंचाना शुरू कर दिया है। 

उन्होंने कहा कि सरकार झूठ बोलती है कि किसानों की आय दोगुनी कर देंगे, किसानों को एमएसपी देंगे, प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना के तहत 8000 रुपया हर साल देंगे लेकिन ये लाभ आज तक किसानों को नहीं मिला। यह किसानों-मजदूरों की एकता का ही नतीजा है कि विपक्ष 11 राज्यों में सरकार बना पाने सफल रहा है। आने वाले नवंबर के चुनाव में 5 राज्यों में से 4 में विपक्ष अपनी सरकार बना रहा है। 

क्रांतिकारी किसान यूनियन के नेता दर्शन पाल सिंह ने केंद्र सरकार को घेरते हुए कहा कि इस देश को जरूरत है ऐसे जन आंदोलनों की जैसा कृषि कानून के समय किसानों ने किया था। केंद्र में बैठी ये शक्तियां देश के टुकड़े-टुकड़े करने में लगी हुई हैं, आप सबने देखा मणिपुर कैसे दो भागों में बंट चुका है। आर-पार की लड़ाई का समय आ गया है, किसान कर्ज के कारण खुदकुशी कर रहा है। लेकिन सरकार किसानों की तरफ देख भी नहीं रही है। आज मजदूर के बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं और न ही उन्हें सही इलाज मिल रहा है। देश के अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और देश का गरीब और ज्यादा गरीब। 

एटक के आरके शर्मा ने कहा कि आने वाले नवंबर महीने की 26-27-28 की लामबंदी के लिए किसान अभी से कमर कस लें। हमारी ताकत को सरकार भी जानती है। अपने किसान और मजदूर भाइयों की संगठित ताकत के बल पर 13 महीने चले किसान आंदोलन ने इस फासीवादी सरकार को माफी मांगने पर मजबूर कर दिया था। अगर किसान और मजदूर एक साथ उतरेगा और संघर्ष का ऐलान करेगा तो इस सरकार को समुद्र में डुबो दिया जाएगा। 

समाज दो वर्गों में बंटा हुआ है, एक तरफ लुटेरा है तो दूसरी तरफ कमेरा, एक तरफ पूंजीपति है तो दूसरी तरफ मजदूर-किसान। आज राजनीति भी दो तरह की राजनीति हो गई है। एक तरफ किसान और मजदूरों की राजनीति है और दूसरी तरफ सत्ता हड़पने की राजनीति।

(तालकटोरा से राहुल कुमार की रिपोर्ट।)

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