नाजी दौर की तरह सरकार की विचारधारा का समर्थन करने वाली प्रोपेगैंडा फिल्में बना रही है फिल्म इंडस्ट्री

“फिल्म इंडस्ट्री को अब सरकार की ओर से विचार के समर्थन वाली फिल्में बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ऐसी फिल्मों को बनाने के लिए फंड भी दिया जाता है जो सरकार के विचारों का समर्थन करती हों। उन्हें क्लीन चिट का भी वादा होता है और वो प्रोपेगेंडा फिल्में बनाते हैं।” उपरोक्त टिप्पणी दिग्गज अभिनेता नसरुद्दीन शाह ने वर्तमान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को लेकर एनडीटीवी से कही है। 

इतना ही नहीं उन्होंने आगे कहा कि नाज़ी जर्मनी के दौर में दुनिया को समझने वाले फिल्मकारों को घेरा गया है और उनसे कहा गया कि वे ऐसी फिल्में बनाएं, जो नाज़ी विचारधारा का प्रचार करती हों। दिग्गज फिल्म अभिनेता ने आगे कहा कि मेरे पास इसके पक्के सबूत नहीं हैं, लेकिन जिस तरह की बड़े बजट वाली फिल्में आ रही हैं, उससे यह बात साफ़ है।

एनडीटीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में ‘क्या उनके साथ फिल्म इंडस्ट्री में कभी भेदभाव हुआ है’ इस सवाल के जवाब में अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि, ‘इस इंडस्ट्री में आपकी इज्ज़त आपके पैसों को देखकर की जाती है। आज भी इंडस्ट्री के तीन खान अभिनेता टॉप पर हैं। उन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती और आज भी वो सबसे ऊंचे स्थान पर हैं। मैंने इंडस्ट्री में कभी भेदभाव महसूस नहीं किया’।

एनडीटीवी के साथ इंटरव्यू में उन्होंने आगे कहा कि, “जब मैं करियर की शुरुआत कर रहा था तो मुझे भी नाम बदलने की सलाह दी गई थी लेकिन मैंने नाम नहीं बदला। उन्होंने कहा कि “मुझे नहीं लगता इससे कोई खास अंतर पैदा हुआ होगा”। 

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मुस्लिम नेता यूनियन के सदस्य और छात्र जब कोई बयान देते हैं तो उनका विरोध किया जाता है वहीं जब कोई मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ कोई हिंसक बयान दिया जाता है तो उस तरह का शोर नहीं दिखता है। यही नहीं उन्होंने कहा कि मुझे तो बॉम्बे टू कोलंबो और कोलंबो टू कराची की टिकट भी भेज दी गई थी। 

उन्होंने आगे कहा कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री इस्लामोफिबिया से ग्रसित है। सबसे बड़ी बात कि सरकार की ओर से फिल्म मेकर्स को ऐसा सिनेमा तैयार करने के लिए प्रोत्साहन भी मिल रहा है।

इंडस्ट्री में हुए भेदभाव के सवाल पर अभिनेता ने कहा कि, ‘मैं नहीं जानता कि फिल्म इंडस्ट्री में मुस्लिम समुदाय के साथ कोई भेदभाव किया जा रहा है या नहीं। मैं मानता हूं कि हमारा योगदान अहम है। इस इंडस्ट्री में पैसा ही भगवान है’। नसीरुद्दीन ने आगे ये भी कहा कि, ‘तालिबान को लेकर भारत ही नहीं दुनिया में मुस्लिमों के एक वर्ग द्वारा समर्थन दिए जाने या कथित तौर पर खुशी जताए जाने के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया था’।

अभिनेता ने एक वाकया साझा करते हुये बताया कि उनकी पत्नी रत्ना पाठक शाह, जो खुद एक प्रशंसित अभिनेत्री हैं, ने अपने बच्चों से कहा कि तुमसे जब कोई यह पूछे कि तुम किस धर्म का पालन करते हो तो कहना “भेलपुरी”।

उन्होंने आगे कहा कि – “मैं अपने बारे में चिंतित नहीं हूं, मुझे बच्चों की चिंता है।” 

संस्था चाहती है कि हम डरें। वे चाहते हैं कि हम डर की भावना में आएं। मुझे कभी भी शारीरिक हिंसा की धमकी नहीं दी गई। मेरी सहानुभूति उन लोगों के साथ है जो अक्सर बिना सबूत के लिंचिंग, गोहत्या के आरोपों का सामना करते हैं। 

उन्होंने आगे कहा कि “यह और भी चिंताजनक है कि नुकसान पहुंचाने वालों को अक्सर बधाई दी जाती है।”

तालिबान के समर्थन में बोलने वालों को खुद द्वारा आड़े हाथ लेने के दृष्टिकोण पर उन्होंने एनडीटीवी से कहा कि उन्हें उस समय जो लगा वह उस समय कहा जाना था। जंगल की आग फैलने में समय नहीं लगती। इस तरह के विचारों को लोगों के दिमाग में घुसने में समय नहीं लगता है। अधिकांश लोग सुधारों को लेकर परेशान थे और इसने मुझे और भी परेशान किया। वे आधुनिकता के विचार के ख़िलाफ़ हैं। 

उन्होंने आगे कहा कि “भारतीय इस्लाम से मेरा मतलब था सहिष्णु सूफी से था जिसने इस देश में इस्लाम की प्रथा को प्रभावित किया। मैं सलीम चिश्ती और निजामुद्दीन औलिया जैसे लोगों द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए इस्लाम की बात कर रहा था।”

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