बच्चे पालने के सवाल पर स्त्री और पुरुष के बीच पैदा हुआ पहला श्रम विभाजन

मानव विज्ञान में खुद को लगा देने का उनका संकल्प महज किसी बौद्धिक उत्सुकता का परिणाम नहीं था । इसका गहरा राजनीतिक-सैद्धांतिक मकसद था । गहन ऐतिहासिक ज्ञान के आधार पर वे वास्तविकता के सबसे करीब के उस क्रम को रचना चाहते थे जिस क्रम में उत्पादन की विभिन्न पद्धतियां इतिहास में एक के बाद एक आती रही हैं। उन्हें विश्वास था कि उनके इस शोध से सम्भावित कम्युनिस्ट सामाजिक रूपांतरण संबंधी सिद्धांत को मजबूत ऐतिहासिक आधार मिल जाएगा।

इसलिए ‘एथनोलाजिकल नोटबुक्स’ में मार्क्स ने प्रागैतिहास के बारे में, पारिवारिक बंधनों के विकास के बारे में, स्त्रियों की स्थिति के बारे में, संपत्ति संबंधों की उत्पत्ति के बारे में, प्राक-पूंजीवादी समाजों के सामुदायिक आचरण के बारे में, राजसत्ता के गठन और उसकी प्रकृति के बारे में, व्यक्ति की भूमिका के बारे में तथा कुछ मानवशास्त्रीय सिद्धांतों के नस्ली निहितार्थों और उपनिवेशवाद के असर जैसे आधुनिक मसलों के बारे में मजेदार टिप्पणियों और उद्धरणों को एकत्र किया।

प्रागैतिहास और पारिवारिक बंधनों के विकास के खास सवाल पर मार्क्स ने मोर्गन की किताब से अनेक बहुमूल्य निष्कर्ष निकाले। हिंडमैन ने याद किया ‘मार्क्स को जब लेविस एच मोर्गन ने अपनी किताब “एनशिएन्ट सोसाइटी” के जरिए संतोषजनक तौर पर साबित कर दिया कि पुरानी कबीलाई व्यवस्था और प्राचीन समाज में सामाजिक इकाई परिवार नहीं, वंश था तो मार्क्स ने तत्काल अपनी पुरानी मान्यताओं को तिलांजलि दे दी ।’      

आदिम लोगों की सामाजिक संरचना संबंधी मोर्गन के शोध के चलते ही मार्क्स गोत्र संबंधी जर्मन इतिहासकार बार्थोल्ड नीबूहर (1786-1831) की ‘रोमन इतिहास’ (1811-12) में प्रस्तुत व्याख्या समेत तमाम पारम्परिक व्याख्याओं पर विजय पाने में कामयाब हुए । पहले की सारी परिकल्पनाओं के विपरीत मोर्गन ने दिखाया कि वंश को ‘एकनिष्ठ विवाह आधारित परिवार के बाद उत्पन्न’ और ‘परिवारों के एक समूह’ का नतीजा मानना भारी गलती रही है ।

प्रागैतिहास और प्राचीन समाज के अपने अध्ययन से उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि पितृसत्तात्मक परिवार को समाज की मूलभूत बुनियादी इकाई के रूप में नहीं देखना चाहिए बल्कि उसे सामाजिक संगठन का ऐसा रूप मानना चाहिए जो आम विश्वास के मुकाबले अधिक अर्वाचीन है । यह संगठन ‘जीवन की कठिनाइयों का अकेले मुकाबला करने के लिहाज से बहुत कमजोर’ है । इसके मुकाबले अमेरिका के मूलवासियों में प्रचलित सिंदियास्मिक किस्म के परिवार की मौजूदगी मानना अधिक विश्वसनीय होगा ।

दूसरी ओर मार्क्स ने लगातार मेन से विवाद किया जिन्होंने ‘लेक्चर्स आन अर्ली हिस्ट्री आफ़ इंस्टीच्यूशंस’ में कहा कि ‘निजी परिवार’ ही ‘वह आधार है जिस पर कुल और गोत्र का विकास होता है’ । विक्टोरियाई युग को प्रागैतिहास में ले जाकर इतिहास के तीर को उलट देने की इस कोशिश से मार्क्स की चिढ़ इतनी गहरी थी कि वे कहने को मजबूर हुए कि यह ‘बंददिमाग अंग्रेज वंश से नहीं बल्कि पितृसत्ता से शुरू करता है जो बाद में मुखिया बना- क्या बेवकूफी है !’ उनका उपहास भाव धीरे धीरे चरम पर पहुंच जाता है ‘कुल के बावजूद मेन के दिमाग से अंग्रेज निजी परिवार बाहर नहीं निकल सकता ।’ वे ‘रोमन “पितृसत्तात्मक” परिवार को चीजों की शुरुआत में ढोकर ले जाते हैं ।’ मार्क्स ने फीयर को भी नहीं बख्शा और उनके बारे में कहा ‘यह गधा सब कुछ का आधार निजी परिवार को बना देता है ।’

परिवार संबंधी धारणा पर मोर्गन की टिप्पणियों के चलते मार्क्स को कुछ और भी सोचने का मौका मिला क्योंकि ‘फ़ेमिली’ (परिवार) शब्द के ‘मूल अर्थ’ का, जो फ़ेमुलस या नौकर शब्द से जुड़ा हुआ है, ‘कोई संबंध विवाहित जोड़े या उनके बच्चों से नहीं है, बल्कि उन गुलामों और सेवकों के समूह से है जो उनके हित में श्रम करते थे और वे परिवार के बुजुर्ग पुरुष मुखिया की मातहती में होते थे ।’ इस पर मार्क्स ने टीप लिखी:

‘आधुनिक परिवार में न केवल गुलामी के बल्कि भूदासता के बीज भी मौजूद होते हैं क्योंकि इसमें शुरू से ही कृषि सेवाओं से जुड़ाव रहा है । इसमें लघुरूप में उन सभी शत्रुताओं के बीज मौजूद रहते हैं जो बाद में समाज और उसके राज्य में व्यापक तौर पर विकसित होते हैं ।—परिवार के अन्य रूपों से अपना अलग अस्तित्व बनाए रखने के लिए एकनिष्ठ परिवार को ऐसे घरेलू वर्ग की जरूरत थी जो सर्वत्र सीधे गुलाम हुआ करते थे ।’

पूरक के बतौर अपने विचारों को विकसित करते हुए मार्क्स ने अलग से लिखा कि ‘घर, जमीन और रेवड़ में संपत्ति’ निश्चित रूप से ‘एकनिष्ठ परिवार’ के साथ जुड़ी हुई है । असल में जैसा ‘कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र’ में लिखा है यही इतिहास का आरम्भ था अगर वह ‘वर्ग संघर्ष का इतिहास’ है ।

‘परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति’ (1884) में एंगेल्स ने ‘एथनोलाजिकल नोटबुक्स’ के मार्क्स के विश्लेषण को पूरा किया । इस किताब को लेखक ने ‘अभिलाषा की पूर्ति’ कहा है और ‘जो काम पूरा करना’ उनके ‘दिवंगत मित्र’ को न बदा था उसका ‘एक तुच्छ विकल्प’ मात्र माना है । उनका कहना है कि

‘किसी एक सेक्स द्वारा दूसरे सेक्स को पराधीन बनाना सेक्सों के बीच ऐसे टकराव की घोषणा है जो अब तक के समूचे इतिहास में देखा नहीं गया । 1846 में मैंने और मार्क्स ने मिलकर जो काम किया था उसकी अप्रकाशित पुरानी पांडुलिपि में यह लिखा मिला- “पहला श्रम विभाजन बच्चे पालने के सवाल पर स्त्री और पुरुष के बीच पैदा हुआ” । और इसमें आज जोड़ सकता हूं कि इतिहास में जो पहला वर्ग विरोध प्रकट होता है वह एकनिष्ठ विवाह में पुरुष और स्त्री के बीच के विरोध के विकास का अनुवर्ती होता है और पहला वर्ग उत्पीड़न भी पुरुष द्वारा स्त्री का होता है । एकनिष्ठ विवाह सभ्य समाज का वह कोशिकीय रूप (है) जिसमें हम उन विरोधों और अंतर्विरोधों का अध्ययन कर सकते हैं जो बाद में पूरी तरह विकसित हुए ।’

मार्क्स ने भी पुरुष और स्त्री की समता संबंधी मोर्गन की बातों पर गहराई से ध्यान दिया । मोर्गन का कहना था कि यूनानी सभ्यता से पहले के प्राचीन समाजों में स्त्रियों के साथ बरताव और आचरण के मामले में अधिक प्रगतिशीलता थी । मार्क्स ने मोर्गन की किताब के कुछ ऐसे अंशों की नकल तैयार की जिनसे पता चलता था कि कैसे ग्रीक लोगों में ‘वंश परम्परा को स्त्री के सिरे से देखने की जगह पुरुष के सिरे से देखने का नया चलन शुरू होने के कारण पत्नी और स्त्री की हैसियत और अधिकारों को नुकसान पहुंचा’ । मोर्गन ने ग्रीस की सामाजिक व्यवस्था के बारे में बड़ी नकारात्मक राय जाहिर की ।

‘ग्रीक लोग अपनी सभ्यता के उत्कर्ष के समय भी औरतों के साथ बरताव के मामले में बर्बर बने रहे; उनकी शिक्षा अत्यंत सतही थी,—उनकी हीनावस्था को उनके दिल में सिद्धांत की तरह बिठाया गया और आखिरकार औरतों ने खुद इस बात को तथ्य की तरह स्वीकार कर लिया’ । इसके अतिरिक्त भी ‘पुरुषों के भीतर सोचा समझा स्वार्थी सिद्धांत पाया जाता है जिसके चलते वे स्त्रियों के गुणों को कम करके आंकते हैं । यह बात बर्बर लोगों में मुश्किल से मिलती है’ । सभ्य समाज के विपरीत पुराने समय के मिथकों के बारे में सोचते हुए मार्क्स ने बहुत तीक्ष्ण सर्वेक्षण दर्ज किया है ‘ओलिम्पस में देवियों की स्थिति से औरतों की हैसियत का पता चलता है । वे अधिक आजाद और अधिक प्रभावी थीं । जुनो नामक देवी को सत्ता की लालच थी, ज्ञान की देवी ज़ीयस के कपाल से उत्पन्न हुईं आदि’ ।

(यह अंश मार्चेलो मुस्तो लिखित ‘लास्ट मार्क्स’ के हिंदी अनुवाद ‘मार्क्स के आखिरी दिन’ से लिया गया है । गोपाल प्रधान का यह अनुवाद आकार बुक्स से छपा है। इसके लिए aakarbooks@gmail.com या 9899216313 पर भी सम्पर्क कर सकते हैं । डाक का पता है ; आकार बुक्स, 28 ई, पाकेट IV, मयूर विहार फ़ेस 1,दिल्ली-110091.)

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