स्पेशल रिपोर्ट: पंजाब में कोरोना-कर्फ्यू का चौथा दिन; त्राहि-त्राहि कर रहे लोग!

कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के मद्देनजर पंजाब में लगाए गए सख्त कर्फ्यू का आज चौथा दिन है। लोग-बाग अमूमन घरों में कैद हैं और जो बाहर निकल रहे हैं, उनकी अपनी-अपनी मजबूरियां हैं। कर्फ्यू के बीच बाहर निकलने वाले जायज लोगों को भी पुलिस की थुक्का-फजीहत बर्दाश्त करनी पड़ रही है। इस महामारी के दौर में भी यह बखूबी साबित हो रहा है कि ‘पुलिस (खासकर भारतीय) ‘पुलिस’ ही है और कर्फ्यू आखिरकार ‘कर्फ्यू’ ही है!’ सरकारी दावों के विपरीत लोगों को आवश्यक चीजों से महरूम होने की मजबूरी झेलनी पड़ रही है। फौरी हालात यह हैं कि जैसे केंद्र सरकार से देशव्यापी लॉकडाउन लगभग नहीं संभल रहा वैसे पंजाब में कर्फ्यू की सार्थकता पूरी तरह दांव पर है।

केंद्र और राज्य सरकारों को दिहाड़ीदारों और असंगठित कामगारों की सचमुच कोई परवाह होगी, जमीनी स्तर पर पंजाब में तो यह नजर नहीं आ रहा। एक बात शीशे की मानिंद साफ है कि दोनों सरकारें चंद दिन पहले तक लापरवाही की नींद सोई रहीं। पानी जब सिर से गुजरा तो देशभर में जनता कर्फ्यू, लॉकडाउन और पंजाब में अनिश्चितकालीन ‘सख्त’ कर्फ्यू की घोषणा ऐन नीरो के बांसुरी बजाने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए कर दी गईं। अब आलम क्या है? घरों में बंद तमाम लोग सूचनाएं/खबरें  सोशल मीडिया, टीवी चैनलों के जरिए हासिल कर ही रहे हैं।              

पंजाब का आलम देखिए: सरकारी घोषणा थी कि कर्फ्यू के बाद लोग कतई घरों से बाहर ना निकलें। उन्हें आवश्यक चीजों की कमी नहीं आने दी जाएगी। हेल्पलाइन नंबर जारी कर दिए गए थे। लेकिन हो क्या रहा है? पुलिस सड़कों पर मरीजों तक को पीट रही है और मुर्गा बनाने की शर्मनाक पुलिसिया परंपरा कायम रखे हुए है। काला बाजारी जोरों पर है। जो सब्जी या फल पहले 50 रुपए किलो था वह अब 100 से 150 रुपए किलो तक है। आटे की थैली 100 रुपए तक बेची जा रही है। बिस्किट, ब्रेड, रस्क सहित बेकरी के अन्य सामान ऊंचे दामों पर गैरकानूनी तौर पर बेचे जा रहे हैं। दवाइयों के दाम भी एकाएक बढ़ गए हैं। कुछ प्राइवेट अस्पताल पहले से ही लूट का अड्डा बन चुके हैं। आपदा की इस घड़ी में अमानवीयता और क्रूरता के इस तंत्र पर कोई ‘कर्फ्यू’ नहीं। यहां तक कि शराब के ठेके बंद हैं लेकिन घरों में बाजरिया तस्करी शराब और अन्य नशे आराम से पहुंचाए जा रहे हैं।             

खैर, असली सवाल उन लोगों का है जो रोजमर्रा से होने वाली कमाई के जरिए 2 जून की रोटी का इंतजाम करते थे। जालंधर शहर के ऐन बीचोंबीच एक गांव है रेड़ू। जालंधर-पठानकोट हाईवे पर। वहां किराए के मकान (में एक कमरे) पर रहने वाला बक्शीश सिंह का परिवार बीते 2 दिन से ढंग से खा नहीं पा रहा। लगभग पूरा परिवार भूखा रहने की बदतर हालात में है। राज्य सरकार कहती है कि 10 लाख ऐसे लोगों तक खाने के पैकेट पहुंचाए गए हैं लेकिन फिलहाल तो बक्शीश सिंह के परिवार तक तो नहीं पहुंचा। बक्शीश सिंह की उम्र जानिए, लगभग 65 साल। रुआंसे होकर वह कहते हैं, “तीन बार खाने की तलाश में और गुहार लगाने के लिए बाहर शहर (पठानकोट बाईपास) चौक तक गया लेकिन पुलिस ने खदेड़ दिया।

गांव वाले कब तक खाना खिलाएंगे?” खैर, कतिपय धार्मिक संगठनों ने भी जरूरतमंदों को खाना पहुंचाने की जोर-शोर से घोषणा की है लेकिन जालंधर के ही सोफी पिंड के नीरज कुमार के लिए अभी यह बेमतलब है। इस पत्रकार ने नीरज के सामने ही प्रशासन के कुछ आला अधिकारियों को फोन पर जानना चाहा कि शासनादेश तो यह है कि किसी को भूखा नहीं रखा जाएगा लेकिन फौरी हालात यह हैं तो लगभग सभी का जवाब था, “कि आते-आते ही सब कुछ आएगा!” वैसे, हम पूछ नहीं पाए कि क्या मौत भी? कुछ जगह के हालात यही बता रहे हैं कि कोरोना वायरस से ज्यादा मौतें शायद भुखमरी और अवसाद/तनाव से हो सकती हैं। प्रशासन अपनी ‘रूल बुक’ के मुताबिक संवेदनशील है लेकिन यथास्थिति के मुताबिक निहायत क्रूर तथा असंवेदनशील! क्या कर्फ्यू लागू करना इतिश्री है? जीवन से आगे भी है? यह फगवाड़ा के एक ऐसे किसान परिवार से जानिए, जिसके दो सदस्यों ने सल्फास को हथियार बनाकर अपनी जान दे दी।

परिवार जो शेष है अब बेमौत मर रहा है क्योंकि महिलाएं तक खेतों में मजदूरी करती थीं और कर्फ्यू तथा लॉकडाउन ने श्रम-जीवन के इस सिलसिले को बेमियादी वक्त के लिए मुल्तवी कर दिया है। इस परिवार की हिंदी में पढ़ने वालों के लिए अम्मां (पंजाबियों के लिए बीजी) 81 साल की निहाल कौर यह कहते हुए रोने लगतीं हैं कि, “पुत्तरा ऐसा वक्त कभी नहीं देखा। हमारे घर के दो बच्चे चले गए कर्ज के कारण। हमने हिम्मत नहीं हारी। लेकिन अब? एक खतरा कोरोना वायरस का और दूसरा भुखमरी का। घर में एक पैसा नहीं और उधार देने को कोई तैयार नहीं। किसी को यकीन ही नहीं कि यह सिलसिला कब खत्म होगा और होगा भी तो हालात सामान्य कब होंगे। तमाम लोग नगद लेकर सामान दे-ले रहे हैं। हम कहां जाएं?”                                    

प्रसंगवश, पंजाब की किसानी के आगे बहुत बड़ी दिक्कत है। सूबे में गेहूं की फसल एकदम तैयार है और कटने के इंतजार में है। लगता नहीं कि सहजता इस बार गेहूं की फसल से अपने मुफीद मुकाम तक पहुंचेगी। देशव्यापी लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूर आएंगे नहीं। पंजाब के खेत फसल कटाई के वक्त उन्हीं के हवाले रहते हैं। रेलगाड़ियां रद्द हैं लेकिन किसानों का इंतजार उनके लिए बरकरार है। जालंधर जिले के रुपेवाली गांव के एक किसान, मदनलाल जिन्होंने 70 एकड़ जमीन पर गेहूं खड़ी की है, कहते हैं, “दोआबा के किसान परिवारों के ज्यादातर बच्चे विदेशों में हैं और मशीनरी के बावजूद फसल कटाई और बुवाई के लिए हम लोग पूरी तरह उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा और राजस्थान से आने वाले प्रवासी मजदूरों पर निर्भर हैं लेकिन अब वे नहीं आएंगे क्योंकि आवाजाही के सारे साधन पूरी तरह बंद हैं।

पंजाब में कर्फ्यू है तो उनके राज्यों में लॉकडाउन।” सूबे के बाकी हिस्सों में भी किसान प्रवासी मजदूरों के नहीं आने की पुख्ता आशंका के चलते बेहद ज्यादा परेशान और चिंतित हैं। उनकी समझ से बाहर है कि होगा क्या? हालांकि सरकार और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (लुधियाना) की ओर से लगातार दावा किया जा रहा है कि किसानों को किसी किस्म की मुश्किल नहीं आने दी जाएगी लेकिन स्पष्ट रूपरेखा सामने कोई नहीं रख रहा।          

राज्य में शुक्रवार सुबह से तेज हवाओं के साथ बारिश हो रही है जो ज्यादातर फसलों पर तेजाब की मानिंद है। यानी बारिश जारी रहती है तो कोरोना वायरस का जंजाल बर्बाद करे ना करे, तूफानी बरसात यकीनन कर देगी। राज्य के जिन खेतों में गेहूं से इतर फसलें लगाईं गईं थीं, वे पककर तैयार हुईं, कट कर हाथों में भी आईं लेकिन कर्फ्यू के चलते बेमौत मारी गईं/यानी सड़ गईं। लगभग 18000 हेक्टेयर खेतिहर भूमि में ऐसी फसलें होतीं हैं। फल भी। अब सब कुछ तबाह है। धरती बेशक बंजर नहीं है लेकिन उससे भी बदतर हालात में है। यह सारा कहर तब दरपेश है जब पंजाब की किसानी पहले से ही कर्ज के जानलेवा मकड़जाल में है।

रिकॉर्ड पैमाने पर किसान और स्थानीय खेत मजदूर खुदकुशी के लिए मजबूर हैं। कोरोना वायरस, कर्फ्यू और लॉकडाउन की सुर्खियों के बीच भी अभी-अभी खबर मिली कि जिला मानसा के बरेटा में 27 वर्षीय एक किसान ने आत्महत्या कर ली। कीटनाशक निगलकर जान देने वाले हरपाल सिंह पर 7 लाख रुपए का कर्ज था। इस सवाल का जवाब कौन देगा की देशव्यापी बल्कि विश्वव्यापी इस संकट के बीच किसने क्रूरता के साथ कर्ज मांगा होगा और किसे अदा करने का इतना मारक दबाव होगा? संकट में भी क्या यही दुनिया बन रही है जिसमें आत्महत्या रोजमर्रा का एक सच है।         

बहरहाल, पंजाब में पुलिस ने कर्फ्यू की अपनी सख्त पाबंदी को निभाते, कर्फ्यू का उल्लंघन करने वालों पर आज भी (इन पंक्तियों को लिखने तक) 190 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए और कल यह आंकड़ां 286 था। इन लोगों में वे भी शामिल हैं जो इलाज या रोटी के लिए घरों से बाहर निकलने के ‘गुनाहगार’ हैं…। लगता है कि कोरोना वायरस से पंजाब जैसे जूझ रहा है शायद वैसे पूरा देश भी। 90 हजार एनआरआई मार्च में पंजाब आए और कुछ इस महामारी के लक्षण लेकर भी आए। केंद्र और राज्य सरकार पहले अतिरिक्त सतर्कता बरतती तो शायद कम से कम पंजाब कर्फ्यू के इस आलम में त्राहि-त्राहि नहीं कर रहा होता।  

जाते जाते कर्फ्यू ग्रस्त पंजाब की एक और तस्वीर: जो अमीर हैं, वे आराम याफ्ता हैं, रईस जुए और पार्टियों में मसरूफ और कुछ बीच के लोग टीवी/नेट से दिल बहला रहे हैं। बच्चों के हिस्से की सुबह और शाम के असली रंग गायब हैं। जिनके अभिभावक समर्थ हैं वे न चाहते हुए भी लगातार नेटजाल में फंस गए हैं। बचा चौथी दुनिया का तबका तो खुद अंदाजा लगाइए!! 

(अमरीक सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल जालंधर में रहते हैं।)

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