गांधी की दांडी यात्रा-8: गांधी की गिरफ्तारी और ब्रिटिश सरकार का द्वंद्व

जैसे-जैसे दांडी यात्रा के प्रारंभ होने का दिन नजदीक आता गया, लॉर्ड इरविन नमक सत्याग्रह को लेकर, अभी भी इसी मत के थे कि, यह सत्याग्रह, देर सबेर विफल हो जाएगा और, नमक जैसी साधारण सी वस्तु पर, लगाया गया कर, पूरे देश की जनता को, आंदोलित नहीं कर पायेगा। यात्रा के एक हफ्ते पहले, 6 मार्च 1930 को उन्होंने, फेलो ऑफ ऑल सोल्स के, एक मित्र को पत्र में लिखा कि, “हमारे मामले, यदि केवल गांधी से जुड़े मामलों (सत्याग्रह से जुड़े) को छोड़ दें तो, बहुत बुरे नहीं चल रहे हैं। लेकिन वह (गांधी) उन्हें असंभव बनाने की पूरी कोशिश कर रहा है। वह आदमी भी, क्या गजब पहेली है!” 

(इरविन का पत्र, लियोनेल करीज के नाम, 6 मार्च 1930, संदर्भ, गांधी द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड, राम चंद्र गुहा, पृष्ठ.340)

इस घटना के छः दिन बाद, गांधी ने अपना सत्याग्रह और दांडी यात्रा की शुरुआत, 12 मार्च 1930 को, कर दी। इस घटना का असर जैसा कि आप पिछले अंकों में पढ़ चुके हैं। उनकी नमक कानून तोड़ो यात्रा की खबरों से, पेशावर से लेकर ढाका तक और दिल्ली से लेकर मद्रास तक न केवल कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में, बल्कि आम जनता में भी, गजब का उत्साह था। ऐसा भी नहीं था कि, सरकार को, इन सब खबरों का पता नहीं था, बल्कि, उन्हें तो, सारी खुफिया जानकारी मिल ही रही थीं, पर वायसरॉय लॉर्ड इरविन, अब भी इस आंदोलन को लेकर, यही सोच रहे थे कि, इस आंदोलन का बहुत अधिक असर, देश और लोगों पर नहीं पड़ेगा।

वायसरॉय को, मिलने वाली प्रांतीय सरकारों की पाक्षिक रिपोर्टों में, जो खुफिया सूचनायें दर्ज हो रही थीं, वे इस यात्रा को लेकर, एक व्यापक जनआंदोलन का संकेत दे रही थीं। मद्रास सरकार, ने दिल्ली सरकार को सूचना भेजी की, “गांधी के सविनय अवज्ञा अभियान की शुरुआत ने, अन्य सभी मुद्दों को, पूरी तरह से ढंक दिया है। लोगों में सिवाय गांधी की दांडी यात्रा के और कोई चर्चा हो ही नहीं रही है।” इसी तरह, बंबई के गवर्नर ने, दिल्ली को बताया कि, “इस यात्रा ने, ‘गुजरात और अन्य जगहों पर बहुत उत्साह पैदा किया है। अहमदाबाद में विशेष रूप से, लोग बहुत उत्साहित हैं और इस यात्रा में, रुचि ले रहे हैं। अहमदाबाद शहर के लोग गांधी की यात्रा और उनसे जुड़ी बैठकों में, उत्साह से भाग ले रहे हैं।”

(गृह (राजनीतिक) विभाग को भेजे जाने वाली, पाक्षिक रिपोर्ट का अंश, संदर्भ, गांधी द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड, रामचन्द्र गुहा, पृष्ठ 340-41)

वायसराय, देश के राजनीतिक माहौल का अपने दृष्टिकोण और प्रशासनिक तंत्र से मिली सूचनाओं के आधार पर, गंभीरता से आकलन कर रहे थे। सचमुच यह एक ऐसी महत्वपूर्ण  राजनीतिक परिस्थिति बन रही थी, जिससे निपटना, उनकी प्राथमिकता बन गई थी। यात्रा के पांच दिन बाद, जब गांधी गुजरात के शहर, आनंद पहुंच गए थे तो, 17 मार्च, 1930 को लंदन स्थित सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को, एक तार भेजा, जिसमे उन्होंने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को, लिखा कि, “इसमें (खुफिया सूचनाओं में) रिपोर्ट की गई, राजनीतिक गतिविधियां, भारत के अधिकांश हिस्सों में कहीं खामोशी तो कहीं खुल कर जारी है …. उनका (गांधी का) आधिकारिक कार्यक्रम है, (सत्याग्रह) अभियान को क्रमिक चरणों में फैलाना। जिसका, गांधी की दांडी यात्रा, के साथ, पहला चरण शुरू हो गया है। दूसरा उनकी गिरफ्तारी के बाद, (इस) अभियान को और व्यापक बनाने के उद्देश्य से,  शुरू होना है, और तीसरा चरण, व्यापक पैमाने पर एक जनआन्दोलन का होना है।”

ब्रिटिश सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों और विशेषज्ञों ने, गांधी जी के नमक सत्याग्रह को गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के, सामने, इस सिविल नाफरमानी को कोई चुनौती नहीं समझी और इससे उन्हें, सरकार के खिलाफ, किसी हानिकारक परिणाम की उम्मीद भी नहीं थी।  सेंट्रल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के सदस्य जॉर्ज रिचर्ड फ्रेडरिक टोटेनहैम ने इसे ‘श्री गांधी की कुछ शानदार परियोजना’ के रूप में वर्णित किया लेकिन, वे इस सत्याग्रह के पीछे जो, जन आंदोलन उभर रहा था, और पूर्ण स्वराज की जो, ललक जनता के बीच फैल रही थी, को भांप नहीं पाए। एक प्रकार से वायसरॉय, एक दुविधापूर्ण स्थिति का सामना कर रहे थे। 

दांडी यात्रा मार्ग का पूरे इलाके का कुछ भाग, या तो बड़ौदा रियासत के अंदर से गुजरता था पर अधिकांश, वह बॉम्बे प्रेसीडेंसी के आधीन ब्रिटिश भारत का हिस्सा था। जाहिर है इस यात्रा का क्या असर हो सकता है, यह बंबई के गवर्नर फ्रेडरिक साइक्स, बखूबी महसूस कर रहे थे। अपनी प्रेसीडेंसी में, हो रही राजनीतिक परिस्थितियों पर, गांधी की इस यात्रा को लेकर, फ्रेडरिक साइक्स, चिंतित भी थे। उन्होंने, वायसरॉय को अपनी चिंता से अवगत कराते हुए एक पत्र लिखा कि, “गांधी की इस यात्रा को, लम्बे समय तक जारी रहने की उम्मीद की जा रही है। इससे हम अभी तक, यह अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं कि, इसका असर, पूरे प्रेसीडेंसी में किस प्रकार से पड़ेगा।” इसलिए उन्होंने, यात्रा के दौरान ही, गांधी जी के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई करने का सुझाव दिया।

लेकिन वायसराय, गांधी के खिलाफ, किसी कार्यवाही के लिए, अभी थोड़ा और, समय चाहते थे। वे यह तय नहीं कर पा रहे थे कि, फिलहाल वे इस यात्रा और गांधी के सत्याग्रह से कैसे निपटें। 24 मार्च 1930 को, सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को, एक तार भेज कर, उन्होंने कहा कि, 

“……. जहां तक गुजरात का संबंध है, वहां (यात्रा का) स्थानीय प्रभाव काफी है, हालांकि, संभवतः वह क्षणिक भी है ….. जहां तक शेष भारत का संबंध है, ऐसा लग रहा है कि, (यात्रा का) वर्तमान प्रभाव, तुलनात्मक रूप से, (गुजरात की तुलना में) कम ही हो। भारत सरकार का यह विचार है कि, गांधी को तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि मामले (सत्याग्रह से जुड़े) इतने बिगड़ न जाएं कि, कोई उचित विकल्प ही न बचे या जब तक, बॉम्बे सरकार, स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार ऐसी आवश्यकता (गांधी को गिरफ्तार करने की) महसूस न करे, और, तत्काल ऐसी कार्रवाई (गांधी की गिरफ्तारी) की मांग न कर दे।” 

वायसरॉय गांधी की दांडी यात्रा को लेकर क्या सोच रहे थे, इसे, उन्होंने कैंटरबरी के आर्कबिशप और अपने मित्र जीआर लेन-फॉक्स, को, कुछ इस प्रकार से लिखा, ‘मैंने कुछ दिनों पहले साइक्स और हैली के साथ इस पर (गांधी की गिरफ्तारी पर) चर्चा की थी और हम सभी (इस बात पर) सहमत थे कि आखिर कब तक कोई इस मूर्खतापूर्ण नमक स्टंट पर उनको (गांधी को)  गिरफ्तार करने से बच सकता है, लेकिन, हमें शायद ऐसा कुछ (गांधी की गिरफ्तारी को लेकर) करना चाहिए।”

भारत सरकार, के सामने एक दिक्कत और भी थी कि, वह अगर गांधी जी को गिरफ्तार करती भी तो, किस कानून के अंतर्गत करती? अभी नमक बना कर, कोई कानून तोड़ा नहीं गया था। गांधी जिस तरह से घूम घूम कर जन सभाओं में अपनी बात कह रहे हैं, उन्हें हिंसक और भड़काऊ भी नहीं कहां जा सकता था। कानून के जानकारों ने सरकार को बताया कि, गांधी की गिरफ्तारी, आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 117, के अंतर्गत की जा सकती है। लेकिन यह प्रावधान तो, जमानतीय था। अगर वे जमानत पर छूटना चाहते हैं तो अदालत उन्हें जमानत दे भी देगी। इस कानून से तो, उनकी यात्रा और सत्याग्रह रोका भी नहीं जा सकता था। बंबई के गवर्नर का यह मानना था कि, गांधी की गिरफ्तारी, की भी जाय तो किसी लंबी अवधि के लिए उन्हें जेल में रखा जाय। गिरफ्तारी और जेल जाने की स्थिति में, ‘अगर गांधी, भूख हड़ताल कर देते हैं तब, उन्हें हिरासत में मरने की बजाय, रिहा कर दिया जाना चाहिए।’

गाँधी की दांडी यात्रा के प्रारंभ होने के एक सप्ताह बाद ही, अंग्रेजी अखबार, द टाइम्स ऑफ इंडिया ने, वायसरॉय लॉर्ड इरविन और बंबई के गवर्नर, फ्रेडरिक साइक्स के समान ही, गांधी के इस सत्याग्रह पर एक सख्त टिप्पणी की थी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने,  यात्रा के एक सप्ताह पहले, 5 मार्च 1930 को सरदार वल्लभभाई पटेल को गिरफ्तार किये जाने के सरकार के कदम की सराहना की और गांधी की गिरफ्तारी के लिए,  ब्रिटिश प्रेस के बयानों से, अनुकूल उद्धरण भी प्रकाशित किये। हालांकि, गांधी के खिलाफ, गंभीर कानूनी कार्रवाई और उनकी तत्काल गिरफ्तारी के बारे में अखबारों की राय अलग अलग थी। गांधी की गिरफ्तारी को लेकर, सरकार के, प्रांतीय सरकार, भारत सरकार और ब्रिटेन की सरकार में अनेक तरह के, द्वंद्व और भ्रम की स्थिति थी। लॉर्ड इरविन ने स्पष्ट रूप से अपना इरादा, गांधी की गिरफ्तारी को लेकर नहीं बनाया था, क्योंकि उन्होंने दांडी यात्रा के लगभग दो महीने बाद तक, गांधी की गिरफ्तारी का आदेश नहीं दिया था।

एक तरफ, वाइसरॉय, गांधी की गिरफ्तारी पर अभी कुछ और आगा पीछा सोचने के पक्ष में थे तो, बम्बई के गवर्नर, फ्रेडरिक साइक्स ने, समय बीतने के साथ साथ, गांधी की यात्रा के साथ जो जन जागरण हो रहा था, उसे लेकर, बहुत, चिंतित थे। उन्होंने, लॉर्ड इरविन से गांधी की गिरफ्तारी के बारे में विचार करने और, सत्याग्रह के प्रति सख्त दृष्टिकोण अपनाए जाने के लिए, सभी संभावित विकल्पों और एक निश्चित समय पर, कार्रवाई करने के लिये, चर्चा हेतु, दिल्ली में एक बैठक आयोजित करने के लिए अनुरोध किया। वाइसरॉय और बम्बई के गवर्नर, के बीच, 27 मार्च 1930 को मुलाक़ात हुई। उस बैठक में, फ्रेडरिक साइक्स ने, बम्बई प्रेसिडेंसी, में गांधी के सत्याग्रह का, जनता पर जो व्यापक प्रभाव पड़ रहा है पर, विस्तृत चर्चा के लिए एक व्यापक ‘ड्राफ्ट नोट’ तैयार किया था।

उन्होंने कहा कि, यात्रा को लेकर, लोगों में बहुत उत्साह है, पटेलों (मुखियाओं) के पर्याप्त संख्या में, इस्तीफे हो गए हैं, और अब भी हो रहे हैं, और अहमदाबाद, कैरा, भड़ोंच और सूरत में, सत्याग्रही स्वयंसेवकों की भर्ती, तेजी से की जा रही है। दांडी यात्रा मार्ग पर, गांधी, भारी भीड़ को आकर्षित कर रहे हैं। लग रहा है कि लोग, भू-राजस्व (लगान) देने के लिए भी इनकार कर सकते हैं। इसलिए, उन्होंने गांधी की गिरफ्तारी और लंबे समय तक उन्हें, कारावास में डालने से लेकर पूरे अभियान के प्रति, सरकार का क्या रुख रहे, इस पर विचार करने की, आवश्यकता पर जोर दिया। गवर्नर ने यह भी कहा कि, सरकार के इरादों के बारे में, सरकार की तरफ से, एक दृढ़निश्चय भरे बयान की, तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि उन्हें लग रहा था, कि गांधी की दांडी यात्रा, जल्द ही, बम्बई सरकार के शासन को एक गंभीर चुनौती दे सकती है।’

दिल्ली में बैठे वाइसरॉय और बंबई में नियुक्त गवर्नर, गांधी की गिरफ्तारी और उसके संभावित परिणाम के बारे में, तमाम किंतु परंतु पर चिंतन मनन कर रहे थे, पर गांधी, रास कस्बे में निर्भीकता से अपनी बात जनता के समक्ष रख रहे थे। तारीख थी, 19 मार्च 1930, यानी यात्रा का आठवां दिन। गांधी रास कस्बे में सरदार पटेल की गिरफ्तारी की बात फिर दुहराते हैं और कहते हैं, 

“आज हम उस तालुका में प्रवेश कर गए हैं जिसमें सरदार वल्लभभाई को गिरफ्तार कर जेल की सजा सुनाई गई थी और जिस इलाके में, उन्होंने 1924 में इतना जोरदार संघर्ष किया था कि, सरकार को आखिरकार अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी और जनता को न्याय मिला। (गांधी खेड़ा सत्याग्रह का उल्लेख कर रहे थे) जिस अन्याय के लिए संघर्ष की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए थी, सरकार को जनता की मांग पहले (आंदोलन से पहले) ही मान लेनी चाहिए थी। पर जनता को उसके लिए सत्याग्रह करना पड़ा। और सरदार को आपकी सेवा करने के इनाम के रूप में जेल की सजा सुना दी गई!”

गांधी ने यात्रा के दौरान जितनी भी सभाएं की, उन सब सभाओं में, उन्होंने, सरदार पटेल की गिरफ्तारी का उल्लेख किया और जनता को याद दिलाया कि, सरदार की गिरफ्तारी पर जनता स्वयंस्फूर्त, सड़कों पर उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ, क्यों नहीं आ गई। उन्होंने सीधे सवाल पूछा,  “अब सवाल यह है कि, जिस कारण से, उन्हें (सरदार पटेल को) जेल भेजा गया है, उनकी (पटेल द्वारा की गई जनता की) सेवा के लिए आप क्या कर सकते हैं और मुझे क्या करना चाहिए?”

फिर गांधी आगे कहते हैं, “कुछ मुखियाओं और मातादारों ने इस्तीफा दे दिया है। मैं उन्हें बधाई देता हूं।  हालांकि, अभी भी कई ऐसे हैं जो सरकारी लाइन को नहीं छोड़ पा रहे हैं। मेरे सामने एक भी, ऐसा व्यक्ति नहीं आया है, जिसने वेतन से जुड़े होने के कारण प्रधान का पद स्वीकार किया हो। मुखियाओं को, लोगों का अपमान करने का विशेषाधिकार है या यह कहा जा सकता है कि उन्हें लोगों पर किए गए अपमान में भाग लेने का अधिकार है। उनके पदों से चिपके रहने का अनुचित कारण यह है कि, यह विशेषाधिकार उनके मूल स्वार्थ को संतुष्ट करता है। लेकिन कब तक इन गांवों को निचोड़ने में वे (मुखिया) अपनी भूमिका निभाते रहेंगे? क्या सरकार द्वारा की जा रही लूट पर अभी तक आपकी आंखें नहीं खुली हैं?”

मुखिया यानी विलेज हेडमेन के बारे में बताते हुए गांधी कहते हैं, “मुखिया, तलाटी और रवनिया गाँवों में सरकार के प्रतिनिधि होते हैं, और इन व्यक्तियों के माध्यम से सरकार, अपना प्रशासन चलाती है। एक गाँव जो, मुट्ठी भर आदमियों (मुखियाओं) से डरता है और अपनी इच्छा के विपरीत, कार्य करता रहता है, इससे न तो मुखियाओं, तायती या रावणियों की प्रतिष्ठा बढ़ती है, और न ही ग्रामीणों की। सरदार इस आतंक को खत्म करने के लिए काफी प्रयास कर रहे थे। सरदार ने, न तो कभी यहां भाषण दिया और न ही यहां वे, उपद्रव मचाने आए थे। न तो मजिस्ट्रेट ने, और न ही, जनता ने, उनसे, किसी तरह की, समस्या का सामना किया। जिस उद्देश्य के लिए सरदार ने, आप सब से संपर्क किया था, वह किसी से छिपा नहीं था। सत्याग्रही, कोई रहस्य नहीं रखता।  एक बच्चा भी देख सकता है कि सत्याग्रही कैसे खड़ा होता है, बैठता है, खाता है और पीता है।

कोई भी, उसके खातों की भी जांच कर सकता है। सरदार जैसे सत्याग्रही के पास क्या रहस्यमय हो सकता है? वह यहां मेरे लिए (नमक सत्याग्रह का) रास्ता बनाने आये था। वह यहां नमक सत्याग्रह का संदेश देने आये थे। हम दोनों ने यह योजना बनाई थी कि, यह मेरे माध्यम से होगा और जिन्हें मैं अपने साथ ले जा रहा हूं, हम सब मिल कर, नमक कानून तोड़ेंगे। आप मेरे साथ आने वाले बहुत से व्यक्तियों को नहीं जानते हैं। लेकिन, वे सभी सरदार के प्रति समर्पित जन सेवक हैं। सरदार ने ऐसा करके कौन सा अपराध कर दिया, मैं इसे, समझ नहीं पाया इसकी जानकारी जिलाधिकारी को भी नहीं होगी।”

सरदार पटेल पर ही मुख्यत: अपनी बात केंद्रित रखते हुए, गांधी बोलना जारी रखते हैं, “सरदार को तीन महीने की जेल की सजा दी गई, यह सरदार और सरकार दोनों के लिए शर्म की बात है। उनके जैसे (सत्याग्रही) व्यक्ति को सात साल के कारावास की सजा दी जानी चाहिए या निर्वासित किया जाना चाहिए था।  मुझे भी, तीन महीने की कैद की सजा देना सरकार के लिए उचित नहीं होगा। जीवन के लिए निर्वासन या फांसी, मेरे जैसे व्यक्ति के लिए उपयुक्त सजा होगी। मैं देशद्रोह का दोषी हूं। सरकार के खिलाफ देशद्रोह करना मेरा धर्म है। मैं लोगों को यह धर्म सिखा रहा हूं।

एक ऐसी व्यवस्था जिसके अंतर्गत अत्याचार किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत, अमीर और गरीब को नमक जैसी वस्तु पर एक ही समान कर का भुगतान करना पड़ता है, जिसके अंतर्गत, चौकीदार, पुलिस और सेना पर अत्यधिक रकम खर्च की जा रही है, जिसके अंतर्गत, उच्चतम कार्यपालक (वायसरॉय) को जो वेतन मिलता है वह, एक किसान की आय से, पांच हजार गुना अधिक होता है, जिसके अंतर्गत, 25 करोड़ रुपये का वार्षिक राजस्व, नशीले पदार्थों और शराब से प्राप्त होता है, जिसके अंतर्गत, हर साल 60 करोड़ रुपये मूल्य का विदेशी कपड़ा आयात किया जाता है, और जिसके अंतर्गत, करोड़ों लोग बेरोजगार बने हुए हैं। ऐसे शासन के खिलाफ उठ खड़ा हो जाना और नष्ट करना, यह प्रार्थना करना कि उनकी (सरकार की) नीतियों को, आग, भस्म कर दे, यही धर्म है।”

फिर खुद को मिली सजा, जो उन्हेx देशद्रोह के लिए 1924 में मिली थी का उल्लेख करते हुए कहते हैं, “इसी तरह के एक देशद्रोह के अपराध के लिए, मुझे एक बार, छह साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन दुर्भाग्य से, मैं बीमार पड़ गया और मुझे रिहा कर दिया गया क्योंकि यह महसूस किया गया था कि, मुझे अब जेल में नहीं रखा जाना चाहिए। अब फिर से एक बादल घुमड़ रहा है, आप इसे ऐसा कह सकते हैं, या, धूमधाम के साथ एक ‘संकट’ (गिरफ्तारी का संकट) मेरे पास आ रहा है। मुझे भी गिरफ्तार कर लिया जाए तो अच्छा होगा।  अगर मजिस्ट्रेट मुझे तीन महीने की कैद की सजा देता है तो, यह उसके लिए शर्म की बात होगी। राजद्रोह के एक दोषी को, अंडमान, भेज दिया जाना चाहिए। उसे आजीवन निर्वासन की सजा या फांसी की सजा दी जानी चाहिए। देशद्रोह को अपना कर्तव्य मानने वाले मेरे जैसे किसी व्यक्ति को, इससे कम क्या सजा दी जा सकती है?”

अपनी संभावित गिरफ्तारी पर वे जनता से कहते हैं, “सरकार समझती होगी, कि, सरदार को तीन महीने की कैद की सजा देकर वह लोगों को डराने और दबाने में सक्षम नहीं होगी। यह तथ्य कि, आप यहाँ हजारों की संख्या में निकल आए हैं, यह दर्शाता है कि, आप एक उत्सव की (सत्याग्रह के उत्सव) प्रतीक्षा कर रहे हैं। अगर मुझे और मेरे साथियों को गिरफ्तार किया जाता है, तो आपको, जश्न मनाने के लिए कुछ समझना चाहिए। लेकिन क्या आप इसे केवल उत्सव का एक अवसर मानकर (घरों में) चुप बैठ जाएंगे? क्या मुखिया और मातादार अपने दफ्तरों से ऐसे ही चिपके रहेंगे जैसे मक्खियाँ गंदगी से चिपकी रहती हैं? (तब) यह वाकई शर्म और दुख की बात होगी।”

अपने भाषण का समापन करते हुए, गांधी कहते हैं, “आज आपने मुझे जो पैसा दिया है, उसका मेरे लिए कोई मूल्य नहीं है। जब मैंने करोड़ों रुपये जमा किए थे, तो मेरे लिए उनका मूल्य था।  उन करोड़ों रुपये ने, अपने मूल्य से कई गुना अधिक सेवा की है। पर, आज मुझे पैसे की नहीं, बल्कि आपकी सेवाओं की आवश्यकता है। यहां उपस्थित सभी स्त्री-पुरुष अपना नामांकन करा लें। जब आपकी बारी आती है तो आप नमक कानून का उल्लंघन करने के लिए तैयार रहें। यहां तक कि महिलाएं भी इस नेक संघर्ष में हिस्सा ले सकती हैं और बहुतों ने पहले ही अपना नामांकन करा लिया है। इस धार्मिक संघर्ष में किसी को, चोट पहुँचाना शामिल नहीं है। हम खुद मुश्किलें झेलकर, सरकार को सबक सिखाएंगे और ऐसा करके हम, अपने पक्ष में दुनिया की राय बनाएंगे।  और, अंत में, हम अपने शासकों का हृदय परिवर्तन करा लेंगे।

हालांकि, वर्तमान में, सरकार न्याय करने के बजाय उत्पीड़न करने में लिप्त है। कलकत्ता के मेयर श्री सेनगुप्ता जैसा व्यक्ति, जिसका नाम बंगाल में हर कोई जानता है, बर्मा में कैद हैं।  सरकार ने उन लोगों को गिरफ्तार करने की नीति अपनाई है जो, किसी भी अपराध के दोषी नहीं हैं। ऐसे समय में जब देश निराशा में रो रहा है, और हजारों लोग अपनी शिकायतें लेकर, आगे आ रहे हैं, सरकार को नमक कर जैसी चीज को खत्म कर देना चाहिए और (जनता की) अन्य शिकायतों का भी निवारण करना चाहिए। लेकिन यह सरकार ऐसा नहीं कर सकती। यह लोगों के पास, करोड़ों रुपये बचे हुए नहीं देख सकती है।  यह इतना अपमानजनक व्यवहार कर रही है कि, यह राशि इंग्लैंड भेज दी जाए।  इस तरह के उत्पीड़न से खुद को मुक्त करने की दिशा में पहला कदम, नमक कर को समाप्त करना है।  हम नमक कर कानून का, इस हद तक उल्लंघन करेंगे कि, हमें चाहे, जो भी दंड, दिया जाय, उसे भुगतने के लिए तैयार रहें – चाहे वह कारावास हो, कोड़े लगें या कोई अन्य।

(गुजराती नवजीवन, 23-3-1930)

….क्रमशः

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

विजय शंकर सिंह
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विजय शंकर सिंह