इंद्रलोक से ग्राउंड रिपोर्टः पुलिस महिलाओं को दे रही लाठीचार्ज की धमकी

हिंदुस्तान किसकी जान?
हमारी जान, हमारी जान…..
कौन है तुम्हारी जान?
हिंदुस्तान, हिंदुस्तान….. 
हिदुस्तान किसकी शान?
हमारी शान। हमारी शान। हिंदुस्तान हमारी शान।
हिंदुस्तान मेरी शान, मेरी शान
हिंदुस्तान मेरी आन
मेरी आन हिंदुस्तान 
मेरी आन, मेरी बान, मेरी शान 
हिंदुस्तान, हिंदुस्तान, हिंदुस्तान
मेरी जान, मेरी जान, मेरी जान 
हिंदुस्तान, हिंदुस्तान, हिंदुस्तान

ये नारे पिछले तीन दिनों से इंद्रलोक दिल्ली की फिजाओं में लगातार गूँज रहे हैं। इसे सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ़ 19 जनवरी से इंद्रलोक दिल्ली में बेमियादी धरने पर बैठी स्त्रियों ने गढ़ा है। ये सिर्फ़ एक नारा भर नहीं अपने मुल्क पर अपनी राष्ट्रीयता अपनी नागरिकता पर रिक्लेम है। यदि इस नारे की तासीर को आप नहीं महसूस कर पा रहे हैं तो आप जेहनी तौर पर बीमार, बेहद बीमार हैं। 

धरने पर बैठी इंद्रलोक निवासी नरगिस कहती हैं, “अपना देश छोड़कर कैसे जाएंगे। हमें हमारा हक़ चाहिए। हमारे बड़े-बूढ़े सब इसी मिट्टी में हैं, हम इसे छोड़कर कैसे जाएंगे। हम नहीं जाएंगे। किसी कीमत पर नहीं जाएंगे। देखते हैं मोदी कैसे भेजता है हमें। हम मर जाएंगे, मिट जाएंगे, पर हम यहां से कहीं नहीं जाएंगे, हर्गिज नहीं जाएंगे। ये हमारा मुल्क़ है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, हिंदोस्तान सबका है। सब यहीं रहेंगे, हम भी यहीं रहेंगे। 

मुस्लिम स्त्रियों के डर से बाहर निकलकर अपनी राष्ट्रीयता की लड़ाई लड़ने के मसले पर वो कहती हैं, “हमारे हलक़ पर बल पड़ी तब हम बाहर निकल कर आए हैं। हम पहली बार बाहर निकलकर आए हैं। जो औरतें कभी नहीं निकली थीं, वो पहली बार निकली हैं। हमें निकलना ही पड़ा। जो गलत है वो गलत है। ऐसा नहीं होगा। किसी कीमत पर नहीं होगा जो वो चाहते हैं। पुलिस ने हमारे बच्चों को मारा है। मुसाफिरों को वो पकड़ पकड़कर मार रहे हैं। ये गलत है।”   

शाबना शहजाद कहती हैं, “हम अपनी हक़ की लड़ाई लड़ने के लिए बैठे हैं। बहुत शांति से अपनी आवाज़ हम सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं। उन्होंने जो ये कानून निकाला है, हम सीएए और एनआरसी के खिलाफ़ हैं। हम सब साथ हैं। बापू और भीमराव अंबेडकर ने हमारे लिए जो संविधान बनाया था हम उसको बचाने के लिए यहां खड़े हैं। हमें क्यों अलग किया जा रहा है बाकी लोगों से।”

उन्होंने कहा कि जब हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई हम सबने एक साथ मिलकर आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और उसे हासिल की तो आज सिर्फ़ हमें मुसलमानों को क्यों अलगाया जा रहा है। हम सब एक हैं। ये हमारी एकता की आवाज़ है। सरकार इस आवाज़ को पहचाने आप मीडिया के लोग इस एकता की आवाज़ को सरकार तक ज़रूर पहुंचाएं।

उन्होंने कहा कि जब इस देश का संविधान कहता है कि हम सब एक हैं, तो हमें हिंदू मुसलमान बताकर क्यों अलग किया जा रहा है। क्यों हम मुसलमानों से ये कहा जा रहा है कि अगर आपके पास कागजात नहीं हैं तो आपको इस देश की नागरिकता नहीं दी जाएगी। कागजात तो बहुत से लोगों के पास नहीं हैं। जो लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं उन्होंने कागजातों को कभी तवज्जो ही नहीं दी। वो कहां से लाएंगे कागज। स्त्रियों के पास कागज नहीं होते। बहुत सी वजह होती हैं, जिसके चलते लोगों के पास पूरे कागजात नहीं होते। तो इसका मतलब ये नहीं होता कि आप उन्हें नागरिकता नहीं देंगे।

शाबना आगे कहती हैं, “जेएनयू में उनके लोग नकाब पहनकर छात्रों पर हमला करते हैं। छात्र इस देश के भविष्य का चेहरा हैं। ये लोग छात्रों पर नहीं इस देश के भविष्य पर हमला कर रहे हैं। आज जब छात्र ही नहीं सुरक्षित हैं तो देश भी सुरक्षित नहीं है। वो सिर्फ़ छात्र थे हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई नहीं। वहां किसी का नाम और धर्म पूछकर नहीं हमला किया गया था।”

उन्होंने कहा कि ये कानून सिर्फ़ मुसलमानों के लिए नहीं सबके लिए जारी हुआ है, लेकिन सबसे ज़्यादा ये मुसलमानों के खिलाफ़ काम कर रहा है। हिंदू भाई बहन भी इस लड़ाई में साथ हैं। हम शांति से नहीं बैठेंगे। हम अपने घर के छोटे-छोटे बच्चे और बुजुगों को लेकर इस ठंडी में खुले आसमान के नीचे बैठे हैं। सरकार हमारी बात सुनेगी ऐसा हमें उम्मीद है।

बीए की छात्रा अफशां कहती हैं, “सरकार इस तरह का वाहियात कानून ला रही है जो कि इस मुल्क़ के संविधान के ही खिलाफ़ है। जबकि आज देश में भुखमरी, बेरोजगारी, बीमारी रिकार्ड स्तर पर है। अर्थव्यवस्था आज दयनीय स्थिति में है। इन्हें ये नहीं दिखाई दे रहा। हमारे जैसे युवा पढ़कर भी बेरोजगार घूम रहे हैं, उन्हें ये नहीं दिखाई दे रहा है। ये देश को एंटी मुस्लिम बनाना चाहते हैं। देश में ये बटवारा करवाना चाहते हैं, लेकिन हम इस देश का बटवारा नहीं होने देंगे।”

दिल्ली पुलिस धरना देने वालों को कर रही है परेशान
एस हुसैन कहते हैं, “चौंकी इंचार्ज पंकज ठाकराल ने हमें धरना स्थल पर दरी तक नहीं बिछाने दी। टेंट वाले को डरा धमका कर भगा दिया। इलाके का कोई भी टेंट वाला दिल्ली पुलिस के भय से हमें शामियाना देने को नहीं तैयार है। पुलिस हमें पंफलेट तक नहीं लगाने दे रही है। रात में पुलिस वाले हमें यहां से उठा रहे थे। हम नहीं उठे तो उन्होंने हमें लाठीचार्ज जैसी कार्रवाई की धमकी दी।” 

शहजाद अंसारी कहते हैं, “हमारे खिलाफ़ थोपे जा रहे सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ़ हम यहां एकजुट हुए हैं। हम इसके मुखालफ़त में हैं। हमें हमारे देश से भगाया जा रहा है। हमारी मां-बहनें रात भर खुले आसामना के नीचे बैठी रहीं। हमें प्रतिरोध तक नहीं करने दिया जा रहा है। ये हमारे वोट का अधिकार छीन लेना चाहते हैं। आप हमारे वोट से चुनकर सत्ता में आए और आप हमें भगा रहे हो। पहले आप हमारा वोट हमें वापस कर दो।”

वह सरकार से सवाल करते हुए पूछते हैं कि आपको देश की गिरती हुई जीडीपी और अर्थव्यवस्था की चिंता नहीं है। आप अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए मेरे मुल्क को गर्त में ले जा रहे हो। आप लोगों की नौकरी, उनकी रोजी रोटी छीनकर उनको एक-दूसरे के खिलाफ़ नफ़रत और घृणा दे रहे हो। जो कहते हैं आंधी में पाल न खोला जाएगा, जो इस बात पे खुश हैं कि हमसे लब न खोला जाएगा, उनसे कह दो हम इन तूफानों से डरने वाले नहीं, कातिल को मरते दम तक कातिल ही बोला जाएगा।

मीडिया के प्रति प्रदर्शनकारियों में गुस्सा
इंद्रलोक, दिल्ली के प्रदर्शनकारियों में मीडिया के प्रति बहुत गुस्सा है। वो मीडिया से बात ही नहीं करना चाहते। वो कहते हैं कि एनआरसी-सीएए विरोधी आंदोलन को ये मीडिया किस तरह से पेश कर रहा है ये हम भी देख पढ़ रहे हैं। ये हमारे समय के मीडिया का हासिल है। मीडिया इस मुल्क की अवाम के बीच अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। मोहम्मद औरंगजेब कहते हैं, “आज हमारी आवाज़ को पुलिस से ज़्यादा मीडिया दबा रही है। मीडिया ही पुलिस बनी हुई है। वो हमारा वीडियो बनाते हैं और अपने मन मुताबिक काट-छांटकर दिखाते हैं।”

एक सज्जन कहते हैं, “मीडिया हमारे खिलाफ़ नहीं, इंडिया के खिलाफ़ है। देश भर में इतना बड़ा प्रोटेस्ट चल रहा है, लेकिन इक्का-दुक्का को छोड़कर ये प्रोटेस्ट मीडिया में कहीं नहीं है। मीडिया सरकार से सवाल पूछने के बजाय आवाम से सवाल पूछ रही है। लानत है ऐसी मीडिया पर। इस देश में मीडिया यूजलेस है।”

सीएए कानून अच्छा होता तो मोदी और शाह को इसके लिए कैंपेन न करना पड़ता
मोहम्मद इमरान कहते हैं, “यदि एनआरसी-सीए सही है तो मोदी-शाह को इनके पक्ष में दो हजार रैलियां और डोर टु डोर कैंपेन क्यों करना पड़ रहा है। इसका मतलब साफ है कि ये कानून ही गलत है और मुल्क़ की अवाम इस कानून के खिलाफ़ है। क्या आपने इतिहास में कभी सुना है कि किसी सरकार को किसी एक कानून के पक्ष में कैंपेनिंग करना पड़ा हो। यदि ये कानून अच्छा होता तो सरकार को कैंपेन नहीं करना पड़ता। ये इसे सांप्रदायिक रंग देकर हिंदुओं को एनआरसी-सीएए के पक्ष में खड़ा करना चाहते हैं, लेकिन उसमें  सफल नहीं हो पाए।” 

मोहम्मद औरंगजेब कहते है, “हिंदू अगर दिल है, तो धड़कन हैं मुसलमान। हिंदू-मुस्लिम से मिलकर ही बनता है हिंदोस्तान। हम एक थे, एक हैं और एक रहेंगे। इस मुल्क के बनने में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबका ख़ून शामिल है। लोगों को बरगलाकर जो आप अपना मंसूबा पूरा करना चाहते हैं वो नस्तोनाबूत हो जाएगा। आप नौकरी, शिक्षा की बात नहीं करते। आप जनता को बांटने की बात करते हो ये जनता ही आपको सबक सिखाएगी।”

मोहम्मद आलम कहते हैं, “हम अपनी मांओं, बहनों, बेटियों का इस्तकबाल करते हैं। उम्रदराज स्त्रियों और छोटी छोटी बच्चियों ने जिस कदर आगे बढ़कर इस विरोध को आगे बढ़ाया है वो काबिल-ए-तारीफ़ है। हम इस मुल्क़ से तब नहीं गए जब हमारे पास विकल्प था तो अब क्या खाक जाएंगे। हमने लाखों कुर्बानियां दी हैं इस मुल्क़ के लिए। ज़रूरत पड़ी तो फिर देंगे। मौलाना आज़ाद ने उस समय पाकिस्तान जा रहे लोगों से अपील करते हुए कहा था, ऐ हिंदुस्तान वालों हिंदुस्तान को छोड़कर न जाओ। पर बदकिस्मती से आज फिर से वही दौर लाया जा रहा है। हम सब एक स्वर में कहते हैं, मोदी-शाह होश में आओ ये देश हमारा है तुम्हारी जागीर नहीं।”

(सुशील मानव पत्रकार और लेखक हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

सुशील मानव
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