केंद्र और राज्यों के लिए जीएसटी बनी जंजाल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब 30 जून और 1 जुलाई 2017 की मध्य रात्रि जीएसटी के रूप में देश की कर प्रणाली की नयी शुरुआत की घोषणा की थी तो भाजपा नेताओं और भाजपानीत सरकारों ने इसे मध्य रात्रि को भारत का भाग्योदय बताया था। प्रधानमंत्री मोदी के इस मध्यरात्रि भाषण की तुलना 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के ऐतिहासिक भाषण (ट्रिस्ट विद डेस्टिनी) से की गयी थी। इस आयोजन का उद्देश्य ही यह दिखाना था कि मोदी भारत का भाग्य तय करने वाले निर्णयों में नेहरू उन्नीस नहीं बल्कि बीस हैं।

लेकिन अब लगता है कि मध्यरात्रि का यह भाग्योदय देश के कम से कम उन 16 राज्यों के लिये उल्टा होने जा रहा है। क्योंकि जीएसटी से इन राज्यों को होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई की गारंटी 30 जून को समाप्त हो गयी और 29 जून को चण्डीगढ़ में सम्पन्न जीएसटी कांउसिल की बैठक में प्रतिपूर्ति के मामले में कोई निर्णय नहीं हो सका। जीएसटी से उत्तराखण्ड जैसे राज्य को ही सीधे-सीधे 5 हजार करोड़ सालाना नुकसान है।

जब 1 जुलाई 2017 को केन्द्र एवं राज्यें के 17 तरह के करों को राष्ट्रव्यापी वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) में समाहित कर नयी कर प्रणाली को लागू किया गया था तो यह निर्णय लिया गया था कि राज्यों को नए कर से राजस्व के किसी भी नुकसान के लिए पांच साल के लिए 30 जून 2022 तक मुआवजा दिया जाएगा। इस तय समय सीमा से ठीक पहले केन्द्रीय वित्त मंत्री सीतारमन की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च निर्णायक संस्था जीएसटी काउंसिल की चण्डीगढ़ में बैठक आयोजित हुयी तो उम्मीद जगी कि मुआवजे के बारे में यथा समय निर्णय हो जायेगा और उन 16 राज्यों को न्याय मिलेगा जिनके लिये जीएसटी भाग्योदय नहीं बल्कि भाग्य अस्त साबित हो रही है।

चूंकि इन राज्यों में उत्तराखण्ड सहित 12 डबल इंजन वाले राज्य भाजपा शासित हैं, इसलिये पूरी उममीद थी कि जीएसटी मुआवजे की अवधि समय से बढ़ जायेगी। लेकिन 29 जून को सम्पन्न चण्डीगढ़ की बैठक में इस पर केई निर्णय नहीं हो सका। यद्यपि इस पर अभी इंकार भी नहीं हुआ, फिर भी हीलाहवाली साफ कह रही है कि केन्द्र सरकार अब राज्यों का यह बोझ अपने सिर ढोने को राजी नहीं है। केन्द्र की अनिच्छा का एक कारण उसकी वित्तीय स्थिति भी है। केन्द्र सरकार को भारी मात्रा में लोक लुभावन योजनाओं में संसाधन झोंकने पड़ रहे हैं। मुआवजा बंद होने से लोकप्रियता उतनी प्रभावित नहीं होगी जितनी कि मुफ्त राशन, पेंशन, सम्मान निधि आदि अनेकों योजनाओं को बंद करने से हो सकती है।

1 जुलाई 2017 को जब जीएसटी लागू हुयी थी तो उस समय भी उत्तराखण्ड में भाजपा की सरकार थी और आज भी उसी पार्टी की सरकार है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब राज्य सरकार को जीएसटी की मार की चोट का अहसास नहीं था, इसलिये मुख्यमंत्री से लेकर समूचा काडर जीएसटी का गुणगान कर रहा था। लेकिन अब जबकि चोट असहनीय होने लगी तो डबल इंजन की सरकार की आह निकल ही गयी। जीएसटी के मारे उत्तराखण्ड सहित इन 12 राज्यों की बिडम्बना ऐसी है कि वे प्रधानमंत्री मोदी की इस ऐतिहासिक देन जीएसटी को अपना दुर्भाग्य भी नहीं कह सकते और तारीफ करें तो फिर मुआवजे की मांग ही क्यों? राज्यों के संकट का कारण संरचनात्मक परिवर्तन, न्यून उपभोग आधार, एसजीएसटी के रूप में भुगतान किए गए करों का आईजीएसटी के माध्यम से बहिर्गमन, वस्तुओं पर वैट की तुलना में कर की प्रभावी दर कम होना, कई राज्यों में सेवा का अपर्याप्त आधार तथा जीएसटी के अन्तर्गत वस्तुओं तथा सेवाओं पर कर दर में निरन्तर कमी होना हैं। 

जीएसटी के लिये 16 राज्यों को मुआवजे के रूप में जो पांच साल का अभयदान मिला था उसमें दो साल तो कोरोना महामारी ही खा गयी। इसलिये उम्मीद की जा रही थी कि केन्द्र सरकार मुआवजा काल के बरबाद हुये इन दो सालों का ध्यान रखते हुये समयावधि विस्तार में संकोच नहीं करेगी। भाजपा शासित राज्य साथ होने से उम्मीद और भी प्रबल थी, जिस पर फिलहाल पानी फिरता नजर आ रहा है। दरअसल आशंकित राज्य आज से नहीं बल्कि काफी पहले से मुआवजा विस्तार की मांग कर रहे थे। समय करीब आते जाने से जब उत्तराखण्ड सरकार की बेचैनी बढ़ी तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य के वित्तीय संकट का दुखड़ा लेकर स्वयं प्रधानमंत्री मोदी व वित्तमंत्री के पास गये। बेचैनी अैर बढ़ी तो फिर वित्त राज्य के वित्त मंत्री प्रेम चन्द अग्रवाल ने चण्डीगढ़ में पहले जीएसटी कांउसिल की बैठक में अपनी बात रखी और फिर केन्द्रीय वित्त मंत्री सीता रमण को राज्य सरकार की ओर से ज्ञापन सौंपा। फिर भी उत्तराखण्ड की आवाज नक्कारखाने की तूती बन गयी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी काफी पहले से इस विस्तार की मांग कर रहे थे।

जीएसटी से कर राजस्व की हानि के साथ ही राज्यों के औद्योगीकरण को भी गहरा धक्का लगा है। उत्तराखण्ड जैसे नये और पहाड़ी राज्य में विकास पुरुष नारायण दत्त तिवारी के प्रयासों से बड़े-बड़े उद्योग लगे थे, जिनसे राज्य को केन्द्रीय करों में राज्यांश भी बढ़ा और अपना कर राजस्व भी बढ़ा। इसके साथ ही राज्य के लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार भी मिला। लेकिन जीएसटी के बाद कर राजस्व उत्पादन करने वाले राज्य के बजाय उपभोग करने वाले राज्य को मिल रहा है। इस स्थिति में औद्योगीकरण का कुछ खास लाभ प्रभावित राज्यों को नहीं मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में कम खपत वाले राज्य आद्योगीकरण के लिये अपनी ऊर्जा और संसाधन खपायें भी तो क्यों ?

(देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत की रिपोर्ट।)

जयसिंह रावत
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