हाथरस गैंगरेप: पीड़िता के बाद अब परिजनों का सरकारी उत्पीड़न

हाथरस गैंगरेप के मामले में एक महत्वपूर्ण अपडेट यह है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान ले लिया है। पीड़िता की हाथरस जिला प्रशासन द्वारा रात में चुपचाप अंतिम संस्कार कर दिए जाने के बारे में मीडिया में सरकार और प्रशासन पर लगातार उठ रहे सवालों पर संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने इस महत्वपूर्ण मामले में दखल दिया है।  हाईकोर्ट के जज, जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए कोर्ट के वरिष्ठ रजिस्ट्रार को ‘गरिमामय अंतिम संस्कार के अधिकार’ के शीर्षक से एक जनहित याचिका दायर करने के निर्देश दिए हैं। मामले की सुनवाई 12 अक्टूबर को होगी।

हाथरस के बलात्कार का मामला अभी थमा भी नहीं था कि जिला बलरामपुर में गैसड़ी से एक 19 वर्ष की लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म किए जाने की खबर मिली है, जिसमें पीड़िता की मृत्यु हो गई है। कहा जा रहा है, महाविद्यालय में प्रवेश लेने के लिए निकली छात्रा का अपहरण कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। इस जघन्य अपराध में, अस्पताल पहुंचने से पहले ही पीड़िता ने दम तोड़ दिया। पुलिस ने सामूहिक दुष्कर्म का केस दर्ज कर दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। शव को पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए परिजनों को सौंप दिया गया है।

मीडिया की खबरों के अनुसार, छात्रा मंगलवार सुबह 10 बजे एक निजी महाविद्यालय में दाखिला लेने के लिए गई थी। देर शाम तक घर नहीं लौटी तो परिजनों ने बेटी की तलाश शुरू की। इसी बीच छात्रा बदहवास एवं गंभीर हालत में घर पहुंची। छात्रा ने कहा कि उसे एक युवक कॉलेज ले गया था। प्रवेश के बाद वही युवक उसे लेकर गैसड़ी बाजार पहुंचा और अपने घर ले गया। जहां उसके साथ दुष्कर्म किया गया। इलाज के लिए ले जाते समय रास्ते में ही छात्रा की मौत हो गई। बुधवार सुबह गैसड़ी की पुलिस ने मामले को संदिग्ध मानते हुए मृतका का शव पोस्टमार्टम के लिए भेजा था। परिजनों की आशंका पर पुलिस दो लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है।

पूरे देश मे महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में उल्लेखनीय ढंग से वृद्धि हुई है। वर्ष 2019 में अब तक दर्ज मामलों के मुताबिक भारत में औसतन 87 बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं।  2019 के शुरुआती नौ महीनों में महिलाओं के खिलाफ अब तक कुल 4,05, 861 आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, यह 2018 की तुलना में सात प्रतिशत अधिक है। ‘भारत में अपराध-2019’ रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध पिछले साल के मुकाबले 7.3 प्रतिशत बढ़ गए हैं।

वर्ष 2019 में प्रति एक लाख महिला आबादी पर 62.4 % मुकदमे दर्ज हुए हैं, जबकि वर्ष 2018 में यह आंकड़ा 58.8 प्रतिशत था। देश भर में वर्ष 2018 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 3,78, 236 मामले दर्ज किए गए थे। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 में देश में बलात्कार के कुल 33,356 मामले दर्ज हुए हैं जबकि वर्ष  2017 में यह संख्या 32,559।

इन आंकड़ों के अनुसार, “भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज इन मामलों में से अधिकांश ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ (30.9 प्रतिशत) के मामले हैं।  इसके बाद उनकी ‘शीलता का अपमान करने के इरादे से महिलाओं पर हमले’ (21.8 प्रतिशत), ‘महिलाओं के अपहरण’ (17.9 प्रतिशत) के मामले दर्ज हैं।” हाथरस गैंगरेप के मामले में एक कागज सोशल मीडिया पर घूम रहा है, जिसमें ओमप्रकाश नामक एक व्यक्ति लिख कर दे रहा है कि उसे सरकार से कोई शिकायत नहीं है। धैर्य और शांति की पराकाष्ठा का प्रतीक है यह कागज़ी दस्तावेज। यह दस्तावेज खुद ही यह प्रमाणित करता है कि इसे लिखाने के लिए इलाके के पुलिस अफसर को कितनी मशक्कत करनी पड़ी होगी।

क्या यह कल्पना की जा सकती है कि जिसकी बेटी के साथ दुराचार हुआ, गला दबा कर मार डालने की कोशिश की गई, बलात्कार हुआ, और कई दिन तक मुकदमा नहीं लिखा गया, कोई गिरफ्तारी नहीं हुई, अभियुक्त खुलेआम घूमते रहे, पीड़िता के परिवार को धमकियां मिलती रहीं, अंतिम संस्कार के समय उसकी मां और भाभी बिलखती रहीं, पल-पल पर सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो आ-आ कर हम सबको विचलित करते रहे, और उसी के घर का एक सदस्य सरकार को एक प्रशस्ति पत्र स्वेच्छा से सौंप दे कि वह संतुष्ट है! कमाल का सब्र है और कमाल की सरकार!

सोशल मीडिया पर जो कागज़ घूम रहा है, उसमें लिखा है, “मैं ओम प्रकाश पुत्र स्व. बाबूलाल निवासी ग्राम वूलगढ़ी थाना चंदपा तहसील हाथरस जनपद हाथरस बयान करता हूं कि मेरी मा. मुख्यमंत्री जी, उप्र शासन लखनऊ से दूरभाष पर वार्ता हुई। मा. मुख्यमंत्री जी द्वारा मेरी समरत मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया गया। मैं मा. मुख्यमंत्री जी के आश्वासन से संतुष्ट हूं एवं उनका आभार व्यक्त करता हूं। इस दुख की घड़ी में जिन लोगों ने हमारा साथ दिया उनका भी आभार व्यक्त करता हूं एवं सभी लोगों से अपील करता हूं कि किसी भी प्रकार का धरना प्रदर्शन न करें। शासन/प्रशासन की कार्यवाही से पूरी तरह से संतुष्ट हूं।”
दिनांक: 30.09.2020
ओम प्रकाश पुत्र स्व. बाबूलाल निवासी ग्राम बूलगढ़ी थाना चंदपा तहसील हाथरस

ठीक इसी प्रकार कुछ सालों पहले, सीबीआई जज लोया के बेटे ने भी कैमरे के सामने आ कर कहा था कि उनके पिता की मृत्यु एक स्वाभाविक मृत्यु थी, लेकिन लोया की संदिग्ध मृत्यु की जांच का आदेश कहीं कोर्ट न कर दे, इसलिए दिल्ली से मुंबई तक की सरकारों ने देश के सबसे महंगे वकीलों को पैरवी के लिए  सुप्रीम कोर्ट तक तैनात कर रखा था, क्योंकि इस संदिग्ध हत्याकांड में शक की सुई भाजपा के सबसे बड़े नेताओं में से एक पर आ रही थी। एक कानूनी स्थिति यहां स्पष्ट कर दूं कि भारतीय आपराधिक कानून प्रणाली के अनुसार, अपराध, राज्य बनाम होते हैं। घर के किसी व्यक्ति द्वारा उस अपराध के बारे में कोई कार्रवाई न करने या न चाहने के बावजूद, वह मुकदमा न तो खत्म होता है और न खारिज। राज्य उस मुकदमे में एक पक्ष होता है।

हाथरस मामले में, रात के अंधेरे में बिना पीड़िता के माता-पिता की सहमति और अनुमति के चोरी छुपे पीड़िता का शव जला दिए जाने का निंदनीय आइडिया, वहां के डीएम और एसपी के दिमाग से उपजा आइडिया था, या सरकार में बैठे कुछ आला और नज़दीकी अफसरों का कोई ऐसा निर्देश, यह तो पता नहीं है, पर गैंगरेप पर मचे आक्रोश से कहीं अधिक सरकार के इस मूर्खतापूर्ण निर्णय की चर्चा हो रही है और अब तक सरकार की छीछालेदर हो रही है, और आगे भी होगी।

अब कहा जा रहा है कि डॉक्टर ने कहा है कि बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई। यहीं यह सवाल उठता है कि फिर उक्त पीड़िता से बदतमीजी, गला दबा कर मार डालने की कोशिश, इतने वहशियाना तरह से पीटना कि रीढ़ की हड्डी टूट जाए, का मोटिव क्या था? महज़ छेड़छाड़ या बलात्कार की कोशिश? इतनी मारपीट और ज़बरदस्ती तो किसी न किसी बद इरादे से ही की गई होगी? बलात्कार अगर वह बद इरादा नहीं था तो फिर अपराध का मोटिव क्या था? बिना बद इरादे के कोई अपराध घटित नहीं होता है।

जब पीड़िता जीवित थी और अस्पताल में रही होगी तब उसका बयान तो लिया ही गया होगा। क्या उस बयान में पीड़िता ने बताया है कि उसके साथ क्या क्या हुआ है? वह बयान अब मृत्यु पूर्व बयान मान लिया जाएगा। घटना के लगभग एक हफ्ते से अधिक समय तक वह अस्पताल में रही, क्या उस बीच उसका बयान मैजिस्ट्रेट के सामने कराया गया? मुझे उम्मीद है ज़रूर कराया गया होगा और अब वही बयान मुकदमे का आधार  बनेगा। गांव-देहात में पीड़ित लड़कियां अक्सर रेप या बलात्कार शब्द का प्रयोग नहीं करती हैं, वे इसे गलत काम करना कह कर बताती हैं।

इस मामले पर राजनीति हो रही है, और होनी भी चाहिए। जब सरकार राजनीति के कारण ही सत्ता में आती है और सत्ता से बाहर जाती है, जब अफसरों की पोस्टिंग और तबादले राजनीति के आधार पर होते हैं, जब जांच के आदेश और जांच के निष्कर्ष पर कार्रवाई राजनीति के मद्देनजर होती है, जब गनर-शैडो और सुरक्षाकर्मी राजनीति के आधार पर लोगों को दिए और लिए जाते हैं, जब मीडिया का हेडलाइन मैनेजमेंट राजनीति के आधार पर तय होता है, तो अगर एक लड़की, जिसे बेहद बर्बर तऱीके से तड़पा-तड़पा कर मार दिया गया तो फिर ऐसे गर्हित अपराध पर राजनीति क्यों नहीं होगी? अगर राजनीति ऐसे अवसर पर मूक और बांझ हो जाए तो ऐसी निकम्मी और निरुद्देश्य राजनीति का कोई अर्थ नहीं है।

हाथरस गैंगरेप की यह घटना कोई पहली बलात्कार की घटना नहीं है, बल्कि हाथरस गैंगरेप के बाद ही, बलरामपुर, बुलंदशहर, खरगौन, राजस्थान अन्य जगहों पर होने वाली ऐसी घटनाओं की सूचना मिल रही हैं। क्या पता यह लिखते-पढ़ते कहीं और से ऐसी ही कोई अन्य, दुर्भाग्यपूर्ण खबर मिल जाए! बलात्कार जैसे अपराध की जिम्मेदारी से समाज को मुक्त नहीं किया जा सकता है। यह जिम्मेदारी देश काल के वातावरण पर भी है। आप यह जिम्मेदारी नेट और अश्लीलता पर भी थोप सकते हैं। पर इन सब मामलो में घटना की सूचना मिलते ही मुकदमा दर्ज करने और मुल्ज़िम को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी तो पुलिस पर ही आएगी। जहां मुकदमा लिखने और गिरफ्तारी की कार्रवाई तुरंत हो जाती है, वहां स्थितियां नियंत्रित रहती हैं और जहां इसे तोपने-ढांकने और दाएं-बाएं करने की कोशिश की जाती है वहीं हाथरस जैसा कोई न कोई कांड उछल जाता है।

आज अगर कोई यह सोचे कि वह किसी अपराध की खबर या उससे जुड़ी कोई बात छुपा लेगा तो वह गफलत में है। जब हर हाथ में स्मार्टफोन हो, कैमरा और वायस रिकॉर्डर हो तो कैसे कोई कुछ छिपा सकता है? तमाम ड्यूटियों और घेरेबंदी के बाद भी, पीड़िता के अंतिम संस्कार के तमाम वीडियो दुनिया भर में फैल रहे हैं। लगभग सबने उन्हें देखा है। जो न भी देखना चाहे तो भी हथेली में पड़ा फोन उसे दिखाने लगता है। ऐसे में कैसे इस प्रकार की किसी घटना को छुपाया जा सकता है? हाथरस में जिलाधिकारी द्वारा पीड़िता को धमकाने और समझाने का भी एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें डीएम यह कहते हुए सुने जा रहे हैं, “आज मीडिया है, यह चली जाएगी, कल तक बाकी मीडिया भी नहीं दिखेगी और दिखेगा तो सिर्फ यही सरकारी तंत्र, मान भी जाओ।”

एक बात और। सरकार या सत्ता या पुलिस, इनके प्रति जनता में अविश्वास का एक स्थायी भाव होता है। यह मैं अपने अनुभव से कह रहा हूं। यह आज से नहीं है, बल्कि पुलिस के बारे में तो बहुत पहले से ही है। कुछ अधिकारी इसके अपवाद हैं और यह उस अधिकारी की निजी साख के कारण है न कि संस्थागत साख के कारण। ऐसे में सरकार और अफसर के बयान पर लोग यक़ीन नहीं करते। वे लोग भी कम ही यक़ीन करते हैं, जो अफसर और सरकार के बेहद करीब होते हैं।

यह साख का ही संकट है कि सीबीआई जज ब्रजमोहन लोया के बेटे से सरकार को परोक्ष रूप से टीवी पर कहलवाना पड़ा कि ‘सब चंगा सी’ और अब यही साख का संकट हाथरस पुलिस को बाध्य कर रहा है कि वह एक एनओसी, पीड़िता के घर वालों से प्राप्त करे कि ‘हम खुश हैं, सरकार आप से!’ जब कानून के तयशुदा मार्ग से भटक कर कानून को लागू करने की कोशिश की जाती है तो ऐसे ही हास्यास्पद शॉर्टकट एलीबाई दिमाग में आती है।

जब देश के सत्ता में बैठे नेतागण अपने खिलाफ दर्ज मुकदमों को सत्तासीन होते ही येन केन प्रकारेण वापस लेने की जुगत में लग जाएंगे तो ऐसे आपराधिक मनोवृत्ति के नेताओं की रहनुमाई में यदि आप अपराध मुक्त समाज और प्रशासन की कल्पना करते हैं तो यह, हम सबकी मासूमियत है। ठोंक दो के फरमान, अरमान, और इम्तिहान के बाद भी, अगर उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की स्थिति नहीं सुधरती है तो, क्या किया जाना चाहिए?

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

विजय शंकर सिंह
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