हिंदुत्ववादी ट्रोलरों की भेंट चढ़ गया एक पत्रिका का नवनियुक्त संपादक

अंग्रेजी के एक युवा पत्रकार और हिंदी के उभरते आलोचक आशुतोष भारद्वाज को भारतीय उच्च शोध संस्थान की पत्रिका “चेतना” के संपादक पद से  अलग होने का  निर्णय इसलिए दुखी मन से  लेना पड़ा कि कट्टर हिंदुत्ववादियों ने भारद्वाज को बुरी तरह ट्रॉल किया और उन्हें हिंदू विरोधी बताते हुए  उनकी नियुक्ति को लेकर एतराज जताया और  सरकार से उनके खिलाफ  शिकायत भी  की। इन ट्रॉलर्स की नजर में आशुतोष भारद्वाज की नियुक्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि वे नक्सली हैं, हिंदू विरोधी हैं। शुक्र है भारद्वाज को अभी देशद्रोही नहीं कहा गया। कुछ दिन पहले गुजराती कवयित्री  पारुल खोखकर को उनकी वायरल कविता ‘शव वाहिनी गंगा’ के लिए अप्रत्यक्ष रूप से साहित्यिक नक्सल बताया गया था। गुजरात साहित्य अकादमी की पत्रिका के संपादक ने खोखर को साहित्यिक नक्सली बताया जिसकी चारों तरफ निंदा की गई। आशुतोष भारद्वाज ने अपनी फेसबुक वाल पर यह भी  लिखा है कि वामपंथी उन्हें दक्षिणपंथी समझते हैं और दक्षिणपंथी उन्हें नक्सली समझते हैं। उन्होंने यह भी लिखा है कि कांग्रेस की भी उनसे खुन्नस है। 

भारद्वाज इंडियन एक्सप्रेस में देश के आदिवासियों की समस्या उनके शोषण की कहानी अपनी रिपोर्ट में लिखते रहें हैं। इस कारण उन्होंने लोगों का ध्यान खींचा था। पिछले दिनों उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में हिंदी के प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल पर लम्बी स्टोरी लिखी थी तथा वे इन दिनों  रजा फाउंडेशन से यशस्वी लेखक  निर्मल वर्मा की जीवनी लिख रहे हैं। वे अंग्रेजी के उन थोड़े पत्रकारों में हैं जिनकी दिलचस्पी हिंदी साहित्य में है। उन्हें पिछले दिनों भारतीय उच्च शोध संस्थान की एक फेलोशिप मिली है जिसके कारण संभव है  उनका सान्निध्य मकरंद परांजपे से बढ़ा हो और उन्हें इस पत्रिका का संपादक बनने का अवसर मिला हो। उनकी योग्यता देखकर संस्थान ने यह निर्णय लिया हो लेकिन उनका यह पद अवैतनिक है जैसा कि भारद्वाज की पोस्ट से पता चलता है।

इसलिए इसमें आर्थिक लाभ का सवाल नहीं। अधिक से अधिक बौद्धिक लाभ मिलने के अवसर का लाभ हो। लेकिन अगर कट्टर दक्षिणपंथी किसी व्यक्ति के खिलाफ विषवमन  कर उन्हें पद छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं तो इस घटना की सार्वजनिक रूप से कड़ी  निंदा होनी चाहिए। अगर भारद्वाज हिंदू धर्म या धर्म की राजनीति की आलोचना की होगी तो जाहिर है इस संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत ही  की होगी। क्या कट्टरपंथी हिंदुत्व वादियों को यह नहीं मालूम कि खुद संविधान निर्माता अंबेडकर ने हिंदू  धर्म के पाखंड रूढ़ियों संकीर्णताओं  जैसी  बुराइयों को उजागर किया था और एक दिन  वे तो हिंदू धर्म त्याग कर  बौद्ध  बन गए थे। अब तक  मकरंद परांजपे या संस्थान ने भारद्वाज की इस बात के लिए निंदा नहीं की है कि भारद्वाज हिंदू विरोधी हैं या वे इस धर्म के बारे  क्या विचार रखते हैं। क्या भारद्वाज उसी तरह हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैला रहे थे जिस तरह संघ परिवार मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाता रहा है? दुर्भाग्य और चिंता की बात यह है कि आज कट्टर हिंदुत्ववादी लोग अपने हिसाब से इस देश को चलाना चाहते हैं।

वे इस देश की अदालत कानून व्यवस्था सरकार  प्रशासन  को नहीं मानते हैं। उनका काम ट्रॉल करना गाली गलौज करना, अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना, अपमानित करना काम रह गया है। वे इस समय एक समांतर सरकार की तरह काम करते हैं। पारुल खोखर को तो 28 पंक्ति की एक  कविता के लिए 28 हजार गालियां मिलीं। लेकिन सरकार चुपचाप तमाशा देखती रही। उसने कोई कार्रवाई नहीं की। आशुतोष भारद्वाज तो मकरंद परांजपे के साथ काम कर रहे थे जिनकी  वैचारिक पक्षधरता सबको मालूम है। वे उस संस्थान के निदेशक कैसे बने यह भी सबको पता है। जेएनयू में उनकी भूमिका से भी सब  लोग वाकिफ हैं और यह बात भारद्वाज को भी मालूम होगी  लेकिन एक युवा आलोचक को इस पत्रिका का संपादक बनाया गया तो हिंदी समाज ने स्वागत किया। क्योंकि एक ऐसी संस्था से हिंदी की पत्रिका निकलने की बात हुई जिसका अंग्रेजी एकेडमिक जगत में दबदबा है। इस तरह की पत्रिका निकलने से शोधार्थियों को हिंदी में अच्छी सामग्री मिलेगी। लेकिन कट्टर दक्षिणपंथियों ने सोशल मीडिया पर सबकी नींद हराम कर दी है।

आप कुछ भी आधुनिक प्रगतिशील वैज्ञानिक बातें लिखें, सवाल उठाएं, सरकार की आलोचना करें, धर्म की संकीर्णताओं कर्मकांडों की आलोचना करें ये ट्रोलर्स पीछे पड़ जाते हैं और सीधे गाली गलौज पर उतर जाते हैं और आपको परेशान करने लगते हैं। कई बार तो वह आपकी पोस्ट के खिलाफ  पुलिस में या फेसबुक को शिकायत करते हैं और फेसबुक भी कई बार आपके अकाउंट को कुछ दिनों के लिए बंद कर देता है। पुलिस तो  मानो इस बात का इंतजार करती रहती है कि कोई व्यक्ति आकर  और आपकी शिकायत करे और आप को फौरन देशद्रोह के मुकदमे में फंसाया  जाए और गिरफ्तार कर आप को जेल भेजा जाए। पिछले दिनों वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण ने राम जन्म निर्माण  ट्रस्ट के भ्रष्टाचार के मामले में कोई पोस्ट लिखा तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गयी।

यह कोई नई घटना नहीं है। सोशल मीडिया पर आए दिन यह सब होता रहा है और जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, तब से इस तरह की घटनाएं तेजी से बढ़ने लगी हैं। लगता है कि इन लोगों को ऊपर से सरकार की शह मिली  है और उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती है। मोदी सरकार पिछले दिनों आईटी  कानून के तहत सोशल मीडिया के लिए नए दिशा निर्देश जारी किए हैं जिसके खिलाफ 13 मीडिया संस्थानों ने मद्रास उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया है और इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश बताया है। सरकार का मकसद अपने  ट्रोलर्स  को नियंत्रित करना नहीं बल्कि सरकार विरोधी लोगों को पर अंकुश लगाना है और उनकी अभिव्यक्ति की आजादी को नियंत्रित करना है।

अगर सरकार का उद्देश्य वास्तव में सोशल मीडिया के ट्रोलेर्स  को नियंत्रित करने का होता तो वह उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही होती लेकिन आशुतोष भारद्वाज के मामले में भी सरकार कोई कदम नहीं उठाएगी। देखना यह है कि  भारतीय उच्च शोध संस्थान और चेतना पत्रिका के संपादक मकरंद परांजपे  इस प्रकरण में भारद्वाज का कितना समर्थन करते हैं। क्या वे भारद्वाज को  इस बात के लिए  मनायेंगे  कि उन्हें चेतना पत्रिका  के संपादक पद से हटना  नहीं चाहिए। भारद्वाज का मकरंद परांजपे से मोहभंग होगा या नहीं यह अनुमान लगाना मुश्किल है पर मकरंद  परांजपे  जैसे बुद्धिजीवियों की आस्था जिस राजनीतिक दल में है उसके समर्थक ट्रोलर्स कैसे हैं। इस देश में कोई कुछ रचनात्मक करना चाहता है उसे इसी तरह  हतोत्साहित किया जाता है लेकिन विध्वंसक कार्यों के लिए पूरी छूट है। एक युवा प्रतिभा के साथ यह हादसा निंदनीय है और लोकतंत्र के लिए सुखद नहीं है।

(विमल कुमार वरिष्ठ कवि और पत्रकार हैं।)

विमल कुमार
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