सरकारें आती जाती रहेंगी, इतिहास के अनुशासन का विकास होता रहेगाः प्रोफेसर मुखिया

सरकारें आती जाती रहेंगी लेकिन ज्ञान के एक अनुशासन के रूप में इतिहास का विकास जिस अवस्था में पहुंच चुका है उसे रोका नहीं जा सकता। उसे किसी प्रकार का खतरा नहीं है। आज राजनीतिक एजेंडा के तहत इतिहास को हिंदू-मुस्लिम बनाया जा रहा है। उसे बदला जा रहा है लेकिन वास्तव में उससे पहले तो इतिहास के अंत की भी घोषणा हो चुकी है। हालांकि इसी के साथ यह भी सच है कि देसी भाषाओं के अभिजात का मजाक उड़ाना आसान है पर वह हिंदुत्व के इतिहास को जिस प्रचार के साथ स्थापित कर रहा है उसे रोकना आसान नहीं है।

यह बातें दिल्ली के जवाहर भवन में सोमवार को 19 वें असगर अली इंजीनियर मेमोरियल लेक्चर के दौरान उभरीं। व्याख्यान का विषय था नए भारतीय अतीत की रचना और उसका शिक्षण(मेंकिंग एंड टीचिंग न्यू इंडियन पास्ट)। व्याख्यान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर तनिका सरकार ने दिया और कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्ययुगीन इतिहास के विद्वान प्रोफेसर हरवंश मुखिया ने की। कार्यक्रम का आयोजन मुंबई के सेंटर फार स्टडी आफ सोसायटी एंड सेक्यूलरिज्म की ओर से किया गया था। इस मौके पर डॉ. यासिर अराफात को राइट टू लाइवलीहुड अवार्ड दिया गया।

मुख्य व्याख्यान देते हुए प्रोफेसर तनिका सरकार ने कहा कि नए भारतीय अतीत की रचना के दो प्रमुख पहलू हैं। पहला पहलू यह है कि हिंदू अतीत को गौरवशाली बताया जाए और उस पर गर्व किया जाए। दूसरा पहलू यह है कि मुस्लिम शासन को कलंकित किया जाए। भारतीय अतीत के बारे में लंबे समय से तमाम संगठनों ने अपने ढंग से प्रचार किया है और कहानियां गढ़ी हैं। लेकिन इस काम में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सबसे आगे है और इसी के बूते पर वह हिंदू राष्ट्रवाद की रचना कर रहा है। वे भारतीय अतीत को नियंत्रित करना चाहते हैं। लेकिन उनका इतिहास बहुत कड़वा और विवादास्पद है। उनका हिंदू अतीत बहुत सरलीकृत है और उसके तथ्यों को सामान्य शोध से ही खारिज किया जा सकता है।

तनिका सरकार

तनिका सरकार ने कहा कि इसके बावजूद विडंबना यह है कि उनकी बात जनता में भरोसा हासिल कर रही है और तथ्यों के आधार पर काफी गहन शोध से तैयार इतिहास को लोग खारिज कर रहे हैं। हमारे पास श्रेष्ठ इतिहासकार हैं और जिन्होंने बहुत गंभीर और अच्छे काम किए हैं लेकिन उनका समाज पर असर नहीं पड़ रहा है। जबकि आरएसएस के इतिहास का समाज पर असर बनता जा रहा है। इसलिए इस बात पर विचार की आश्यकता है कि हमारी सीमाएं क्या हैं और उनकी शक्ति का स्रोत क्या है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के 38 संगठन हैं। उनमें से एक संगठन अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति नए भारतीय अतीत की खोज कर रहा है और उसका प्रचार कर रहा है।

दरअसल इसकी प्रेरणा 1928 में विनायक दामोदर सावरकर द्वारा लिखे गए हिंदुत्व के सिद्धांत में है। संघ उसी का विस्तार कर रहा है। संघ का इतिहास मुसलमानों के इतिहास को राक्षसों के इतिहास के रूप में चित्रित करता है। हालांकि 13 वीं सदी के हिंदू तुर्क और पठान को अपना शत्रु मानते थे। वे सभी मुसलमानों को अपना शत्रु नहीं मानते थे। ऐसे उस समय के साहित्य से विदित होता है। वास्तव में जो इतिहास संघ लिख रहा है उसके लिए कहानियों का सहारा लिया जा रहा है। गढ़ी हुई कहानियों से शोध से निकले इतिहास को खारिज किया जा रहा है। उसी के माध्यम से राजनीतिक पाठ पढ़ाया जाता है। तनिका ने कहा कि हम लोग बंगाल में भी बचपन से यह कहानी काफी सुनते आ रहे हैं कि हिंदुओं को मुसलमानों ने कुचला। इन कहानियों को गढ़ने में बंकिम चंद्र चटर्जी और अवनींद्र नाथ जैसे रचनाकारों और बुद्धिजीवियों का बड़ा योगदान है। जबकि सच्चाई यह है कि यहां बसने वाले मुगल शासकों ने हिंदुओं को न तो सैन्य ढांचे से अलग किया और न ही सिविल ढांचे से। उसके अफसरों में हिंदुओं की खासी संख्या थी।

प्रोफेसर सरकार ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जो इतिहास पढ़ा रहा है उसका सार यह है कि प्राचीन भारत में गौरव था और मध्ययुग में सभ्यता समाप्त हो गई। इन कहानियों की मूल प्रेरणा सावरकर की है जो कहते हैं कि आर्य विदेशी आक्रांता नहीं हैं और हिंदू ही इस देश के प्रामाणिक भारतीय हैं। हिंदुओं का रक्त मिल गया है और विभिन्न जातियों में एक दूसरे का रक्त प्रवाहित होता है। वे एक परिवार हो चुके हैं। इसी के साथ उन्होंने सावरकर के पितृभू और पुण्यभू सिद्धांत का उल्लेख भी किया और कहा कि ईसाई और मुसलमान कभी भी भारतीय नहीं हो सकते क्योंकि उनका पुण्यभू यहां पर नहीं है।

तनिका सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इतिहास के लोकप्रिय होने का दोष कांग्रेसियों, गांधीवादियों और वामपंथियों को भी दिया। उनका कहना था कि जब देश आजाद हुआ तो कांग्रेस के पास पर्याप्त कार्यकर्ता थे। गांधीवादी संगठनों के पास भी काफी कार्यकर्ता थे। वामपंथियों के पास ज्यादा समर्पित लोग थे। उनके पास ट्रेड यूनियनें थीं। महिला संगठन थे। वाममोर्चा ने पश्चिम बंगाल में लगातार 32 साल तक राज किया लेकिन उन्होंने अपने राज्य में एनसीआरटी की वस्तुनिष्ठ इतिहास वाली किताबें नहीं लगाईं। वे कमजोर तरीके से लिखी गई राज्य स्तरीय पाठ्यक्रम की किताबें पढ़ाते रहे। जबकि भाजपा ने बंगाल पर कभी शासन नहीं किया लेकिन वे वहां सरस्वती शिशु मंदिर 1952 से ही चलाते रहे। संघ के प्रचारक पांच सौ रुपए महीने पर और विस्तारक 250 रुपए महीने पर काम करते रहते हैं।

लेकिन सभा की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर हरवंश मुखिया ने कहा कि वस्तुस्थितियां वही हैं जो तनिका कह रही हैं लेकिन इतिहास में आज इतना नवोन्मेष हो चुका है कि उसे पूरी तरह से नष्ट करना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि आज वही हो रहा है जिसकी कल्पना कभी जार्ज आरवेल ने की थी। 1984 में इतिहास और राज्य के रिश्तों को फंतासी के रूप में प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा था कि जो वर्तमान को नियंत्रित करते हैं वे ही अतीत पर हावी रहते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में अपने छात्र जीवन का स्मरण करते हुए प्रोफेसर मुखिया ने कहा कि 1950 के दशक में इतिहास को बहुत साफ तरीक से प्राचीन, मध्ययुगीन और आधुनिक इतिहास के रूप में विभाजित कर दिया गया था। सिंधु घाटी से लेकर हर्षवर्धन के समय तक के इतिहास को प्राचीन इतिहास कहा जाता था। उसके बाद 1000 एडी में महमूद गजनी के आगमान से लेकर औरंगजेब की मृत्यु यानी 1707 तक के इतिहास को मध्ययुगीन इतिहास कहा जाता था। उसके बाद के काल को आधुनिक काल कहा जाता है। लेकिन इन विभाजनों के बीच में साठ साल का अंतर का है। भला वह कैसे है इसकी कोई व्याख्या नहीं है।

उस इतिहास विभाजन के लिए जेम्स मिल को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने माडर्निटी के साथ अपने को जोड़ा और उसे तार्किकता और विज्ञान के प्रति समर्पण से लैस बताया। उसी की तुलना में मध्ययुग को वैसे ही अंधकार युग की संज्ञा दी जैसे कि उनके अपने यहां यूरोप की स्थिति थी। फिर जेम्स मिल ने 1903 में इतिहास को हिंदू मुस्लिम और ब्रिटिश इतिहास में बांट दिया। यह इतिहास तैयार किया गया कि प्राचीन भारत का जो गौरव था वह मध्ययुग में समाप्त हो गया। जेम्स मिल ने सावरकर से पहले ही दो राष्ट्र का सिद्धांत दे दिया था और लिखा था कि हिंदू और मुस्लिम एक दूसरे से लड़ते रहते हैं। जबकि हकीकत यह है कि सत्रहवीं सदी के आंरभ में भारत का दुनिया के जीडीपी में हिस्सा एक चौथाई था।

प्रोफेसर मुखिया ने कहा कि 1980 के बाद इक्कीसवी सदी में इतिहास लेखन और शोध का पूरा स्वरूप बदल गया है। नई थीम चल रही है। उसमें समुदाय हैं, अस्मिताएं हैं, पारिस्थितिकी है, अवधारणाएं हैं, जंगहों का इतिहास है। पूरी दुनिया बदल गई है नए किस्म के इतिहासकार उभरे हैं। उन्होंने बहुत योगदान दिया है और इतिहास को एकदम नया रूप दे दिया है। आज जो छात्र इतिहास पढ़ रहें वे पुराने विभाजनों को स्वीकार नहीं करेंगे। आज भले ही मौजूदा निजाम अपने राजनीतिक एजेंडा के तहत नया विभाजनकारी इतिहास लिख रहा है लेकिन वह सत्ता से जुड़ा हुआ है। सत्ता बदलते ही वह भी बदल जाएगा।

कार्यक्रम का शुभारंभ स्त्री मामलों की विशेषज्ञ प्रोफेसर वसंती रमन ने किया। उन्होंने डा असगर अली इंजीनियर के शोधपरक लेखन का जिक्र किया और देश में जब भी दंगा होता था तो वे वहां जाकर उस पर तत्काल एक रपट तैयार करते थे। उससे समाज को समझने में बड़ी मदद मिलती है। प्रोफेसर अपूर्वानंद ने अपने संबोधन में कहा कि असगर अली ने हिंसा के बारे में एक समझ बनाई। उन्होंने अपने अवलोकन से बताया कि कोई भी हिंसा अचानक नहीं होती। एक मशीनरी होती है। बहुसंख्यक समुदाय में हिंसा बारीक तरीके से होती है उसे समझने की आवश्यकता है। असगर अली इंजीनियर ने सांप्रदायिकता के विरुद्ध अपने समाज में भी लड़ाई लड़ी। मंच पर सीएसएएस के अध्यक्ष डा इरफान इंजीनियर भी उपस्थित थे। सभागार में भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति डा हामिद अंसारी समेत बड़ी संख्या में शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता और विद्यार्थी उपस्थित थे।  

(वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट।)

अरुण कुमार त्रिपाठी
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