नये साल के उत्सव: कितनी सुरक्षित हैं महिलायें?

बड़े शहरों में नव वर्ष के आगमन को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पार्टियां होती हैं, सार्वजनिक स्थलों पर लोग इकट्ठा होते हैं और जश्न मनाते हैं, तरह-तरह की सजावट और रोशनी के प्रदर्शन देखने कारों में लोग निकल पड़ते हैं। और उत्सवों पर खाना-पीना तो चलता ही है। 

पर दिल्ली वालों के लिए साल की 1 तारीख़ एक मनहूस दिन साबित होता है। 2022 के 31 दिसंबर की देर रात या 1 तारीख़ की सुबह 20 वर्षीय अंजलि सिंह के लिए, जो एक इवेंट मैनेजर थी और घर की इकलौती कमाने वाली थी, भयानक त्रासदी का समय साबित हुआ। पूरी दिल्ली पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट देखकर स्तब्ध है, सिहर रही है। अपनी दोस्त निधि के साथ अंजलि स्कूटी पर बैठकर आउटर सुल्तानपुरी एरिया में न्यू ईयर का लुत्फ उठाने निकली थी कि रास्ते में उसकी स्कूटी पर एक मारुति बोलानो ने पीछे से ज़ोर से टक्कर मारी और अंजलि सड़क पर गिरकर गाड़ी के नीचे आ गई। उसका कपड़ा ऐक्सल में फंस चुका था और वह चीख रही थी। पर दोस्त निधि गिरकर उठी और डरकर घर चली गई।

उसने घटना के बारे में किसी को नहीं बताया। इधर अंजलि कार के नीचे फंसकर चिल्लाती रही पर गाड़ी नहीं रुकी। चलाने वाले मज़े लेने में व्यस्त थे। शायद किसी लड़की को घसीटते हुए भी उन्हें लुत्फ मिल रहा हो। किस तरह की विकृति मानसिकता है यह! अंजलि को 12 किलोमीटर तक घसीटा जाता रहा और उसका शरीर क्षत-विक्षत हालत में तब पाया गया जब कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को फोन किया। 5 युवक गिरफ्तार ज़रूर किये गए, पर इससे क्या ऐसी घटनाओं पर रोक लगेगी? बताया जा रहा है कि चालक भाजपा का लोकल पदाधिकारी भी है। वह आश्वस्त होगा कि उसका कुछ खास नहीं बिगड़ेगा।

सबसे पहले तो हम यह देखें कि इस घटना से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं, जिनके बारे में संवेदनहीन शासन-प्रशासन वैसे भी कभी बात नहीं करता, और ये प्रश्न पहली बार नहीं उठ रहे। पहला प्रश्न पुलिस आरोपियों के अमानवीय व्यवहार या उनकी क्रूरता और महिलाओं के लिए सुरक्षा का अभाव के सवाल पर क्यों फोकस नहीं करती? इस केस में भी पुलिस यह खोज कर लेती है कि अंजलि जिस होटल में निधि के साथ रुकी थी उसके सीसीटीवी फुटेज से पता चलता है कि दोनों झगड़़ रही थीं।

फिर झगड़ा किस बात पर हुआ था, इस पर निधि से पूछताछ होती है। बताया जा रहा है कि रियल टाइम से सीसीटीवी फुटेज का समय पीछे चल रहा था; निधि से पूछा जा रहा है कि उसकी दोस्त शराब के नशे में थी या नहीं। यहां तक बातें बनाई जा रही थी कि निधि घटनास्थल पर शायद थी ही नहीं और अंजलि अकेली शराब के नशे में स्कूटी चला रही थी। यह जांच कैसी है जिसमें सारा फोकस मृत लड़की को विलेन बनाकर आरोपियों के क्राइम से ध्यान हटाने का हो? 

हां, एक बार नहीं, कई बार ऐसा होता है, जिसे ‘विक्टिम ब्लेमिंग’ कहते हैं! हमारे पुरुष प्रधान समाज में यह मान लिया गया है कि लड़कियों को बिना ज़रूरी काम के घूमने का, जश्न मनाने का, पीने का, रात में स्कूटी चलाने का, अकेले कहीं निकलने का और सुनसान या अंधेरी सड़कों पर निकलने का हक ही नहीं है। कई महिलाएं भी ऐसा मानती हैं, जैसे आईपीएस किरन बेदी, जो कहती हैं कि उनकी मां ने सिखाया था कि लड़कियों को 6 बजे शाम घर पर आ जाना चाहिये! शायद हमें लड़कियों की सुरक्षा पर बात करनी ही नहीं चाहिये, क्योंकि जवान लड़के, पुरुष और अपराधी सड़कों पर छुट्टा घूमते हैं और उनकी हरकतों को रोकना प्रशासन के लिए सम्भव ही नहीं है! शायद हमें आज़ादी के हर कतरे के सारे खतरे उठाने ही होंगे और मिलकर लड़ना होगा।

पर आप इसी नए साल की दो अन्य घटनाओं को देखें जहां महिलाएं या लड़कियां सड़क पर नहीं थीं। आखिर उनके साथ क्या हुआ? ग्रेटर नोएडा की गौर सिटी फस्र्ट एवेन्यू सोसाइटी में नये साल का जश्न मनाया जा रहा था। अचानक कुछ अनजान पुरुष आकर दो विवाहित महिलाओं को ज़बरदस्ती साथ खड़ा करके सेल्फी लेने लगे। उनके विरोध करने और पतियों के हस्तक्षेप करने पर उन्हें बुरी तरह से पीटा गया। गार्ड और बाकी लोगों के हस्तक्षेप करने पर उन पर भी हमले हुए। 4 लोग घायल अवस्था में अस्पताल में हैं।

गोवा के पणजी में क्रिसमस मनाने के लिए कुछ छात्र-छात्राओं ने प्लान बनाया। उन्होंने किराये पर मिनी बस बुक किया। कुल मिलाकर अलग-अलग जगहों से आए 14 दोस्त थे। क्रिसमस पर पीने-खाने की संस्कृति गोवा में आम बात है। मौके का फायदा उठाकर ड्राइवर ने एक 18 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्रा के साथ बलात्कार किया और बाकी लोगों को भयाक्रान्त अवस्था में छोड़कर फरार हो गया। आश्चर्य की बात है कि 14 छात्र-छात्राओं में से कोई भी प्रतिरोध न कर सका। बाद में उसकी गिरफ्तारी हुई। 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में बाला पारा के एक परिवार की अनुपस्थिति में उनकी 16 वर्षीय बेटी को नव वर्ष की पूर्व संध्या को घर में घुसकर कुछ लम्पट युवक सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाकर मार डालते हैं। यही नहीं, उनकी हिम्मत तो देखिये कि लड़की के पिता को फोन कर सूचना भी देते हैं कि उनकी बेटी मर चुकी है। पिता के अनुसार ये लड़के उनकी बेटी को काफी समय से परेशान कर रहे थे। शायद नव वर्ष की पूर्व संध्या को उसे अकेला पाकर इन लड़कों ने बलात्कार का ‘जश्न’ मना लिया। स्थानीय नागरिकों के प्रतिरोध के बाद ही एक युवक की गिरफ्तारी हुई।

नव वर्ष के आसपास ऐसी घटनाएं आम बनती जा रही हैं। हम याद करें कि 2016 और 2017 में बंगलुरु में शोहदों ने नव वर्ष की पूर्व संध्या पर सार्वजनिक स्थल, ब्रिगेड रोड में भारी संख्या में धावा बोलकर महिलाओं के साथ अश्लील हरकतें और बदतमीज़ी की थी। लड़कियों को छुआ गया, उनको आगे और पीछे से पकड़ा गया और यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया गया। ये लड़के इतनी भारी संख्या में थे कि पुलिस तक कुछ नहीं कर पा रही थी। एक लड़की ने तो रोते हुए कहा, ‘‘हम बंगलुरु को सेफ सिटी मानकर न्यू ईयर मनाने निकलते हैं। पिछले साल भी ऐसा हुआ था और कई लड़कियों ने पुलिस में शिकायत दर्ज की थी। पर कोई कार्यवाही नहीं हुई और फिर से यह घटना दोहराई जा रही है। ’’उस पर तत्कालीन गृह राज्यमंत्री जी परमेश्वर का बयान तो आग में घी डालने जैसा था-कि ‘‘लड़कियों की मानसिकता ही नहीं उनका पहनावा भी पश्चिमी संस्कृति से प्रेरित है तो ऐसी घटनाएं होती ही हैं।’’ 

पिछले कुछ वर्षों से नए साल के जश्न महिलाओं को खास तौर पर यौन उत्पीड़न के उद्देश्य से टार्गेट करते रहे हैं पर शासन निश्चिंत है और प्रशासन नाकाबिल। यहां हम याद करें कि किस तरह 2008 में मुम्बई के जे डब्लू मेरियट होटल के बाहर दो कपल नव वर्ष का आनन्द लेने सड़क पर टहल रहे थे जब 1 दर्जन से अधिक लड़के अचानक गिद्ध की भांति उन पर टूट पड़ते हैं, उनके वस्त्रों का चीर हरण करते हैं और उनके साथ अश्लील हरकतें करते हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स के दो रिपोर्टर उन्हें न बचाते तो घटना बलात्कार तक पहुंच जाती। पुलिस पैट्रोलिंग तो थी ही नहीं और उसी समय पुलिस कमिश्नर ने बयान दिया था कि ऐसी ‘छोटी मोटी’ घटनाएं तो कहीं भी हो सकती हैं। उसी दिन कोलकाता के पार्क स्ट्रीट पर बाइक दौड़ा रहे शोहदे लड़कियों के साथ अभद्र हरकतें कर रहे थे और पुलिस कुछ नहीं कर रही थी। ये मेट्रो शहरों की दशा है तो छोटे शहरों को कौन पूछे?

तो क्या हम मान लें कि नव वर्ष या किसी भी त्योहार का जश्न महिलाओं के लिए भयावह साबित हो सकता है? क्या शोहदों के लिए जश्न मनाने के मायने हैं खाने-पीने के साथ शराब और ड्रग्स का नशा, फिर लड़कियों के साथ यौन दुष्कर्म? ये घटनाएं अपने तईं बहुत कुछ बयान करती हैं। पर आखिर प्रशासन इन घटनाओं को किस नज़रिये से देखता है? गृह मंत्रालय का क्या रुख है? कहीं-न-कहीं हर बार दिखाई पड़ता है कि लड़कियों और महिलाओं के प्रति एक दुश्मनी का रुख है-वे अगर पुरुष दोस्तों के साथ पार्टी करती हैं, घूमती हैं या शराब पीती हैं तो कहा जाता है कि उन्हें ‘‘इस सब के लिए मानसिक तौर पर तैयारी कर लेनी चाहिये’’; अगर वे केवल महिला मित्रों के साथ घूमती हैं तो बात आती है,‘‘उन्हें अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिये था;’’ अगर वह अकेली घर में या बाहर थी तो सवाल है कि ‘‘आखिर अकेली क्यों थी?’’

कुल मिलाकर लड़कियों को, औरतों को एक महिला-विरोधी, ‘मिसोजिनिस्ट बैकलैश’ का सामना करना पड़ रहा है। और, यह सिर्फ इसलिए कि वे आज़ादी मांग रही हैं, बराबरी का हक लेना चाहती हैं-वसे ही रहना चाहती हैं जैसे हर लड़के या पुरुष को रहने का हक पैदा होते ही मिल जाता है; वैसे ही खुशियां मनाना चाहती हैं जैसे हर पुरुष जश्न मना पाता है; वैसे ही पोशाक पहनना चाहती हैं जैसे लड़के पहन सकते हैं; वैसे ही पढ़ना और नौकरी करना चाहती हैं जैसे हर पुरुष दूर प्रान्तों में जाकर कर सकता है। क्या यह हमारे देश के पितृसत्तावादी सोच को चुभता है या अखर रहा है? क्या इस मानसिकता वालों को लगता है कि महिला समुदाय से बदला लेने के लिए उसे रौंद डालना चाहिये?

वरना हम कैसे समझें कि किसी फ्लाइट पर एक पुरुष यात्री किसी महिला यात्री पर एक बार नहीं, दो अलग-अलग घटनाओं में पेशाब करता है और फ्लाइट क्रू महिला को अपमानित होने से नहीं रोकता, न कमांडर उतरकर प्राथमिकी दर्ज करने को तत्पर होता है। और तो और एयर इंडिया केवल कुछ दिनों के लिए ऐसे व्यक्ति को फ्लाइट बोर्ड करने से प्रतिबंधित करता है और दूसरे से माफीनामा लिखवाकर इतिश्री कर लेता है। क्या ऐसे में पूरे क्रू को मुअत्तल नहीं किया जाना चाहिये था? क्या महिला यात्रियों को मुआवज़ा और उत्पीड़क को तुरंत कड़ी-से-कड़ी सज़ा नहीं मिलनी चाहिये थी? 

ऐसी घटनाएं कहीं न्यू नार्मल न बन जाएं, इसके लिए व्यापक पैमाने पर सामाजिक प्रतिरोध की ज़रूरत है। केवल औरतें क्यों बालती रहें, न्याय की गुहार लगाती रहें ? कहां गया सभ्य समाज? कहां गए प्रगतिशील लोग? हाथ पर हाथ रखकर कैसे बैठे हैं शासनकर्ता और विपक्षी नेता? जवाब देना होगा वरना समाज को सड़ांध से कोई नहीं बचा सकेगा। और उसका असर हम सब को भुगतना पड़ेगा। 

(कुमुदिनी पति महिला एक्टिविस्ट हैं और आजकल इलाहाबाद में रहती हैं।)

कुमुदिनी पति
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