गज़ा पट्टी पर बमबारी के समर्थन से बेनकाब हो गया है पश्चिमी देशों का चेहरा

कथित सभ्य दुनिया के लिए उत्पीड़ित लोगों को अपनी ज़मीन के औपनिवेशीकरण का प्रतिरोध करने और अपनी आज़ादी के लिए लड़ने का भी अधिकार नहीं है। “उत्पीड़ित लोग हमेशा उत्पीड़ित नहीं रह सकते। आज़ादी के लिए चाहत अंत में स्वयं प्रकट होती है।”

– मार्टिन लूथर किंग जूनियर

आधी सदी से ज़्यादा समय तक भयावह दमन तले रहने के बाद दुनिया के सबसे बड़े खुले जेल कहलाने वाले गज़ा पट्टी के फलस्तीनियों ने पिछले सप्ताह अपने ऊपर दमन करने वाले के खिलाफ ऐसा भयंकर पलटवार किया कि जायनवादी देश हिल गया।

वह लड़ाई को इस्राइल के अंदर ले गए और क्षेत्र की सबसे शक्तिशाली सैन्य ताकत को बुरी चोट दी। इस्राइल में उस एक दिन मरने वालों की संख्या उसके देश बनने के बाद से अब तक किसी भी संघर्ष में मारे गए लोगों की संख्या से ज्यादा थी। जाहिर है कि उसका जवाबी हमला भी बेहद क्रूर है।

गज़ा पट्टी जो 22 लाख फलस्तीनियों का घर है, इस समय जिस तरह की बमबारी देख रही है, पहले भी कई बार इस्राइली ताकतों की बमबारी झेल चुकी है पर ऐसी बमबारी नहीं देखी।

इस्राइली जानबूझकर नागरिक आबादी को मार रहे हैं जिनमें बच्चे शामिल हैं। लाखों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो चुके हैं। इलाके को पूरी तरह सील किया गया है और भोजन, ईंधन या अन्य आपूर्तियां रोक दी गई हैं। घेराबंदी, जिसका उद्देश्य समूची आबादी को भूखा मारना है, स्पष्ट रूप से युद्ध अपराध है।

किसी काबिज़ ताकत का अपने अधीन आबादी के खिलाफ युद्ध की घोषणा करना अभूतपूर्व है। लेकिन ताकत के पूरे इस्तेमाल के बावजूद प्रतिरोध को हराया नहीं जा सका है। फ़लस्तीनी लड़ाके अब भी इस्राइली सीमा के अंदर लड़ रहे हैं।

लड़ाई जल्द खत्म होने के आसार नज़र नहीं आ रहे, वास्तव में खतरा इसके वेस्ट बैंक तक फैलने का है जहां पहले से बड़ी संख्या में इस्राइली सेनाएं तैनात हैं। इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने धमकी दी है कि इस्राइली प्रतिसाद मध्य पूर्व को बदल देगा।

वास्तव में, जारी युद्ध ने क्षेत्र की जियोपॉलिटिक्स को बदलना शुरू कर भी दिया है। आश्चर्य नहीं कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने इस्राइल की क्रूर कार्रवाइयों का समर्थन किया है। युद्ध ने एक बार फिर पश्चिमी पाखंड को बेनकाब किया है।

नागरिकों की हत्या करने और महिलाओं, बच्चों को बंधक बनाने के लिए हमास की आलोचना करने के साथ पश्चिमी दुनिया ने गज़ा पर इस्राइली बमबारी को स्वीकृति दी है जिसमें ‘’इस्राइल के रक्षा के अधिकार’’ के बहाने कई महिलाओं और बच्चों को मार डाला गया है।

कथित सभ्य दुनिया के लिए, उत्पीड़ित लोगों को अपनी ज़मीन के औपनिवेशीकरण का प्रतिरोध करने और अपनी आज़ादी के लिए लड़ने का भी अधिकार नहीं है।

पिछले सप्ताह का हमास का हमला इस्राइल और उसके पश्चिमी साथियों के लिए आश्चर्य का झटका होगा लेकिन इसकी जड़ें फ़लस्तीनी जमीन पर दीर्घावधि के कब्जे और इस्राइली ताकतों के जारी अत्याचारों में छिपी हैं। फलस्तीनी आबादी को विस्थापित कर इस्राइली बस्तियों का लगातार विस्तार हो रहा है।

गज़ा पिछले पांच दशकों से इस्राइली अत्याचार का दंश झेल रहा है। हालात असहनीय हो गए हैं। दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में गज़ा को वर्तमान संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने “धरती पर नर्क” की संज्ञा दी है। यह लगातार घेराबंदी झेल रहा है और इलाका मानवीय संकट की तस्वीर बन गया है।

गज़ा में आधी से अधिक आबादी घोर गरीबी में रहती है। बच्चों का एक बड़ा फीसद पांचवें जन्मदिन तक जीवित नहीं रहता है। बच्चे इस्राइली बमबारी और घेराबंदी के प्रमुख शिकार हैं। गज़ा में लगातार बमबारी अभियान में पिछले कई सालों में सैकड़ों बच्चे मारे गए हैं।

इस्राइल के हाल के हवाई हमलों ने इलाके के बड़े हिस्से को मलबे में तब्दील कर दिया है। फ़लस्तीन के अन्य इलाकों में हालात जुदा नहीं हैं। फलस्तीनियों को उनके घरों से निकाल दिया जाना एक नियमित परिघटना है। अब गज़ा की असहाय आबादी इस्राइल के जमीनी आक्रमण की तैयारी कर रही है।

लंबे समय से औपनिवेशिक अधीन रहे लोगों की यह पीड़ा भी पश्चिम के विवेक को हिलाने के लिए काफी नहीं है जो मानवाधिकारों पर दूसरों को उपदेश देने से कभी पीछे नहीं हटता। यह इस्राइल की रंगभेदी नीतियों से मुंह मोड़ लेता रहा है। इस्राइल की ताकतवर सेनाएं और इसके लिए पश्चिम का समर्थन कई फलस्तीनियों को मार सकता है लेकिन प्रतिरोध के आवेग को दबा नहीं सकता।

इस्राइल की गज़ा पर युद्ध की घोषणा का मध्य पूर्व और उससे परे भी दूरगामी परिणाम होंगे। युद्ध का सबसे महत्वपूर्ण दुष्परिणाम इस्राइल और सऊदी अरब के बीच मेल-मिलाप के अमरीकी प्रयास का पटरी से उतर जाना है।

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की तरफ से शुरू की प्रक्रिया ने महत्वपूर्ण प्रगति की थी और पिछले महीने एक इस्राइली मंत्री ने सऊदी अरब की पहली यात्रा की थी। यात्रा नॉर्मलाईजेशन पर वार्ता से सीधे संबंधित न भी हो पर उसे दोनों देशों के बीच ठंडेपन का पिघलना माना जा रहा था।

लेकिन लड़ाई के हालिया चक्र ने किसी भी तरह की वार्ता को बड़ा झटका दिया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सऊदी अरब ने अमरीकी मंत्री एंटनी ब्लिंकेन से कहा है कि इस्राइल से संबंध सामान्य करने के बारे मेँ ‘’सभी वार्ताओं’’ को वह समाप्त कर रहा है। बाइडेन प्रशासन की पहल को मध्य पूर्व में वाशिंगटन की स्थिति मजबूत करने की दिशा में बड़े कदम के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा था।

वाशिंगटन का यह कदम बीजिंग के रियाद और तेहरान के बीच शांति करार करवाने के बाद उठाया गया जो वर्षों से क्षेत्र में छद्म युद्ध में संलिप्त थे। करार ने विश्व के सर्वाधिक अस्थिर माने जाने वाले क्षेत्रों में से एक में चीन के बढ़ते प्रभाव को दर्शाया था।

अमरीका प्रायोजित प्रक्रिया में कुछ प्रगति के बावजूद रियाद और तेल अवीव में शांति करार हालांकि अब भी करीब नहीं था अति-दक्षिणपंथी इस्राइल के बस्तियों के मुद्दे पर न झुकने के कारण। पिछले अमरीकी राष्ट्राध्यक्षों के विपरीत बाइडेन ने इस्राइलियों और फलस्तीनियों के बीच शांति वार्ता शुरू करवाने के सीधे प्रयास नहीं किए। फलस्तीनियों को प्रक्रिया से बाहर रखने से मध्य पूर्व में दीर्घावधि शांति नहीं लाई जा सकती।

बढ़ते तनाव के वर्तमान माहौल में और युद्ध के और भीषण रूप अख्तियार करने की आशंकाओं के बीच अब इस्राइल और सऊदी अरब के बीच शांति वार्ता के शुरू होने की संभावना नहीं दिखती। संकट का एक ही समाधान है इस्राइली कब्जा हटे और फ़लस्तीन के देश के अधिकार को स्वीकारा जाए।

ज़ाहिद हुसैन का मूल रूप से डॉन (Dawn) में प्रकाशित लेख स्क्रॉल से साभार। अनुवाद महेश राजपूत

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