जो कोरोना की दवा नहीं वो ‘कोरोनिल’ क्यों, उसे ‘रामोनिल’ कह लीजिए!

ये किस्सा है Cure और Management का। Cure का मतलब होता है उपचार। किसी दवा का होता है यह आधार। उपचार का गुण न हो तो दवा, दवा नहीं हो सकती। आयुष मंत्रालय ने योग गुरु पतंजलि पीठाधीश कारोबारी रामदेव से यही कहा है कि आप यह दावा करना छोड़ दें कि कोरोनिल और श्वासारि नामक जो प्रॉडक्ट लांच किया गया है वह कोरोना नामक बीमारी को क्योर करता है। आयुष मंत्रालय के इस प्यार भरे सुझाव पर झटक कर बोले रामदेव- चाहे तो आप मैनेजमेंट कह लो। मगर, हमें प्रॉडक्ट बेचने दो। वाह! रामदेवजी वाह! जो कोरोना की दवा नहीं है उसे ‘कोरोनिल’ क्यों कहा जाए, उसे आप ‘रामोनिल’ ही कह देते!

Management का अर्थ क्या है इसे समझने के लिए देश में एक से एक मैनेजमेंट संस्थान हैं। मगर, मैनेज से बने इस शब्द में और इस शब्द में जो समग्र भाव अंतर्निहित है वो रामदेव के इस बयान में साफ-साफ दिखता है- ‘कोरोना क्योर नहीं, तो आप कोरोना मैनेजमेंट कह लो’। मतलब ये कि मैनेजमेंट शब्द समाधान देता है। मगर, बीमारी का नहीं, बाजार का। प्रॉडक्ट को बेचने का। चाहे वह दवा हो या ना हो। भले ही दवा की मूल खासियत भी उसमें ना हो कि वह बीमारी से मरीज को क्योर करता है यानी उपचार दिलाता है। 

दवा से उसका मूल गुण उपचार ही छीन लिया जाए तो क्या वह दवा रह जाती है?  अगर कोरोनिल या श्वासारि में उपचार का गुण है, वह मरीजों को क्योर करता है तो इसे दवा का दर्जा दिलाने के लिए लड़ जाना चाहिए था। मोदी सरकार से रामदेव का कोई बैर नहीं है। वे अनावश्यक रामदेव यानी उनकी कंपनी पतंजलि को क्यों तंग करेंगे? मगर, संकट के वक्त पर स्त्री का वेष धारण कर भाग निकलने वाले स्वामी रामदेव ने एक बार फिर ‘दवा’ की प्रतिष्ठा गिरा दी है। ‘क्योर’ यानी उपचार नामक गुण को ‘दवा’ से बाहर निकालकर वास्तव में दवा का चीरहरण कर दिया। 

मैनेजमेंट से दवा नहीं बनती रामदेव भाई। मरीज क्योर ही नहीं होगा, केवल मैनेज होगा तो दवा यानी औषधि, वैद्य और औषधालय के बीच मौजूद चिरकालीन रिश्ता खत्म हो जाता है। नाम आप कोरोनिल रखेंगे और कोरोना से उपचार का वादा भी नहीं करेंगे, तो हम आपको वैद्य कैसे मानें? जब औषधि को हम औषधि नहीं कह सकते, वैद्य को हम वैद्य नहीं मान सकते तो औषधालय को भी औषधालय कैसे कहा जा सकता है! 

स्वामी रामदेव को दूसरी बार प्रेस कॉन्फ्रेन्स करना पड़ा। पहले प्रेस कॉन्फ्रेन्स में क्लीनिकल ट्रायल का हवाला देकर शत प्रतिशत कोरोना मरीज ठीक कर देने का दावा रामदेव ने किया था। आयुष मंत्रालय ने दावे की पुष्टि होने तक इसके प्रचार और बिक्री पर रोक लगायी। उत्तराखण्ड के आयुर्वेदिक विभाग ने कहा कि उसने केवल प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने संबंधी क्लीनिकल ट्रायल को मंजूरी दी थी और कोरोना के लिए तो मंजूरी मांगी भी नहीं गयी थी।

निम्बस, जयपुर जहां इन कथित दवाओं का कथित ट्रायल हुआ था, वहां के डायरेक्टर ने यहां तक कह दिया कि कोरोनिल जैसे प्रॉडक्ट को बनाने में उसकी कोई भूमिका नहीं है। वे सिर्फ क्लीनिकल ट्रायल तक सीमित हैं। राजस्थान सरकार को जयपुर में हुए क्लीनिकल ट्रायल के बारे में भी पता नहीं था। इसी तरह मेरठ में हुए क्लीनिकल ट्रायल से मेरठ के सीएमओ अनजान रहे। इन सबके बावजूद अगर कोरोनिल और श्वासारि बिक्री के लिए उपलब्ध हो गया है तो स्वामी रामदेव के शब्दों में ही यह इन कथित दवाओं में क्योर होने का गुण नहीं, मैनेजमेंट का नतीजा है।

स्वदेशी, आयुर्वेद और भारतीयता के झंडाबरदार रहे हैं रामदेव। सौभाग्य से ये तीनों शब्द ईमानदारी, शुचिता, उच्च नैतिकता, त्याग, परोपकार, सिद्धि जैसे गुणों के प्रतीक रहे हैं। जो प्रॉडक्ट स्वामी रामदेव ने लांच किया है उसे स्वदेशी, आयुर्वेद और भारतीयता का जामा तो पहनाया गया है लेकिन इनमें जो गुण हैं या होते हैं उनका ही मैनेजमेंट कर लिया गया है। 

ड्रग माफिया और मल्टीनेशनल कंपनियों से लड़ाई एक अलग विषय है। मगर, यह विषय रामदेव का इन दिनों प्रिय विषय हो गया है। इनके खिलाफ लड़ाई लड़ने का रामदेव दावा कर रहे हैं। मगर, ये लड़ाई सिर्फ प्रॉडक्ट बेचने के दौरान ही नजर आती है। मतलब ये कि लड़ाई की बात भी ‘मैनेजमेंट’ का हिस्सा ही लगती है।

स्वामी रामदेव को इस बात की भी चिंता है कि कुछ लोग बेहिसाब गिलोई और अश्वगंधा बेच रहे हैं। उचित मात्रा में मिश्रण की आवश्यकता होती है ये सब जानते हैं। मगर, मात्रा तय कौन करेगा? रामदेव को अपने अलावा कोई मंजूर नहीं है। सवाल ये है कि अब से पहले तक इस देश में आयुर्वेद की दवाएं क्या नहीं बिका करती थीं? क्या तब मात्रात्मक अनुपात में कमी रहा करती थी? आज अचानक मात्रा का सवाल लेकर आयुर्वेदिक औषधि बेचने वालों पर भी रामदेव सवाल उठा रहे हैं।

रामदेव न पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने आयुर्वेदिक औषधियां बेचने का काम किया है और न खुद उनके लिए यह पहला आयुर्वेदिक प्रॉडक्ट है जो बाजार में आया है। मगर, विवाद क्यों है? विवाद इसलिए है कि रामदेव ने कोरोना बीमारी को ठीक कर देने का दावा किया था। यह दावा झूठा निकला। उन्होंने बताया था कि वे कोरोना की दवा लेकर आए हैं। मगर, केंद्र सरकार और अधिकृत संस्थानों ने इस दावे को नहीं माना। अब खुद भी रामदेव मान चुके हैं कि कोरोनिल या श्वासारि कोरोना की दवा नहीं है। कहने का मतलब यह है कि झूठे दावे ने आयुर्वेद को बदनाम किया, आयुर्वेदिक औषधि को बदनाम किया और स्वदेशी से लेकर भारतीयता तक को बदनाम किया जिसकी झंडाबरदारी रामदेव कर रहे थे। 

अगर रामदेव की मानें तो आयुष मंत्रालय ने कोरोनिल और श्वासारि को कोरोना क्योर किट के बजाए कोरोना मैनेजमेंट किट के रूप में मंजूरी दी है। अगर यह सही है तो भी यह कोरोना मरीजों के साथ और देश के लोगों के साथ धोखा है। ‘कोरोनिल’ शब्द का निर्माण कोरोना से हुआ है। जाहिर है कोरोना मैनेजमेंट का अर्थ कोरोना की बीमारी को कम करना, भगाना या इसके प्रभाव को कम करना ही हो सकता है। ऐसे में जो प्रॉडक्ट कोरोनिल और श्वासारि के रूप में बाजार में उपलब्ध कराया गया है, उन्हें जनता आयुर्वेद और स्वदेशी के प्रति अपने परंपरागत विश्वास में आकर औषधि या दवा समझ सकती है। यह जनता की आंखों में धूल झोंकने के समान है। 

अगर कोरोनिल और श्वासारि की खासियत इसकी प्रतिरोधक क्षमता है तो इसका नामकरण भी इसी रूप में होना चाहिए। जिस तरह से रामदेव कोरोनिल और श्वासारि किट को ‘कोरोना क्योर’ के बजाए ‘कोरोना मैनेजमेंट’ कह सकते हैं तो सवाल ये है कि वे ‘कोरोनिल’ को ‘रामोनिल’ या किसी और नाम से क्यों नहीं बेच लेते? छल न करें रामदेव और इस छल को बढ़ावा न दे मोदी सरकार। जनता के बीच पुरातन सनातन आयुर्वेद को छद्म नाम और रूप से छद्म गुण बताकर नहीं बेचा जाए। ऐसा करना अक्षम्य अपराध है।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल आप इन्हें विभिन्न चैनलों के पैनल में बहस करते देख सकते हैं।)

प्रेम कुमार
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