कोविद-19 और खाद्य सुरक्षा: जमीन पर उतारनी न हों तो घोषणायें आसान हो जाती हैं

कोरोना महामारी द्वारा उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा तमाम तरह की घोषणायें की जा रही हैं, 30 जून 2020 को छठी बार देश को सम्बोधित करते हुये प्रधानमंत्री ने फिर एक बार घोषणा की, कि नवम्बर 2020 तक लोगों को राशन दिया जायेगा। इस योजना के अंतर्गत 5 किलो आटा या 5 किलो चावल प्रति व्यक्ति और एक किलो चना प्रति परिवार दिया जायेगा। उन्होंने अपने 16 मिनट के भाषण में कहा कि इस योजना से करीब 80 करोड़ लोगों को राशन मिलेगा जिसका कुल खर्च 90 हजार करोड़ होगा।

नवम्बर तक राशन देने के पीछे प्रधानमंत्री का कहना है कि जुलाई के बाद त्योहारों का समय शुरू हो जाता है, उनके द्वारा त्योहारों की एक सूची भी दी गई इस सूची में अल्पसंख्यक समुदायों के त्योहारों को शामिल नहीं किया गया, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि छठ पूजा तक लोगों को राशन दिया जायेगा, अगर त्योहारों को ही राशन देने का आधार माना जाये तो थोड़ा सा और आगे जाने पर दिसम्बर में ईसाई समुदाय का भी त्योहार आता है। वो बात अलग है कि ईसाई या मुस्लिम अल्पसंख्यक में हैं शायद वोट की राजनीति में उतना प्रभाव न डाल सकें। सोशल मीडिया पर लोगों ने अपने विचार साझा किये कि प्रधानमंत्री द्वारा छठ पूजा का जिक्र इसलिए भी किया गया क्योंकि कुछ ही महीनों बाद बिहार में इलेक्शन है।

प्रधानमंत्री द्वारा की गयी इस घोषणा में भी अन्य राशन संबंधी घोषणाओं की तरह ही खामियां हैं, बार-बार जिन आंकड़ों का जिक्र वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री द्वारा किया जा रहा है, वह है 80 करोड़ लोग जो राशन वितरण प्रणाली के तहत आते हैं, पहली बात यह कि दिया जा रहा आंकड़ा 2011 की जनसंख्या के अनुसार है जो वर्तमान स्थिति से कम ही होगा, दूसरा यह कि राशन कार्ड बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा कुछ निर्धारित मानदण्ड रखे गए हैं या जिन दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है वह लोगों के पास नहीं हैं, जिसके चलते वह राशन कार्ड नहीं बनवा पाए। ऐसे लोगों को कैसे इस योजना का लाभ मिल सकेगा इस पर किसी प्रकार की कोई नीति नहीं बनी है। आंकड़ों के अनुसार करीब 100 मिलियन लोग वर्तमान स्थिति में राशन वितरण प्रणाली से बाहर हैं, जो कि इसके हकदार हैं। 

26 मार्च 2020 को लाॅक डाउन के तुरंत बाद केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत आने वालों की संख्या 80 करोड़ है और इन्हीं को राशन दिया जायेगा। इसके तहत प्रति व्यक्ति 5 किलो आटा या चावल इसके अलावा प्रति परिवार 1 किलो दाल मुहैया कराई जायेगी। इसके अलावा जिनके पास राश्न कार्ड नहीं है उनके खाने की व्यवस्था सरकार द्वारा की जायेगी।

इसके बाद 14 मई, 2020 को फिर से वित्त मंत्री ने कहा कि प्रवासी मजदूरों की संख्या जानने के लिए उन्होंने प्रत्येक राज्य से आंकड़े मांगे हैं। वित्त मंत्री का कहना था कि प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश में कुल 8 करोड़ प्रवासी मजदूर हैं, और केन्द्र सरकार द्वारा इन 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों को मुफ्त में राशन दिया जायेगा। इस योजना के अन्तर्गत होने वाले खर्च का भार राज्य सरकारों पर नहीं डाला जायेगा, इसके लिए केन्द्र सरकार 3500 करोड़ रूपये खर्च करेगी।

30 जून, 2020 को प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद, 1 जुलाई को केन्द्रीय खाद्य मंत्री पासवान से मीडिया कर्मियों ने पूछा कि 14 मई को प्रवासी मजदूरों के लिए हुई घोषणा में कितने प्रवासी मजदूरों को राशन मिल पाया है। जवाब में खाद्य मंत्री कहते हैं कि अभी तक सिर्फ 2 या 3 करोड़ मजदूरों को ही राशन दिया गया है, मालूम हो की घोषणा 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों के लिए हुई थी, यह घोषणा भी सरकारी आंकड़ों के आधार पर हुई थी, वास्तव में प्रवासी मजदूर 8 करोड़ से कहीं ज्यादा हैं।

सिर्फ 2 या 3 करोड़ प्रवासी मजदूरों को ही राशन मिल पाया। इस पर खाद्य मंत्री पासवान का कहना है कि कुछ राज्यों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार उनके राज्यों में काम करने वाले प्रवासी मजदूर वापस अपने घरों को जा चुके हैं। इसलिए उन्हें, इस योजना के अन्तर्गत राशन की जरूरत नहीं है। जबकि लुधियाना में रह रहे प्रवासी मजदूर ने भूख की वजह से परिवार समेत आत्महत्या कर ली थी, झारखंड़ में दो लोगों की भूख की वजह से मौत हो गई। यह वह आंकड़े हैं जो रिपोर्ट हुए हैं, ऐसे आंकड़ों की तादाद कहीं ज्यादा है जो कई वजहों से रिपोर्ट नहीं हो पाये हैं।

अपने ही वक्तव्य में खाद्य मंत्री ने कहा कि केन्द्र द्वारा राज्य सरकारों पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है। यानी वे अपने राज्यों में राशन -का र्डधारियों की संख्या अपने मन मुताबिक बढ़ा सकते हैं। उनका कहना था कि यह राज्य सरकारों की कमी है कि वे अधिक से अधिक लोगों को इस सूची में शामिल करवाने में नाकाम रहे।       

कर्नाटक में मई, 2020 में लॉक डाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों द्वारा स्वत:स्फूर्त आन्दोलन किया गया जिसमें वह अपने गांव वापस जाना चाह रहे थे और राज्य सरकार द्वारा उन्हें जबरन रोका जा रहा था। मजदूरों का कहना था कि यहां रहेंगे तो भूख से मारे जायेंगे, तब राज्य के श्रम विभाग द्वारा करीब 300 प्रवासी मजदूरों को पांच किलो चावल के पैकेट दिये गये थे। उन पैकेटों में सड़ा हुआ चावल था जिसे जानवरों के खाने के लायक भी नहीं माना गया। इस तरह की अनेक कमियां हैं जिसके चलते घोषित योजनाओं का क्रियान्वयन जमीन स्तर पर नहीं हो पाता है, वह मात्र घोषणा बन कर ही रह जाती है। 

अभी हाल ही में खाद्य मंत्री पासवान ने बताया कि देश में अनाज की कमी नहीं है, देश में प्रति माह 60 लाख टन अनाज की जरूरत होती है, जबकि हमारे पास करीब 589 लाख टन अनाज स्टॉक में है, और वर्तमान स्थिति में फसलें कटने के बाद अनाज की मात्रा और बढ़ेगी। बावजूद इसके केवल कोरोना काल में ही लोगों की मौत भुखमरी से नहीं हो रही है बल्कि हर साल भुखमरी से मौतें होती हैं, यह एक प्रश्न चिन्ह है हमारी व्यवस्था पर।  

एक और महत्वपूर्ण तथ्य जिसके बारे में सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि, हर घोषणा के साथ ही सरकार उस योजना पर खर्च होने वाले अनुमानित पैसे का ऐलान भी कर देती है, जबकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए भी पहले से बजट निर्धारित था फिर वह कहां है?    

घोषणा चाहे राज्य सरकार करे या केन्द्र सरकार सवाल यह है कि वह जमीनी स्तर पर किस तरह से लागू हो पाती है। जितने आंकड़े दिये जाते हैं क्या उन सभी को राशन मिल पा रहा है यह कैसे सुनिश्चित हो, जितनी लागत पूरी योजना के क्रियान्वयन के लिए खर्च की जा रही है क्या वह सही है। 

(लेखिका बलजीत मेहरा शोधार्थी हैं।)

बलजीत मेहरा
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