नफ़रत की आंधी में न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी क्यों है?

मुंबई के बांद्रा की एक अदालत के आदेश के बाद मोदी सरकार से वाई प्लस सुरक्षा प्राप्त अभिनेत्री कंगना रनौत और उनकी बहन रंगोली चंदेल के खिलाफ बांद्रा पुलिस स्टेशन में केस दर्ज हुआ है। कंगना के खिलाफ आईपीसी की धारा 154 A , 295 A,124 A,34 एफआईआर दर्ज किया गया है। बांद्रा के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट जयदेव वाई घुले ने शुक्रवार को यह आदेश जारी किया था।  

इससे पहले 13 अक्तूबर को कर्नाटक पुलिस ने हाल में केंद्र सरकार की ओर से पारित कृषि कानूनों का विरोध करने वाले लोगों पर कंगना की टिप्पणी को लेकर उनके खिलाफ एक मामला दर्ज किया था। कंगना ने विरोध करने वालों को देशद्रोही कहा था। 

साहिल अशरफ अली सैय्यद नाम के एक शख्स ने बांद्रा कोर्ट में कंगना के खिलाफ केस दर्ज करने की याचिका दी थी। सैय्यद ने आरोप लगाया कि रनौत कलाकारों को सांप्रदायिक आधार पर बांटने का प्रयास कर रही हैं और उनकी बहन ने भी दो धार्मिक समूहों के बीच साम्प्रदायिक तनाव फैलाने के लिए सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं।


यह कोई नई या ब्रेकिंग ख़बर नहीं है। दरअसल यहां सवाल हमारी न्यायिक व्यवस्था को लेकर है। बीते कुछ सालों से देश में धार्मिक नफ़रत की जो राजनीति चल रही है क्या उस पर हमारी अदालतों की नज़र नहीं पड़ी कभी? 

देश के सर्वोच्च न्यायालय के पास सड़क पर चलते-मरते हुए लाखों मजदूरों की बात सुनने का वक्त नहीं था किन्तु नफ़रत फ़ैलाने वाले और जनता द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधियों और मुख्यमंत्रियों और सोनिया गांधी तक के लिए आपत्तिजनक अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले सिरफिरे न्यूज़ एंकर की केस की सुनवाई के लिए वही अदालत समय निकाल लेती है! 

साल 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद से देश में धार्मिक ध्रुवीकरण और असहिष्णुता का जो माहौल शुरू हुआ था आज वह अपने शिखर पर पहुंच चुका है। 

गो रक्षा के नाम पर हत्याओं का तांडव सड़कों पर चलता रहा। अख़लाक़, पहलू खान, जुनैद जैसे कई मारे गये। किन्तु किसी मामले में एक भी हत्यारे को सज़ा नहीं मिली। सभी हत्यारे निर्भीक होकर आज भी बाहर घूम रहे हैं। अलवर में पहलू खान के मामले में तो उल्टा मृतक पहलू खान और उनके परिवार पर मामला दर्ज हो गया। अख़लाक़ के कातिल की मृत्यु के बाद उसके शव को तिरंगे में लपेटा गया किसी शहीद की तरह। इतना ही नहीं सत्ताधारी दल के नेता उसके शोक सभा में उपस्थित हुए। 

पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद सोशल मीडिया पर जमकर जश्न मनाया गया। शिक्षक दिवस यानी 5 सितंबर, 2017 को बेंगलुरु में गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई थी। धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ लिखने वाली गौरी लंकेश ने हमेशा हिंसा और हत्या की राजनीति का विरोध किया। 

गौरी लंकेश की हत्या के बाद निखिल दधीचि नामक यूजर ने ट्वीट कर लंकेश के खिलाफ बेहद अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था। बाद में यह भी पता चला था कि जश्न मनाने वाले उस शख्स को उस वक्त पीएम मोदी फॉलो करते थे।

याद हो कि झारखंड के रामगढ़ में बीफ ले जाने के शक में मारे गए युवक (अलीमुद्दीन) की हत्या के 8 आरोपियों को झारखंड हाई कोर्ट ने जमानत दे दी थी। जमानत मिलने के बाद केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने इन आरोपियों का माला पहनाकर स्वागत किया। साथ ही बीजेपी जिला कार्यालय में मिठाई बांटी गई थी।

ऐसे कई मामले हैं जिन्हें यहां गिनाया जा सकता है। अब सवाल यह है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जब न्याय व्यवस्था पर से आम लोगों का भरोसा डगमगाने लगे तो क्या किया जाए? 

लोकतंत्र में सत्ता से सवाल करना नागरिक का मौलिक और संवैधानिक अधिकार है। किन्तु जब सत्ताधारी दल के नेता ही संविधान को बदलने और सवाल पूछने वालों को देशद्रोही कहने लगें और उन्हें पाकिस्तान भेजने की धमकी देने लगें तो क्या कहा जाये? 

आपको याद है तीन साल पहले बिहार बीजेपी नेता नित्यानंद राय की वह धमकी जब उन्होंने कहा था कि पीएम मोदी पर अंगुली उठाने वालों के हाथ काट देंगे? 

हालांकि अपने उस बयान की आलोचना के बाद उस नेता ने खेद व्यक्त किया था। किन्तु खेद व्यक्त करने से धमकी गायब नहीं होती। 

आपराधिक छवि वाले अन्य दलों के नेता जब बीजेपी में शामिल हो जाते हैं तब उनके सारे दाग धुल जाते हैं। पश्चिम बंगाल में सारदा चिटफंड घोटाले के मुख्य आरोपी मुकुल राय अपने बेटे के साथ बीजेपी में शामिल हो गये और उनके सारे दाग धुल गये। ऐसे दागी नेताओं की एक लम्बी फेहरिस्त है। दाग धोने के लिए सत्ता का दामन जरूरी है। ऐसे में निचली अदालतों और व्यक्तिगत शिकायतों पर किस हद तक कार्रवाई होगी यह कहना कठिन है। 

आज देश में महंगाई, भुखमरी, बेरोजगारी जैसी समस्याओं पर से ध्यान भटकाने के लिए सत्ता समर्थक लोग और मीडिया ख़तरनाक खेल खेल रही है। हर अपराध को जातीय और धार्मिक रंग में डाल कर उन्माद और विभाजनकारी रणनीति के तहत देश को वर्गों में बांटने की खतरनाक साजिश चलाई जा रही है। गौरतलब है कि हाल ही में हिंदी फिल्म उद्योग के कई निर्माता कंपनियों ने कुछ एंकरों और टीवी चैनलों के खिलाफ़ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। उस पर क्या कार्रवाई होती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।

(नित्यानंद गायेन कवि और पत्रकार हैं।)

नित्यानंद गायेन
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