ब्रिटिशर्स की जरूरत और तत्कालीन जियो पॉलिटिक्स की उपज था भारत-पाक बंटवारा

भारत-पाक बंटवारे को लेकर कांग्रेस, मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, नेहरू, जिन्ना तू-तू मैं-मैं के बीच हम एक बड़ा महत्वपूर्ण ऑब्जर्वेशन भूल जाते है। वो यह कि भारत पाक के बीच जिन्ना लाइन या नेहरू लाइन नही है। रेडक्लिफ लाइन है। बंटवारा करना, ब्रिटिश गवर्नमेंट का निर्णय था। अगर देश की सरकार नही बांटती, तो देशों का, या राज्यों का, जिलों का बंटवारा नहीं होता।

देखा जाये, तो जिन्ना, नेहरू सहित तमाम लोगों का विभाजन पर उतना ही कन्ट्रोल था, जितना महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला का कश्मीर के हालिया विभाजन पर। पब्लिक में डायरेक्ट एक्शन या दंगेबाजी से नए देश नहीं पैदा होते। वरना हर मुजफ्फरनगर, अहमदाबाद, मेरठ और नेल्ली से एक देश निकलता। मोहल्ले की किसी पटका-पटकी से, एकाध ब्लॉक तो बन ही जाता। 40 साल लड़कर झारखण्ड न बना। बिन मांगे छत्तीसगढ़ बन गया। क्योंकि सरकार चाहती थी।

मुस्लिम लीग, महासभा और कांग्रेस कोई फौजी मिलिशिया नहीं थे। ब्रिटिश से दंगे न संभल रहे थे, राज न संभल रहा था, और उनको भारत से जाना था, तो चले जाते। गांधी ने कैबिनेट मिशन को कहा भी था, हम अपना मामला आपस मे समझ लेंगे, आप हमें हमारे हाल पर छोड़कर निकल लीजिये। ब्रिटेन की क्या चुल्ल थी हिन्दू मुस्लिम क्वेश्चन सॉल्व करने की। सत्ता हस्तांतरण के वक्त, सभी सत्ता में बड़ा हिस्सा चाहते है।

ये कोई अजब अनोखी बात नहीं थी। अनशन या दंगा- जैसी तासीर हो, वैसे तरीक़े अपनाते है। दुनिया के हर देश मे, धर्म, भाषा, जाति, एथनिसिटी के आधार पर अलगाववादी विचारधारायें मौजूद है। तो सरकार का राजधर्म क्या है? आप बतायें, अगर तमिलनाडु में DMK-AIDMK वाले आपसी दंगा करने लगे, तो केंद्र सरकार आधा आधा बांट देगी।

बंटवारा, ब्रिटिशर्स की अपने उनके भविष्य के नजरिये से की गई, अपनी जियो-पोलिटिक्स थी। हमारे अंतर्विरोध बहाने थे। जिन्हें बदुहते हुए, वही बंटवारे का प्लान लाये थे और एग्जीक्यूट करने वाली अथॉरिटी भी वही थे। क्या ये बात झूठ है??

एक और चीज फैक्ट आप मिस करते हैं। भारत का 50% ही डायरेक्टली कण्ट्रोल था। इतने का ही सत्ता हस्तांतरण था। बाकी का देश तो प्रिंसली स्टेट था। वे एक संधि के तहत केंद्र से जुड़े थे, अर्धस्वतंत्र थे। रक्षा विदेश संचार छोड़ खुदमुख्तार थे। उनका अपना झंडा था, अपनी गवर्नमेंट थी। ब्रिटिश यूं ही छोड़कर चले जाते तो 500 देशी रियासतों में से कम से कम 10 ऐसे बड़े प्रिंसली स्टेट थे, जो ब्रिटिश सुजरेनिटी से मुक्त होते ही खुद को आजाद मुल्क घोषित कर देते, और उनका कुछ न उखड़ता।

हां, फ़ौज? सरदार कहां कहां फ़ौज उतार लेते? ब्रिटिश गवरमेंट के पास 5 लाख फ़ौज थी। 1 लाख अंग्रेज, ब्रिटेन लौट गए। डेढ़ लाख पाकिस्तान चले गए। भारत मे बचे ढाई लाख। ये आपकी एक्सटरनल सीमा की निगरानी करते? या हमारी सीमा के भीतर, इन प्रिंसली स्टेट के देश बन जाने पर, उनके गिर्द बनी हजारों किमी की सीमा की निगरानी करते? कि कश्मीर हैदराबाद, जूनागढ़ में लड़ते। कई स्टेट तक जाने के लिए दूसरी स्टेट से गुजरना पड़ता। ये लोग मोर्चा बनाकर आपके खिलाफ अपनी फ़ौज और सिविलियन उतार देते, तो कैसे, कहां-कहां लड़ते??

सैनिक सोल्यूशन आउट ऑफ क्वेश्चन था। आपको, ब्रिटिश की शर्तों पर आजादी मिल रही थी। शर्त बंटवारा था। 2 टुकड़े चाहिए, या टुकड़ों की ढेरी? चिट्ठियां बताती हैं। सावरकर ने ट्रावनकोर सहित कम से कम 3 स्टेट को आजाद मुल्क बनने के लिए उकसाया था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तो “पृथक बंगाल देश” की मांग करते हुए वायसराय माउंटबेटन को चिट्ठी लिखी थी। मगर शुक्र करो एडविना का, जिसने नेहरू के कहने पर चिट्ठी फड़वा दी। तो अंग्रेजी शर्तनामे को न मानते, तो इस उपमहाद्वीप में 2 नही, कम से कम 15 देश होते।

लब्बोलुआब ये की 90 साल बाद आप बकैती जरूर कर सकते हैं, गालियां दी सकते हैं। एक्सपर्ट राय दे सकते हैं। मगर उन बहुआयामी परिस्थितियों को सम्भालना, हल निकालना, निर्णय करना न तब आपके बूते का था, न आज है।

अखंड भारत का राग अलापने वाले, या विभाजन का दोष इसको-उसको थोपने वाले मूढ़मति, मैंने पाया है कि राष्ट्रप्रेम से अधिक, एक सम्पत्ति हाथ से निकल जाने का मलाल ज्यादा प्रदर्शित करते हैं। इन्हीं के मुंह से कश्मीर, मणिपुर, बस्तर, पंजाब, या किसी भी डीसेंट को “पेल देने” ख्वाहिश ज्यादा सुनने मिलेगी। ये वो लोग है, जो हाथ की चीज संवारने में यकीन नहीं रखते। इन्हें कब्जा चाहिए। महज दिग्विजयी होने का अहसास चाहिए।

“भारत, दैट इज इंडिया… 15 अगस्त सन 1947 को पैदा हुआ। वह जैसा था, उससे बेहतर बनाना है” अगर हम भारत के लोग, बस इतना सोच लें तो 2000 सालों की व्हाटअबाउटरी से मुक्त होकर चैन से जी सकेंगे।

(मनीष की लेख।)

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