भारत-चीन सीमा समझौता: गलवान घाटी में एलएसी से एक किमी पीछे हटी भारतीय सेना! दूसरे सेक्टरों में गतिरोध बरकरार

रक्षा मामलों के जानकर लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) अजय शुक्ल ने अफ़सोस ज़ाहिर किया है कि चीन के साथ तनाव कम करने के उद्देश्य से भारतीय सैन्य अधिकारियों ने जो समझौते किए वह देशहित में नहीं हैं। नये समझौते से भारत का नुकसान हुआ है और फ़ौज को एलएसी से तकरीबन एक किमी पीछे हटना पड़ा है। इस के साथ-साथ सीमा के कई सेक्टरों में अभी भी तनाव की स्थिति बनी हुई है।

अजय शुक्ल ने बताया कि अंग्रेजी अख़बार “बिज़नस स्टैण्डर्ड” को सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक भारत की सेना को एलएसी से एक किलोमीटर के आस-पास पीछे हटना पड़ रहा है। इस तरह शुक्ल भारतीय सैन्य अधिकारियों की नाकामी की तरफ इशारा कर रहे हैं, जिन्होंने गलवान घाटी से सैनिकों को पीछे ले जाने और तनाव कम करने के उद्देश्य से चीन से बातचीत की है। 

याद रहे कि 30 जून को दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य कमांडरों ने तनाव कम करने के लिए बातचीत की थी। जिसमें दोनों पक्षों के बीच यह सहमति बनी कि नया एलएसी तथाकथिक वाई-नल्लाह जंक्शन से होकर गुज़रेगा। यह स्थान भारतीय सीमा के एक किलोमीटर अंदर स्थित है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह पेट्रोलिंग पॉइंट-14 (पीपी-14), जो कि एलएसी के बराबर है, से एक किलोमीटर अंदर है।

शुक्ल ने मायूसी ज़ाहिर करते हुए कहा कि वह क्षेत्र जिसके अन्दर पेट्रोलिंग पॉइंट-14 निहित है और जिसकी दशकों से भारतीय सैनिक निगरानी करते रहे हैं, वह अब चीन के “बफर जोन” के भीतर आएगा।

‘डिसएन्गेजमेंट’ अर्थात तनाव कम करने का प्लान लेह स्थित कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और दक्षिण शिनजियांग मिलिट्री रीजन के कमांडर मेजर जनरल लियु लिन ने तय किया। इस प्लान के मुताबिक तीन किलोमीटर का एक “बफर जोन” होगा जो भारत और चीन दोनों की एलएसी की तरफ स्थित होगा।

इस प्लान के तहत दोनों देशों को “बफर जोन” में अपने दो ‘टेंट पोस्ट’ खड़े करने की इजाजत होगी। फॉरवर्ड ‘टेंट पोस्ट’ वाई-जंक्शन से 1.4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित होगा। और दूसरा ‘टेंट पोस्ट’ फॉरवर्ड पोस्ट से 1.6 किलोमीटर पीछे होगा। इस तरह से वह वाई-जंक्शन से कुल 3 किलोमीटर की दूरी पर कायम होगा।

भारत और चीन को इन ‘टेंट पोस्टों’ में 80 सैनिक रखने की इजाज़त होगी। 30 फॉरवर्ड पोस्ट में होंगे जबकि 50 पीछे वाले पोस्ट में तैनात होंगे। टेंट पोस्ट अस्थाई होंगे। यह भी आशंका ज़ाहिर की जा रही है कि स्थायी ढांचा भारत को गलवान घाटी पर अधिकार जताने का मौक़ा दे देगा।

टेंट कैंप में भारत की मौजूदगी को रोक कर चीन अपने नए दावे के साथ पूरी गलवान घाटी पर अपना अधिकार जता सकता है। जिसको चीन ने पिछले दो महीनों में कई बार दोहराया है।

शुक्ल ने कहा कि सेना के सूत्रों ने के मुताबिक सभी दूरियों को पीपी-14 के पश्चिम में स्थित परंपरागत एलएसी एलाइंमेंट के बजाय वाई-जंक्शन से मापने से वाई-जंक्शन ही सही अर्थों में एलएसी प्वाइंट हो गया है। 

यह भी कहा जा रहा है कि ऐसा चीनी सैन्य समझौताकारों के बेहद दबाव पर किया गया है। नई दिल्ली लगातार इस बात पर जोर दे रही थी कि एलएसी पीपी 14 के बराबर से ही गुजरे। लेकिन भारत ने अपने ही इस दावे को खारिज कर दिया जब उसने फारवर्ड टेंट पोस्ट को अपने दावे वाले एलएसी से 2.4 किमी भीतर लगाने के लिए सहमत हो गया। और चीन की फारवर्ड पोस्ट को हमारे दावे वाले एलएसी से महज 400 मीटर पर स्थापित करने की इजाजत दे दी। 

इस बीच, गलवान के दक्षिण में स्थित पीपी-15 और हॉट स्प्रिंग इलाके में चीनी सैनिकों के पीछे जाने को लेकर किसी भी तरह की सहमति नहीं बन पायी है, जहां बड़ी संख्या में भारत और चीन के सैनिक एक दूसरे के आमने-सामने तैनात हैं।

पीपी-15 के पास जहां बताया जा रहा है कि चीनियों ने एक सड़क का निर्माण किया है और जो भारतीय दावे वाली सीमा के तीन किमी अंदर तक जाती है, भारत और चीन के तकरीबन 1000-1000 सैनिक एक दूसरे की आंखों में आंखें डालकर खड़े हैं।

इसी तरह से हॉट स्प्रिंग इलाके में चीनियों ने सड़क तो नहीं बनायी है, लेकिन तकरीबन 1500 चीनी सैनिक गोगरा हाइट्स (पीपी-17ए) के पास 2-3 किमी भारतीय इलाके भीतर तक घुस आए हैं। और वहां भी तकरीबन उतने ही भारतीय सैनिक मौजूद हैं।

और न ही पैंगांग त्सो सेक्टर से चीनी सैनिकों के पीछे हटने का कोई संकेत मिला है। यहां भी चीनी सैनिक उस एलएसी को पार कर गए हैं जो पहाड़ियों से होकर गुजरता था और फिंगर 8 के तौर पर जाना जाता था। वो यहां भारतीय दावे वाले इलाके में 8 किमी अंदर यानी फिंगर-4 तक आ गए हैं।

शुक्ल का कहना है कि भारतीय सेना परंपरागत रूप से फिंगर-8 तक पेट्रोलिंग करती रही है। लेकिन अब चीनी सैनिकों द्वारा उसे फिंगर-4 पर ही रोक दिया गया। अब यह स्पष्ट हो गया है कि जब तक भारत फिंगर-2 तक नहीं जाता है चीनी सैनिक फिंगर-8 से पीछे नहीं जाएंगे।

बताया जा रहा है कि भारतीय सेना के योजनाकार खुद को एक ऐसी स्थिति में पा रहे हैं जब 3488 किमी चीन से सटी सीमा में उसके और ज्यादा घुसपैठ की आशंका है। और यह स्थिति पाकिस्तान से सटे एलओसी की तरह साल भर एलएसी की भी निगरानी करने के लिए बाध्य कर देगी।

अजय शुक्ला के मुताबिक इसका नतीजा यह होगा कि सीमा के इंफ्रस्ट्रक्चर पर भारी खर्चे के साथ उसे और ज्यादा सैनिकों की जरूरत पड़ जाएगी। पहले से ही सैनिकों के वेतन और पेंशन पर अपने बजट का तीन चौथाई खर्च करने वाली सेना के लिए यह बहुत भारी पड़ जाएगा।

इसके साथ ही भारतीय सैन्य योजनाकार इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि गर्म एलएसी का मतलब है कि अतिरिक्त प्रतिबद्धता के साथ सैनिकों और साजो-सामान की सीमा पर तैनाती। इसका मतलब है कि पाकिस्तान से सटी सीमा पर भारत की परंपरागत तैयारियों और प्रतिरोधक क्षमता में कमी।  

(स्वतंत्र पत्रकार और जेएनयू से रिसर्च स्कॉलर अभय कुमार का लेख।)

अभय कुमार
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