जेएनयूः गरीब-पिछड़ों को शिक्षा से वंचित करने की संघी साजिश

मंदिर-मस्जिद की सांप्रदायिक राजनीतिक दलदल और महाराष्ट्र की सियासी अनिश्चितताओं के राजनीतिक खड्ड में मीडिया लगातार डुबकी लगा रही है। इन ख़बरों के बीच देश के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में शुमार जेएनयू में सरकार की संवेदनहीन नीतियों और दमनकारी लाठियों से संघर्ष कर रहे देश के युवाओं की सुध मीडिया आख़िर कब लेगी? देश को विश्वगुरु बनाने का दावा करने वाली राष्ट्रवादी सरकार लगातार शिक्षण संस्थाओं को उजाड़ने का कार्य क्यों कर रही है? 

सोमवार को जेएनयू में उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री माननीय पोखरियाल निशंक दीक्षांत समारोह में भाग लेने के लिए जेएनयू कैंपस के अंदर थे और बाहर छात्र-छात्राओं का विरोध प्रदर्शन चल रहा था। पुलिस-प्रशासन द्वारा छात्र-छात्राओं के ऊपर सरकारी दमनात्मक लाठियां भांजी जा रही थीं। देश के कर्णधार युवाओं के ऊपर वाटर कैनन से पानी की बौछार की जा रही थी। प्रदर्शनकारी शिक्षार्थियों को सरकारी आदेशपाल पुलिस द्वारा टांग-टांग कर पुलिसिया वैन में ठूंसा जा रहा था। इतना कुछ होने के वावजूद मीडिया के पूंजीवादी चैनलों के किसी भी जिम्मेदार ऐंकर ने इस सवाल को सरकार से नहीं पूछा कि देश को विश्व गुरु बनाने की यह कौन सी विधि है?

विदित हो कि यूनिवर्सिटी के नए नियमों और फ़ीस में भारी भरकम षड्यन्त्रकारी बदलाव के ख़िलाफ़ विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं लगातार आंदोलन कर रहे हैं और बहरी संवेदना वाले विश्वविद्यालय प्रशासन और शिक्षा विरोधी सरकार के सामने अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। नए नियम और नई फीस नियमावली के अनुसार,

★ पहले जिस डबल सीटर कमरे का किराया 10 रुपये था उसे बढ़ा कर 300 रुपये प्रति माह किया गया। जिस सिंगल सीटर कमरे का किराया 20 रुपये था उसे बढ़ाकर 600 रुपये रखा गया है।

★ वन टाइम मेस सिक्टोरिटी फ़ीस (डिपॉजिट) 5500 रुपये से बढ़ा कर 12000 रुपये कर दिया गया है। यदि यह फीस वृद्धि लागू होती है तो करीब 40 फीसदी छात्रों को विश्वविद्यालय छोड़ना पड़ सकता है।

★ मेस कर्मचारियों और हॉस्टल कर्मचारियों की फीस छात्रों से वसूलने के लिए छात्रों पर सर्विस चार्ज भी लगा दिया गया है।

★ रात 11 बजे या अधिकतम 11.30 बजे के बाद छात्रों को अपने हॉस्टल के भीतर रहना होगा और बाहर नहीं निकल सकेंगे, अगर कोई अपने हॉस्टल के अलावा किसी अन्य हॉस्टल या कैंपस में पाया जाता है तो उसे हॉस्टल से निकाल दिया जाएगा।

★ नए मैनुअल में ये भी लिखा गया है कि लोगों को डाइनिंग हॉल में ‘उचित कपड़े’ पहन कर आना होगा। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने ‘उचित कपड़ों’ की कोई स्पष्ट जानकारी नही दी है। छात्रों का पूछना है कि ‘उचित कपड़े’ की परिभाषा क्या है?

ऐसा माना जाता है कि जेएनयू में कम से कम 40 फ़ीसदी छात्र ग़रीब परिवार से आते हैं। इस भारी-भरकम फीस वृद्धि से इन पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।

देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित जेएनयू के प्रति सरकार के दोयम दर्जे का यह शिक्षा विरोधी रवैया कोई नया नहीं है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से लगातार इस श्रेष्ठ शिक्षण संस्थान पर राजनीतिक षड्यंत्रकारी और फासीवादी दमनकारी हमले होते रहे हैं। विश्वविद्यालय के माहौल को लगातार विषाक्त बनाने की पुरजोर कोशिश की गई है। कभी विश्वविद्यालय के छात्रों को फर्जी देश विरोधी मुकदमों में उलझाया गया, कभी उनके स्वतंत्र परिवेश में टैंक लगाकर उन्हें डराने का उपक्रम किया गया तो कभी कैंपस के कूड़े में सत्ताधारी दल के सियासी धुरंधरों के द्वारा कंडोम खोजने का राष्ट्रवादी खोजी अभियान चलाया गया।

किसी भी विकसित, सभ्य आधुनिक और वैज्ञानिक चेतना वाले समाज में अपने ही शिक्षण संस्थान और अपने ही बच्चों को इस तरह से तबाह और बर्बाद करने का कोई दूसरा उदाहरण नहीं होगा।

अगर ध्यान से इस पूरे वाकिये को देखा जाए तो स्पष्ट है कि शिक्षा के इस संघी मॉडल में फ़र्ज़ी डिजिटल डिग्री वाले व्यक्ति सम्राट और मंत्री बनेंगे और असली डिग्री के लिए मेहनत करने वाले लोग बढ़ती फ़ीस, जातिगत भेदभाव आदि के कारण कैंपसों से बाहर कर दिए जाएंगे। यह अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा के निजीकरण की कवायद और जेएनयू में संघी प्रशासन के घुसपैठ की कोशिश है। 

‘मैं देश को नहीं बिकने दूंगा’ का नारा बुलंद करने वाले पूरे देश को बेच देने पर आमादा हैं। लेकिन ताज्जुब है कि शिक्षा के निजीकरण के लिए इस तरह के घिनौने प्रयास के द्वारा सरकार क्या संदेश देना चाहती है? गरीबों को शिक्षा के लाभ से वंचित करने और आरक्षण व्यवस्था को समाप्त करने के एक वर्ग विशेष के नापाक इरादे को अब देश की जनता देख और समझ रही है। शिक्षा के निजीकरण की कोशिश यक़ीनन देश के लोगों के शिक्षा के मौलिक अधिकार का हनन है। 

शिक्षा, शिक्षार्थी और शिक्षण संस्थान के प्रति सरकार का इतनी तानाशाही और बेशर्म रवैया, आखिर कहां ले जाना चाहती है सरकार इस देश को? क्या दुश्मनी है सरकार की इन युवाओं से? कुल मिलाकर देश को विश्वगुरु बनाने का दावा करने वाली राष्ट्रवादी सरकार का एक ही लक्ष्य है, ‘न पढ़ा है, न पढ़ने देंगे’

(दयानंद स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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