जस्टिस काटजू का आरोप- सीजेआई अपनी बेंच में किसी और जज को बोलने ही नहीं देते!

क्या जिस पीठ में भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) एसए बोबडे होते हैं, वे पीठ में शामिल किसी अन्य न्यायाधीश को बोलने ही नहीं देते? यह सनसनीखेज आरोप उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और प्रेस काउन्सिल ऑफ़ इंडिया के पूर्व चेयरमैन जस्टिस मारकंडेय काटजू ने लगाए हैं। भारत के चीफ जस्टिस एसए बोबडे पर यह सनसनीखेज आरोप लगाकर विधिक और न्यायिक हलकों में उन्होंने तूफान खड़ा कर दिया है।

देश के प्रख्यात कानूनविद् फैजान मुस्तफा के लीगल जागरूकता चैनल जो यूट्यूब पर उपलब्ध है, पर प्रसारित एक साक्षात्कार में जस्टिस काटजू ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को संविधान के अनुसार तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता का निस्तारण करना चाहिए, लेकिन अब इसमें नेतागिरी हो रही है। जस्टिस काटजू ने कहा कि किसानों का केस आया उच्चतम न्यायालय के सामने। अब इसमें नेतागिरी हो रही है। सवाल ये था कि क्या तीन किसान कानून संवैधानिक हैं या नहीं?

बस यही तय करना था उच्चतम न्यायालय को और उन्हें अपने को यहीं तक सीमित रखना था, मगर बोबडे साब कह रहे हैं कि वे अपने हाथ रक्तरंजित करना नहीं चाहते। फिर वो कह रहे हैं कि बूढ़े, बच्चे आए हैं, वो ठंड में सिकुड़ रहे हैं और कोरोना फैल जाएगा। अटॉर्नी जनरल कह रहे हैं कि इंटेलिजेंस रिपोर्ट आई है कि खालिस्तानी आ गए हैं। ये अटॉर्नी जनरल का काम है? खालिस्तानी आए हैं या नहीं आए हैं, वो पुलिस देखेगी। आपका उच्चतम न्यायालय के नाते काम था ये देखना कि तीन कानून संवैधानिक हैं या नहीं।

जस्टिस काटजू ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के एक वरिष्ठ जज से मैंने टेलिफोन पर बात की और कहा कि ये क्या आप लोग नेतागिरी कर रहे हैं। वे काफी सीनियर जज हैं। उन्होंने मुझे बताया, भई, मैंने उन तीन जजों की बेंच (सीजेआई की पीठ) में से एक से बात की और कहा कि ये तुम लोग क्या कर रहे हो? जनता तुम्हें क्रिटिसाइज़ कर रही है। तो वो जज था, जिनसे मेरे दोस्त ने बात की, उसने कहा कि साहब क्या करें, ये बोबडे साब तो हम लोगों को बोलने नहीं देते हैं। कहा कि वही (बोबडे) सब बोलते हैं।

जस्टिस काटजू ने साक्षात्कार के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी को भी एक सलाह दी कि वे मान लें कि उनसे ग़लती हो गई है। एक ऑर्डिनेंस लाकर तत्काल प्रभाव से इन कानूनों को रद्द कर दें और एक किसान आयोग गठित कर दें, जिसमें किसानों के प्रतिनिधि हों, सरकार के प्रतिनिधि हों, कृषि विशेषज्ञ हों। कई महीने तक मंथन चलेगा और फिर जो बात निकले, उस पर कानून बने।

जस्टिस काटजू की फेसबुक पोस्ट के अनुसार उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा है। काटजू ने पीएम मोदी को लिखे पत्र में कहा है कि किसानों द्वारा कोर्ट की कमेटी को नकारने के बाद सरकार को तुरंत ही कृषि कानून रद्द कर देना चाहिए और साथ ही हाई पॉवर किसान कमीशन का गठन करना चाहिए। अगर सरकार ने अभी सावधानी नहीं बरती तो 26 जनवरी को हिंसा के हालात बन सकते हैं। इस पत्र में काटजू ने किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए सरकार को दो सुझाव भी दिए हैं।

जस्टिस काटजू ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में कहा है कि भारत में किसान आंदोलन और इससे जुड़ी समस्याएं सीमा से बाहर जा रही हैं। किसान संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त चार-सदस्यीय समिति में भाग लेने से इंकार कर दिया है और यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक तीनों कानूनों को रद्द नहीं किया जाता, तब तक आंदोलन समाप्त नहीं होगा।

जस्टिस काटजू ने आशंका व्यक्त की है कि  बड़ी संख्या में किसानों ने दिल्ली की सीमा पर शिविर लगाए हैं। वह 26 जनवरी को दिल्ली में प्रवेश करने और अपने ट्रैक्टरों के साथ गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने का दृढ़ संकल्प कर चुके हैं। साफ है कि सरकार द्वारा इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी और इसके परिणामस्वरूप पुलिस और अर्धसैनिक बल गोलीबारी करेंगे, जिसके बाद हिंसा हो सकती है। उन्होंने कहा है कि मुझे आशा है कि आप इस हिंसा से बचना चाहेंगे। मेरे पास इन समस्याओं का हल है।

जस्टिस काटजू ने पीएम मोदी को दो सुझाव दिए हैं। पहले सुझाव में जस्टिस काटजू ने कहा है कि सरकार को तीनों नए कृषि कानूनों को तुरंत निरस्त करने के लिए अध्यादेश जारी करना चाहिए। यदि आप ऐसा करेंगे तो हर व्यक्ति आपकी तारीफ करेगा। यदि कोई पूछेगा कि कानून क्यों बनाया गया था, तो आप कह सकते हैं कि हमने गलती की। हमें अपनी गलती का एहसास हो गया है और अब हम इसे सुधार रहे हैं, क्योंकि गलती तो हरेक व्यक्ति से हो जाती है। ऐसा करने से आलोचना के बजाय आपकी तारीफ होने लगेगी।

दूसरे सुझाव में जस्टिस काटजू ने कहा है कि इसके साथ ही सरकार को एक किसान संगठन, सरकार के प्रतिनिधि और कृषि विशेषज्ञों का एक मजबूत किसान आयोग का गठन करना चाहिए, जो किसानों की समस्याओं के हरेक मुद्दों को अपना कर्तव्य समझकर काम करेंगे। किसानों को उनकी फसलों का पर्याप्त मूल्य नहीं मिलता है। इसके चलते तीन से चार लाख किसान पहले ही आत्महत्या कर चुके हैं। किसान समिति द्वारा कई महीनों तक इस पर चर्चा की जानी चाहिए और फिर सभी की सहमति से एक कानून बनाना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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