सुप्रीम कोर्ट से गाली-गलौच पर उतरे कुणाल कामरा

स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने एक बार फिर कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट का मजाक उड़ाया है। इस बार उन्होंने हवाई जहाज की खिड़की पर अपनी हथेली की दो उंगलियों से विक्ट्री का निशान बनाया है। यह निशान बनाते हुए उन्होंने लिखा है कि इसमें से एक उंगली सीजेआई बोबडे साहब की है। इसके बाद उसी ट्वीट और फेसबुक स्टेटस पर उन्होंने बीच वाली उंगली, जिसे कि आमतौर पर लोगों को गाली देने के लिए दिखाया जाता है, वह वाली उंगली उन्होंने सीजेआई एसए बोबडे को समर्पित की है। इससे पहले उन्होंने एक और ट्वीट किया था, उसे भी विवादित माना जा रहा है। उस ट्वीट और फेसबुक स्टेटस में उन्होंने एक खबर का लिंक शेयर करते हुए लिखा कि तमाम सबूतों और गवाहों को मद्देनजर रखते हुए ये अदालत फिर से पाखंड की सीमा पार करती है।

ट्वीट में उन्होंने केरल के पत्रकार से जुड़ी एक खबर शेयर की है, जिसमें टॉप कोर्ट ने सिद्दीक कप्पन से जुड़ी याचिका की सुनवाई 20 नवंबर तक के लिए टाल दी। वहीं संसदीय कमेटी ने गुरुवार को ट्विटर के अधिकारियों को बुलाया और उनसे पूछा, ट्विटर के लोगों ने अभी तक कुणाल कामरा का वह ट्वीट अपने प्लेटफॉर्म पर बनाए क्यों रखा है, जिसकी बिना पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कुणाल कामरा पर अवमानना का मुकदमा चलाए जाने की इजाजत दी है।

16 नंवबर को कुणाल कामरा ने अपने ट्विटर और फेसबुक पर न्यूज लांड्री वेबसाइट की एक खबर का लिंक अपलोड किया और लिखा कि तमाम सबूतों और गवाहों को मद्देनजर रखते हुए ये अदालत फिर से पाखंड की सीमा पार करती है। कुणाल के इस ट्वीट को गुरुवार शाम तक लगभग साढ़े दस हजार लोग रिट्वीट कर चुके हैं और लगभग चौवन हजार लोग इस ट्वीट को लाइक कर चुके हैं।

यह खबर केरल के पत्रकार कप्पन से जुड़ी है और इसमें बताया गया है कि पत्रकार कप्पन यूपी के हाथरस में कथित रूप से गैंगरेप के बाद जान गंवाने वाली दलित युवती के परिवार से मिलने जा रहे थे, जिन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यूपी सरकार को एक नोटिस जारी किया। चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपत्रा और जस्टिस रामसुब्रमणियन की पीठ ने पत्रकार की जमानत के लिए केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की याचिका 20 नवंबर के लिए सूचीबद्ध की है।

दरअसल कुणाल कामरा के इस ट्वीट को रिपब्लिक मीडिया ग्रुप के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी मामले से जोड़ कर देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने छुट्टी के दिन गोस्वामी मामले की सुनवाई की, जिसमें उन्हें अंतरिम जमानत मिल गई जबकि कप्पन की याचिका पर तुरंत सुनवाई नहीं की गई। इसी पर तंज कसते हुए पूर्व में कामरा ने कहा था कि जिस गति से सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को ऑपरेट करती है, यह समय है कि महात्मा गांधी की फोटो को हरीश साल्वे के फोटो से बदल दिया जाए।

इसके बाद 18 नवंबर को कुणाल कामरा ने एक बेहद आपत्तिजनक ट्वीट किया है। उन्होंने एक तस्वीर ट्विटर और फेसबुक, दोनों हैंडेल्स पर अपलोड की है। इस तस्वीर में कुणाल कामरा तस्वीरों की भाषा में खिल्ली उड़ाते नजर आ रहे हैं। उन्होंने इस तस्वीर के साथ लिखा है, कि इन दोनों उंगलियों में से एक सीजेआई बोबडे के लिए है और मैं आपको कन्फ्यूज नहीं करना चाहता, इसलिए बता दे रहा हूं कि इनमें से एक उंगली सीजेआई बोबडे के लिए है। कुणाल के इस ट्वीट की खासी आलोचना शुरू हो चुकी है।

मेरठ कोर्ट में एडवोकेट सुदेश त्यागी ने बताया कि कुणाल के ट्वीट्स से ज्यूडिशयरी में व्याप्त भ्रष्टाचार और गलत कामों के खिलाफ एक बेहद अच्छी बहस शुरू हुई थी, जिसके कि किसी सिरे पर लगने के आसार भी थे, लेकिन उन्हें नहीं समझ में आ रहा है कि इस तरह के गाली-गलौच के एक्शन से भरे ट्वीट से कुणाल अपनी कौन सी बुद्धिमत्ता साबित करना चाहते हैं या किसी को गाली देने में उनको किस तरह की कॉमेडी नजर आती है। वहीं पटना हाई कोर्ट में वकील सादिक हसनैन का कहना है कि कुणाल को समझना चाहिए कि उन्होंने भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक बेहद गंभीर और जरूरी मुद्दे को उठाया है। इस तरह के ट्वीट करके उन्हें इस बहस को महज एक अश्लील कॉमेडी शो में नहीं बदलना चाहिए, क्योंकि देश की आम अवाम इस मुद्दे पर कामरा के साथ है।

इससे पहले कुणाल कामरा ने एक ट्वीट में कहा था कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ एक फ्लाइट अटेंडेंट हैं जो प्रथम श्रेणी के यात्रियों को शैंपेन ऑफर कर रहे हैं, क्योंकि वो फास्ट ट्रैक्ड हैं। जबकि सामान्य लोगों को यह भी नहीं पता कि वो कभी चढ़ या बैठ भी पाएंगे, सर्व होने की तो बात ही नहीं है। कुणाल कामरा के इन ट्वीट्स को कोर्ट की अवमानना माना गया।

उनके ट्वीट्स के बाद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कथित अपमानजनक ट्वीट करने के लिए उन पर कोर्ट की अवमानना का मामला चलाने की अनुमति दी थी। अपने खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू होने पर कामरा ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा था कि न वकील करूंगा, न माफी मागूंगा और न जुर्माना दूंगा। उन्होंने इसे वक्त की बर्बादी बताया। कामरा ने कहा कि उनके ट्वीट्स को कोर्ट की अवमानना माना गया, जबकि उनकी प्रतिक्रिया सुप्रीम कोर्ट के पक्षपातपूर्ण फैसले के बारे में विचार था जो कोर्ट ने प्राइम टाइम लाउडस्पीकर के लिए दिए थे।

वहीं दूसरी ओर गुरुवार 19 नवंबर को संसदीय समिति ने ट्विटर के अधिकारियों से स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा के ट्वीट को लेकर सवाल पूछे। समिति ने पूछा कि ट्विटर ने कामरा के सुप्रीम कोर्ट पर किए गए आक्रामक ट्वीट को क्यों अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जारी रखा? सूत्रों ने बताया कि बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर की पॉलिसी हेड महिमा कौल से सख्त लहजे में सवाल-जवाब किए हैं।

इस पैनल में मीनाक्षा लेखी के साथ कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा भी शामिल थे। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस नेता ने भी ट्विटर के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। हालांकि कुणाल कामरा ने ये सारे स्टेटस अपने फेसबुक पेज पर भी ठीक उसी वक्त डाले थे, जब उन्होंने इसे ट्विटर पर डाला था, लेकिन बड़े ही हैरतअंगेज तरीके से संसदीय समिति ने इस पूछताछ से फेसबुक को राहत देते हुए उसे बुलाया ही नहीं तो उससे पूछताछ होने का सवाल ही नहीं पैदा होता।

इस मसले पर वरिष्ठ पत्रकार और आईटी मामलों के जानकार संजय कुमार सिंह ने बताया कि सूत्रों की इस खबर के अनुसार, संसदीय समिति ने ट्विटर अधिकारियों से पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कॉमेडियन कुणाल कामरा के ट्वीट क्यों रहने दिए गए। अगर यह खबर सही है तो इसका मतलब यह हुआ कि ट्विटर को यह अधिकार दिया जा रहा है वह तय कर ले कि क्या अवमानना है और क्या नहीं।

कायदे से अभिव्यक्ति की आजादी और अवमानना का मामला अदालतें तय करती रही हैं। अखबारों, टेलीविजन चैनलों आदि के मामले में यह संपादक की जिम्मेदारी होती है और वही जिम्मेदार होता है। इसलिए उसके तय करने का अलग मतलब है। कायदे से एक रिपोर्टर की खबर अगर छप गई तो वह संपादक की हुई और अगर वह गलत है तो संपादक गलत है, जिम्मेदार भी। संजय कुमार सिंह कहते हैं कि ट्विटर या सोशल मीडिया के मामले में व्यक्ति अपना संपादक स्वयं है और सोशल मीडिया का काम ऐसा नहीं है कि वह संपादक रखे।

अखबारों, टेलीविजन चैनल पर आप की राय प्रसारित करने लायक है कि नहीं, यह संपादक तय करता है। उसके विवेक पर निर्भर होता है और संपादक भले किसी विचार को अवमानना या अपमानजनक माने– उसका निर्णय उसके पूर्वग्रह से प्रेरित हो सकता है। पर वहां उसके निर्णय का महत्व है और जरूरत भी। और यही उसका काम है, लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसी बात नहीं है। यही सोशल मीडिया की लोकप्रियता का कारण है, क्योंकि यहां विचारों की विविधता है। आजादी है, इसीलिए सोशल मीडिया पर व्यक्ति की राय उसकी अपनी मानी जाती है संपादक की नहीं।

इसके आगे संजय कुमार सिंह ने कहा कि अगर ट्विटर से यह अपेक्षा है कि अवमानना वाली पोस्ट उसे स्वयं हटा लेना चाहिए तो अवमानना का मामला ट्विटर के खिलाफ बनना चाहिए– और ऐसा हुआ तो कुणाल कामरा ने अपनी पोस्ट का जो मकसद बताया है वह अदालती फैसले के बिना धाराशायी हो जाएगा। अगर ऐसा ही है और यह सही है तो जेएनयू के जिस तथाकथित राष्ट्रविरोधी हरकत के लिए कन्हैया और दूसरे लोगों को जिम्मेदार ठहराया गया है और मुकदमा लंबित है, उसके लिए जिम्मेदार वह वीडियो टीवी पर दिखाने वाला भी हुआ। आखिर एक बंद परिसर या सीमित क्षेत्र में कुछ गोपनीय हो तो उससे अवमानना कैसे हो सकती है और अवमानना तब होती है जब वह सार्वजनिक हो जाता है। मुझे लगता है कि यह गंभीर मसला है और जिम्मेदारी इधर-उधर थोपने से बात नहीं बनेगी। इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए।

  • राहुल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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