जमानत के आदेश को पहुंचाने में देरी एक बहुत बड़ी समस्या: जस्टिस चंद्रचूड़

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने जेल अधिकारियों तक जमानत के आदेश के पहुंचने में देरी को एक गंभीर कमी बताया है और इसके लिए युद्ध स्तर पर समाधान किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। उनका कहना है कि इस समस्या से हर विचाराधीन कैदी की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन समारोह में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में सबसे गंभीर खामी जमानत आदेश के संप्रेषण में देरी की है। इससे हर विचाराधीन कैदी की आजादी पर फर्क पड़ता है, जिसकी सजा सस्पेंड की गई है।

ज‌स्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट और जिला कोर्ट स्थित ई-सेवा केंद्र और वर्चुअल कोर्ट के उद्घाटन के मौके पर कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली की बहुत ही बड़ी कमी जमानत आदेशों के संप्रेषण में होने वाली देरी है। इसे हमें युद्ध स्तर पर संबोधित करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह प्रत्येक विचाराधीन कैदी की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है या ऐसे दोषी को भी प्रभावित करता है, जिसकी सजा को सीआरपीसी की धारा 389 के तहत निलंबित किया गया है।

उन्होंने कहा कि उड़ीसा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने ई-कस्टडी प्रमाण पत्र की पहल की है, ताकि प्रत्येक विचाराधीन और सजायाफ्ता दोषी के पास ई-कस्टडी प्रमाण पत्र हो। वह प्रमाणपत्र हमें उस विचाराधीन या दोषी के संबंध में सभी जरूरी डेटा देगा, शुरुआती रिमांड से मामले की बाद की प्रगति तक। इससे हमें यह सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी कि जमानत के आदेश जैसे ही दिए जाते हैं, वैसे ही उन्हें जेलों को तत्काल कार्यान्वयन के लिए सूचित कर दिया जाए।

दरअसल ये मुद्दा इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को बंबई उच्च न्यायालय द्वारा जमानत मिलने के बाद भी एक दिन अतिरिक्त आर्थर रोड जेल में बिताना पड़ा था। इससे औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी जेल से बंद कैद‌ियों की रिहाई में देरी का मुद्दा सामने ला दिया है। इस मामले में मुंबई सेंट्रल जेल में समय को लेकर बने कुछ नियमों के कारण खान की रिहाई में देरी हुई थी।

ज‌स्टिस चंद्रचूड़ ने ई-सेवा केंद्रों के महत्व पर कहा कि ई-सेवा केंद्र की क्या आवश्यकता है? परंपरागत रूप से, जैसा कि हम सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को समझते हैं, हमें आईसीटी के लिए भौतिक केंद्र या स्थान की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप जहां भी हों आईसीटी तक पहुंच सकते हैं। हमें ई-सेवा केंद्र भारत में की आवश्यकता डिजिटल डिवाइड के कारण है। आबादी के एक बड़े हिस्से की कंप्यूटर तक पहुंच नहीं है, हालांकि अब स्मार्टफोन की संख्या हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में भी बढ़ रही है।

उन्होंने कहा कि हालांकि डिजिटल ‌डिवाइड बहुत बड़ी है। हम इस तथ्य से वाकिफ हैं कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के साथ भारतीय न्यायपालिका के जुड़ाव को बढ़ाने का मिशन तब तक सफल नहीं होगा जब तक कि सबसे महत्वपूर्ण हितधारक, यानी नागरिक, वकीलों, और जजों की आईसीटी तक पहुंच नहीं होगी। इसलिए हमने महसूस किया कि नागरिकों को अदालत के पीछे दौड़ने या अदालत तक पहुंचने के बजाय अदालत को नागरिकों और वकीलों के पास आना चाहिए। ई-सेवा केंद्र का महत्व इसलिए एक छत के नीचे सभी सेवाएं प्रदान करना है, जिसे हम ई-कोर्ट परियोजना के तहत प्रदान करते हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने बताया कि वर्चुअल कोर्ट भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ट्रैफिक चालानों के निर्णयों के लिए देश भर में वर्चुअल कोर्ट स्थापित किए गए हैं। देश भर में 99.43 लाख मामलों को निस्तारित किया जा चुका है। जुर्माना लगाया गया है। 18.35 लाख मामलों में 119 करोड़ रुपये से अधिक जुर्माना वूसला गया है। उन्होंने कहा कि आप कल्पना कर सकते हैं कि एक आम नागरिक के लिए एक दिन के लिए अपने कामकाज से दूर रहना और ट्रैफिक चालान का भुगतान करने के लिए अदालत जाना फायदेमंद नहीं है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर वर्चुअल अदालतों और एक राष्ट्रीयकृत बैंक, जहां चालान का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक रूप से किया जा सकता है, के साथ सामंजस्य स्थापित किया जाए तो नागरिकों के लिए जीत की स्थिति होगी। यह अदालतों के लिए अत्यंत उत्पादक होगा। उदाहरण के लिए, दिल्ली में 2 दर्जन जजों को ट्रैफिक चालान मामलों का निस्तारण करना पड़ता है, उन्हें अन्य मामलों के लिए मुक्त किया जा सकता है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लंबित आपराधिक मामलों को समाप्त करने में प्रौद्योगिकी की मदद ली जा सकती है। उन्होंने कहा कि जिला न्यायपालिकाओं में 2 करोड़ 95 लाख आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से 77.5फीसद मामले एक वर्ष से अधिक पुराने हैं। कई आपराधिक मामले इसलिए लंबित हैं क्योंकि आरोपी वर्षों से फरार हैं। जज के रूप में हम ये जानते हैं कि आपराधिक मामलों के निस्तारण में व‌िलंब का प्रमुख कारण आरोप‌ियों का फरार होना है, विशेषकर जमानत के बाद, और दूसरा कारण सबूत दर्ज करने के चरण में आधिकारिक गवाहों की अनुपस्थिति। यहां भी सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति में फ‌िलहाल हम यही काम कर रहे हैं।

इससे पहले, चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुआई वाली पीठ ने भी कोर्ट के आदेशों के क्रियान्वयन में देरी के मामलों पर नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि जमानत के आदेशों के सही समय पर पहुंचने के लिए एक सुरक्षित और विश्वसनीय माध्यम की स्थापना की जाएगी। पीठ ने कहा था कि हम डिजिटल युग में भी आदेश पहुंचाने के लिए आसमान में उड़ते कबूतरों की ओर देख रहे हैं।

इस मामले के सामने आने के बाद उच्चतम न्यायालय ने देशभर में उसके आदेशों को तेजी से प्रेषित करने के लिए ‘फास्ट एंड सिक्योर ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डस’(फास्टर) परियोजना को लागू करने का आदेश दिया था, जिसमें ये कहा गया था कि सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों की हर जेल में इंटरनेट सुविधा सुनिश्चित की जाए।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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