चिली के राजनीतिक आकाश पर वाम का सूरज

19 दिसंबर, 2021 को संपन्न लैटिन अमेरिकी देश चिली के चुनाव परिणाम में वामपंथी मोर्चे के उम्मीदवार गैब्रियल बोरिस की अपने धुर दक्षिणपंथी प्रतिद्वंदी जोस एंतोनियो कास्त पर स्पष्ट जीत ने, 1970 में वहां के निर्वाचित समाजवादी राष्ट्रपति अलेंदे के 11सितंबर 1973 के अंतिम भाषण की याद दिला दी। अलेंदे का बलिदान चिली में जनतंत्र के लिए था। बोरिस की जीत को चिली में जनतंत्र की जीत के रूप में देखा जा रहा है।

बोरिस ने अपने चुनावी विजय के इजहार का संबोधन अलेंदे की याद से शुरू किया। इतिहास खुद को दुहराता नहीं प्रतिध्वनित होता है, 2021 की वाम गठबंधन के गैब्रियल बोरिस की जीत में 1970 में समाजवादी अलेंदे की जीत की सुखद प्रतिध्वनि सुनाई दे रही है। नव निर्वाचित राष्ट्रपति, 35 वर्षीय बोरिस ने कम्युनिस्ट पार्टी, क्रश्चियन वामपंथी समूह और क्षेत्रीय संगठनों के गठबंधन, नए वाम के नुमाइंदे की हैसियत से शिक्षा के समान सार्वभौमिक अधिकार और सुलभता की मांगों को लेकर 2011-13 छात्र आंदोलनों में सक्रियता से राष्ट्रीय राजनैतिक परिदृश्य में स्थान बनाया। 1990 में सैनिक तानाशाही के खात्मे के बाद प्रायः मध्यमार्गी गठबंधन की सरकारें रहीं।

बोरिस मार्च में कार्यभार संभालेंगे। मौजूदा राष्ट्रपति सेबस्तियन पन्येरा ने टेलीविजन संदेश  में 3 महीने के संक्रमणकाल में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति से सहयोग का वायदा किया है। यह चुनाव वाम-दक्षिण के बीच ध्रुवीकृत था।  चुनाव के दौरान मतदाताओं के बीच व्यापक वाम मोर्चे के बोरिस को 1973 में अमेरिकी साजिश की सैनिक तख्तापलट में अपदस्थ समाजवादी राष्ट्रपति अलेंदे की तथा प्रतिक्रियावादी रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार, नाजी झुकाव के जर्मन अधिकारी के पुत्र, जोस एंतोनियो कास्त को तख्ता पलट के बाद सत्तारूढ़, अमेरिकी कठपुतली सैनिक तानाशाह पिनोचे के राजनैतिक परंपरा के वारिश के रूप में पहचान मिली।

1970 में चिली के राष्ट्रपति के रूप में समाजवादी सल्वाडोर अलेंदे के चुनाव ने अमेरिकी नेतृत्व वाले साम्राज्यवादी खेमें में हड़कंप मचा दी थी। उस समय तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने चिली में समाजवाद को नाकाम करने के लिए उसकी अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की घोषणा कर दी थी। चिली की अर्थव्यवस्था बर्बाद करने की साजिश के तहत जनरल पिनोचे को मुहरा बनाकर 1973 में सैनिक तख्तापलट करवा दी।

अलेंदे को अपदस्थ कर पिनोचे सैनिक तानाशाह बन गया तथा चिली को अगले 17 साल तक सैनिक तानाशाही के तहत साम्राज्यवादी, कॉरपोरेटी लूट का कहर झेलता रहा। पेंशन समेत सारे सार्वजनिक उपक्रम और सेवाओं का निजीकरण कर बाजार के हवाले कर दिया गया। यहां अलेंदे की सरकार के तख्तापलट; सैनिक तानाशाही और उसके तहत कॉरपोरेटी लूट के विस्तार में जाने की गुंजाइश नहीं है, वह अलग विमर्श का विषय है। चिली में जनतंत्र की रक्षा में अलेंदे ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

 मजदूरों और युवाओं के नाम 11 सितंबर 1973 के अपने संबोधन में उन्होंने कहा था कि वे इस्तीफा नहीं देंगे, बल्कि लोगों के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जान दे देंगे। मजदूरों और युवाओं ने “लाखों चिलीवासियों की अंतरात्मा में जो विश्वास पैदा किया है, वह हमेशा के लिए नहीं खत्म किया जा सकता”। साम्राज्यवादी मंसूबों को नाकाम करने के लिए युवाओं का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा था कि वह दिन जरूर आएगा जब आजादी पसंद लोग बेहतर समाज बनाएंगे। वहां की जनता और  मजदूरों का जिंदाबाद करते हुए, उन्होंने कहा था कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। और उनकी शहादत अंततः रंग ले ही आई, भले ही 48 साल बाद। भविष्य बताएगा कि व्यापक वाममोर्चे के नेता नव निर्वाचित राष्ट्रपति बोरिस शिक्षा में जनपक्षीय सुधार, पर्यावरण की सुरक्षा, लैंगिक समानता समेत मानवाधिकारों एवं पर्यावरण की सुरक्षा, भीषण असमानता के उन्मूलन एवं समाज तथा अर्थव्यवस्था पर बाजार की जकड़ खत्म करने के चुनावी वायदे पूरा करने में कितने कामयाब होते हैं।

फिलहाल लोग चुनाव परिणाम  को एक नई आजादी के उत्सव के रूप में मना रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान तानाशाह पिनोचे की विरासत में मिली कॉरपोरेटी लूट, उपभोक्ता सामग्री और सेवाओं के बढ़ते दाम गरीबी, बेरोजगारी, असमानता, शिक्षा, मानवाधिकार, लैंगिक समानता तथा पर्यावरण और सुरक्षा को चिली की प्रमुख समस्याओं के रूप में चिन्हित किया तथा उनसे निपटने के लिए समावेशी सरकार के गठन का वायदा किया है। चुनाव के बाद उन्होंने कहा है कि उनकी सरकार सबकी सरकार होगी।

शिक्षा के जनवादीकरण और असमानता के मुद्दे पर 1911-13 के राष्ट्रव्यापी छात्र आंदोलन, चिली विश्वविद्यालय स्टूडेंट फेडरेशन के परचम के तले चला था। इसके दो प्रमुख नेताओं में कैनिला वलेजो कम्युनिस्ट पार्टी में गयीं और गैब्रियल बोरिस नये वाम समूह सामाजिक संगम (सोसल कन्वर्जेंस) में शरीक हुए। 2014 में बोरिस चिली की संसद के निचले सदन में निर्वाचित हुए। इन समूहों ने सामाजिक अधिकारों और बाजारीकरण से मुक्त आर्थिक सुधारों के जरिए अंततः समाजवाद की स्थापना के उद्देश्य से व्यापक मोर्चा (ब्रॉड फ्रंट) का गठन किया।

मोर्चे ने कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन कर संघर्ष का और भी व्यापक मंच, प्रतिष्ठा की सहमति (अप्रूव डिग्निटी) का गठन किया।

यह गठबंधन स्त्री, अधिकार, लैगिक स्वतंत्रता का अधिकार, मानवाधिकार समेत सामाजिक अधिकारों के मुद्दों पर निरंतर अभियान चलाता रहा। गठबंधन में आम सहमति बनी कि सामाजिक अधिकारों का बुनियादी सवाल बढ़ती असमानता का है। पिनोचे के आश्रय में शिकागो  ब्वायज नामक अमेरिकापरस्त अर्थशास्त्रियों का एक समूह था जिसका काम सभी आर्थिक प्रतिष्ठानों के निजीकरण की सैद्धांतिक भूमि तैयार करना था।

पेंशन समेत सभी आर्थिक प्रतिष्ठानों का निजीकरण हो गया था और तबसे देशी और साम्राज्यवादी पूंजीपति जनता पर कहर ढाते रहे हैं। बोरिस के गठबंधन ने पेंशन में सुधार, बड़े धनिकों पर करों में बढ़ोत्तरी और तांबे के उत्खनन तथा निर्यात करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों से रॉयल्टी की वसूली में बढ़ोत्तरी का चुनावी वायदा किया है।

इतिहास की इस प्रतिध्वनि में चिली में लंबे समय से चल रहे मजदूरों और छात्रों के आंदोलनों की निरंतरता की प्रमुख भूमिका है। खुले अमेरिकी समर्थन तथा बर्बर दमन के बावजूद पिनोचे की तानाशाही कभी निर्विरोध नहीं रही। पिनोचे मानवता के विरुद्ध अपराध के आरोप में अपने अंतिम दिनों में नजरबंद था तथा सार्वजनिक कोष में गबन का उस पर मुकदमा चला जो लैटिन अमेरिका के इस छोटे से देश के लिए अभूतपूर्व था।

2006 में उसकी मौत के बाद लोगों के आक्रोश से बचाने के लिए उसका अंतिम संस्कार कड़ी फौजी सुरक्षा में हुआ। व्यापक विरोध प्रदर्शन की संभावनाओं के चलते उसकी लाश को चुपके से समुद्र के किनारे एक वीरान जगह दफनाया गया था। राष्ट्रपति भवन परिसर में सल्वाडोर अलेंदे की प्रतिमा के पास लोगों ने नाच-गाकर तानाशाह की मौत का जश्न मनाया था। उसकी मौत के 2 साल पहले से ही पूरे देश में विप्लवी मजदूर आंदोलनों ने उथलपुथल मचा रखा था। चिली के उत्तरी हिस्से के रेगिस्तान में स्थित दुनिया की तांबे की सबसे बड़ी खान के मजदूरों के 2006 की लंबी हड़ताल ने भूमंडलीय पूंजी के पैरोकारों के खेमें में हड़कंप मचा दिया था।

यहां के बहुराष्ट्रीय मालिकान करोड़ों डॉलर जमीन के किराए के रूप में लंदन भेजते हैं। चिली की 70% तांबे की खादानें अब भी राज्य नियंत्रित कंपनी कोडेल्को के अधिकार क्षेत्र में हैं, जो कि अलेंदे की विरासत है। अलेंदे ने हर चीज की सभी खदानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था, लेकिन पिनोचे ने कानूनों में हेर-फेर के जरिए उन्हें लंबे समय की लीजों पर निजी हाथों में सौंप दिया था। नवउदारवादी नीतियों के तहत खदानों से इफरात मुनाफा कमाने वाली बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियां एक भी पैसे की रॉयल्टी राज्य को नहीं देतीं।

बोरिस ने चुनाव में हालात बदलने और इन कंपनियों से मुनाफे के मुताबिक रॉयल्टी वसूलने का वायदा किया है। खदानों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मुनाफाखोरी और टैक्सचोरी के विस्तार में जाने की यहां गुंजाइश नहीं है। 2006 में तांबे की खदानों के दोहन से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मुनाफा चिली के बजट के 75% के बराबर था। 2006 की हड़ताल में एसकोंडिडा की खान मजदूरों की यूनियनों ने सभी खदानों के राष्ट्रीयकरण की मांग की थी। 2007 में दक्षिण चिली के वन उद्योग के मजदूरों ने ठेकेदारों से मोलभाव में वही रणनीति अपनाई।

तभी से 2019 तक विभिन्न क्षेत्रों के मजदूरों की हड़तालों से शासकों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आकाओं की नींदे हराम होती रहीं।

स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्रों के आंदोलन भी 2006 से ही जोर पकड़ने लगे थे तथा उनके समर्थन में अभिभावक और शिक्षक भी थे। 2011-13 के  छात्र आंदोलन उस प्रक्रिया की तार्किक परिणति थे। ऊपर बताया जा चुका है कि नवनिर्वाचित राष्ठ्रपति गैब्रिएल बोरिस की इसी आंदोलन से राष्ट्रीय राजनैतिक परिदृश्य में पहचान बनी। 2018 से नये संविधान की मांग लेकर लोग आंदोलित होने लगे तथा विभिन्न राजनैतिक दलों में इस पर जनमत संग्रह की सहमति बनी। अक्टूबर 2020 में हुए जनमत संग्रह में बहुमत ने नए संविधान सभा के चुनाव के पक्ष में उल्लेखनीय मतदान किया।

155 सदस्यीय संविधान सभा (संसद) में 17 सीटें चिन्हित मूलनिवासियों के लिए आरक्षित हैं। आम चुनाव से भरी जाने वाली बाकी 138 सीटों पर स्त्री-पुरुषों के प्रतिनिधित्व समान होंगे, जो एक अभूतपूर्व प्रावधान है। संविधान सभा की पहली बैठक 4 जुलाई 2021 को हुई जिसमें मौजूदा राष्ट्रपति सेबास्टियन पन्येरा ने कहा कि संविधान सभा को अगले 9 महीनों में चिली का नया संविधान तैयार कर लेना चाहिए, जिस अवधि को 3 महीने के लिए और बढ़ाया जा सकता है। मार्च, 2022 में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गैब्रियल बोरिस कार्यभार संभालेंगे और लगता है नया संविधान उन्हीं के कार्यकाल में पारित होगा।

यदि चुनावी वायदों पर अमल किया तो नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गैब्रिएल बोरिस की सरकार, नव उदारवादी आर्थिक प्रणाली को समाप्त कर नई जनपक्षीय आर्थिक प्रणाली अपनाएगी। वामपंथी गठबंधन की यह सरकार यदि अलेंदे की विरासत को वाकई आगे बढ़ाना चाहेगी तो प्रमुख आर्थिक प्रतिष्ठानों का राष्ट्रीयकरण इसके एजेंडे पर प्रमुखता सें होगा। चुनावी वायदा धनाढ्यों पर करों में बढ़ोत्तरी और असमानता उन्मूलन के उपायों को लागू करने का है। बाजारीकरण का विरोध; शिक्षा में सुधार और लैंगिक समानता एवं स्वतंत्रता के अधिकारों समेत मानवाधिकारों की रक्षा एवं पर्यावरण की सुरक्षा के उपाय भी सरकार के एजेंडे पर होना चाहिए।

यदि ऐसा होता है तो यह चिली में वाकई जनतंत्र की जीत होगी तथा इसका असर पड़ोस के लैटिन अमेरिकी देशों – कोलंबिया, ग्वाटेमाला, बेनेजुएला, बोलीविया और ब्राजील के आगामी चुनावों पर होना अवश्यंभावी है। उम्मीद है चिली में इतिहास की यह प्रतिध्वनि पूरे लैटिन अमेरिका में गूंजेगी जो दुनियां में जनपक्षीय परिवर्तन की नई लहर की प्रेरणा बनेगी। 

(दिल्ली विश्वविद्यालय के रिटायर्ड अध्यापक ईश मिश्रा का यह आलेख समयांतर से साभार लिया गया है।)

ईश मिश्रा
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