गुजरात दंगों की तरह दिल्ली दंगों में अलग-अलग धर्मों के आरोपियों के मामलों को अलग-अलग करने का आदेश

दिल्ली की एक अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में गोधरा सांप्रदायिक दंगों के मुकदमे का हवाला देते हुए हिंदू और मुस्लिम धर्मों के आरोपियों के मुकदमों को अलग करने का आदेश दिया है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव एक प्राथमिकी पर विचार कर रहे थे, जिसमें तीन हिंदुओं और दो मुसलमानों सहित पांच आरोपियों पर सलमान नामक एक व्यक्ति की हत्या और दंगे के आरोप में मुकदमा चलाया जा रहा है।

गुजरात के गोधरा दंगों से जुड़े मामलों को नजीर मानते हुए दिल्ली की अदालत ने फैसला सुनाया। उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे के दौरान 24 वर्षीय एक युवक की हत्या के आरोपियों की सुनवाई उनकी धार्मिक आस्था के आधार पर अलग-अलग करने का आदेश किया। अदालत ने कहा कि विचाराधीन कैदियों का एक वर्गीकरण है और एक साथ सुनवाई से उनके बचाव पर पूर्वाग्रह का असर पड़ सकता है क्योंकि वे हिंदू और मुस्लिम धर्म से संबंध रखते हैं।

दरअसल 24 फरवरी 2020 को दिल्ली के शिवविहार में दंगाई भीड़ ने सलमान नाम के शख्स की हत्या कर दी थी। इस मामले में दर्ज प्राथमिकी में तीन हिंदुओं और दो मुस्लिमों के नाम हैं। उनके ऊपर दंगे फैलाने और आगजनी करने का भी आरोप है।

अदालत में अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई थी कि क्या अलग-अलग धर्मों के व्यक्तियों की एक साथ सुनवाई हो सकती है, जिन पर दो अलग साजिश में शामिल होने और गैरकानूनी तरीके के जमा होने के आरोप हैं। इस पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कहा कि आरोपियों का बचाव निश्चित तौर पर पूर्वाग्रह से प्रभावित होगा क्योंकि वे अलग-अलग धर्मों से जुड़े हैं। गोधरा दंगे के मामलों की हुई सुनवाई की नजीर देते हुए न्यायाधीश ने कहा कि वह आरोपियों की अलग-अलग सुनवाई को उचित मानते हैं ताकि उनका बचाव किसी पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं हो।

मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश ने दिल्ली पुलिस आयुक्त (अपराध) शाखा जॉय एन तिर्की को निर्देश दिया कि वह दो सप्ताह के भीतर आरोप पत्र को बदलाव के साथ पूर्ण रूप से मुद्रित अवस्था में पेश करें।

जज ने कहा कि इसी तरह की स्थिति गुजरात की अदालत के समक्ष गोधरा सांप्रदायिक दंगे मामलों की सुनवाई के दौरान उत्पन्न हुई थी…जहां पर उच्च न्यायालय ने दो अलग-अलग समुदायों के आरोपियों के मामलों को अलग-अलग सुनवाई की अनुमति दी थी।’

कोर्ट ने कहा कि इसलिए अदालत के अहलमद (अदालत क्लर्क) को निर्देश दिया जाता है कि वह प्राथमिकी में अलग-अलग सत्र मामला क्रमांक डाले और मौजूदा आरोप पत्र को तीन आरोपियों कुलदीप, दीपक ठाकुर और दीपक यादव से जुड़े मामले के तौर पर अलग समझा जाए जबकि अन्य आरोप पत्र मोहम्मद फरकान और मोहम्मद इरशाद के मामले से जुड़ा समझा जाए।

मामले की सुनवाई अलग-अलग करने का फैसला अदालत द्वारा आरोप तय करने के बाद आया। अदालत ने कहा कि पांचों आरोपियों को संबंधित धाराओं में अभिरोपित करने के लिए पर्याप्त सामग्री है।

अदालत ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा- 147 (दंगा), 148 (सशस्त्र और प्राणघातक हथियार से दंगा), 149 (समान मंशा से अपराध करने के लिए गैर कानूनी समागम का हिस्सा), 153ए (धार्मिक आधार पर हमला या अपमान), 302 (हत्या), 436 (आग या विस्फोटक सामग्री से उपद्रव), 505 (भड़काना), 120 बी (साजिश), 34 (समान मंशा) के तहत आरोप तय किया है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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