साप्ताहिकी: ऐतिहासिक संदर्भों में लिंचिंग

४५८.क्व नूनं कद्वो अर्थं गन्ता दिवो न पृथिव्याः ।

क्व वो गावो न रण्यन्ति ॥२॥

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त ३८

हे मरुतो आप कहां हैं? किस उद्देश्य से आप द्युलोक मे गमन करते हैं ? पृथ्वी में क्यों नही घूमते? आपकी गौएं, आपके लिए नहीं रंभाती क्या ?

कुछेक वर्ष पूर्व जब भारत में, विशेष रूप से गुजरात के ऊना क्षेत्र में, गौकशी के शक में ‘लिंचिंग ‘ की वारदात बहुत बढ़ गई तो कुछ नये सवाल उठे। इनमें से एक तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक वक्तव्य के बाद उठा। प्रश्न था कि लिंचिंग को भारतीय भाषाओं में क्या कहा जाये? मोदी जी ने अपने वक्तव्य में लिंचिंग अथवा उसके पर्याय या समानार्थी किसी का उपयोग नहीं किया था। उन्होंने संकेत में इसकी चर्चा की थी। उनके मूल वक्तव्य में इंगित किया गया था कि लिंचिंग नहीं की जानी चाहिए, और यह एक अपराध है।

बाद में 26 जून 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण पर बहस के राज्य सभा में दिए जवाब में लिंचिंग शब्द का ही इस्तेमाल कर कहा कि ‘झारखंड को मॉब लिंचिंग का अड्डा बताया गया। युवक की हत्या का दुख मुझे भी है और सबको होना चाहिए। दोषियों को सजा होनी चाहिए। हिंसा जहां भी हो चाहे झारखंड, पश्चिम बंगाल या केरल का सख्ती से निपटा जाना चाहिए।

मोदी जी के प्रथम वक्तव्य के कुछ समय बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान आया कि लिंचिंग ‘फॉरेन  कंस्ट्रक्ट ‘ (विदेशी निर्मति) है। उनका शायद यह आशय रहा होगा कि भारत के संदर्भ में लिंचिंग का कोई स्थान नहीं है और इसलिये भारतीय वांग्मय में लिंचिंग शब्द ही नहीं है।

सवाल उठे कि पहले की बात छोड़ भी दें, तो फिर अब जब सरकार और न्यायालय भी मान चुकी हैं कि भारत में लिंचिंग के अपराध सामने आने लगे हैं तो उसे भारतीय भाषाओं में एक शब्द में क्या कहा जाए? 

लिंचिंग शब्द की उत्पत्ति सन 1780 में अमेरिका के वर्जीनिया में कैप्टन विलियम लिंच की अध्यक्षता में गठित न्यायिक पंचाट से मानी जाती है। लेकिन उस पंचाट का पूरा ब्योरा तत्काल उपलब्ध नहीं है।

लिंचिंग के ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में वर्णित अर्थ के अनुसार यह एक क्रिया है जिसमें उन्मादी भीड़, किसी व्यक्ति की पीट-पीट कर जान ले लेती है। इस वर्णित अर्थ में लिंचिंग और गौकशी के भारतीय सन्दर्भों में अंतर सम्बन्ध पूरी तरह स्पष्ट नहीं होते। सवाल यह भी उठना स्वाभाविक है कि गौकशी और गौहत्या में क्या अंतर है। क्या उन्हें एक दूसरे के पर्याय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है?

इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के बाद बाज़ार के हितों को बढ़ाने के लिए मुख्यतः उत्तर भारत के सैन्य मार्गों के आस-पास के कुछ क्षेत्रों में खड़ी बोली से विकसित की गई हिंदी और उसके बहुत पहले अमीर खुसरो के समय से ही प्रचलित हिंदवी में भी लिंचिंग के लिए कोई शब्द नहीं है। तो क्या संस्कृत भी इतनी दरिद्र है कि उसमें इसकी अभिव्यक्ति के लिए कोई शब्द नहीं गढ़ा जा सका है? अगर संस्कृत की भाषा गत दरिद्रता नहीं है तो क्या उसके ग्रंथों को टटोल कर कोई कार्यशील एक शब्द चिन्हित किया जा सकता है? मेरी नज़र संयोग से ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल ऋग्वेद संहिता प्रथम मंडल सूक्त 38 पर पड़ी। फिर प्रश्न कौंधा कि इसमें जो वर्णित है वो क्यों वर्णित है?

इंटरनेट पर संस्कृत और हिंदी के बढ़ते उपयोग के बावजूद मुझे कहीं भी लिंचिंग के लिये कोई सटीक एक शब्द नहीं दिखा। मैंने ऊना में लिंचिंग की बढ़ती वारदात के समय मिली एक फोटो का कैप्शन देने की कोशिश की। वह फोटो मरी हुई गायों से भरे एक क्षेत्र के बगल के रास्ते में अपनी नाक को रुमाल से ढक कर जा रहे एक श्वेत वस्त्रधारी विद्वान् का है।

मैंने इस सूक्त का संस्कृत में उसके हिंदी में भावानुवाद के साथ इस्तेमाल यही सोच कर किया कि हम लोग अपनी भाषाओं को समकालीन अर्थनीतिक, सामाजिक, राजनीतिक और विधिक आवश्यकताओं के अनुरूप समृद्ध नहीं करते हैं, तो बहुत ग़लत करते हैं। हम लिंचिंग को संस्कृत में लॉन्चिंग ही नहीं कह सकते ? अगर नहीं तो क्यों? सोचिये कहीं यह संस्कृत की भाषा गत दरिद्रता नहीं हमारी वैचारिक दरिद्रता तो नहीं है?

(चंद्रप्रकाश झा वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

चंद्र प्रकाश झा
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