मार्क्सवादी चिंतक, मशहूर मजदूर नेता, झारखंड आंदोलन के अगुआ और धनबाद के पूर्व सांसद कॉमरेड एके राय का निधन

मार्क्सवादी चिंतक और धनबाद के पूर्व सांसद कॉमरेड एके राय का आज निधन हो गया। उनका इलाज धनबाद के केंद्रीय अस्पताल में चल रहा था। वह 86 साल के थे। वह खुद से सांस नहीं ले पा रहे थे और पिछले कुछ वर्षों से बोलने की स्थिति में भी नहीं थे। लेकिन नियमित अखबार पड़ते थे, समाचारों को अंडरलाइन कर उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी इशारों से देते थे, वह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठते थे। मौन भाव से सब कुछ सुनते रहते थे। उनके चेहरे पर जो एक सात्विक मुस्कान हमेशा रहती थी, वह मुस्कान अब उनके होठों पर नहीं रह गई थी। पिछली 16 जुलाई को उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था। उनके चाहने वाले दुआ कर रहे थे कि वह जल्द स्वस्थ हो जाएं।

 कॉमरेड राय पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक हाशिये के शिकार हो गये थे। उनका बिगड़ता स्वास्थ्य और झारखंड की बदलती राजनीति की वजह से वह काफी दुखी थे। वे धनबाद लोकसभा सीट से तीन बार सांसद और सिंदरी विधानसभा से दो बार विधायक रहे।  बावजूद इसके उन्होंने दोनों जगहों का पेंशन नहीं लिया। उनका तर्क था कि हारने के बाद जनता ने उन्हें नकार दिया है और जब जनता ने उन्हें नकार दिया है तब जनता के पैसे पर उनका कोई नैतिक अधिकार नहीं बनता है, इसलिए जनता का पैसा नहीं लिया जा सकता है।

शिबू सोरेन के साथ।

 
झारखंड में आज स्थापित झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन में शिबू सोरेन और स्व. विनोद बिहारी महतो के साथ कामरेड राय की महत्वपूर्ण भूमिका थी। 4 फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्फ मैदान में ‘लाल-हरे की मैत्री’ के रूप में झामुमो के गठन की ऐतिहासिक घोषणा हुई थी। इसमें लाल रंग कॉमरेड राय लेकर आए थे। 
इमरजेंसी में एके राय, शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो, तीनों जेल में बंद हुए। शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो तो जल्दी ही जेल से निकल आये थे, लेकिन कॉमरेड राय पूरी इमरजेंसी जेल में रहे और जेल में रह कर ही इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के संसदीय चुनाव में धनबाद से जीत कर पहली बार सांसद बने थे।

कॉमरेड राय 60 के दशक से झारखंड की राजनीति में सक्रिय रहे। एके राय सिंदरी करखाना में एक इंजीनियर थे, लेकिन मजदूरों की दशा देख वह नौकरी छोड़ पूर्णकालिक राजनीतिक कार्यकर्ता बन गए। आज के पतनशील राजनीति के दौर में वह उन गिने-चुने राजनेताओं में थे, जिनकी सफेद चादर जैसे निर्मल व्यक्तित्व पर एक भी बदनुमा दाग नहीं था। उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी और सामाजिक सरोकारों की निष्ठा पर कोई संदेह नहीं कर सकता। 

कॉमरेड राय झारखंड के पुनर्निर्माण की एक मुकम्मल दृष्टि रखने वाले बिरले नेताओं में थे, जो न्याय के पक्षधर हैं और उसके लिए जिन्होंने संघर्ष किया है।
आदिवासी जनता के प्रति उनकी प्रतिद्धता का सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि मार्क्सवादी होते हुए भी उन्होंने उस दौर में झारखंड के अलग राज्य की मांग का समर्थन किया जब लगभग सभी वामदल इस मांग का विरोध करते थे। कामरेड राय न सिर्फ इस मांग का समर्थन करते थे, बल्कि झारखंड को समाजवादी आंदोलन के लिए उर्वर भूमि मानते थे। उनका कहना था कि आदिवासी से अधिक सर्वहारा आज की तारीख में है कौन?

माले नेता विनोद सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी के साथ एके राय।

उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि ”’बीजेपी से झारखंडी परंपरा और सोच का बुनियादी विरोध है। बीजेपी की सोच बाजारवादी है, जो पूंजीवादी सोच की एक विशेष विकृति है। दूसरी तरफ झारखंडी सोच, संस्कृति और परंपरा यदि पूर्णरूपेण समाजवादी नहीं भी तो निश्चित रूप से समाजोन्मुखी है। आदिवासी बहुत जरूरी होने पर ही बाजार का रुख करते हैं। झारखंडी जनता श्रम पर विश्वास करती है और उत्पादन करके अपने बलबूते जीवित रहना चाहती है।”

अक्सर वह कहा करते थे कि ”झारखंड की असली ऊर्जा है झारखंडी भावना। इसीलिए तमाम झारखंडी नेताओं को खरीद कर भी झारखंड आंदोलन समाप्त नहीं किया जा सका और अंत में अलग झारखंड राज्य का गठन करना पड़ा। अलग राज्य के रूप में झारखंड के गठन के पूर्व भी इस क्षेत्र का विकास हुआ था। बहुत सारे उद्योग धंधे लगे थे। सार्वजनिक क्षेत्र में लगी कुल पूंजी का बड़ा भाग इसी राज्य में लगा। सिंदरी एफसीआई, बोकारो स्टील प्लांट, एचईसी, बीसीसीएल, सीसीएल, डीवीसी आदि पीएसयू इसके उदाहरण हैं। लेकिन तमाम विकास बाहर से आए विकसित लोगों का चारागाह बनता रहा। झारखंडियों का विकास नहीं हुआ, बल्कि उन्हें विस्थापन, उपेक्षा और शोषण का शिकार होना पड़ा।”

कॉमरेड राय के मुताबिक, ”झारखंडी जनता इस थोपे हुए विकास से नफरत करती है। जिस विकास में उनसे पूछा नहीं जाता, जिसमें उनकी कोई भागीदारी नहीं, उस विकास का वे विरोध करते हैं। किसी भी क्षेत्र का विकास उस क्षेत्र विशेष के जन समुदाय के सक्रिय सहयोग और उत्साह के बिना एक सीमा के ऊपर नहीं जा सकता। दरअसल झारखंड शुरू से ही एक आंतरिक उपनिवेश बन कर रहा और आंतरिक उपनिवेश एक दायरे से ऊपर उठ कर विकास की राह पर नहीं चल सकता।”

अस्पताल में।

इसका समाधान क्या है? के जवाब में वे कहते थे कि – ‘‘समाधान तभी हो सकता है जब झारखंड के लिए अब तक लड़ने वाले और सही रूप में झारखंडी भावना से जुड़े लोग सही राजनीतिक दिशा के साथ नेतृत्व में आएं। लेकिन यहां विडंबना यह है कि जो लोग झारखंड के लिए लड़े हैं और जिनका झारखंडी भावना और संस्कृति से लगाव है, उनको झारखंड के विकास की सही दिशा का ज्ञान और समझ नहीं, दूसरी तरफ जिनके पास यह समझ है, उनमें झारखंडी भावना और संस्कृति से लगाव नहीं। वह दिशा क्या है? वह समाजवादी दिशा है।’’

कॉमरेड राय झारखंड में बाहर से आकर बसे श्रमिकों और झारखंड की मूल जनता के बीच के पुल रहे। यही उनकी सबसे बड़ी खासियत थी।
माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कामरेड राय की मौत को वामपंथ के लिए एक अपूर्णीय क्षति बताया है। उन्होंने कहा है कि ”एक ऐसे दौर में जब झारखण्ड और देश की जनता रघुवर दास और मोदी के नेतृत्व में संचालित भाजपा के निजीकरण की नीतियों के खिलाफ तथा धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र में कटौती और उस पर हमले के खिलाफ संघर्ष कर रही है, उनकी अनुपस्थिति हमारे लिए अपूर्णीय क्षति है। वह हमारे लिए हमेशा प्रेरणाश्रोत बने रहेंगे, उनकी यादें हमें रोशनी प्रदान करेंगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए और क्रांति के लिए वह प्रेरणा श्रोत बने रहेंगे।

(राय के लिए यह श्रद्धांजलि लेख विशद कुमार ने लिखा है।)

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