बीजेपी की वाशिंग मशीन में अब खनन माफिया जनार्दन रेड्डी भी धुल गए

बीजेपी में फिर से खनन माफिया जनार्दन रेड्डी पहुँच गए हैं। जनार्दन रेड्डी की बीजेपी में फिर वापसी होने से कर्नाटक से दिल्ली तक हलचल है। बीजेपी पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं लेकिन बीजेपी को उन सवालों से क्या मतलब! बीजेपी की पाखंड भरी राजनीति की यह कोई पहली कहानी तो नहीं है। इस तरह की कहानी तो बीजेपी दोहराती ही रही है। बीजेपी कभी नहीं देखती कि लोग उसे क्या कहेंगे।

कोई कुछ भी कहता रहे अगर पार्टी की जीत हो रही है और सत्ता सरकार में उसकी पहुँच बनती रही है तो फिर सवाल चाहे जो भी उठाये उसका कोई मोल नहीं। ठगनी राजनीति का यह खेल बीजेपी शुरू भी करती है और उसे चलाती भी रहती है। लेकिन सच्चाई यही है कि राजनीति का यही खेल अगर कोई और करे तो बीजेपी का तंत्र पूरी ताकत के साथ सक्रिय होता है और जनता के बीच ऐसे माहौल को खड़ा करता है ,मानो किसी पार्टी ने ऐसा अपराध करके देश और लोकतंत्र को ख़त्म ही कर दिया है। 

जनार्दन रेड्डी मामूली आदमी नहीं हैं। सालों तक बीजेपी में रहते हुए उन्होंने खूब माल कमाया। उनकी राजनीति कर्नाटक के लिए नहीं थी। उनका हर खेल खुद को मजबूत बनाए रखने और धन कमाने के लिए होता रहा। कर्नाटक के अधिकतर नेता उनके खेल से ऊब चुके थे। उनके काला बाजारी से जनता भी तंग आ चुकी थी। उनकी राजनीति से बीजेपी के तबके शीर्ष नेता भी तबाह हो चुके थे। दिल्ली के बड़े-बड़े शीर्ष नेता जनार्दन रेड्डी के खेल पर कहकहे भी लगाते थे।

तब की स्वराज ने तो पहले रेड्डी को आगे बढ़ाने का भी काम किया था लेकिन जब रेड्डी की ताकत और भ्रष्टाचार की कहानी पार्टी को बदनाम करने लगी तब स्वराज को भी मंथन करना पड़ा और उनके सिर से स्वराज ने अपना हाथ पीछे खींच लिया। लेकिन जब तक रेड्डी बीजेपी के साथ रहे बीजेपी आगे बढ़ती गई। आज बीजेपी की जो कर्नाटक में ताकत बनी हुई है उसमें रेड्डी और रेड्डी बंधुओं की भूमिका को बीजेपी कैसे भुला सकती है।  

रेड्डी को बीजेपी में फिर से वापसी कराकर बीजेपी को कोई शर्म नहीं है। वह शर्माए भी क्यों ? ऐसा काम तो वह हर बार करती रही है। ऐसे में जनार्दन रेड्डी की बीजेपी में वापसी को हेमंता विश्व सरमा, शुभेंदु अधिकारी, छगन भुजबल, जीतेन्द्र तिवारी, मुकुल राय, अजीत पवार, अशोक चाह्वाण, नारायण राणे, प्रवीण दरोकर और हार्दिक पटेल की ही कड़ी में देखा जाना चाहिए।              

कर्नाटक में ही येदियुरप्पा की कहानी को भी आप याद कर सकते हैं। वे काफी बदनाम नेता रहे, सीएम भी रहे। पार्टी से अलग भी हुए। अपनी पार्टी भी बनाई। चुनाव भी लड़े और फिर बीजेपी में समा गए। फिर सीएम भी बने। कर्नाटक में बीजेपी के  नेताओं येदियुरप्पा और जनार्दन रेड्डी की कहानी से कन्नड़ समाज वाकिफ है और इनके हर खेल को जानता भी है। येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के कितने आरोप लगे थे लेकिन बीजेपी की वाशिंग मशीन में सब धुल गए।

अब जनार्दन रेड्डी भी धुल जाएंगे। कौन सवाल उठाएगा? कौन उनका तिरस्कार करेगा? धन बल के सामने इस ठगिनी राजनीति की औकात ही क्या है? कौन विपक्ष है जो उन पर सवाल खड़ा करेगा और बीजेपी उस सवाल को सुन लेगी! जब राजनीति के इस खेल में सब नंगे ही हैं तो बायां हाथ दाहिने हाथ को कलंकित कैसे ठहरा सकता है ?

जनार्दन रेड्डी पर जांच एजेंसियों के कई मुक़दमे चल रहे हैं। वे सीबीआई जांच के दायरे में भी हैं। अब देखना यही है कि उनके ऊपर चल रहे मुक़दमे को जांच एजेंसियां कैसे रफा-दफा करती हैं? कब क्लीन चिट देती हैं?

जनार्दन रेड्डी 2022 में अलग पार्टी बनाये थे। पार्टी का नाम था कल्याण राज्य प्रगति पक्ष। उनकी राजनीति कोई रंग नहीं ला सकी। उन्होंने सोचा था कि खनन की काली कमाई से राजनीति को ताड़ देंगे लेकिन संभव नहीं हो सका। सामने लोकसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी को भी उनकी याद आयी। येदियुरप्पा के सहयोगी रहे रेड्डी की ज़रूरत हुई। अब रेड्डी अपनी पार्टी का भी बीजेपी में विलय कर देंगे।

बीजेपी को उम्मीद है कि रेड्डी के आने से बीजेपी मजबूत होगी और पिछले चुनाव की तरह ही पार्टी की बड़ी जीत होगी। ऐसा हो भी सकता है लेकिन सच तो यही है कि कर्नाटक की बड़ी आबादी के बीच जनार्दन रेड्डी काफी बदनाम हैं। याद रहे रेड्डी पर 2008 से 2013 के दौरान खनन लूट के बड़े -बड़े आरोप लगे थे। मुक़दमे आज भी चल रहे हैं। वे जेल भी जा चुके हैं। 

सितम्बर 2015 में केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने उन्हें कर्नाटक के बेल्लारी एवं आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में करोड़ों रुपयों के लौह अयस्क का अवैध खनन करने के आरोप में गिरफ्तार भी किया था। उन पर कर्नाटक के बेल्लारी जिले के साथ ही आंध्र प्रदेश के अनंतपुर एवं कडप्पा जाने पर प्रतिबन्ध भी लगा था। 2015 से वे जमानत पर हैं। उन पर एक-दो नहीं, सीबीआई के 9 मामले दर्ज हैं। ऐसे खनन माफिया को अपने साथ फिर से जोड़कर भाजपा ने साफ कर दिया है कि भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस का उसका नारा कितना खोखला और एकतरफा है। साथ ही, इस कदम ने यह भी दर्शाया है कि सत्ता के लिये भाजपा किसी भी स्तर तक जाकर समझौते कर सकती है।

आज रेड्डी बीजेपी में आकर काफी खुश हैं। बीजेपी नेता भी प्रसन्न हैं। दोनों एक दूसरे के पूरक जो हैं। रेड्डी अब शांत और सहज भी हो गए हैं। जाहिर है रेड्डी की यह सहजता केवल इसलिए है कि वह बीजेपी में रहकर ही आगे का खेल कर सकते हैं। उनका खेल राजनीति से जुड़ा नहीं है। उनका असली खेल तो धन बनाने का है। बीजेपी उनकी नैसर्गिक सहयोगी जो है। 

उन्होंने बीजेपी में आने के बाद जो बयान दिया है वह काबिले तारीफ वाली है। उन्होंने कहा कि बीजेपी में लौटकर वे अपनी माता की गोद में लौट आये हैं। वे अपनी जड़ से जुड़ गए हैं। रेड्डी की वापसी को लेकर कई लोग अब यही कहने लगे हैं कि पीएम मोदी जिस तरह से चार सौ पार का नारा दे रहे हैं ऐसे में उन्हें इसी तरह के लोगों की जरूरत है जो सब कुछ मैनेज कर सके।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

अखिलेश अखिल
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