पर्यावरण दिवस पर विशेष: मोबाइल टॉवर बने गौरैयों के लिए काल

यह दुःखद सूचना देते समय मेरी आँखें आँसुओं से नम हों गईं हैं कि अभी कुछ दिनों पूर्व मेरे आवास के ठीक पीछे मेरे एक पैसों के लोभी पड़ोसी ने अपनी छत पर मोबाइल टॉवर लगवा दिया है, जिसके तीव्र रेडिएशन से मेरे घर में लगाए गये गौरैयों के सैकड़ों घोसलों के बहुत से बच्चे अकाल कलवित हो गये, मर गये हैं! आज 12 वाँ बच्चा अपना दम तोड़ दिया है! मैं पिछले 20 वर्षों से गौरैया संरक्षण के कार्य में अपना जीवन समर्पित कर दिया हूँ। गौरैयों के संरक्षण के लिए मैंने अपने छत पर सूखी पेड़ की डालियों को लोहे के तार से बाँधकर उनको बैठने के लिए प्राकृतिक परिवेश बनाने की कोशिश किया है, उनके पानी पीने के लिए मिट्टी के, प्लास्टिक के,धातु के जो बर्तन भी उपलब्ध हुए, उन कई पात्रों में नित्यप्रतिदिन ठंडा साफ पानी भर देता हूँ,उनको खाने की सुविधा के लिए एक चबूतरा बना दिया हूँ और उन्हें मौसम के अनुसार बाजरा, दलिया,रोटी के टुकड़े,कच्चे चावल के टुकड़े और जब उनके बच्चे होते हैं, उन्हें पकाकर भी देता रहता हूँ, ताकि कीटनाशकों की वजह से मर गये कीड़ों के लार्वों की अनुपलब्धता की वजह से प्रोटीन की पूर्ति के लिए इन पकाए गये चावल, दाल, हल्दी, नमक और जरा सी हींग से बने व्यंजन से हो सकें।

भारत सरकार की तरफ से मेरे गौरैया संरक्षण के उल्लेखनीय कार्य को भारत की लोकसभा टेलीविजन द्वारा फिल्मांकन करके विश्व पर्यावरण दिवस क्रमशः 5 जून 2019 और 5 जून 2020 दोनों वर्षों में प्रसारित भी किया गया। मैंने गौरैयों के संरक्षण के लिए जो भी प्रयत्न किया, मेहनत किया, खर्च किया, उसमें मेरा कोई स्वार्थ नहीं है, मैंने इसीलिए कोई एनजीओ भी नहीं बनाया, किसी से कोई आर्थिक मदद नहीं लिया, जो भी कर रहा हूँ, उसमें किया जाने वाला खर्च अपनी पेंशन से मिलने वाली छोटी सी राशि से किया हूँ। मेरी सोच यह है कि हमारे घर की यह नन्हीं सी, छोटी सी पारिवारिक सदस्या, गौरैयारानी भी मारिशस के डोडो पक्षी और भारत के चीतों जैसे कहीं विलुप्त न हो जाएं? इसलिए यह सद् प्रयास करता रहा, लेकिन मेरे घर के ठीक पीछे अवैधानिक रूप से लगे मोबाइल टॉवर से निकलने वाले तीव्र रेडिएशन से मेरे घर में लगे घोसलों में पैदा इस साल गौरैयों के लगभग सभी नवजात शिशु या बच्चे तेजी से मर रहे हैं या ऐसे विकलांग तथा अविकसित बच्चे पैदा हो रहे  हैं, जिनके पंख इतने छोटे हैं कि वे दो फीट ऊँचाई तक भी नहीं उड़ पा रहे हैं! इन अविकसित बच्चों का दुर्भाग्य यह है कि ये अपने दुश्मनों यथा बाज, बिल्ली आदि के बिल्कुल आसान शिकार बन रहे हैं !

वैज्ञानिकों के अनुसार गौरैयों के विलुप्तिकरण में अग्रलिखित वर्णित कारण हैं, पहला आधुनिक मकानों की बनावट, जिसमें उनके घोसलों के लिए कोई जगह ही उपलब्ध नहीं होती, जिससे वे उनमें घोसले ही नहीं बना पातीं हैं, दूसरा भयंकर जल प्रदूषण, जिससे वे किसी भी प्राकृतिक या मानव निर्मित स्रोत से पानी पीकर अपनी प्यास बुझा सकें, जिससे वे प्यासी मर जातीं हैं, तीसरा किसानों द्वारा अपनी फसलों पर कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग, जिससे उनके खाने वाले कीड़े और उनके लार्वा मर गए हैं और चौथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले तीव्र रेडिएशन, जिससे उनके मस्तिष्क, हृदय और शरीर पर बहुत घातक असर पड़ता है आदि कारण गौरैयों के विलुप्तिकरण में मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं, इसीलिए सन् 2014 में भारत के सबसे बड़े न्यायालय सुप्रीमकोर्ट के एक आदेश के तहत आवासीय क्षेत्रों, अस्पतालों और स्कूलों पर मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले इसके रेडिएशन से बचाव के लिए इसको लगाना मना है, का आदेश पारित किया था, पहले से ऐसी जगहों पर लगे टॉवरों को, सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद तेजी से हटाया भी गया, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ऐसे सभी जगहों पर जहाँ टॉवर नहीं लगने चाहिए थे, धीरे-धीरे फिर से लगने लगे!

यक्ष प्रश्न है कि क्या सुप्रीमकोर्ट के वे आदेश रद्द हो गये? हम देख रहे हैं कि ये मोबाइल टॉवर आवासीय कॉलोनियों, अस्पतालों और स्कूलों में धड़ाधड़ लग रहे हैं? क्या भारत की केन्द्र सरकार और विभिन्न राज्यों की सरकारें, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली की राज्य सरकारें  शामिल हैं, जो गौरैयों को कथित तौर पर अपना राज्य पक्षी घोषित किए हुए हैं, क्या उक्त राज्य सरकारों द्वारा गौरैयों को राज्य पक्षी घोषित करना और गौरैयों के संरक्षण का कार्यक्रम एक छद्म, भ्रम, फ्रॉड, बनावटीपन व दिखावापन है ! जब पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार गौरैयों के विलुप्तिकरण में मोबाइल टॉवरों द्वारा निकलने वाली जान लेवा रेडिएशन की किरणें भी गौरैयों के लिए घातक और प्राण लेवा हैं तो भारत भर के तमाम शहरों में कुकुरमुत्ते की तरह ये ऊँची-ऊँची मोबाइल टॉवरें कैसे लग जा रहीं हैं ?

क्या इतने ऊँचे-ऊँचे मोबाइल टॉवर स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों, पुलिस विभाग के बड़े अफसरों और वन तथा पर्यावरण मंत्रालय के उच्चतम् अधिकारियों और उनके मंत्रियों तक को दिखाई ही नहीं दे रहे हैं? तब तो यह बहुत दुःख, क्षोभ और हतप्रभ करने वाली बात है ! सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायमूर्ति लोगों का भी यह पावन, पुनीत व अभीष्ट कर्तव्य बनता है कि वे जनहित व पर्यावरण हित में पूर्व में दिए गये अपने न्यायिक आदेशों का जमीनी धरातल पर सरकारों द्वारा कितना क्रियान्वयन होता है या उसकी कितनी अवहेलना या अवमानना हो रही है? इस पर भी अपनी तीक्ष्ण, सजग और चौकस निगाह रखनी ही चाहिए।

इस देश के पर्यावरण के महाक्षरण, विघटन से सैकड़ों पक्षियों, रंगबिरंगी तितलियों और कीटों तथा वन्यजीवों के तेजी से हो रही विलुप्ति की अतिदुःखद घटना से बेहद आहत पर्यावरण के प्रति सजग व चिंतित हर भारतीय नागरिक इस देश के हर नगर निगमों सहित, नगरनिगम गाजियाबाद, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण गाजियाबाद, पर्यावरण विभाग गाजियाबाद, वन विभाग गाजियाबाद आदि के सर्वोच्च पदस्थ पदाधिकारियों, पुलिस अधीक्षक गाजियाबाद, जिलाधिकारी गाजियाबाद और पर्यावरण व वन मंत्रालय नई दिल्ली से करबद्ध प्रार्थना करते हैं, विनम्र निवेदन करते हैं,कि मेरे द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एक बेबस, लाचार, अबला पक्षी, गौरैया को बचाने के सद् प्रयास को बाधित करने वाले इस तीव्र रेडिएशन छोड़ने वाले मोबाइल टॉवर को शिघ्रातिशीघ्र हटवाया जाए, ताकि भारत की भूमि से विलुप्तिकरण के कगार पर खड़ी यह भोली सी, पारिवारिक सदस्या गौरैयों की प्रजाति विलुप्त होने से बच जाए। 

(रिटायर्ड अफसर निर्मल कुमार शर्मा का लेख।)

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