प्रवासी मजदूरों के सवाल पर कांग्रेस की गुगली से सरकार क्लीन बोल्ड

कोरोना काल में मोदी सरकार कि लचर रीति नीति,मोदी के पहले ही कार्यकाल से नोटबंदी के बाद लगातार धराशायी अर्थव्यवस्था, सरकार का नगदी संकट, रिजर्व बैंक के रिजर्व से सरकारी खर्च निपटाने का प्रयास, महंगाई, बेरोजगारी ने कांग्रेस को अपने खोए हुए अस्तित्व को फिर से जीवित करने का ऐतिहासिक अवसर दिया है। कांग्रेस भी समझ रही है कि अभी नहीं तो कभी नहीं। इस दौरान कांग्रेस जिस तरह के मुद्दे उठा रही है उसका जवाब भाजपा को सूझ नहीं रहा, इसे भाजपा के आईटी सेल के झूठ तन्त्र द्वारा झुठलाने का असफल प्रयास किया जा रहा है, जो भुक्तभोगियों के गले से उतर नहीं रहा।

ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए रेल किराए का भुगतान करने की घोषणा करके एक बड़ा सियासी दांव चला है। उनके इस दांव ने बड़ा सियासी बवंडर उठ खड़ा हुआ है और मोदी सरकार ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश शुरू कर दी है।

दरअसल कोरोना काल में राहुल और कांग्रेस केन्द्र सरकार या किसी के साथ टकराव में नहीं उलझ रही है। लेकिन उनका यह सकारात्मक रवैया सत्ता पक्ष के लिए बहुत मारक सिद्ध हो रहा है। कांग्रेस नियमित रूप से अपने मुख्यमंत्रियों, राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों, वरिष्ठ नेताओं और राहुल गांधी को प्रेस के सामने लाई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रोज स्थिति को मॉनिटर करने के लिए एक कन्सलटेटिव ग्रुप बनाया। और गुरुवार को अपनी सर्चोच्च इकाई सीडब्ल्यूसी की मीटिंग कर रही है। और सबसे खास बात कहीं भी लड़ाई की बात नहीं की। केवल सकारात्मक सुझाव दिए और संकट के समय सरकार के साथ, सरकार को सहयोग की बात की। पर सरकार के पास कांग्रेस द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों का जवाब नहीं है।

सोनिया गाँधी के साथ ही राहुल गांधी ने भी केंद्र सरकार और रेलवे को निशाने पर लेते हुए ट्वीट कर कहा कि एक तरफ रेलवे दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों से टिकट का किराया वसूल रहा है और दूसरी तरफ रेल मंत्रालय पीएम केयर फंड में 151 करोड़ रुपए का चंदा दे रहा है। इस गुत्थी को जरा समझाइए। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी सवाल किया है कि नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में 100 करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं, तो फिर इस संकट की घड़ी में मजदूरों को मुफ्त रेल यात्रा की सुविधा उपलब्ध क्यों नहीं कराई जा सकती?

सोनिया, राहुल और प्रियंका के इस हल्ला बोल दांव के बाद केंद्र सरकार बैक फुट पर नजर आ गयी है। ये मामला इतना ज्यादा बढ़ गया कि अब रेलवे को भी सफाई देने सामने आना पड़ा है। कांग्रेस के हल्ला बोल के बाद भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर पहले ये बताया कि इस मुद्दे पर उनकी रेल मंत्री पीयूष गोयल से बात चीत हुई है और रेल किराये का भुगतान केंद्र और राज्य की सरकारें मिलकर करेंगी का आदेश निकल रहा है। बाद में उन्होंने बताया कि प्रवासी मजदूरों के रेल किराए का 85 फीसदी का भुगतान केंद्र सरकार और बाकी 15 फीसदी का भुगतान राज्य सरकारें करेंगी।

दरअसल, लॉकडाउन की वजह से विभिन्न राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए रेलवे श्रमिक ट्रेनों का संचालन कर रहा है। अब इन प्रवासी मजदूरों से किराया वसूलने को लेकर रेलवे की काफी आलोचना हो रही है। जिसके बाद अब रेलवे को सफाई देने पड़ी है। रेलवे ने कहा है कि वो मजदूरों को कोई टिकट नहीं बेच रहा है।

राहुल गांधी आजकल मोदी सरकार पर एक के बाद एक घातक तीर चला रहे हैं और ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं जिससे भाजपा भौचक है। चाहे मामला केंद्र सरकार के कर्मचारियों के भत्ते का हो, या फिर वित्त मंत्री से बैंक चोरों की मुद्दे पर सवाल हो या फिर कोरोना काल में अर्थव्यवस्था को लेकर सवाल उठाते राहुल गांधी मोदी सरकार के लिए परेशानी का सबब बनते जा रहे हैं। कोरोना काल में राहुल गांधी अपने आप को लोगों की आवाज उठाने वाले व्यक्ति के रूप में पेश कर रहे हैं जो देश और लोगों की हितों की बात कर रहा है।

दरअसल राहुल गांधी ने सबसे पहले कोरोना संकट को पहचान लिया और कोरोना को लेकर चेतावनी देनी शुरू कर दी। वो भी उस समय जब मोदी सरकार अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के स्वागत की तैयारी में लगी थी। कोरोना संकट की आहट पर राहुल गांधी ने 12 फ़रवरी 2020 को पहली बार ट्वीट कर बोला था कि कोरोना की गंभीरता को सरकार समझ नहीं रही है।

राहुल गांधी ने कोरोना संकट में लोगों के हित और अर्थव्यवस्था प्रभावित होने की बात कही। साथ ही केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वो बैंक से लोन लेकर भागने वालों को बचाने में लगी है। राहुल ने एक बार फिर 28 अप्रैल को अपने एक पुराने वीडियो को साझा करते हुए एक ट्वीट पोस्ट किया जिसमें उन्होंने संसद में सरकार से देश के शीर्ष 50 बैंक लोन डिफ़ॉल्टर की सूची मांगी थी और वित्त मंत्री ने जवाब देने से इनकार कर दिया था। राहुल गांधी के इस ट्वीट ने मोदी सरकार को परेशान किया।केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राहुल गांधी के आरोप को ख़ारिज करने के लिए 13 ट्वीट किए। लेकिन मोदी सरकार इस मुद्दे पर पूरी तरह से बैकफ़ुट पर नज़र आई। कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान भी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी और नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कई मुद्दों पर सवाल उठाते और सुझाव दिए लेकिन एक बार भी भाजपा नेतृत्व पर सीधा हमला नहीं किया।

कोरोना संकट को देखते हुए हाल ही में केन्द्र सरकार के केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशन भोगियों का महंगाई भत्ता रोकने का फ़ैसला किया। इस फ़ैसले को राहुल गांधी ने असंवेदनशील और अमानवीय’ बताया। राहुल ने ट्वीट में लिखा कि लाखों करोड़ की बुलेट ट्रेन परियोजना और सेंट्रल विस्टा सौंदर्यीकरण परियोजना को टालने की बजाय कोरोना से जूझकर जनता की सेवा कर रहे केंद्रीय कर्मचारियों, पेंशन भोगियों और देश के जवानों का महंगाई भत्ता काटना सरकार का असंवेदनशील तथा अमानवीय निर्णय है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर संकट पर मीडिया की बेरुखी से परेशान राहुल गांधी ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से वीडियो के ज़रिए बातचीत की और उनसे सुझाव मांगा। राहुल गांधी ने सरकार पर कोई आरोप नहीं लगाया बल्कि आम लोगों के हितों पर चर्चा की। चूंकि ये चर्चा जाने-माने भारतीय अर्थशास्त्री रघुराम राजन से की तो उनकी बातों में वज़न भी दिखा। उन्होंने पूछा कि गरीबों की मदद करने में कितना पैसा लगेगा? राजन ने कहा, 65,000 करोड़ रुपये लगेंगे और ये हो सकता है। अब राजनीति की बात यह है कि राहुल गांधी अपनी तरफ से केन्द्र सरकार से इतनी बड़ी राशि की मांग करते तो शायद उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया जाता लेकिन अगर अंतरराष्ट्रीय रूप से पहचाने जाने वाले रघुराम राजन के आंकड़ों की बात करते तो उनकी बात का वज़न बढ़ जाता है। इसी तरह आर्थिक मुद्दों पर पूर्व वित्तमंत्री पी चिदम्बरम भी लगातार सरकार को घेर रहे हैं।

अभी कांग्रेस के तरकश से कितने तीर और निकलेंगे, कहा नहीं जा सकता।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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