मोदी सरकार बड़े कॉर्पोरेट को दोनों हाथ से बांट रही सब्सिडी; न्यायपालिका को रियायतें, ये फ्रीबीज नहीं तो क्या है?

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार बड़े कॉर्पोरेट को दोनों हाथ से रेवड़ियां बांट रही है। मोदी सरकार ने वेदांता-फॉक्सकॉन के 38,831 करोड़ की लागत से गुजरात में लगने वाले सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग हब और कर्नाटक में लगने वाले सिंगापुर के आईएसएमसी के 22,900 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को 50 फीसदी सब्सिडी देने का फैसला किया है। सरकार की इन्सेंटिव स्कीम के यही दो प्रोजेक्ट पहले लाभार्थी बन गए हैं।

इसी तरह कुछ दिन पहले न्यायपालिका को सरकार ने रेवड़ी बांटी थी केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नियम, 1959 (नियम) में और संशोधनों को अधिसूचित किया। अन्य बातों के साथ-साथ, भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों को उनके जीवनकाल में सेवा देने के लिए एक घरेलू सहायक, एक ड्राइवर और एक सचिव सहायक तैनात किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के जज सेवानिवृत्ति के बाद आजीवन घरेलू सहायक और ड्राइवर के हकदार होंगे।

मोदी सरकार ने बुधवार को सेमीकंडक्टर यूनिट और डिस्प्ले मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट के लिए 76,000 करोड़ रुपए की सब्सिडी का ऐलान किया। सरकार ने कहा कि यह सब्सिडी इसलिए दी जा रही है ताकि वैश्विक कंपनियां आकर्षित हों। हालांकि मौजूदा आवेदनों को पूरा फायदा मिलेगा।

केंद्र सरकार के इस फैसले की तीखा आलोचना हो रही है। कई लोगों ने इसकी रेवड़ी संस्कृति से तुलना की है। द इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित अपने ताजा लेख में स्वामीनाथन एस अंकलेश्वर अय्यर ने लिखा है कि गुजरात में लगने वाले वेदांता सिलिकॉन फैब्रिकेशन प्लांट को दी जाने वाली 50 फीसदी सब्सिडी कुल 80,000 करोड़ की होगी। ये रकम तो मनरेगा मद में दी जाने वाले केंद्र सरकार के कुल आवंटन से भी अधिक है।

सरकार ने बुधवार को कहा था कि कंपनियों को पहले दी जाने वाली वित्तीय मदद को संशोधित कर प्रोजेक्ट की कुल लागत के 50 फीसदी के बराबर कर दिया गया है। पहले भी यह सहायता 50 फीसदी ही थी, लेकिन उसकी अधिकतम सीमा 12,000 करोड़ थी। लेकिन अब इस पर से यह सीमा हटा दी गई है।

सरकार के इस फैसले पर अर्थशास्त्री सवाल इसलिए उठा रहे हैं कि वेदांता-फॉक्सकॉन जैसे प्रोजेक्ट सरकार के कुल सब्सिडी प्रावधान का बड़ा हिस्सा हड़प जाएंगे और फिर अन्य के लिए कोई गुंजाइश नहीं बचेगी। एक और तर्क दिया जा रहा है कि इस तरह सरकार सिर्फ चुनिंदा कंपनियों को ही अपनी प्रोत्साहन योजनाओं का फायदा देगी।

इसी मुद्दे पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भी कहा है कि इससे होगा यह कि जब सब्सिडी और प्रोत्साहन वाली योजनाएं बंद हो जाएंगी तो फिर इन कंपनियों को भारत आने या यहां टिके रहने में कोई फायदा नजर नहीं आएगा और वे दूसरे देशों का रुख करेंगी। ऐसे में ये कंपनियां न सिर्फ टैक्स दरों में छूट की मांग करेंगी बल्कि सब्सिडी की सुरक्षा भी मांगेगी।

स्वामीनाथन अय्यर ने भी इसी तरह का सवाल उठाया है। उन्होंने अपने लेख में कहा है कि अगर वेदांता-फॉक्सकॉन की कुल लागत 20 अरब डॉलर है तो उसके हिस्से में तो भारत की 10 अरब डॉलर की कुल सब्सिडी आ जाएगी। उन्होंने पूछा है कि ऐसे में क्या होगा अगर अन्य कंपनियां भी सामने आईं तो फिर उन्हें सब्सिडी देने के लिए पैसा कहां से आएगा?

उद्योगों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि योजना तो उन कंपनियों को मदद देने की है जो सेमीकंक्टर के विभिन्न प्रकारों का भारत में निर्माण या उत्पादन करेंगे। इससे कंपनियों की निर्माण लागत कम होगी और वे नई फैक्टरियां लगाने को प्रोत्साहित होंगे। ऐसे ही एक विशेषज्ञ का कहना है कि इसे इस तरह देखना चाहिए कि इससे भारत एक ताकतवर सेमीकंडक्टर उत्पादक या निर्माता के तौर पर स्थापित होगा और उसकी आयात पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। लेकिन इसी किस्म की कोशिश तो भारत 2017 और 2020 में भी कर चुका है, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला था। इंटेल, सैमसंग, टीएसएमसी आदि जैसी कंपनियों ने अभी तक इस दिशा में कोई रुचि नहीं दिखाई है।

केंद्र सरकार ने पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नियम, 1959 (नियम) में और संशोधनों को अधिसूचित किया। अन्य बातों के साथ-साथ, भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों को उनके जीवनकाल में सेवा देने के लिए एक घरेलू सहायक, एक ड्राइवर और एक सचिव सहायक तैनात किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद आजीवन घरेलू सहायक और ड्राइवर के हकदार होंगे।

सेवानिवृत्ति के बाद एक वर्ष की अवधि के लिए पूर्व सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को ड्राइवर और सचिव सहायक प्रदान करने के लिए नियमों में 23 अगस्त को संशोधन किया गया था, लेकिन 26 अगस्त को अधिसूचित नवीनतम संशोधन के अनुसार, इन लाभों को आजीवन कर दिया गया है।

उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्त) अधिनियम, 1958 की धारा 24(1), 24(2)(c) और 24(2)(f) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र ने नियम 3B में संशोधन किया है, जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के सेवानिवृत्ति के बाद के लाभों से संबंधित है। नियमों में 2022 के संशोधन के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अपनी सेवानिवृत्ति से 5 साल की अवधि के लिए चौबीसों घंटे निजी सुरक्षा गार्ड के अलावा आवास पर चौबीसों घंटे सुरक्षा कवर के हकदार होंगे। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति से 3 साल की अवधि के लिए समान सुरक्षा कवर प्रदान किया जाएगा।

इसके अलावा, एक सेवानिवृत्त सीजेआई सेवानिवृत्ति के बाद 6 महीने के लिए दिल्ली में किराए पर मुफ्त टाइप-VII आवास के हकदार होंगे। सीजेआई सहित सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हवाई अड्डों पर औपचारिक लाउंज में प्रोटोकॉल के हकदार होंगे। वे एक आवासीय टेलीफोन और आवासीय फोन/मोबाइल फोन/मोबाइल डेटा/ब्रॉडबैंड के लिए प्रति माह 4200 रुपये तक की प्रतिपूर्ति के भी हकदार होंगे। उपर्युक्त लाभ उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त सीजेआई और न्यायाधीशों को इस हद तक सुनिश्चित करेंगे कि वे पहले से ही किसी भी उच्च न्यायालयों या अन्य सरकारी निकाय से समान लाभ प्राप्त नहीं कर रहे हों जहां उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद कार्यभार संभाला हो।

दरअसल आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा जून में वार्षिक लक्ष्य के 21.2 प्रतिशत को छू गया, जबकि एक साल पहले की अवधि में यह 18.2 प्रतिशत था। अनुमान है कि 2022-23 के लिए सरकार का राजकोषीय घाटा 16.6 ट्रिलियन रुपये होगा। मोटे तौर पर अर्थव्यवस्था की यही स्थिति है।

इस बीच ‘मुफ्त सुविधाओं यानी फ्रीबीज़’ पर बहस चल रही है। हर चुनाव से पहले कई राजनीतिक दल टेलीविजन सेट, इंटरनेट के साथ लैपटॉप, साइकिल, स्कूटर, मासिक पेट्रोल कोटा, सेल फोन और यहां तक कि घी जैसे मुफ्त उपहारों को देने का वादा करते हैं, जिन्हें ‘फ्रीबीज़’ का नाम दे दिया गया है। यह शब्द ‘फ्रीबीज़’ मुफ्त में दी गई किसी भी वस्तु/सेवा या सुविधा के लिए इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या कार्पोरेट्स को और न्यायपालिका को रियायते‘फ्रीबीज़’हैं या नहीं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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