पाकिस्तान से आया है सच्चाई का प्रमाणपत्र!

फवाद चौधरी ने कहा है तो सच ही होगा। वह पाकिस्तान में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हैं। पुलवामा हमले को फवाद ने पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में इमरान खान की सरपरस्ती में पाकिस्तान की जीत बताया और अब तो अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक बिहार की चुनाव रैलियों में इसे पुलवामा हमले में अर्द्ध सैनिक बलों के 40 जवानों की शहादत पर अपनी और अपनी सरकार की सच्चाई के प्रमाण-पत्र की तरह विज्ञापित-प्रचारित करने लगे हैं।

छपरा की रैली में कल, 1 नवम्बर को ही उन्होंने कहा, ‘‘साथियों, देश में हो रहे चौतरफा विकास के बीच आप सभी को उन ताकतों से भी सावधान रहना है, जो अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिये देश हित के खिलाफ जाने से बाज नहीं आती। ये वो लोग हैं, जो देश के वीर जवानों के बलिदान में भी अपना फायदा देखने लगते हैं। अभी दो-तीन दिन पहले हमारे पड़ोसी देश ने पुलवामा हमले की सच्चाई को स्वीकार किया है। इस सच्चाई ने उन लोगों के चेहरे से नकाब भी उतार दिया है, जो पुलवामा हमले के बाद अफवाहें फैला रहे थे। ये लोग देश के दुख में दुखी नहीं थे। ये लोग बिहार के नौजवानों के जाने पर दुखी नहीं थे।…. बिहार के मेरे भाइयों और बहनों, मतदान करते समय आपको ये ज़रूर याद रखना है।’’

प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य विधानसभा के चुनाव में दूसरे दौर के मतदान के लिये प्रचार अभियान खत्म होने से पहले कल एक के बाद एक चार रैलियां की- लालू प्रसाद यादव के गढ़ छपरा से शुरू कर, समस्तीपुर के हाउसिंग बोर्ड ग्राउंड, मोतिहारी के गांधी मैदान और अंत में बगहा।

आखिर फवाद चौधरी हैं, दोस्त डोनाल्ड ट्रम्प थोडे हैं, जिनको समारोही नमस्ते देने के लिये प्रधान जी ने कोरोना तक की परवाह नहीं की। जनवरी के अंत में कोरोना का पहला मामला आया, वह भी विदेश से, इसके बावजूद पीएम ने हजारों लोगों के अमले और कारिंदों के साथ पहुंचे अमरीकी राष्ट्रपति के लिये 24-25 फरवरी को अहमदाबाद के सरदार पटेल स्टेडियम में लाख के करीब की भीड़ भी जुटायी। आप जानते ही होंगे कि ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के स्तम्भ ‘फैक्ट चेकर’ के अनुसार पिछली 9 जुलाई को ट्रम्प के झूठों और गुमराह करने वाले वक्तव्यों का आंकड़ा 20,000 तक पहुंच गया।

मुख्यधारा के अधिकांश भारतीय मीडिया की तरह ‘एम्बेडेड और गोदी-नशीं नहीं है अमरीका की पत्र-पत्रिकाएं और पत्रकार। कहते हैं कि अखबार ने ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के 100 दिन के भीतर ही यह गिनती शुरु कर दी थी। उसके पत्रकारों की एक टीम हर रैली, हर प्रेस कांफ्रेंस, टीवी बहस-चर्चा-इंटरव्यू और सोशल मीडिया तक पर ट्रम्प के हर वक्तव्य पर नजर रखती है, उनकी जांच करती है। टीम ने पाया कि शुरुआती 100 दिनों में ट्रम्प ने 492 झूठ बोले या भ्रामक वक्तव्य दिये और उसके बाद तो जैसे ‘असत्यों की सुनामी’ ही चल निकली। 

रिपोर्ट है कि शुरुआती दिनों में जिस राष्ट्रपति के खाते में रोजाना करीब 5 असत्य था, 2016 के उनके चुनाव में रूस की दखलंदाजी पर राबर्ट मूलर की रिपोर्ट आने, दसेक महीने पहले अमरीकी सीनेट में उन पर महाभियोग के प्रस्ताव और पुलिस के हाथों अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद तो हर रोज उनके असत्यों और भ्रामक वक्तव्यों की संख्या 23 के आस पास तक पहुंच गयी। 

दिलचस्प यह कि चुनावी रैली में नरेन्द्र मोदी ने फवाद चौधरी के वक्तव्य का उल्लेख तब किया है, जब इंडिया टुडे के साथ एक खास बातचीत में वह कह चुके हैं कि पिछले साल 14 फरवरी को पुलवामा हमले से पाकिस्तान का कोई ताल्लुक नहीं था और नेशनल असेम्बली में तो वह उस हमले के बाद उत्पन्न गतिरोध में भारत के एक लड़ाकू विमान को पाकिस्तान में गिरा देने और उसके पायलट अभिनंदन बर्धमान को बंदी बना लिये जाने आदि की घटनाओं का जिक्र कर रहे थे।

दिलचस्प यह भी कि किसी भी रैली में पीएम ने गलवान घाटी में संघर्ष में चीन के भी जवानों के हताहत होने की चीनी राजदूत सुन वीडोंग की स्वीकारोक्ति का जिक्र नहीं किया, इसके बावजूद कि वीडोंग ने कभी अपनी बात वापस नहीं ली, इसके बावजूद कि बिहार में 23 अक्तूबर को चुनावी रैलियों के पहले दिन सासाराम में उन्होंने गलवान में 20 जून के संघर्ष में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत का उल्लेख किया, पुलवामा में कार विस्फोट हमले में 40 जवानों की शहादत के साथ-साथ।

चुनावी लाभ की खातिर मतदाताओं की खास अपनी बोली की फूहड़ नकल करते हुए पीएम ने पहले ‘‘भाई-बहनी लोगन! भारत के दिल बाटे बिहार, भारत के सम्मान बा बिहार, भारत के स्वाभिमान बा बिहार, भारत के संस्कार बा बिहार, आजादी के जयघोष बा बिहार, संपूर्ण क्रांति के शंखनाद बा बिहार, आत्मनिर्भर भारत के परचम बा बिहार’’ जैसे जुमले उछाले, फिर कहा, ‘‘देश के सुरक्षा हो या देश के विकास, बिहार के लोगन सबसे आगे रहलन। बिहार के सपूत गलवान घाटी में तिरंगा की खातिर शहीद हो गइलें, लेकिन भारत माता के माथा न झुके देलें। पुलवामा हमले में भी बिहार के जवान शहीद भइलें। हम उनके चरणन में शीष झुकावतानी, श्रद्धांजलि देवतानी।’’

बल्कि याद कीजिये कि उत्तर प्रदेश के अत्यंत महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों के चारेक महीने पहले पाकिस्तान पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ हुआ, उसकी धूम भी रही, 2017 के शुरुआती महीनों में चुनावों तक। उसी साल के अंत में पीएम के अपने गृह-राज्य में विधानसभा चुनाव हुये, तो स्वयं उन्होंने भी पाकिस्तान पर चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की साजिश रचने और कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर के घर पर मनमोहन सिंह की मौजूदगी में एक ‘गुप्त बैठक’ के आयोजन तक का आरोप लगा दिया, यद्यपि सरकार की ओर से बाद में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में स्पष्टीकरण भी दिया।

फिर लोकसभा के चुनाव करीब आये तो ऐन प्रचार अभियान के बीच 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा जिले में, जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर एक आत्मघाती हमलावर ने आरडीएक्स से लदी अपनी मारुति कार से, सीआरपीएफ के जवानों को ले जा रहे 70 वाहनों में से ऐन उस वाहन को टक्कर मार दी, जो बुलेट प्रूफ नहीं थी। हमले में 40 जवान शहीद हो गये और उससे उठे राष्ट्रवादी गुबार में राफेल की गूंज थम गयी, प्रियंका गांधी के रोड शो से उठता बवंडर शांत हो गया, सत्तारूढ़ एनडीए के अपने शिवसेना-अपना दल जैसे घटकों के विसंवादी सुरों पर धूल पड़ गयी और आतंकवाद से निबटने के लिये पूरा विपक्ष, सरकार के पीछे एकजुट हो गया।

कमाल यह कि लोकसभा चुनावों में पहले चरण के मतदान से ठीक पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत और ईरान, अफगानिस्तान जैसे दूसरे पड़ोसी मुल्कों के साथ शांति की ज़रूरत बताते हुए जब कहा कि नरेन्द्र मोदी की सत्ता में वापसी से शांति वार्ता का बेहतर अवसर बनेगा, तो इसकी चर्चा शून्य रही। सोचिये कहीं इमरान ने कांग्रेस और विपक्ष को लेकर ऐसी ही टिप्पणी कर दी होती तो! पसंगवश बता दें कि उन्होंने या पाकिस्तान के ही किसी दूसरे फवाद चौधरी के बिना कुछ कहे ही, 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों के बीच पार्टी के तब के अध्यक्ष अमित शाह ने रक्सौल की एक जनसभा में कह ही दिया था कि अगर किसी तरह भाजपा विरोधी महागठबंधन चुनाव जीत गया तो पाकिस्तान में पटाखे छूटेंगे। 

यह है, चुनाव में पाकिस्तान होना। वह इस्लामी देश है, कश्मीर के सवाल पर दो-दो बार हमसे लड़ चुका है, आतंकवाद की विष-बेल है, रक्त-पिपासु है और सत्तारुढ़ गठबंधन की केन्द्रीय पार्टी के खास कट्टरतावादी समर्थकों के लिये ऐसे शत्रु की छवि में सोलह आने फिट, जिसे सबक सिखाया जाना ज़रूरी है। अकारण नहीं कि सवाल तो कांग्रेस और उसके शीर्ष नेता राहुल गांधी और विपक्ष के कई दलों ने चीन के साथ एलएसी पर जारी गतिरोध और गलवान घाटी में पीएलए के साथ संघर्ष में हमारे 20 जवानों की मौत पर भी बहुत उठाये। चीनी पक्ष के कई जवानों के हताहत होने के दावों पर भी।

लेकिन इन दावों पर भारत में चीन के राजदूत की स्वीकारोक्ति को पीएम या भाजपा के किसी भी छोटे-बड़े नेता ने विपक्ष की धुनाई के लिये डंडा नहीं बना लिया। तब भी नहीं, जब ‘बिहार चुनावों में वोट बटोरने की जुगत में जुटे भाजपा और देश के शीर्ष नेता ने पुलवामा और गलवान – दोनों – में ‘भारत माता का सिर उन्नत रखने और तिरंगे की खातिर बिहार के जवानों के शौर्य और उच्चतम बलिदान का जिक्र एक साथ कर रहे थे। बल्कि जून के आखिरी हफ्ते में वीडोंग ने पीटीआई के साथ जिस इंटरव्यू में चीनी सेना के जवानों के भी हताहत होने की बात मान ली थी, उसी इंटरव्यू को ‘एंटी-नेशनल कवरेज का नमूना बताकर नेशनल ब्रॉडकास्टर ‘प्रसार भारती ने उसे संबंध तोड़ लेने का नोटिस तक थमा दिया था।

बहरहाल, यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि पुलवामा में आतंकवादी हमला 14 फरवरी, 2019 को दोपहर बाद 3.10-3.15 के करीब हुआ और 40 जवानों की मौत पर पीएम की पहली सार्वजनिक श्रद्धांजलि ट्विटर पर शाम 6.48 पर आयी, जबकि सुबह 7 बजे देहरादून के जॉलीग्रांट एयरपोर्ट से लेकर जिम कॉर्बेट, कालागढ़, रामगंगा नदी, ढिकाला, आल्ड फॉरेस्ट रेस्टहाउस, मोटरबोट, जंगल सफारी तक की व्यस्तता के बीच, खराब मौसम के कारण उन्होंने खिनलौली से ही मोबाइल के जरिये रूद्रपुर की चुनावी रैली को संबोधित भी किया था। कहते हैं कि पीएम को देर से ही सही, लेकिन शाम 4.00 बजे इस हमले की जानकारी मिल चुकी थी, लेकिन अपराह्न तीन बजे प्रस्तावित इस रैली को शाम 5.10 पर जब उन्होंने संबोधित किया तो उसमें इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का जिक्र भी न था।

(राजेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं। आप यूएनआई में कई वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं।)

राजेश कुमार
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