सीएजी का ईडी की तरह इस्तेमाल हो रहा है, निशाने पर हैं गडकरी

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी सीएजी ने केंद्र सरकार के कई मंत्रालयों में बड़े पैमाने पर हुई वित्तीय गड़बड़ियों यानी घोटालों को उजागर किया है। गृह, रेल, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, ग्रामीण विकास, आयुष, महिला एवं बाल विकास, शिक्षा आदि मंत्रालयों के बारे में सीएजी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट पेश की है, लेकिन मुख्यधारा के मीडिया यानी अखबारों में और टीवी चैनलों पर चर्चा हुई सिर्फ सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से संबंधित रिपोर्ट पर, जिसके कि मंत्री नितिन गडकरी हैं। बाकी मंत्रालयों के बारे में आई रिपोर्ट पर चर्चा तो दूर, उनके नामों का जिक्र तक नहीं हुआ कि इन मंत्रालयों के बारे में भी सीएजी ने कोई रिपोर्ट दी है या इन पर भी अंगुली उठाई है। 

वैसे सीएजी का नाम भी करीब एक दशक के बाद चर्चा में आया है। इस एक दशक के दौरान कई लोग तो भूल भी गए होंगे कि सीएजी नाम की कोई संस्था अपने देश में है। लोगों को यह भी याद नहीं होगा कि 2014 के चुनाव में भाजपा की जीत में विकास पुरुष के तौर पर नरेंद्र मोदी की बनाई गई छवि के बराबर ही उस समय के सीएजी विनोद राय की रिपोर्ट का भी योगदान था। सीएजी विनोद राय ने 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला खदान आवंटन में कथित तौर पर अरबों रुपए का घोटाले होने की रिपोर्ट पेश की थी, जिसे लेकर एक देशव्यापी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ ‘प्रायोजित’ हुआ था। हालांकि बाद में दोनों ही मामलों में जांच एजेंसियां को कुछ हाथ नहीं लगा था, लिहाजा वह अदालत में न तो आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत पेश कर सकी और न ही यह साबित कर सकी कि घोटाला हुआ था। 

दोनों ही मामलों में जब अदालत का फैसला आया, उससे चार साल पहले आम चुनाव हो चुके थे और सीएजी की रिपोर्ट को चुनाव में भरपूर भुनाया जा चुका था। कांग्रेस बुरी तरह हार कर सत्ता से बाहर हो चुकी थी और केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने सत्ता संभाल ली थी। विनोद राय भी सीएजी के पद से रिटायर हो गए थे और इस सत्ता परिवर्तन में अपने ‘अमूल्य योगदान’ के लिए पद्मभूषण से नवाजे जा चुके थे। इसके अलावा भी मोदी सरकार ने उन्हें पुरस्कार के तौर पर कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी थीं। अदालत में घोटाला साबित न होने और सभी आरोपियों के बरी हो जाने पर पूर्व सीएजी विनोद राय ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वे सेवा के बदले मिले मेवा का लुत्फ उठाने में मशगूल रहे। 

बहरहाल विभिन्न मंत्रालयों में घोटाले होने की सीएजी रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान भी और स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के अपने भाषण में भी दावा किया है कि उन्होंने देश को घोटाला-मुक्त सरकार दी है और भ्रष्टाचार पर रोक लगाई है। अब जबकि सीएजी की रिपोर्ट ने प्रधानमंत्री के दावे को सिरे से झुठला दिया है तो उस पर न तो सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया आई है और न ही भारतीय जनता पार्टी की ओर से। 

एक दशक पहले जब सीएजी की रिपोर्ट आई थी तो उसे लेकर मीडिया ने खूब कोहराम मचाया था। तमाम टीवी चैनलों ने मीडिया ट्रायल के जरिए अपनी तरफ से यह स्थापित कर दिया था कि अरबों रुपए के घोटाले हुए हैं। अखबार भी रोजाना कथित घोटालों के खिलाफ प्रायोजित आंदोलन की खबरों से अटे रहते थे। यूपीए सरकार के मंत्रियों से खूब सवाल पूछे जा रहे थे। यद्यपि आरोपी मंत्रियों से इस्तीफे ले लिए गए थे लेकिन विपक्ष, प्रायोजित आंदोलनकारी और मीडिया इससे संतुष्ट नहीं था। लेकिन अभी सीएजी रिपोर्ट को लेकर मीडिया के स्तर पर क्या हो रहा है? 

इस समय मुख्यधारा के मीडिया में सीएजी की रिपोर्ट को लेकर सिर्फ सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय और उसके मंत्री नितिन गडकरी मीडिया में चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। दूसरे मंत्रालयों के बारे में आई सीएजी रिपोर्ट की कोई चर्चा नहीं हो रही है। यहां तक कि गडकरी ने अपने मंत्रालय के बारे में सीएजी की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए प्रधानमंत्री को जो विस्तृत पत्र लिखा है, उसका भी कोई जिक्र नहीं हो रहा है। प्रधानमंत्री से तो इस बारे में कुछ पूछने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि उन्होंने मीडिया को इसकी इजाजत ही नहीं दी है। सरकार के दूसरे मंत्रियों की ओर से और भाजपा के नेताओं व प्रवक्ताओं से भी कोई सवाल नहीं पूछा जा रहा है। वे अन्य मंत्री भी मुंह नहीं खोल रहे हैं, जिनके मंत्रालयों के कामकाज में सीएजी ने वित्तीय गड़बड़ियां होने की बात कही है। 

कुल मिलाकर गडकरी को निशाना बनाया जा रहा है और गडकरी अपने स्तर पर सफाई दे रहे हैं। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के तहत चल रही परियोजनाओं में वित्तीय गड़बड़ियां हुई हैं या नहीं और गडकरी की सफाई में कोई दम है या नहीं, यह एक अलग चर्चा का विषय है, जिस पर चर्चा होनी चाहिए। लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि मीडिया के निशाने पर सिर्फ गडकरी ही क्यों हैं? सरकार और पार्टी के स्तर पर उनके बचाव में कोई आगे क्यों नहीं आ रहा है? सवाल यह भी है कि पूरे दस साल से सीएजी कहां थे और अब अचानक कैसे सक्रिय हो गए? लोकसभा चुनाव के चंद महीनों पहले एकाएक उनके सक्रिय होने से यह आशंका होना स्वाभाविक है कि कहीं सरकार और सत्तारूढ़ दल की अंदरुनी राजनीति में सीएजी का इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा है? 

मोदी सरकार पिछले कुछ वर्षों से विपक्षी दलों के नेताओं को डराने-फंसाने या उन्हें अपने पाले में लाने और राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें गिराने में जिस तरह ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और आयकर विभाग का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही है, वह किसी से छुपा नहीं है। इसलिए यह शंका होना या सवाल उठना वाजिब है कि सरकार का शीर्ष नेतृत्व कहीं सीएजी को भी अपनी पार्टी के भीतर अपने लिए असुविधाजनक लगने वाले नेताओं के खिलाफ मोहरे की तरह इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है।

सब जानते हैं कि नितिन गडकरी आरएसएस के शीर्ष नेताओं के बेहद विश्वासपात्र माने जाते हैं। मंत्री के रूप में वे अपना अधिकतम समय दलगत राजनीतिक गतिविधियों के बजाय अपने मंत्रालय के कामकाज में लगाते हैं। सरकार के पास भी अपनी ठोस उपलब्धियां गिनाने के लिए गडकरी के मंत्रालय की परियोजनाओं के अलावा ज्यादा कुछ नहीं है। गडकरी बेहद मुंहफट हैं, सो कई मौकों पर अपनी ही सरकार के कामकाज पर परोक्ष रूप से ऐसी टिप्पणी कर देते हैं, जो शीर्ष नेतृत्व के लिए नागवार होती हैं। नेहरू-गांधी परिवार और विपक्षी नेताओं के खिलाफ भी वे प्रधानमंत्री मोदी और दूसरे मंत्रियों की तरह तल्ख और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं करते हैं। लगभग हर विपक्षी दल के शीर्ष नेतृत्व या दूसरे प्रमुख नेताओं से उनके निजी संबंध बहुत अच्छे हैं। इन्हीं सब वजहों से उन्हें भाजपा में मोदी के विकल्प के रूप में भी देखा जाता है और माना जाता है कि अगर 2024 के चुनाव में भाजपा या उसका गठबंधन बहुमत से दूर रहता है तो ऐसी स्थिति में संघ उनका नाम नेतृत्व के तौर पर आगे कर सकता है।

इन सब बातों के अलावा एक खास बात यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी निजी तौर पर गडकरी को पसंद नहीं करते हैं। गडकरी जब पार्टी के अध्यक्ष थे, तब भी मोदी उन्हें पसंद नहीं करते थे। यही वजह है कि पार्टी संगठन में भी गडकरी को हाशिए पर डाला जा चुका है। गडकरी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष होने के नाते पहले पार्टी संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य हुआ करते थे, लेकिन एक साल पहले पार्टी के इन दोनों महत्वपूर्ण निकायों से उन्हें बाहर कर दिया गया, जबकि पूर्व अध्यक्ष होने के नाते राजनाथ सिंह और अमित शाह अभी भी दोनों निकायों में बने हुए हैं। 

बहरहाल सीएजी के जरिए गडकरी को निशाना बनाए जाने की शंका इसलिए भी होती है, क्योंकि करीब एक दशक पहले उनकी इसी तरह साजिशपूर्वक घेराबंदी करके उन्हें पार्टी अध्यक्ष के तौर पर दूसरा कार्यकाल लेने से रोका गया था। 

(कल पढ़िए: एक दशक पहले गडकरी को किस तरह साजिशपूर्वक पार्टी अध्यक्ष पद से हटाया गया था।)

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।) 

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