कर्नाटक: मोदी जी अपनी न सही, पीएम पद के गौरव एवं गरिमा का तो ख्याल रखें

कर्नाटक के चुनाव प्रचार का आज आखिरी दिन है। 10 मई को मतदान होगा और 13 मई को नतीजे सामने आ जाएंगे। लेकिन कोई चुनाव सिर्फ चुनाव नहीं होता है। उससे केवल सरकार नहीं बनती है। बल्कि उससे लोकतंत्र की सेहत और उसका पैमाना भी तय होता है। पिछले आठ सालों में देखा जा रहा है कि ये दोनों लगातार अभूतपूर्व गिरावट के शिकार हैं। यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब इसकी अगुआई देश का शीर्ष नेतृत्व कर रहा हो। पीएम मोदी कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान इस गिरावट की नई इबारत लिखे हैं। 

अपने आखिरी दिन तो उन्होंने पीएम के पद की गौरव और गरिमा को ही ताक पर रख दिया। उन्होंने सीधे-सीधे गांधी परिवार को अपना निशाना बनाया और कुछ ऐसे बयान दिए जिनका तथ्यों और तर्कों से कहीं दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि गांधी परिवार आतंकवादियों को प्रश्रय दे रहा है। अब कोई पूछ सकता है कि जिस परिवार के दो-दो सदस्य और जो देश के पूर्व प्रधानमंत्री भी थे, आतंकवाद की वलिबेदी पर चढ़ गए हों वो भला आतंकवाद को प्रश्रय देकर नया क्या हासिल करना चाहेगा।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अपनी एक सभा में इसका जवाब भी कुछ इन्हीं उदाहरणों के जरिये दिया। मोदी जी यहीं नहीं रुके उन्होंने मैसूर की अपनी उसी सभा में यह तक कह डाला कि गांधी परिवार कर्नाटक को देश से अलग कर देना चाहता है। इसके जरिये उन्होंने पूरी कांग्रेस को टुकड़े-टुकड़े गैंग से जोड़ दिया। अब देश के प्रधानमंत्री मुख्य विपक्षी पार्टी को अगर सीधे-सीधे आतंकवाद से जोड़ दे रहे हैं और उसे टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य करार दे दे रहे हैं तो इससे समझा जा सकता है कि मामला कितना गंभीर है। 

वह पार्टी जिसकी देश में कई राज्य सरकारें हैं। जो कई राज्यों में मुख्य विपक्षी पार्टी बनी हुई है। और देश की सत्ता पर जिसकी मजबूत दावेदारी है उसको इतने गंभीर मसले से जोड़कर आखिर पीएम मोदी क्या संदेश देना चाहते हैं? यह घटना क्या यह नहीं बताती है कि पीएम मोदी चंद वोटों के लिए एक ऐसा आरोप लगा रहे हैं जो किसी भी देश की सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया के विमर्श से बाहर हो जाता है। पीएम एक जिम्मेदारी का पद है। और देश की कोई पार्टी और उसका नेता अगर इस तरह के किसी गंभीर आरोप में लिप्त है तो सरकार को तत्काल उस दिशा में कदम उठाकर उसके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।

यहां तक कि पार्टी के तौर पर उसकी वैधता को तत्काल चुनौती दी जानी चाहिए। लेकिन मोदी जी ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि वह जानते हैं कि उनके आरोप सही नहीं हैं और तथ्यों की कसौटी पर वो कहीं नहीं टिकेंगे। और इस मामले में अगर छान-बीन की जाए तो खुद पीएम मोदी और उनके पितृ संगठन के तमाम हाइड्रा रूपी बच्चे इसी तरह की कार्यवाहियों में लिप्त पाए जाएंगे। प्रज्ञा ठाकुर से लेकर इंद्रेश कुमार तक इसके जीते जागते सबूत हैं। जिनके खिलाफ आतंकवादी कार्रवाइयों में शामिल होने के मुकदमे चल रहे हैं। वीएचपी से लेकर बजरंग दल के सैकड़ों सदस्यों पर दंगों में लिप्त होने के न जाने कितने आरोप हैं। 

कई के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई चल रही है तो कई जेल की सजाएं काट रहे हैं। और पीएम मोदी को एक बात समझनी चाहिए कि किसी देश और समाज के लिए वह स्थिति सबसे ज्यादा खतरनाक होती है जो देश को भीतर से कमजोर करती है। और यह कमजोरी किसी दौर में आगे बढ़कर उसके टूटने की वजह बन सकती है। इस लिहाज से देश में घृणा और नफरत के नाम पर जो वैमनष्य फैलाया जा रहा है वह न केवल देश के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए बेहद घातक है। इस मामले में प्रधानमंत्री खुद इसी चुनाव में एक बार फिर कठघरे में खड़े हो गए हैं। वह लगातार बजरंगबली के नाम पर वोट मांग कर रहे हैं और चुनाव में अपना भाषण शुरू करने से पहले बजरंग बली का नारा लगवा रहे हैं। और चुनाव के आखिर में मतदाताओं से यह अपील कर रहे हैं कि जय बजरंग बली का नारा लगाकर वो वोट डालें। 

क्या चुनाव आचार संहिता का यह खुला उल्लंघन नहीं है? धर्म के नाम पर वोट मांगना संविधान में गुनाह की श्रेणी में आता है। ऐसा करने वाले के न केवल चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी जाती है बल्कि कई बार मामला गंभीर होने पर उसके चुनाव लड़ने और वोट डालने तक के अधिकार को छीन लिया जाता है। देश के सामने शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे की नजीर है। जिसमें उनके एक चुनावी सभा में धर्म के नाम पर वोट मांगने पर छह साल तक वोट डालने के उनके नागरिक अधिकार से ही उन्हें वंचित कर दिया गया था।

और उससे भी ज्यादा पीएम मोदी बजरंगबली का धार्मिक नारा देकर क्या दूसरे धर्मों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित नहीं कर रहे हैं? अगर इसी तरह से कोई मुस्लिम प्रत्याशी या फिर नेता अल्लाह-हो-अकबर के नारे पर लोगों से वोट मांगने लगे। जेहाद के नाम पर वोट मांगने लगे। खालिस्तान का कोई समर्थक अपने धर्म के नाम पर वोट मांगने लगे तो उसका नतीजा क्या होगा? अगर आप देश को हिंदू राष्ट्र बनाते हैं तो क्या आपने बताया है कि उसमें देश के दूसरे धर्मों मसलन बौद्धों, जैनों, सिखों, ईसाइयों और मुसलमानों का क्या स्थान होगा? वो आपके हिंदू राष्ट्र की अधीनता स्वीकार कर लेंगे या फिर अपना धर्म बदल लेंगे? 

आखिर उनके लिए आपके सामने क्या विकल्प है? और अगर अधीनता न स्वीकार कर वो अपना कोई अलग रास्ता अख्तियार करने का फैसला लेते हैं तब आप क्या करेंगे? जैसे आपको इस देश को हिंदू राष्ट्र बनाने और उसे घोषित करने का अधिकार है उसी तरह से वो भी अगर अपने धर्म के नाम पर राष्ट्र की मांग शुरू कर देंगे तो उन्हें किस तर्क से आप रोक पाएंगे? अगर इस देश में हिंदू राष्ट्र जायज है तो फिर ख़ालिस्तानी राष्ट्र की मांग करने वालों को आप कैसे नाजायज ठहरा सकते हैं? और कुल मिलाकर आप इस तरह से क्या तमाम धर्मों और संप्रदायों को आपस में लड़ाने का काम नहीं कर रहे हैं? लिहाजा देश को तोड़ने का काम कांग्रेस और उसके नेता नहीं बल्कि आप समेत बीजेपी और आरएसएस के लोग कर रहे हैं।

लेकिन पश्चगामी संघ को आगे का रास्ता रास ही नहीं आता है। ये इतिहास जीवी हैं इसलिए लगता है भविष्य से उनका कोई वास्ता ही नहीं है। 21 वीं सदी में खड़ा होकर कोई कहे कि वह 14 वीं सदी को फिर से जिंदा करेगा तो उससे अहमकाना बात और क्या हो सकती है। धर्म के नाम पर चलने वाले राष्ट्रों का हश्र क्या होता है अफगानिस्तान, सीरिया से लेकर तमाम देशों को लोगों ने देखा है। पड़ोसी पाकिस्तान धर्म के जाल में उलझ कर आज कहां खड़ा है यह बात किसी से छुपी नहीं है। लेकिन संघ ने तो जैसे इन्हें ही अपना आदर्श मान लिया है। 

कई बार ऐसा ही होता है किसी से लड़ते-लड़ते आप उसी के जैसे हो जाते हैं। और शायद बीजेपी-संघ इसी हश्र को प्राप्त हो चुके हैं। फिलहाल चिंता का विषय व्यक्ति नरेंद्र मोदी के गिरते स्तर की नहीं, सवाल प्रधानमंत्री पद के गौरव और गरिमा का है। जिसके साथ देश की गरिमा और गौरव जुड़ा हुआ है। नरेंद्र मोदी हर चुनाव में प्रधानमंत्री पद की गरिमा को निचले से निचले स्तर पर ले जा रहे हैं। गिरावट के नए कीर्तिमान कायम कर रहे हैं। कर्नाटक के चुनाव प्रचार से यह बात साफ हो गयी है कि पीएम मोदी को अपनी साख की चिंता तो कभी नहीं थी। लेकिन अब उन्हें प्रधानमंत्री पद और देश की साख की भी कोई चिंता नहीं रह गई है। चुनाव प्रचार पर निकलने से पहले पद और उसकी गरिमा को भी वह रेसकोर्स आवास में ही छोड़ देते हैं।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के फाउंडिंग एडिटर हैं।)

महेंद्र मिश्र
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