ग्राउंड रिपोर्ट: असली आरोपियों की जगह बम से उड़ाए गए दलित युवक से जुड़े लोगों को ही पुलिस ने किया गिरफ्तार

रनिया मऊ (लखनऊ)। वह एक 18 साल का बेहद गरीब दलित युवक था, नाम था शिवम। वह पढ़ लिख कर अपना और अपने परिवार का भविष्य सँवारना चाहता था, क्योंकि वह जानता था कि शिक्षा ही उन्हें गरीबी और भेदभाव से मुक्ति दिला सकती है इसलिए वह खूब पढ़ना चाहता था लेकिन पिछले दो साल से कोरोना के चलते स्कूल बंद होने के कारण वह मजदूरी करने हरिद्वार चला गया। लेकिन अब स्कूल खुल जाने के कारण वह वापस अपने गाँव आ गया ताकि पढ़ाई जारी रख सके। पाई-पाई बचाकर जो बचत उसने की थी उसे वह अपनी पढ़ाई में खर्च करना चाहता था लेकिन ऐसा सब कुछ होने से पहले ही एक ऐसी घटना हो गई जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। गाँव के ही ठाकुरों द्वारा उसे बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। मौत भी ऐसी जिसने भी देखा, सुना सन्न रह गया।
आखिर कौन था वह युवक और क्यों उसे मार दिया गया, इस पूरे घटनाक्रम को जानने के लिए यह रिपोर्टर पहुँची, राजधानी लखनऊ से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित माल थाना क्षेत्र के तहत आने वाले गोपरा मऊ पंचायत के रनिया मऊ गाँव में, जहाँ मृतक शिवम अपने गरीब माता-पिता और तीन छोटे बहन-भाई के साथ रहता था।
बदले की आग ने ली निर्दोष की जान
रनिया मऊ गाँव के रहने वाले मेवा लाल पेशे से मजदूर हैं। चार बच्चों में शिवम सबसे बड़ा था। मेवालाल मजदूरी कर किसी तरह परिवार का पेट पाल रहे थे। खेती भी इतनी नहीं कि उसी से गुजर बसर चल सके तो कभी दूसरों के खेतों में मजदूरी कर तो कभी मनरेगा में मजदूरी कर लेते थे। लेकिन। अब पिछले कुछ समय से बीमार रहने की वजह से घर की जिम्मेवारी शिवम के कंधों पर आ गई थी,  सो दो साल कोरोना के चलते पढ़ाई बंद होने की वजह से वह मजदूरी करने हरिद्वार चला गया, लेकिन जब सब कुछ ठीक हो गया तो उसने वापसी करके आगे की पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया।

चारपाई जिसके नीचे बंब रखा गया था।

शिवम के माता पिता की भी यही इच्छा थी लेकिन कौन जानता था कि शिवम के पिता मेवालाल की जान के दुशमन बने गाँव के ही कुछ ठाकुरों की बदले की आग का शिकार मासूम शिवम हो जायेगा और दुश्मनी भी ऐसी बात पर जो किसी भी लिहाज से जायज़ नहीं ठहराई जा सकती। परिवार और ग्रामीणों से मिली जानकारी के मुताबिक गाँव के दो ठाकुरों के बीच जमीन के पैसों की लेन देन को लेकर आपसी विवाद चल रहा था। एक पक्ष ने दूसरे पक्ष को ज़मीन बेची लेकिन दूसरा पक्ष जमीन लेकर पैसों के भुगतान में आनाकानी करने लगा , अब इसमें मेवा लाल की भूमिका क्या थी जो वह और उसका परिवार जमीन खरीदने वाले ठाकुर परिवार के आंखों में खटकने लगा।

मेवालाल के मुताबिक उसका कसूर केवल इतना था कि वह जिस वकील के खेतों में मजदूरी करते थे, वही वकील पीड़ित ठाकुर परिवार का मामला देख रहे थे तो आरोपी ठाकुरों को लगा कि उसके कारण ही (मेवा लाल)  उनका सारा खेल चौपट हो रहा है और उसी के कहने पर वकील इस मामले को देखने के लिए राजी हुआ है। आंखों में आंसू लिए मेवा लाल की पत्नी सावित्री हाथ जोड़ कर कहती हैं, बताईये इसमें हम कहाँ से कसूरवार हुए जो हमें निशाना बना दिया गया। वह कहती हैं,क्योंकि हम गरीब हैं दलित हैं इसलिए हमारे साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार किया गया जबकि दुश्मनी दो ठाकुरों के बीच थी बस हमारा कसूर इतना था कि एक पक्ष के ठाकुरों के बीच हमारा उठना बैठना था और इत्तफाक से जिस वकील के हाथों पीड़ित परिवार का केस था, उसके पति मेवा लाल उस वकील के खेत मजदूर थे।

मृतक शिवम


उस दिन आखिर हुआ क्या…..
घटना वाले दिन को याद कर शिवम के माता पिता बिलख उठते हैं। उन्हें आज भी विश्वास नहीं होता कि उनके बेटे को इतनी दर्दनाक मौत दे दी गई। मेवा लाल बताते हैं  बीते 18 जून की जिस रात यह घटना हुई उसी दिन दोपहर को शिवम हरिद्वार से लौटा था यह सोचकर की अब वापस नहीं जाना बल्कि यहीं रहकर आगे की पढ़ाई करनी है । मेवा लाल के मुताबिक घर के बाहर जिस चारपाई में शिवम उस रात सोया था उस चारपाई में हर रात वह खुद सोते थे लेकिन उस दिन रात में खाना खाने के बाद थका मांदा शिवम सो गया। शिवम की कुछ दूरी पर उसके ताओ जी सोये हुए थे बाकी सब परिवार के लोग अंदर सोये थे।

शिवम का घर जो बम विस्फोट के बाद और जर्जर हो गया

उनके मुताबिक रात के करीब एक बजे जोर से धमाके की आवाज आई जब सब लोग बाहर की तरफ भाग कर आये तो देखा चारों तरफ धुआँ था जिसकी वजह से कुछ नजर नहीं आ रहा था। जब धुआँ थोड़ा कम हुआ तो देखा कि बेटा चारपाई से कम से कम दस फुट की दूरी पर गिरा तड़प रहा है और कई जगह से उसके शरीर के चीथडे उड़ चुके थे, चारपाई के नीचे गड्डा हो गया था। मंजर बहुत ही भयनाक था शिवम के शरीर की हालत ऐसी हो गई थी कि कहाँ से पकड़ कर उसे उठाएं कुछ समझ नहीं आ रहा था। सावित्री ने बताया कि जब वे लोग बाहर आये तो अपने घर से कुछ दूरी पर उन लोगों को भागते हुए देखा जो कई दिनों से उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे और वे और कोई नहीं वही ठाकुर लोग थे जिन्होंने जमीन कब्जाया हुआ था।
तीन दिन अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद आखिरकार शिवम ने 21 जून को दम तोड़ दिया। मेवा लाल कहते हैं मारना वे उसे चाहते थे, लेकिन शिकार बेटा बन गया।
हत्यारे बाहर…बेकसूरों को हो गई जेल
मेवा लाल और उनके समाज के लोगों के मुताबिक जिन ठाकुरों ने यह कांड किया वे इलाके के बेहद दबंग हैं और उसमें से तो एक हिस्ट्रीशीटर है इसलिए पुलिस भी उन्हें गिरफ्तार करने से बच रही है। वे कहते हैं हमें इस बात का अंदाजा बिल्कुल नहीं था कि वे लोग इतनी दुश्मनी पाल लेंगे कि हत्या करने तक में उतारू हो जायेंगे। गुस्से भरे स्वर में वे कहते हैं इतना बड़ा कांड हुआ, मौका ए वारदात से हमने हत्यारों को भागते हुए देखा और वो वही लोग थे जो हमें मारने की धमकी दे रहे थे, इस सबके बावजूद पुलिस आती है लेकिन असली हत्यारों को न पकड़ बेकसूरों को पकड़ कर ले गई, उनके साथ बर्बरता की गई और उनसे जबर्दस्ती जुर्म कबूल करवाया गया। उनके मुताबिक पकड़े गए सभी युवक ठाकुर जाति के ही हैं लेकिन ये उन सब परिवार के बच्चे हैं जो उनके दुःख दर्द में शामिल हैं कुल मिला कर उनसे भी दुश्मनी निकाली जा रही है जिसमें अब पुलिस भी उनका साथ दे रही है।

शिवम के माता-पिता और भाई-बहन

पुलिस की इस कार्रवाई से न केवल गाँव के दलित टोले में भारी आक्रोश है। मेवा लाल कहते हैं, सच तो यह है कि गरीब और दलित के लिए कहीं कोई न्याय नहीं, यह बात इसी से साबित हो जाती है कि जो तहरीर उन्होंने लिख कर दी थी उसे न मानते हुए पुलिस ने अपने हिसाब से तहरीर लिखी। वे अपने पर मंडरा रहे खतरे के मद्देनजर कहते हैं, आज भी वे अपराधी खुलेआम कहते हैं कि अभी तो एक बम फोड़ा है दो और रखे हैं जिसका इस्तेमाल वो कभी भी कर सकते हैं, इसलिए उन्हें डर है कि वे लोग मौका देखकर उनकी जान भी ले सकते हैं । 

पुलिस ने की बर्बरता की सारी हदें पार  
शिवम की माँ सावित्री कहती हैं जब हमने अपनी आंखों से अपराधियों को भागते हुए देखा है तो आखिर पुलिस उन्हें पकड़ कर क्यों नहीं पूछताछ करती, सावित्री और  अन्य लोगों ने बताया कि गाँव के जिन युवकों को पुलिस पकड़ कर ले गई उनके साथ बहुत ज्यादा बर्बरता की गई, अपनी जान बचाने के लिए उन्हें उस जुर्म को अपने माथे लेना पड़ा जो उन्होंने किया ही नहीं। अभी शिवम के परिवार से इन सब मसलों पर बातचीत हो ही रही थी कि जेल में बंद युवकों में से दो युवकों की माँ, कमला सिंह और सरोजिनी देवी भी वहाँ पहुँच गईं ताकि अपने बच्चों पर हो रहे पुलिसिया दमन की सच्चाई बता सकें। पकड़े गए युवकों में एक मोहित की माँ कमला बताती हैं कि जब बम कांड हुआ तो उनका बेटा मोहित तो तब गाँव में था ही नहीं अपने बुआ के घर पर था।

पुलिसिया बर्बरता का शिकार करण

कुछ दिन बाद पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए बुलाया और गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। वह कहती हैं मेरे निर्दोष बेटे को बहुत पीटा गया। करंट लगाया गया, खाना पीना बंद कर दिया गया, ज उससे जुर्म कबूलाया गया तो वहीं गिरफ्तार अंशुल और करण की माँ  सरोजनी ने बताया कि उनके गिरफ्तार बच्चों को अपराधी साबित करने के लिए पुलिस कैसे हैवान बन गई। करण को तो जमानत मिल गई लेकिन अंशुल अभी जेल में है। करण भी अपनी माँ के साथ हमसे मिलने पहुँचा था। उसके शरीर में पड़े निशान पुलिसिया दमन की कहानी साफ बयाँ कर रहे थे। इतना पीटा गया था कि अभी तक उसका उठना बैठना मुहाल था। करण के मुताबिक कई दिन उन लोगों को पीटा गया, खाना बंद कर दिया गया, करंट लगाया गया, तेजाब डाला गया  और भी बहुत कुछ अमानवीयता की गई और सब से जबरन अपराध कबूल कराया गया।

मौके पर पहुंची पुलिस


घर के आस पास तैनात है पुलिस
बम कांड के बाद पूरा गाँव छावनी में तब्दील कर दिया गया था उसके बाद माहौल ठीक हो जाने के बाद पुलिस फोर्स को वहाँ से हटा दिया गया लेकिन अभी भी दो पुलिस वाले रात दिन मेवालाल के घर के आस पास तैनात रहते हैं। मेवा लाल और परिवार के अन्य सदस्यों के मुताबिक पुलिस की भले ही यह कहा जा रहा हो कि पुलिस उनकी सुरक्षा के लिए बैठाई गई है लेकिन सच यह है कि उनकी सुरक्षा से ज्यादा पुलिस उनकी निगरानी के लिए रखी गई है। मेवालाल के भाई रमेश कहते हैं पुलिस की वजह से हमारा कहीं आना जाना दूभर हो गया है, यहाँ तक की जरूरी काम से बाजार जाना तक मुश्किल हो गया है अब यदि हम गुहार लगाने बड़े पुलिस अधिकारी या अन्य कहीं भी जायें तो अखिर कैसे। वे कहते हैं कहीं भी जाओ तो पुलिस ऐसे पूछताछ में जुट जाती है जैसे हम पीड़ित नहीं बल्कि अपराधी हैं।

मोहित और अंशुल की माताएं

सचमुच इस घटना ने यह साबित कर दिया कि आज भी दलित उत्पीड़न की घटनायें चरम पर हैं, और चरम इस हद तक कि बम से ही उड़ा दिया जाता है। इससे ज्यादा वीभत्स घटना आज के दौर में और क्या हो सकती है, भयावह यह भी कि मारने वाले खुलेआम घूम रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि दलित उत्पीड़न की घटनाएँ उत्तर प्रदेश में बढ़ रही हैं लेकिन इनमें आखिर लगाम लगे भी तो कैसे जब सरकार इस सच्चाई को स्वीकार करने को ही तैयार नहीं वरना दलित उत्पीड़न की इतनी बड़ी घटना घट जाती है वो भी राजधानी लखनऊ से महज कुछ किलो मीटर की दूरी पर और सरकार मौन धारण किये रहती है, इससे बड़ी विडंबना क्या होगी।

इस मामले में स्थानीय थाने की पुलिस के लोगों से संपर्क किया गया तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया गया। उनका का कहना था कि पुलिस कार्रवाई कर रही है गिरफ्तारियां उसी का नतीजा हैं।

(लखनऊ से सरोजिनी बिष्ट की रिपोर्ट।)

सरोजिनी बिष्ट
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