नेपाली सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां अलग हुईं

8 मार्च को नेपाल के सुप्रीम कोर्ट द्वारा नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (माओवादी सेंटर) के बीच साल 2018 में हुए पार्टी विलय के फैसले को अमान्य घोषित करने के एक दिन बाद, सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) राजनीतिक और तकनीकी रूप से अलग हो गई है।

बता दें कि साल 2017 के चुनाव में केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में तत्कालीन नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और प्रचंड के नेतृत्व वाली नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने चुनावी गठबंधन बनाया था। दोनों पार्टियों के उम्मीदवार अपने-अपने चुनाव चिन्ह पर एक साझा मैनिफ़ेस्टो के साथ चुनाव लड़े थे। इस गठबंधन को चुनावों में दो-तिहाई बहुमत मिला था। प्रचंड की पार्टी के समर्थन से ही ओली प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे। उसके बाद दोनों पार्टियों का औपचारिक विलय मई 2018 में हुआ था। यानी नेपाल में ओली प्रधानमंत्री पहले बने और बाद में दोनों पार्टियों का औपचारिक विलय हुआ।

दोनो पार्टियों के इस विलय के फै़सले के ख़िलाफ़ याचिकाकर्ता ऋषिराम कात्याल ने नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था उन्होंने इस नाम से पहले ही एक पार्टी रजिस्टर करवा रखी है। कात्याल ने मई 2018 में ओली और प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) को पंजीकृत करने के चुनाव आयोग के फ़ैसले को इस याचिका में चुनौती दी थी। जिस पर अपना फैसला सुनाते हुए कल नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने इस विलय को अमान्य घोषित कर दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जून 2018 में ओली और प्रचंड के तहत पंजीकृत एनसीपी को भी अमान्य कर दिया था।

काठमांडू पोस्ट के मुताबिक रविवार को न्यायमूर्ति कुमार रेगमी और न्यायमूर्ति बाम कुमार श्रेष्ठ की पीठ ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party of Nepal) पर वैध अधिकार ऋषिराम कात्याल को सौंप दिया है। बता दें कि ऋषिराम कात्याल ने ओली और प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के गठन से पहले चुनाव आयोग में इसका पंजीकरण अपने नाम कराया था।

कात्याल ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) का मई 2018 में ओली और प्रचंड के तहत पंजीकरण करने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी थी। नेपाल के सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने अपने फैसले में कहा कि निर्वाचन आयोग में ऐसी किसी नई पार्टी का पंजीकरण नहीं हो सकता जबकि उसके नाम से कोई पार्टी पहले से रजिस्‍टर्ड हो।

नेपाल के सर्वोच्‍च न्यायालय ने रविवार के अपने फैसले में कहा है कि सीपीएन-यूएएमल और सीपीएन (माओइस्ट-सेंटर) को विलय पूर्व स्थिति में लौटना होगा। हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि यदि दोनों पार्टियों को आपस में विलय करना है तो उन्‍हें राजनीतिक दल अधिनियम के तहत निर्वाचन आयोग में आवेदन दाखिल करना चाहिए।

बता दें कि इन दोनों ही धड़ों का नेतृत्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पुष्प कमल दहल प्रचंड कर रहे थे। इन दोनों नेताओं ने 2017 के आम चुनावों में दोनों पार्टियों के गठबंधन को मिली जीत के बाद मई 2018 में आपस में विलय कर एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया था।

बात कुल इतनी है कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) को मिला कर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) नाम मिलना ही ग़लत था, क्योंकि इस नाम की पार्टी पहले से ही पंजीकृत थी। जबकि पार्टी के तौर पर एनसीपी का अस्तित्व नहीं है। यानी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब एनसीपी विलय के पहले वाली पार्टी ही है। ऐसे में अगर दोनों पार्टियों को दोबारा विलय करना ही है तो वापस से पूरी प्रक्रिया को अपनाना होगा।

दरअसल प्रचंड और ओली के नेतृत्व वाली दोनों पार्टियों ने लिख कर समर्थन पत्र राष्ट्रपति को दिया था, उसके बाद ही ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे। अगर प्रचंड वो समर्थन वापस ले लेते हैं तो ओली के प्रधानमंत्री पद को ख़तरा हो सकता है। केवल कोर्ट द्वारा दोनों पार्टियों के विलय को खारिज़ करने से प्रधानमंत्री को कोई ख़तरा नहीं है।

बता दें कि 275 सदस्यों वाली नेपाल की प्रतिनिधि सभा में सरकार बनाने के लिए बहुमत का आँकड़ा 138 है। साल 2017 के चुनावों में, ओली की पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने 121 सीटें जीती थीं और प्रचंड की नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने 53 सीटें हासिल की थी। इसके अलावा नेपाली कांग्रेस के पास 63 सदस्य निर्वाचित हुए थे जबकि जनता समाजवादी पार्टी के 34 सदस्य चुने गये थे। कुछ संसद सदस्यों के निधन और कुछ के सस्पेंड होने के चलते फ़िलहाल नेपाल के संसद में 266 सदस्यों के पास ही वोटिंग का अधिकार है, ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 134 ठहरता है।

माधव नेपाल ने सोमवार शाम को प्रचंड के साथ बातचीत के बाद कहा है, “संवैधानिक प्रावधान के अनुसार, कानून बनाने वाले राजनीतिक दल को व्यक्तिगत आधार पर नहीं बदल सकते। अगर वे ऐसा करते हैं, तो वे संसदीय सीटों को खो देंगे। हमारा दिल बड़ा है और हमने यूएमएल में शामिल होने का फैसला किया है। लेकिन लोकतंत्र और साम्यवाद के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा।”

बता दें कि चरणचंद ने नेपाल और अन्य नेताओं के साथ चर्चा के लिए बैठक बुलाई थी कि आगे क्या करना है। “हमने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करने का फैसला किया है और यूएमएल को वापस पंजीकृत कराने जा रहे हैं”। वहीं इसके प्रवक्ता राजकुमार श्रेष्ठ ने कहा है कि “ वह यूएमएल और माओवादी को अपनी-अपनी पार्टी को फिर से पंजीकृत करने के लिए अपील करने जा रहे हैं”।

इससे पहले पिछले साल यानि 20 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री ओली ने संसद भंग करने की सिफ़ारिश राष्ट्रपति के पास भेजी थी। राष्ट्रपति ने ओली सरकार की सिफ़ारिश को मानते हुए देश की संसद को भंग कर दिया था और मध्यावधि चुनावों की घोषणा की थी। इस साल सुप्रीम कोर्ट ने केपी शर्मा ओली के संसद भंग करने के आदेश को पलटते हुए 13 दिन के अंदर संसद का अधिवेशन बुलाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रविवार को संसद का अधिवेशन बुलाया भी गया, लेकिन रविवार को ही सुप्रीम कोर्ट का ये फ़ैसला आ गया।

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