लोकतंत्र नहीं देश में काम कर रहा है गैंग तंत्र

पीएम मोदी के ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ के अभियान का 8 साल बाद हस्र यह हुआ है कि बेटियों को अपनी इज्जत-आबरू बचाने के लिए उन्हें जंतर-मंतर पर इकट्ठा होना पड़ा है। विडंबना देखिये यह अभियान 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत से शुरू हुआ था। और अब वहीं की बच्चियों को अपनी अस्मत की रक्षा के लिए राजधानी दिल्ली में दस्तक देनी पड़ी रही है। और ये कोई सामान्य बच्चियां नहीं हैं। वो किसी घर की चारदीवारी में बंद घरेलू महिलाएं नहीं हैं, न ही वो हाईस्कूल, इंटर या फिर किसी विश्वविद्यालय की आम छात्रा हैं। इन खिलाड़ियों ने पूरे देश का नाम दुनिया में रौशन किया है। मेडलों को हवा में लहराकर तिरंगे को आसमानी बुलंदी दी है। देश की इज्जत का दुनिया में झंडा गाड़ा है। अखाड़ों को घर बना चुकी इन बच्चियों ने देशवासियों को गौरव के वो क्षण मुहैया कराए हैं जो किसी की सिर्फ कल्पना में आते हैं। लेकिन इसके एवज में उन्हें क्या मिला? जिंदगी की जलालत?

सत्ता में बैठा एक माफिया उनकी इज्जत लूटता रहा और सभी बेबस रहीं। उन्होंने एक आवाज तक नहीं निकाली। यह सिलसिला एक साल, दो साल या पांच साल नहीं बल्कि दसियों साल तक चलता रहा। और वह भी किसी एक, दो और दस नहीं बल्कि पीड़ित महिला पहलवानों की मानें तो यह संख्या 700 से लेकर 800 और एक हजार तक पहुंच सकती है। इससे इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि इन पीड़ित महिला खिलाड़ियों को किन दुरूह स्थितियों से गुजरना पड़ा होगा। और यह समझने में किसी के लिए मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि पानी जब सिर से ऊपर चला गया होगा तभी इन लड़कियों ने मामले को सार्वजनिक करने का फैसला किया होगा। और आखिर में उन्हें जंतर-मंतर का रुख करना पड़ा।

यहां पहुंचने से पहले वो इस बात को भी जानती थीं कि उनकी लड़ाई कितनी कठिन है। उनके सामने केवल एक सांसद नहीं बल्कि माफिया है जिसके खिलाफ 38 से ज्यादा संगीन मामले दर्ज हैं। जिसमें हत्या से लेकर हत्या के प्रयास और हर तरह के अपराध के मामले शामिल हैं। ऊपर से वह एक ऐसी सत्ता के संरक्षण में है जिसका अपनी पार्टी, संगठन से जुड़े लोगों और अपने करीबी बलात्कार और हत्या के आरोपियों को बचाने का इतिहास है। 

इस मामले में भी यही हुआ। पहले पांच दिनों तक सरकार ने धरने की कोई नोटिस ही नहीं ली। और जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो पुलिस ने जांच कर एफआईआर पर फैसला लेने की बात कहकर उसे टालने की कोशिश की। जो सरासर कानून का उल्लंघन है। क्योंकि ऐसे मामलों में पहले एफआईआर दर्ज होती है फिर उसके बाद जांच की प्रक्रिया शुरू होती है। बाद में सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख को देखते हुए पुलिस ने अगली सुनवाई में एफआईआर दर्ज करने की बात मान ली।  

लेकिन सत्ता की हनक देखिए पॉस्को जैसी गंभीर धारा के तहत एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अभी तक अभियुक्त बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार नहीं किया गया है। और दबने, झुकने या फिर शर्मिंदा होने की जगह वह लगातार पीड़ितों के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। विपक्षी दलों और कुछ ताकतों की साजिश बताकर पूरे मामले पर लीपापोती करने की कोशिश कर रहे हैं।

यह विडंबना ही है कि इसी स्तर के एक माफिया राजनीतिज्ञ को पुलिस की कस्टडी में गोली मरवा दी जाती है और पूरा देश उसका जश्न मनाता है। जबकि दूसरी तरफ महिला खिलाड़ियों की इज्जत-आबरू से खिलवाड़ करने वाला यह शख्स देश की राजधानी में बैठकर हर तरह की बकवास कर रहा है जिसको गोदी मीडिया न केवल प्रचारित कर रहा है बल्कि सत्ता समर्थक जमात हर तरीके से उसके बचाव में जुट गयी है। संस्कृति के नाम पर इस देश के भीतर जो पाखंड रचा गया है उसका यह ज्वलंत नमूना है।

इस पूरे मामले पर देश की सत्ता के शीर्ष पर बैठा शख्स बिल्कुल चुप है। एक हफ्ते से ज्यादा वक्त बीत गया है लेकिन पीएम मोदी की तरफ से अभी तक कोई बयान नहीं आया है। बहरहाल इस तरह के मामलों में उनका और उनकी सत्ता का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है। गुजरात में हुए स्नूपिंग गेट के वह खुद सूत्रधार रहे हैं और मामले को किस तरह दबाया गया था उस पर नजर रखने वालों ने खुद देखा था। उसका आखिरी खामियाजा एक निर्दोष आईपीएस अफसर को भुगतना पड़ा जो तकरीबन पिछले पांच सालों से जेल की सींखचों के पीछे है। आलम यह है कि उसे किसी एक मामले में जमानत मिलती है तो दूसरे में फंसा कर फिर जेल में डाल दिया जाता है। और इस तरह के मामलों की तो लंबी फेहरिस्त है।

चिन्मयानंद से लेकर सेंगर और साक्षी महाराज से लेकर राम रहीम तक के पक्ष में बीजेपी सरकारें कैसे बेशर्मी से खड़ी हुईं यह पूरे देश ने देखा है। और बिलकीस बानो के मामले में जेल से छूटे बलात्कारियों और हत्यारों का जिस तरह से फूल-मालाओं के साथ स्वागत किया गया उसको देखने के बाद क्या कुछ और बताने के लिए रह जाता है। आखिर आप देश और उसकी जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं? बिलकीस मुसलमान होने से पहले एक औरत हैं। और आप को क्या यह नहीं सोचना चाहिए कि उनके साथ बलात्कार करने वालों का स्वागत करके आप देश की आधी आबादी की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं और यह संदेश दे रहे हैं कि अगर कोई बलात्कार भी होता है तो बीजेपी और उसके शासित प्रदेशों में उसे कोई बड़ा अपराध नहीं माना जाएगा।

ऐसे में क्या बलात्कारियों के हौसले बुलंद नहीं होंगे? और इस मामले को अगर आपने वैचारिक जामा पहना दिया और अपने नेताओं, कार्यकर्ताओं या फिर आम पुरुषों के लिए किसी मुस्लिम महिला के बलात्कार को प्रशंसनीय बना दिया तो इसकी क्या गारंटी है कि कल वही बलात्कारी किसी हिंदू महिला का उत्पीड़न नहीं करेगा? क्योंकि बलात्कारी बलात्कारी होता है। वह एक मानसिकता होती है। और उसे अगर किसी एक तबके या फिर समुदाय के लिए छूट दी गयी तो दूसरे का उसकी चपेट में आने से नहीं रोका जा सकता है।

मौजूदा सत्ता सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया द्वारा संचालित नहीं है। यह अपने किस्म की अभूतपूर्व स्थिति है जिसमें संविधान तकरीबन ठप कर दिया गया है और कुछ संस्थाएं अगर काम करती हुई दिख रही हैं तो ऐसा उनमें बैठे एकाध लोगों की अपनी जिम्मेदारी का एहसास, खतरा मोल लेने की क्षमता और व्यक्तिगत जिद के चलते है। नहीं तो पूरा देश एक माफिया तंत्र के अधीन है। जिसमें हर तरह के हत्यारे, अपराधियों और बलात्कारियों को खुली छूट है। ठग और लुटेरे सत्ता से जुड़कर पूरी जनता और उसकी संपत्ति को लूट रहे हैं। अनायास नहीं एक शख्स जेड प्लस की सुरक्षा लेकर सालों साल कश्मीर से लेकर गुजरात तक घूमता रहा। और उसका कोई बाल बांका नहीं कर सका। क्या यह बगैर गृह मंत्रालय और पीएमओ की जानकारी के संभव है? गिनती भर के लोगों को जेड प्लस सुरक्षा मिलती है। और उसको दिए जाने से पहले फाइल सैकड़ों टेबुलों का रास्ता तय करती है और जिसमें हर स्तर पर संस्तुति की जरूरत होती है।

ऐसे में सत्ता को इसकी जानकारी न हो यह असंभव है। इसी तरह संजय शेरपुरिया नाम का एक दूसरा शख्स अचानक गिरफ्तार किया जाता है। और उसके बारे में जो जानकारियां सामने आ रही हैं वह आंख खोलने वाली हैं। पता चल रहा है कि उसके तार सीधे पीएमओ से जुड़े हैं। बनारस में पीएम मोदी के चुनाव का वह ‘संचालक’ रहा है। जम्मू-कश्मीर के मौजूदा एलजी ने उससे 25 लाख रुपये उधार ले रखे हैं। इतना ही नहीं वह पीएम के बंगले के ठीक सामने स्थित रेसकोर्स के एक शीश महल में सालों से अपना अड्डा जमाए हुए है। क्या यह संभव है कि यह सब कुछ बगैर पीएमओ की जानकारी के हो? 

इस समय देश संविधान और उसकी व्यवस्था से नहीं बल्कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे एक गैंग से संचालित हो रहा है। जिसका नेतृत्व पीएम मोदी और अमित शाह कर रहे हैं। वहां सिर्फ और सिर्फ साजिशें हैं। नीचे और उसके बाहर गैंगों की ही पूरी व्यवस्था है। और उसी के नियमों और जरूरतों के जरिये वह संचालित हो रही है। एक तरफ पीएम मोदी का गैंग है तो दूसरे गैंग की अगुआई यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं। और मोहन भागवत के नेतृत्व में एक तीसरा गैंग है जो अपने तरीके से हस्तक्षेप कर रहा है।

उसमें वीएचपी से लेकर बजरंग दल और उसकी संस्थाबद्ध शाखाओं सरीखे तमाम खतरनाक संगठन और उनके रूप हैं जिनको हिंदू रक्षा के नाम हथियारबंद कर दिया गया है और मौजूदा सत्ता में उनको दिनदहाड़े सड़कों पर अपराध करने की छूट मिल गयी है। जब अमित शाह कहते हैं कि कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता आएगी तो दंगे शुरू हो जाएंगे तो उसके कुछ ठोस मतलब हैं। अभी तक दंगाई सत्ता में थे तो दंगे की जरूरत ही नहीं थी। लेकिन सत्ता हासिल करने के लिए उसकी फिर से जरूरत पड़ सकती है। अमित शाह यही कर्नाटक की जनता को बताना चाह रहे हैं। यह एक किस्म से जनता को धमकी है। यानि लोकतंत्र को यहां लाकर खड़ा कर दिया गया है जिसमें वोट के लिए विनती नहीं अब जनता को धमकी दी जाएगी।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के फाउंडिंग एडिटर हैं।)

महेंद्र मिश्र
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