अपनी पीठ थपथपाने का नहीं काम करने का समय

स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सर्वे के हवाले से यह तर्क रखा है कि अगर लॉकडाउन नहीं होता, तो देश में आज साढ़े आठ लाख से ज्यादा मरीज होते। बीजेपी के नेता इसे जुमले की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। मगर, क्या वास्तव में ऐसा है? लॉक डाउन से संक्रमण में कमी जरूर आयी होगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन संक्रमण में कितनी कमी आयी, इसका अंदाजा कैसे लगा लिया गया? जब कोरोना की टेस्टिंग ही पर्याप्त मात्रा में नहीं हुई है तो मरीज कितने हैं, इस बारे में दावा कैसे किया जा सकता है?

भारत में 11 अप्रैल तक 1,79,374 सैम्पल्स लिए गये जिनमें 7703 लोग पॉजिटिव मिले। मतलब ये कि 4.29 फीसदी केस पॉजिटिव मिले हैं। 11 अप्रैल के दिन 17143 टेस्टिंग हुई। इनमें से 600 मामले पॉजिटिव पाए गये। यह 3.5 प्रतिशत है। राष्ट्रीय औसत से करीब 0.9 फीसदी कम। इस तरह एक दिन का यह आंकड़ा जरूर लॉकडाउन के दौरान कोरोना के नियंत्रण में होने की बात बयां कर रहा है। मगर, इसका मतलब यह नहीं है कि कोरोना संक्रमण के वास्तविक हालात यही हैं।  

दूसरे देशों की बात करें तो अमेरिका में अगर 5 लाख 33 हजार कोरोना संक्रमण के केस हैं तो यहां टेस्टिंग भी 26 लाख 93 हजार से ज्यादा हुई है। अमेरिका में प्रति 10 लाख लोगों पर 8131 लोगों की जांच हुई है। टेस्टिंग नहीं हुई होती तो वहां भी केस नहीं मिलते। अमेरिका में रिकवर और डेथ केस मिला दें तो ऐसे कुल 51,082 केसों में 40 फीसदी मरीजों की मौत हुई है। भारत में यही आंकड़ा  23 फीसदी का है। अब तक क्लोज हुए 1261 केस में मृत्यु के 289 मामले हैं। विश्वस्तर पर 21 फीसदी के करीब है भारत का आंकड़ा। भारत में प्रति दस लाख पर महज 137 लोगों की जांच हुई है।

टेस्टिंग में दूसरे नंबर पर जर्मनी है जहां 13 लाख 17 हजार 887 लोगों की टेस्टिंग हुई है। यहां 1,25, 452 कोरोना संक्रमित मरीज हैं। 2971 लोगों की मौत हुई है। जर्मनी में प्रति 10 लाख लोगों पर टेस्टिंग का आंकड़ा 15,730 है। 

इसके बाद नंबर आता है रूस का। रूस में 12 लाख लोगों की टेस्टिंग हो चुकी है और यहां 12 अप्रैल तक 15770 कोरोना संक्रमित थे। 130 लोगों की मौत हो चुकी थी। प्रति 10 लाख पर टेस्टिंग 8,223 है।

दक्षिण कोरिया में 5,14, 621 लोगों की टेस्टिंग हुई है। 10 हजार 512 केस मिले हैं और 214 लोगों की मौत हुई है। यहां प्रति 10 लाख लोगों पर 10,038 लोगों की टेस्टिंग हुई है।

इटली का उदाहरण भी जरूरी है। यहां अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा 19,468 मौत हुई है। मगर, यहां भी टेस्टिंग की संख्या 9,63,473 है। कुल कोरोना संक्रमित 1,52,271 हैं। प्रति दस लाख आबादी पर कोरोना टेस्टिंग की संख्या 15935 है।

इसके अलावा प्रति दस लाख आबादी पर औसत 10 हजार से ज्यादा टेस्टिंग करने वाले देशों में  स्विट्जरलैंड (21,954), पुर्तगाल (15,966), ऑस्ट्रिया (15,653) और कनाडा (10639) शामिल हैं।

भारत में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक भारत में पिछले पांच दिनों में 15,747 सैम्पल्स टेस्ट किए गये हैं। इसका मतलब यह है कि बीते पांच दिनों में 78,735 टेस्ट हुए हैं। गति निश्चित रूप से बेहतर हुई है। मगर, सवा अरब की आबादी वाले देश में इसे लगातार बढ़ाना जरूरी है। जब तक हम टेस्टिंग का स्तर 25 लाख के स्तर पर नहीं करते हैं संक्रामकता का अंदाजा लगाना मुश्किल है। 

भारत के विभिन्न राज्यों की बात करें तो महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा कोरोना के 1761 मरीज हैं। देश में हुई 290 मौत में से 127 की मौत यहीं हुई है। महाराष्ट्र टेस्टिंग के मामले में भी सबसे आगे है। यहां 31,841 टेस्टिंग हुई है।

केरल की गिनती उन राज्यों में है जहां कोविड-19 को अच्छे तरीके से नियंत्रित किया गया है। यहां 14 हजार से ज्यादा टेस्ट हुए हैं और कुल 373 मरीज हैं। राजस्थान भी अच्छा उदाहरण है जहां 22 हजार से ज्यादा टेस्ट किए गये हैं और 579 लोग कोरोना संक्रमित हुए हैं। राजस्थान के भीलवाड़ा में जिस तरीके से हॉटस्पॉट मॉडल विकसित करते हुए कोरोना मरीजों को नियंत्रित किया गया है, वह देश के सामने उदाहरण है। उत्तर प्रदेश में 10, 595 टेस्टिंग हुई है और 452 लोग संक्रमित हुए हैं। सबसे अधिक आबादी वाला यह प्रदेश है। इस लिहाज से यहां और भी ज्यादा टेस्टिंग किए जाने की जरूरत है। देश की राजधानी दिल्ली में 11, 708 सैम्पल्स जांचे गये हैं। उनमें से 1069 मरीज पॉजिटिव पाए गये हैं।

राज्य कोरोना पॉजिटिव कोरोना टेस्टिंग

महाराष्ट्र 1761 31,841 (11 अप्रैल तक)

राजस्थान 579 22349 (11 अप्रैल तक)

केरल 373 14163 (11 अप्रैल तक)

दिल्ली 1069 11,708 (11 अप्रैल तक)

उत्तर प्रदेश 452 10,595 (11 अप्रैल तक)

गुजरात 468 9,763  (11 अप्रैल तक)

कर्नाटक 215 9560 (11 अप्रैल तक)

तमिलनाडु 989 9842 (11 अप्रैल तक)

आंध्र प्रदेश 381 6958 (11 अप्रैल तक)

बिहार 60 6111  (11 अप्रैल तक)

छत्तीसगढ़ 25 3858 (11 अप्रैल तक)

हरियाणा 179 3635 (11 अप्रैल तक)

पंजाब 158 3909 (11 अप्रैल तक)

जम्मू-कश्मीर 224 3206 (11 अप्रैल तक)

असम 29 3011 (11 अप्रैल तक)

प.बंगाल 126 2286 (11 अप्रैल तक)

हिमाचल प्रदेश 32 900 (11 अप्रैल तक)

उत्तराखण्ड 35 1705 (10 अप्रैल तक)

मध्यप्रदेश 529 8516 (11 अप्रैल तक)

तेलंगाना 503 –

झारखण्ड 17 1912 (10 अप्रैल तक)

मणिपुर 2 –

मिजोरम 1 74 (8 अप्रैल तक)

नगालैंड 0 –

अरुणाचल प्रदेश 1 206 (9 अप्रैल तक)

त्रिपुरा   2 –

गोवा   4 –

दादर नागर हवेली 1 –

पुद्दुचेरी 7 –

अंडमान 11 –

लद्दाख 15 –

आंकड़े बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के मामले में भारत के अलग-अलग हिस्सों की तस्वीर एक जैसी नहीं है। टेस्टिंग का दायरा लगातार बढ़ाने और इसे लगातार करते रहने की जरूरत है। एक लॉक डाउन के बाद दूसरे लॉक डाउन की जरूरत पड़ी है तो निश्चित रूप से यह कहा जाएगा कि पहला लॉक डाउन अपेक्षित रूप से सफल नहीं हुआ। जमात की घटना से लेकर मजदूरों के सड़क पर उतरने की घटनाएं रहीं। इसके अलावा भी अमीर लोग पैसों की खनक पर सोशल डिस्टेंसिंग तोड़ते दिखे। 

सोशल डिस्टेंसिंग टूटने की कई घटनाएं सामने नहीं आ पायी हैं। सब्जी मंडियों में इसका पालन नहीं हो रहा है। पार्कों में सुबह-सवेरे लोगों को वॉक करते देखा जा सकता है। यहां भी सरकारी गाइडलाइन टूटती दिखी हैं। गांव और दूर दराज के इलाकों में धार्मिक आयोजन भी नहीं रुके हैं। ऐसे में दूसरे लॉक डाउन के सामने भी बड़ी चुनौतियां रहेंगी। जब तक टेस्टिंग नहीं होती, किसी इलाके को कोरोना मुक्त या कोरोना संक्रमण से दूर नहीं कहा जा सकता। 

लॉक डाउन से लोगों में फ्रस्ट्रेशन भी बढ़ा है जो कोरोना वॉरियर्स पर हमले की घटनाओं के रूप में सामने आया है। ये घटनाएं न मामूली हैं और न ही नजरअंदाज करने योग्य। ये घटनाएं कोरोना वॉरियर्स का मनोबल तोड़ने वाली हैं। इसे रोकना होगा। मगर, रोकने के लिए यह जरूरी है कि फ्रस्ट्रेशन को भी खत्म किया जाए। यह माना जाए कि सौ फीसदी लॉक डाउन सही विकल्प नहीं है। इसके बजाए हॉट स्पॉट की भीलवाड़ा थ्योरी सटीक है। 

10 लाख से ज्यादा मजदूर अपने कार्य स्थल से निकलकर होम टाउन की ओर हैं और रास्ते में फंसे हुए हैं। 13.5 लाख मजदूर फैक्ट्रियों में हैं तो 75 लाख मजदूरों को एनजीओ और दूसरे संगठनों के भरोसे भोजन पर निर्भर करना पड़ रहा है। करीब एक करोड़ ऐसे मजदूरों की स्थिति पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। उद्धव ठाकरे, नीतीश कुमार समेत कई मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग में इस मुद्दे को उठाया है। कह सकते हैं कि अभी अपनी पीठ थपथपाने का समय नहीं है। काम करने का समय है। लॉक डाउन नहीं होता तो ऐसा हो जाता और वैसा हो जाता कहकर भ्रम ही पैदा किया जा रहा है।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और इन्हें विभिन्न चैनलों के पैनलों में आजकल बहस करते देखा जा सकता है।)

प्रेम कुमार
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