देश में अब इतिहास के विषय हो जाएँगे सार्वजनिक क्षेत्र! कॉरपोरेट घरानों के चरने के लिए सरकार ने खोले सभी क्षेत्र

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक पैकेज का पाँचवा और अंतिम खेप जारी करते हुए अंततः स्वीकार कर लिया कि यह कोरोना राहत पैकेज नहीं बल्कि आर्थिक सुधार पैकेज है। इसकी घोषणा बजट 20 में की गयी थी जब कहा गया था कि अगले 5 सालों में अर्थव्यवस्था को उबरने के लिए सरकार 100 लाख करोड़ खर्च करेगी।कोरोना राहत पैकेज के नाम पर सरकार ने देश के हर क्षेत्र में निजीकरण का रास्ता साफ कर दिया है और गरीबों, मजदूरों और आम मध्यवर्ग को कोई फायदा हो न हो सरकार ने अपने दोस्त कार्पोरेट घरानों के लिए चरने खाने का रास्ता खोल दिया है।वित्त मंत्री की चौथी प्रेस कांफ्रेंस से ही स्पष्ट हो गया कोरोना राहत की आड़ में यह पूरी तरह कार्पोरेट्स परस्ती की सरकार खुलकर चल रही है।  

आर्थिक राहत पैकेज के पांचों भागों का आकलन करने से पता चलता है कुल 20 लाख करोड़ रुपये का 10 फीसदी से भी कम यानी कि दो लाख करोड़ रुपये से भी कम की राशि लोगों के हाथ में पैसा या राशन देने में खर्च की जानी है। ये राशि जीडीपी का एक फीसदी से भी कम है। बाकी 90 फीसदी राशि यानी कि करीब 19 लाख करोड़ रुपये बैंक लोन, वर्किंग कैपिटल, आरबीआई द्वारा ब्याज दर में कटौती, पहले से ही चली आ रही योजनाओं और इस साल के बजट में घोषित योजनाओं के आवंटन के रूप में दिया जाना है।

बिजनेस टुडे के अनुसार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की आर्थिक राहत पैकेज की चौथी खेप के प्रमुख लाभार्थी टाटा पावर, जेएसडब्ल्यू स्टील, जीवीके, हिंडाल्को और जीएमआर जैसी कंपनियों के अलावा अडानी, अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप, वेदांता और कल्याणी जैसे कारोबारी समूह होंगे। अडानी ग्रुप कोयला, खनिज, रक्षा, बिजली वितरण और हवाई अड्डों जैसे क्षेत्रों में आने वाले नए अवसरों का दोहन कर सकेगा, जबकि वेदांता और आदित्य बिड़ला समूह के हिंडाल्को कोयला और खनिज खनन में परियोजनाओं पर नकद राशि ले सकेंगे ।

वित्तमंत्री सीतारमण ने आठ क्षेत्रों-कोयला, खनिज, रक्षा उत्पादन, हवाई क्षेत्र प्रबंधन, हवाई अड्डों, केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली वितरण कंपनियों, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा में रणनीतिक सुधारों की घोषणा की। उन्होंने कोयला निकासी बुनियादी ढांचे के निर्माण के बारे में बताया। जिस पर 50,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए। सरकार निजी कंपनियों को छह और हवाई अड्डों की नीलामी भी करना चाहती है और सार्वजनिक-निजी साझेदारियों में अन्य 12 का निर्माण करना चाहती है । दरअसल, इनमें से कई प्रोजेक्ट्स में समय लगता है और इससे देश को तुरंत कोरोना वायरस संकट से बाहर आने में मदद नहीं मिलेगी।

अडानी पावर, टाटा पावर, जेएसडब्ल्यू एनर्जी और रिलायंस पावर जैसी निजी कंपनियां थर्मल कोल ब्लॉक्स के लिए बोली में होड़ लगाएंगी, जिन्हें पैकेज के हिस्से के तौर पर नीलाम किया जाएगा। उन्हें इस्पात कंपनियों के लिए भी कुछ कोकिंग कोल माइंस की नीलामी की उम्मीद है। सभी मिलकर इस योजना में 50 खदानों की नीलामी की परिकल्पना की गई है।

सरकार बॉक्साइट और थर्मल कोल माइंस की नीलामी को एक में मिलाना चाहती है ताकि एल्युमिनियम बनाने वाले  एक साथ उनके लिए बोली लगा सकें। इससे हिंडाल्को और वेदांता एल्युमिनियम जैसी कंपनियों को मदद मिलेगी। पैकेज के हिस्से के रूप में लगभग 500 खनिज खनन ब्लॉक भी शामिल किए जाएंगे। सरकार की योजना बंद और गैर-बंद खदानों के भेद को भी दूर करने की है। इसका मतलब है कि इस क्षेत्र के टाटा पावर, रिलायंस पावर और टाटा स्टील जैसे मौजूदा खिलाड़ियों को अपने साथ कोल माइनिंग लाइसेंस बरकरार रखने के लिए नियमित अंतराल पर बोली लगानी होगी।

अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड इससे पहले उन सभी छह हवाई अड्डों, अहमदाबाद, तिरुवनंतपुरम, लखनऊ, मंगलुरू, गुवाहाटी और जयपुर, के लिए सबसे ऊंची बोली लगाने वाली थी, जिन्हें निजीकरण के लिए चयनित किया गया था। समूह को सरकार द्वारा नियोजित नई नीलामियों में भी बोली लगाने की उम्मीद है। अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने पिछले साल राजकोट एयरपोर्ट के लिए 648 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया था। जीएमआर और जीवीके वैश्विक स्तर के साथ इस सेगमेंट में स्थापित खिलाड़ी हैं।

रक्षा उत्पादन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को सरकार ने 49 फीसदी से बढ़ाकर 74 फीसदी कर दिया है। भारतीय कंपनियों ने पहले विदेशी रक्षा निर्माताओं के साथ कई संयुक्त उपक्रम बनाए थे, लेकिन अधिकांश बड़ी परियोजनाओं को लेने में विफल रहे क्योंकि विदेशी साझेदार परियोजनाओं में शामिल अपनी बौद्धिक पूंजी के कारण बहुमत हिस्सेदारी चाहते थे। अडानी और अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनियों ने इस मौके को भुनाने के लिए पहले कई विदेशी साझेदारियों पर हस्ताक्षर किए थे । पुणे स्थित कल्याणी समूह के पास हथियार और गोला बारूद निर्माण सहित मजबूत रक्षा व्यवसाय भी है।

बिजली वितरण में सरकार केंद्र शासित प्रदेशों में अपने कारोबार का निजीकरण करना चाहती है। अडानी और टाटा पावर इस सेगमेंट के प्रमुख खिलाड़ी हैं। अडानी ने 2017 में रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर का मुंबई डिस्ट्रीब्यूशन बिजनेस खरीदा था और मार्केट शेयर को रैंप पर उतारा है। पिछले हफ्ते अनिल अंबानी ग्रुप ने अपने दिल्ली पावर डिस्ट्रीब्यूशन बिजनेस को बिक्री के लिए रखा था।

पांचवें ऐलान में वित्त मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि सरकार कुछ स्ट्रैट्जिक क्षेत्र चुनेगी, जिन्हें नोटिफ़ाई  किया जाएगा। इस क्षेत्र में सार्वजनिक कंपनी को काम करने का हक़ होगा। वे बनी रहेंगी और पहले की तरह ही अहम भूमिका निभाती रहेंगी। लेकिन इस क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र को काम करने का मौका मिलेगा, यानी सरकारी क्षेत्र का एकाधिकार ख़त्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इन नोटिफ़ाइड स्ट्रैट्जिक क्षेत्रों में एक या अधिकतम दो बड़ी सरकारी कंपनियाँ रहेंगी। यदि अधिक कंपनियाँ हुईं तो उनका विलय कर दिया जाएगा। इसके अलावा निजी क्षेत्र की कंपनी काम करेगी। इसके अलावा तमाम क्षेत्रों में निजी कंपनियाँ ही होंगी वे ही काम करेंगी। उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा और सरकारी कंपनियां उन क्षेत्रों में काम नहीं करेंगी।

सरकार धीरे-धीरे सार्वजनिक क्षेत्र को ख़त्म कर देगी। इसकी वजह यह है कि इन स्ट्रैट्जिक क्षेत्रों के अलावा हर क्षेत्र से सार्वजनिक उपक्रमों को हटा लिया जाएगा। दूसरी बात यह होगी कि स्ट्रैट्जिक क्षेत्र में भी एक-दो सरकारी कंपनिया ही रहेंगी और उनके सामने बड़े कॉरपोरेट हाउसेस होंगे। धीरे-धीरे सार्वजनिक क्षेत्र ही ख़त्म हो जाएगा। इसकी वजह यह है कि इन स्ट्रैट्जिक क्षेत्रों के अलावा हर क्षेत्र से सार्वजनिक उपक्रमों को हटा लिया जाएगा। दूसरी बात यह होगी कि स्ट्रैट्जिक क्षेत्र में भी एक-दो सरकारी कंपनियां ही रहेंगी और उनके सामने बड़े कॉरपोरेट हाउसेस होंगे।

सरकार अब तमाम सरकारी कंपनियाँ धीरे-धीरे बेचेगी। पहले सरकारी हिस्सेदारी कम की जाएगी और उसके अगले चरण के रूप में उन्हें बेच दिया जाएगा। नया सार्वजनिक उपक्रम नहीं आएगा। इसका नतीजा यह होगा कि सार्वजनिक उपक्रम पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा। दरअसल भारत अमेरिका की राह पर चलना चाहता है जहाँ सरकार की कहीं कोई भूमिका नहीं रहती जबकि फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में भी सार्वजनिक क्षेत्र हैं और मजबूत हैं।

कॉर्पोरेट्स के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के तहत जो निजी कंपनियां नॉन-कन्वेर्टेबल डिबेंचर्स को स्टॉक में रखती हैं, उन्हें लिस्टेड कंपनी नहीं माना जाएगा। भारतीय कंपनियां विदेशी बाजार में सीधे लिस्टिंग करवा सकेंगी। इसका लाभ निजी कंपनियों को मिलेगा। साथ ही ऐसी कंपनियों को जो छोटी हैं, जिन्हें एक ही व्यक्ति चलाता है, जो प्रोड्यूसर कंपनियां हैं और जो स्टार्ट अप्स हैं। इन पर जुर्माने के प्रावधान कम किए जाएंगे।हालांकि कब मिलेगा यह अभी साफ नहीं है।

सभी सेक्टर निजी क्षेत्रों के लिए खोले जाएंगे। पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइज कुछ अहम सेक्टर्स में भूमिका निभाते रहेंगे। निजी कंपनियों को उन सेक्टर्स में भी निवेश करने या कारोबार बढ़ाने का मौका मिलेगा, जहां अब तक सरकार का ही दखल था। स्ट्रैटजिक सेक्टर में कम से कम एक पब्लिक एंटरप्राइजेज बना रहे, इसका ध्यान रखा जाएगा। स्ट्रैटजिक सेक्टर में भी सरकारी उद्यमों की संख्या 1 से 4 तक ही सीमित रखी जाएगी ताकि प्रशासनिक खर्च कम रहे। बाकी को या तो प्राइवेटाइज किया जाएगा या मर्ज कर एक होल्डिंग कंपनी के दायरे में लाया जाएगा। हालांकि कब मिलेगा यह अभी साफ नहीं है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत रविवार को जब आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो राहत पैकेज का पांचवां ब्लू प्रिंट भी बता दिया। यह राहत पैकेज 20 लाख करोड़ रुपए का नहीं, बल्कि इससे भी 97 हजार करोड़ रुपए ज्यादा यानी कुल 20 लाख 97 हजार 53 करोड़ रुपए का है।सरकार ने इस पैकेज में प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन से पहले बताई गईं 1 लाख 92 हजार 800 करोड़ रुपए की घोषणाओं को भी शामिल कर लिया है।

 (जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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